वनवासी कर रहे पादरियों का विरोध - प्रियंका कौशल



छत्तीसगढ़ में तेजी से जारी धर्मातंरण और मिशनरियों के अत्याचार से तंग आकर कई गांवों ने पादरियों के प्रवेश पर लगाया प्रतिबंध -

अब तक नक्सलवाद के कारण छत्तीसगढ़ सरकार की पेशानी पर बल पड़ते रहे हैं, लेकिन अब राज्य में एक नया मामला प्रदेश सरकार की परेशानी का सबब बनता जा रहा है। मामला माओवाद से भी ज्यादा संजीदा और संवेदनशील है। बस्तर से लेकर जशपुर तक वनवासी वर्सेस ईसाई मिशनरीज़ की जंग ने राज्य सरकार के कान खड़े कर दिए हैं। वनवासी चर्च का विरोध इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि अपने आस-पास बड़ी तेजी से हो रहे धर्म परिवर्तन ने उन्हें अंदर तक हिला कर रख दिया है। एक तरफा गांववाले मिशनरीज के लोगों को गांव में नहीं घुसने देना चाहते, वहीं दूसरी ओर बिलासपुर हाईकोर्ट ने इस मामले में कहा है कि कोई भी किसी गांव में घुसने से नहीं रोक सकता.

विवाद पर बात शुरु करें, इससे पहले छत्तीसगढ़ पर एक सरसरी नज़र डाल लेते हैं। छत्तीसगढ़ को वनवासी प्रदेश के रूप में देश के नक्शे पर मान्यता मिली हुई है। मिले भी क्यूं ना, यहां के 45 फीसदी भू भाग में वनवासी समुदाय का ही आधिपत्य रहा है, चाहे जनसंख्या के हिसाब से उनका खुद का प्रतिशत मात्र 32 फीसदी ही रहा हो, लेकिन वे बड़े भू भाग में फैले रहे हैं। इसका एक कारण ये भी है कि छत्तीसगढ़ का करीब 42 फीसदी इलाका सघन जंगलों वाला है। जहां जंगल होंगे, निश्चित ही वहां वनवासी समुदाय भी होगा। लेकिन इस वनवासी प्रदेश की आबोहवा में इन दिनों एक नया जहर घोला जा रहा है। 

जिस विवाद की बात हम शुरु में कर रहे थे, अब उसी पर आते हैं। प्रदेश के वनवासी इलाकों में या यूं कहें कि धुर माओवाद प्रभावित इलाकों में इन दिनों “हिंदू वर्सेस ईसाई मिशनरीज़” का युद्ध चल रहा है। बस्तर के 60 से ज्यादा गांवों में इन दिनों लगातार बैठक हो रही हैं, इन बैठकों का एकमात्र एजेंडा “धर्म” होता है। ये बात किसी से छुपी नहीं है कि देश के ज्यादातर पिछड़े और वनवासी इलाकों में ईसाइ मिशनरियों ने पिछले पांच दशक में तेजी से विस्तार किया है। छत्तीसगढ़ में भी, जहां प्रशासन, पुलिस, सरकार नहीं पहुंच पाई है, वहां ईसाइ मिशनरियां काम कर रही हैं, पूरे बस्तर के हर गांव में चर्च विद्यमान है। 

जब इस संवाददाता ने बस्तर के गांवों का दौरा किया, तो पाया कि हर गांव की आधी आबादी प्रार्थना करने चर्च जा रही है। ये भले ही लोगों के लिए आश्चर्य का विषय ना हो, लेकिन फिर भी धुर माओवादी इलाकों में चर्च का धर्मातंरण में लिप्त रहना कान खड़े करने के लिए काफी है। जहां प्रशासन और पुलिस नहीं पहुंच पाती हो, वहां मिशनरियों का बेखौफ काम करना कई बड़े सवाल खड़े करता है। लेकिन यह बस्तर का अधूरा पहलू हुआ। दूसरा पहलू यह है कि अब वनवासी इन मिशनरीज़ से मुक्ति चाहते हैं। बस्तर में अब जो हो रहा है, वो पूरी तस्वीर को साफ कर रहा है। साथ ही किसी बड़े तूफान की तरफ भी संकेत कर रहा है।

