क्या कभी रुकेगा भ्रष्टाचार का शिष्टाचार ?



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर यह सोचते हैं कि वे भ्रष्ट नहीं हैं तो सरकारी दफ्तर, एजेंसियां भ्रष्टाचार मुक्त हो गई हैं, तो शायद यह खामख्याली है | 2013-14 में नरेंद्र मोदी की जो आंधी चली और उसमें सारे विरोधी तिनके की तरह उड़ते दिखाई दिए, जनता की उस दीवानगी के पीछे भ्रष्टाचार के खिलाफ जन आक्रोश भी एक बड़ा कारण था | लोगों को लगता था कि मोदी आयेंगे तो भ्रष्टाचार पर लगाम लगायेंगे |

मोदी सरकार आने पर सत्ताशीर्ष में भ्रष्टाचार कम भले ही हुआ हो, किन्तु नौकरशाही और बाबूगिरी तो यथावत है | अपने छोटे छोटे कामों के लिए लोगों को चपरासियों और छोटे छोटे बाबुओं की तो जेब गरम करना ही पड़ती है | इस स्थिति ने ही अरविंद केजरीवाल जैसे अतिमहत्वाकांक्षी राजनेता को मौक़ा दिया है कि वह जनलोकपाल के मुद्दे पर अन्ना की काठ की हांडी को एक बार फिर राजनीति के चूल्हे पर चढ़ाए |

अभी पिछले दिनों का ही वाकया है | रजिस्ट्रार ऑफ़ न्यूज़पेपर्स के दिल्ली कार्यालय में एक पत्रिका के रजिस्ट्रेशन हेतु आवेदन दिया गया | कहने को वहां सब कुछ ओनलाईन और पारदर्शी है | वेव साईट पर यह भी अंकित है कि प्रत्येक आवेदन का निदान एक माह में अनिवार्यतः किया जाएगा | किन्तु आवेदन में कमियाँ निकालना तो उनके अधिकार क्षेत्र में आता है न | बस जब तक भेंट पूजा न हो जाए कमियाँ निकलती रहती हैं | और एक माह के स्थान पर एक डेढ़ वर्ष भी बीत जाते हैं | खैर जिस आवेदन की चर्चा की है, उसे तो महज चार – पांच माह ही हुए है |

यह तो उस कार्यालय का आलम है, जो लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पत्रकारिता से जुडा हुआ है, शेष स्थानों का तो भगवान् ही मालिक है | मुझे एक प्रसिद्ध राजनेता का बक्तव्य ध्यान में आता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि “मैं यह कसम खा सकता हूँ कि रिश्वत नहीं लूंगा किन्तु यह वायदा नहीं कर सकता कि रिश्वत नहीं दूंगा |”

कहा जा सकता है कि इस स्थिति को बदलना टेढ़ी खीर है | किन्तु चुनौती का सामना करने में मोदी जी सिद्ध हस्त हैं | मेरी आशा अभी बरक़रार है | लिखने का उद्देश्य भी यही है कि बात निकले और दूर तलक जाए | 

देश देखता टुकुर टुकुर है, आशा दीप जलाए, 

कुछ तो ऐसा हो भारत में, जो नजीर बन जाए !!


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