क्या आप जानते है फेसबुक के फाउंडर मार्क जुकरबर्ग नहीं एक भारतीय है ? जानिये फेसबुक के पीछे का असली सच !

दिव्य नरेंद्र हिन्दुस्तानियों के लिए ज्यादा जाना-पहचाना नाम नहीं है। वह मूल रूप से हिंदुस्तानी हैं,वैसे वह अमेरिका में ही पले ,बढे और पढ़े। उनके माता-पिता अपने बुरे दिनों में भारत छोड़ कर अमेरिका में बस गए थे। पेशे से उनके माता-पिता डॉक्टर है। परम्परावादी, अंतर्मुखी , दुसरे भारतीय माता-पिता की तरह वे भी अपने बेटे को डॉक्टर बनाना चाहते थे, पर दिव्य को यह मंजूर नहीं था। उनके अन्दर एक एंटरप्रीन्योर बनने का सपना था। तमाम संघर्षो से जूझते हुए वह ऐसा करने में सफल भी हुए। 2008 के अमेरिकी कोर्ट के फैसले के बाद यह बात पक्की भी हो गयी की दुनिया की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग बनाने का आईडिया उनका था। इस आईडिया के पीछे उनके दोस्त विंकलवास भी शामिल थे।

कानूनी जंग 

फेसबुक के संस्थापक जुकरबर्ग ने जब दिव्य और उसके दोस्तों के आईडिया को अमलीजामा पहनाया, तो बवाल मच गया। दिव्य ने जुकरबर्ग के खिलाफ 2004 में अमेरिका की एक अदालत में मुक़दमा कर दिया। फेसला दिव्य और उसके दोस्तों के हक़ में आया। जुकरबर्ग को हर्जाने के तोर पर 650 लाख डॉलर चुकाने पड़े, लेकिन दिव्य इससे संतुष्ट नहीं हुए।उनका तर्क था की उस समय फेसबुक के शेयरो की जो बाजार में कीमत थी, उन्हें उस के हिसाब से हर्जाना नहीं दिया गया।

एक बार फिर मुकदमा दायर हुआ लकिन इस बार दिव्य हर गए। हाल में आये कोर्ट के इस फेसले में कहा गया की 2008 में जो फेसला हुआ है वो एकदम सही हैं। फेसबुक से जुकरबर्ग की तरह बेसक दिव्य का नाम नहीं जुड़ा हो, पर जब-जब फेसबुक के जनम की कहानी लिखी जाएगी, तब-तब दिव्य को भी याद जायेगा। यही वजह रही की जब इस विवाद ब्लॉकबस्टर फिल्म "द सोशल नेटवर्क" बनी तब दिव्य को एक नेगेटिव केरेक्टर के तोर पर पेस नहीं किया गया।दिव्य कहते है की इस फिल्म से पहले में चिंतित था की कही मुझे खलनायक के तोर पर पेश न कर दिया जाये,लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। 

असली कहानी 

फेसबुक का जन्म होर्वार्ड कनेक्शन सोशल साईट की निर्माण प्रकिर्या के दोरान हुआ था। दिव्य हर्वोर्ड कनेक्शन प्रोजेक्ट पर काफी आगे बढ़ चुके थे।उसके लम्बे समय बाद जुकरबर्ग एक मौखिक  समझोते के तहत इसमें सामिल हुए थे। पूरी चालाकी से से उन्होंने इस प्रोजेक्ट की हायजेक कर लिया और फेसबुक नाम से डोमेन रगिस्ट्र कर के इस प्रोजेक्ट अमलीजामा पहना दिया।इस बिच दिव्य और उनके साथियों के जुकरबर्ग से तीखी नोक -झोंक हुई।यूनिवर्सिटी मैनेजमेंट में मामले को संत किया और दिव्य को अदालत में जाने की सलाह दी। जुकरबर्ग से मुक़दमे बाजी करते हुए दिव्य अपने दुसरे प्रोजेक्ट पर काम करते रहे।दो साल तक उन्होंने इन्वेस्टमेंट बैंकर के तोर पर काम किया और इसी दोरान सम जीरो नाम की कंपनी बनायीं।

खास पहचान 

आज दिव्य की एक अमेरिकी बिजनिसमेन के तोर पर खास पहचान है।18 मार्च 1982 में न्यू यॉर्क में जन्मे दिव्य ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से पढाई की है। आज दिव्य "सम जीरो" के सीईओ हैं। उनकी कंपनी में दुनिया के चुनिन्दा पांच हजार से ज्यादा फंड अनालिसिस काम करते हैं। उनके सपने अभी मरे नहीं है। 2012 में लॉ और mba की डीग्री हासिल करने के बाद वह बड़ा धमाका करने की योजना में है।

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