वर्ष 2014 के जून महीने के आखिर में जगदलपुर के तोकापाल ब्लॉक के 35 और लोहण्डीगुड़ा के करीब 20 गांव के ग्रामीणों ने विशेष ग्राम सभा में बाहरी धर्मो के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है। 25 जून को बेलर ग्राम में आयोजित विशेष ग्राम सभा में ग्रामीणों ने उक्ताशय का फैसला लेते हुए कलेक्टर व तहसीलदार को इसकी जानकारी भी भेज दी है। आदिवासी संस्कृति के संरक्षण के नाम पर एक बार फिर यह तय किया गया है कि ग्राम पंचायत की अनुमति के बिना गांव में धार्मिक स्थल का निर्माण भी वर्जित रहेगा।गौरतलब है कि यह फैसला लेने वाला बेलर अकेला गांव नहीं बल्कि जगदलपुर जिले के 60 से भी ज्यादा गांवों ने इसी तरह ग्रामसभा कर ऐसा फैसला लिया है। ये सभी ग्राम सभाएं छत्तीसगढ़ ग्राम पंचायत अधिनियम 129 ग के तहत बुलाई गई हैं। इस दौरान ना केवल गांव के पंच, सरपंच व ग्रामीण मौजूद रहे, बल्कि पुलिस भी तैनात रही।

नाम ना छपाने की शर्त पर कुछ ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि पिछले कुछ सालों से कुछ बाहरी लोग गांव में आकर प्रलोभन देकर लोगों को धर्म परिवर्तन के लिए बहका रहे थे। इससे ग्रामीणों के पांरपरित देवी देवताओं में लोगों की आस्था कम हो रही थी। साथ ही गांव के कुछ लोग परंपरागत धार्मिक आयोजनों में भी असयोग की स्थिति पैदा कर रहे थे। यही कारण था कि विशेष ग्राम सभा बुलाकर बाहरी धर्मों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लेना पडा। बस्तर में मान्यता है कि हर गांव में अलग अलग देवी देवता निवास करते हैं। बस्तर दशहरे पर पूरे बस्तर के देवता एक जगह इकट्ठे होते हैं। रस्म अदायगी के बाद उन्हें उनके ग्राम विदा किया जाता है। इसे देखने देश विदेश से लोग हर साल बस्तर पहुंचते हैं। ये पंरपरा सदियों से चली आ रही है।

बस्तर में मानव तस्करों के चंगुल से छूटकर किसी तरह घर लौट आए लोगों को भी चर्च किसी से बात करने की अनुमति नहीं देता है। इससे भी चर्च की गतिविधियों पर संदेह उठना लाजिमी है। यह संवाददाता जब जनवरी 2014 को नारायणपुर जिले के बड़े जम्हरी गांव पहुंची तो वहां जो कुछ घटा, वह नजारा चौंकाने वाला व संदेहास्पद था। दरअसल स्थानीय पुलिस ने नामाक्कल और सेलम (तमिलनाडु) के कारखानों से स्थानीय युवतियों को आजाद करवाकर घर पहुंचाया था। जब संवाददाता ने बड़े जम्हरी (अत्यंत नक्सल प्रभावित क्षेत्र) पहुंचकर उन युवतियों से बात करनी चाही तो वे सभी युवतियां उस वक्त गांव में बनी चर्च में मौजूद थीं। जब पादरी को पता चला कि कुछ पत्रकार इन युवतियों से उनकी व्यथा सुनना चाहते हैं तो उसने लड़कियों को पत्रकारों से बात करने की लिए सख्त मना कर दिया। बड़ी मुश्किल के बाद कुछ युवतियां बात करने को राजी हुईं, लेकिन चर्च के डर से उन्होंने ज्यादा बात करने से मना कर दिया। 

