जाने दो यूनिफार्म सिविल कोड की बातें, कमसेकम हिन्दू कोड बिल तो दुरुस्त करो -दिवाकर शर्मा


सरकार का दायित्व है कि वह बने हुए क़ानून का, उसकी मंशा के अनुरूप पालन सुनिश्चित करे | अच्छे व सही क़ानून बनें तथा वर्तमान क़ानून की त्रुटियाँ दूर हों, यह भी सरकार को देखना ही चाहिए | आज हालत क्या है जरा इस पर तो नजर घुमाईये | 

आज पुरातन हिन्दू समाज व्यवस्था टूट रही है | कुछ वर्ष पूर्व तक भारत की संयुक्त परिवार व्यवस्था की सम्पूर्ण विश्व में प्रशंसा होती थी | इस व्यवस्था में बच्चों को प्रारम्भ से ही सहअस्तित्व की शिक्षा मिलती थी, उनका सामूहिक भरण पोषण होता था | आज महिलाओं व वृद्धों की सुरक्षा संबंधी जो समस्याएं दिखाई देती हैं, वह पुरानी व्यवस्था के टूटने के कारण ही खडी हुई हैं | 

इसी प्रकार विवाह संस्था टूटने से प्रेम का स्थान सेक्स ने ले लिया है | विवाह न करके साथ रहना शुरू हुआ | सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसे रोकने का कोई क़ानून नहीं है, अतः बिना विवाह के सम्बन्ध रखना कोई गुनाह नहीं है | उनकी भावना थी कि क़ानून नहीं है, तो क़ानून बनाओ | किन्तु इस पर विचार नहीं हुआ | समलेंगिक संबंधों पर भी यही स्थिति है | इन बातों पर सोचना ही बंद कर दिया गया है |

कितनी विचित्र स्थिति है कि न तो सरकार इस दिशा में कोई ठोस कदम उठा रही है, और नही समाज इसकी चिंता कर रहा है | हिन्दू कथावाचक व साधू संत जो लाखों लोगों को प्रवचन देते हैं, इस विषय पर कोई विचारपूर्ण मार्गदर्शन समाज को देने की पहल नहीं करते |

भारत में सदा कर्तव्य पर जोर दिया जाता था, जबकि पश्चिम में अधिकार पर | सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, अवैध संबंधों से उत्पन्न बच्चों को भी संपत्ति पर अधिकार, ये पश्चिमी अवधारणा से उत्पन्न शब्द हैं | विचित्र स्थिति है कि दो शादी नहीं कर सकते, किन्तु अवैध सम्बन्ध रख कर संतान उत्पन्न करने पर कोई रोक नहीं है | इसके कारण वैध पत्नी व बच्चों के हित प्रभावित हो रहे हैं |

कहीं ऐसा न हो कि आगे चलकर लोगों को हिन्दू होना घाटे का सौदा लगने लगे | उनका जीवन दूभर हो जाए | सचाई तो यह है कि आजादी से पहले ही अंग्रेजो ने भारत को तोड़ने के लिए कई साजिशें रची थी उन्ही में से एक था हिन्दू कोड बिल। जिसके अंतर्गत निम्नलिखित कानून थे - हिन्दू उतराधिकारए हिन्दू वसीयत अधिनियम, विधवा विवाह, विवाहित स्त्री के साम्पत्तिक अधिकार, तलाक, भरण.पोषण कानून आदि (कुछ समय पश्चात् इसका नाम बदल कर शारदा एक्ट कर दिया गया)। इस एक बिल के माध्यम से इन्होने 50 सालो में वो काम कर दिखाया जो वो भारत में रह कर भी अगले 500 सालो में नहीं कर सकते थे।

अतः समय रहते विवाह क़ानून, उत्तराधिकार कानूनों में बदलाव की आवश्यकता है | सरकार अगर स्वतः संज्ञान न ले तो समाज को उसे विवश करना चाहिए | जनमत का दबाब ही प्रजातंत्र में सर्वोपरि होता है | देखिये न कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कोई शासकीय बॉडी नहीं है, उसे मुस्लिम समाज ने बनाया है, लेकिन उसे सभी मान्यता देते हैं | 

समान नागरिक संहिता तो वोट की राजनीति का औजार हथियार भर है, वह बने चाहे न बने, संसद में बैठे दादा भाईयो कमसेकम हिन्दू कोड बिल को तो दुरुस्त और समयानुकूल बना दो |

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