इस पूरे प्रकरण में यह समझ में नहीं आया कि क्यों चर्च मानव तस्करी का शिकार बनी युवतियों को बात करने की अनुमति नहीं दे रहा था, क्या इसमें उसकी भी कोई भूमिका थी? यह सवाल मन में इसलिए भी उठता है कि यह लड़कियां पलायन कर मानव तस्करों के चंगुल में नहीं फंसी थीं, बल्कि उन्हें उनके गांवों से तमिलनाडु घुमाने के बहाने ले जाया गया था। दूसरी बात भी ध्यान में रखने की जरूरत है कि बस्तर के वनवासी रोजी-रोटी की तलाश में कभी भी पलायन नहीं करते, उनकी आजीविका वनोपज पर निर्भर करती है। साथ ही छत्तीसगढ़ सरकार दो व एक रुपए किलो चावल व मुफ्त नमक उपलब्ध करवा रही है। बस्तर के वनवासी का भोजन ही केवल चावल व नमक है। इससे ज्यादा उसे अपेक्षा भी नहीं रहती। जिस बड़े जम्हरी की बात हम कर रहे हैं, वहां मनरेगा के तहत भी काम हुए हैं, मतलब रोजगार गांव में ही उपलब्ध था। वैसे भी जिन युवतियों ने हमसे बात की, उन्होंने बताया कि उन्हें नौकरी करवाने नहीं, बल्कि तमिलनाडु घुमाने के नाम पर ले जाया गया था और बंधक बना लिया गया था।

19 लोगों के खिलाफ दर्ज हुई एफआईआर

धर्म परिवर्तन की घटनाओं को लेकर आक्रोश इतना बढ़ गया है कि लोग आपस में मारपीट पर उतारू हैं। ऐसी ही एक घटना लोहांडीगुडा में हुई। जिसमें जातिगत आधार पर राशन बांटने को लेकर उपज विवाद में लोहांडीगुड़ा ब्लॉक के सिरिसगुड़ा पंचायत में 16 जून 2014 को दो गुटों में मारपीट के मामले में गांव के 19 लोगों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज की गई है। दरअसल गांव के 52 परिवारों ने धर्म विशेष का होने के कारण राशन दुकान से राशन नहीं दिए जाने की शिकायत खाद्य विभाग के अफसरों से की गई थी। एएसपी सलाम का कहना है कि मामले की विवेचना चल रही है।

बस्तर के हर गांव में चर्च

जब आप बस्तर में प्रवेश करते हैं तो कांकेर आपका स्वागत करता है। साथ ही साथ स्वागत करते हैं मिशनरीज़ द्वारा बनाए चर्च। केवल मुख्य सड़क याने राष्ट्रीय राजमार्ग 30 पर ही नहीं, बल्कि ऊबड़-खाबड़ संकरे कच्चे रास्तों से होते हुए आप किसी गांव में प्रवेश करते हैं तो वहां भी आपको किसी घर पर लगे क्रॉस के दर्शन हो जाएंगे। ऐसे गांवों में भी, जहां जाना अपनी जान पर खेलना भी साबित हो सकता है। ऐसी भी सूचना है कि छत्तीसगढ़ की मिशनरीज़ ने प्रदेश के बाहर की फेब्रिकेशन के व्यवसाय से जुड़ी कंपनी को 120 प्री फेब्रिकेटेड चर्च के ढांचे बनवाने का ऑर्डर भी दिया है।

भोले-भाले वनवासी को ठगने का खेल

कोंडांगांव बस्तर का जाना-पहचाना जिला है। राजेश्वरी नेताम यहीं की निवासी हैं। वे बताती हैं कि कैसे मिशनरीज भोले-भाले वनवासियों को न केवल छल रही हैं, बल्कि उनकी पूरी संस्कृति को नष्ट-भ्रष्ट कर रही हैं। वे अपना आंखों देखा हाल बताती हैं कि एक बार कोंडागांव में ही कुछ स्थानीय युवक धर्मांतरण का विरोध कर रहे थे। वे अपने गांव में घूम-घूमकर लोगों को जागरुक बना रहे थे कि किसी भी प्रलोभन में आकर अपना धर्म नहीं बदलना है। जब मिशनरी के कार्यकर्ताओं ने देखा की लालच देकर तो उनकी दाल नहीं गल रही है, तब उन्होंने एक नया पैंतरा चला और अपना लक्ष्य हासिल करने में कामयाब भी हो गए। उनके ही लोगों ने अमुक दिन एक स्थान पर खड़े होकर यह ढोंग रचाया कि एक महिला को प्रेतबाधा हो गई है। उन्होंने ग्रामीणों को चुनौती दी कि वे अपने-अपने देवी-देवता का नाम लेकर महिला की प्रेतबाधा दूर करके दिखाएं। जब गांव के बैगा-गुनिया ने अपने ग्राम देवता का नाम लेकर महिला को झाडने फूंकने की कोशिश की, लेकिन महिला की समस्या दूर नहीं हुई। आखिर में एक पादरी ने ईसा मसीह का नाम लेकर उस महिल को ठीक कर दिया। बस लोग उनके प्रभाव में आने लगे। शकुंतला जी बताती हैं कि वह महिला मिशनरीज की ही एक कार्यकर्ता थी। वे केवल भोले-भाले वनवासियों के सामने स्वांग रच रहे थे। लेकिन वनवासी इस षडयंत्र को नहीं समझ पाए। आखिर में उन युवकों ने भी हार मान ली, जो लोगों में जागरुकता का प्रचार-प्रसार कर रहे थे।

केवल जशपुर में ऑपरेशन घर वापसी

छत्तीसगढ़ में धर्म परिवर्तन का मुद्दा नया नहीं है। पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री दिलीप सिंह जूदेव (अब दिंवगत) की भी ईसाई मिशनरियों से खींचतान ताउम्र चलती रही। जूदेव जीवन भर ऑपरेशन घर वापसी के तहत ईसाइ धर्म स्वीकार कर चुके हिंदुओं को वापस अपने धर्म में लाते रहे। उनके निधन के बाद अब उनका बेटा प्रबल प्रताप सिंह जूदेव भी ऑपरेशन घर वापसी की कमान संभाले हुए हैं। इसमें प्रबल प्रताप का साथ उनकी भाभी प्रिया जूदेव दे रही हैं। प्रिया जूदेव दिलीप सिंह जूदेव के ही स्वर्गीय बेटे शत्रुजंय प्रताप सिंह जूदेव की पत्नी हैं। घर वापसी अभियान के तहत हाल ही में झरगवां में आयोजित कार्यक्रम में प्रबल प्रताप सिंह एवं उनकी भाभी प्रिया सिंह जूदेव ने सात परिवारों के 36 लोगों का पांव पूजकर एवं संकल्प दिलाकर हिंदू धर्म में वापसी कराई।

झरगंवा की पहाड़ी पर प्रसिद्ध ब्राह्मनी देवी की मूर्ति है। लगभग 30 वर्षों से वहां हिंदू धर्मावलंबी पूजा करते रहे हैं। पिछले कुछ महीने पहले नवरात्र के अवसर पर एक अन्य धर्म के लोगों ने वहां क्रॉस गाड़ दिया था। दूसरे धर्मावलंबी के लोगों का कहना था कि वे भी आठ-दस वर्षों से इस स्थल को पूजनीय मानते हैं। नवरात्र के अवसर पर दोनों संप्रदायों की पूजा तिथि पड़ने की वजह से विवाद की स्थिति बन गई थी एवं प्रशासन व पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा था।

प्रबल प्रताप कहते हैं कि “ मैं धर्मांतरण रोकने में सर्वस्व लगा दूंगा। मेरे पिता ने अपने जीवन काल में धर्मांतरण रोकने का जो बीड़ा उठाया था। मैं वादा करता हूं कि किसी भी कीमत पर आपरेशन घर वापसी बंद नहीं होगा”।

बतौली विकासखंड के झरगवां में जब प्रबल प्रताप लोगों की हिंदू धर्म में वापसी करवा रहे थे, तब उन्होंने लोगों से कहा “वे पहली बार इस क्षेत्र में आए हैं। 13 वर्षों तक वे विदेश में रहकर पढ़ाई पूरी करते रहे। इस दौरान स्व.दिलीप सिंह जूदेव उन्हें फोन कर पूछते रहते थे कि विदेश में क्या तलाश कर रहे हो,देश लौट आओ। लोगों का व्यवहार सीखो व जड़ से जुड़ो। धर्म को समझो, आत्मसात करो। प्रबल प्रताप ने बताया कि आखिरकार उन्हें हिंदुस्तान आना पड़ा। आकर पता चला कि मेरे पिता कितना सच कहते थे। आज हम लोग कुछ अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक साजिशों के कारण अपने धर्म को बचा नहीं पा रहे। इसलिए मेरे पिता ने जो बीड़ा उठाया था उन्हें पूरा करने जान लगा दूंगा। प्रबल प्रताप ने आगे कहा कि धर्मांतरण तुरंत बंद हो। इतिहास साक्षी है कि जहां भी हिंदू अल्पमत में रहे हैं वहां अलगाववादी और आतंकवादी शक्तियां सक्रिय हो जाती हैं। हमें हिंदुओं को बचाना जरूरी है तभी मंदिर बचे रहेंगे। धर्म की रक्षा ही राष्ट्र की रक्षा है। हिंदू धर्म उदारवादी है यह विकासवादी है, जड़वादी व संप्रदायवादी नहीं है। उन्होंने कहा कि आप सबका आह्वान है कि धर्म रक्षा के लिए समर्पित भाव से आगे बढ़ चलें”।

ईसाई पादरी की हत्या के अभियुक्त दारा सिंह की पैरवी कर चर्चा में आए थे जूदेव

जशपुर राजघराने में 8 मार्च 1949 को जन्मे जूदेव के पिता राजा विजय भूषण देव जशपुर रियासत के अंतिम शासक थे। जूदेव की शिक्षा जशपुर और मेयो कॉलेज अजमेर में हुई। उन्होंने 1975 में सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया और जशपुर नगरपालिका के अध्यक्ष बने। दिलीप सिंह जूदेव 1988 में खरसिया विधानसभा क्षेत्र से तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के खिलाफ उपचुनाव लड़े और कड़े मुकाबले में हार गए थे। भारतीय जनता पार्टी की ओर से 1989 से 91 तक वे लोकसभा सदस्य रहे और 1992 से 98 तक राज्यसभा सदस्य रहे। जूदेव उड़ीसा में ईसाई पादरी स्टेन्स की हत्या के प्रकरण में अभियुक्त दारासिंह की पैरवी के लिए आगे आए और इससे उन्होंने पूरे देश को चौंका दिया। जनवरी 2003 में दिलीपसिंह जूदेव को केंद्रीय पर्यावरण एवं वन राज्यमंत्री बनाया गया। बाद में उन्होंने 17 नवंबर 2003 को इस पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वे बिलासपुर से लोकसभा के सांसद चुने गए। वहां उन्होंने श्रीमती रेणु जोगी को पराजित किया। दिलीपसिंह जूदेव का जशपुर राजघराना तीन पीढिय़ों से रामराज्य परिषद, जनसंघ और अब भाजपा से जुड़ा रहा है। श्री जूदेव के नेतृत्व में भाजपा ने जशपुर को एक अलग पहचान दिलाई। उनके कार्यों और जनता का उनके प्रति अपार लगाव ही था, जिससे जशपुर जिला भाजपा का अभेद गढ़ बना रहा। उनका निधन एक युग का अंत है।

ख्यातनाम पत्रकार प्रियंका कौशल 

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