जनकवि हलधर नाग !

कुछ लोगों को लगता है कि सारा ज्ञान स्कूल की किताबों में ही छुपा रहता है। जो जितनी ज्यादा डिग्रीयां बटोरकर रखे हुये है वह उतना ही बडा ज्ञानी है। लेकिन कुछ लोग हैं जिन्होंने स्कूल का मुंह भी नहीं देखा किन्तु जीवन में सफलता ने उनके चरण चूमे। और यह इसलिए हुआ, क्योंकि उन्होंने जीवन की पाठशाला में मानवता की शिक्षा ग्रहण की। 

ऐसे ही एक व्यक्ति पर केन्द्रित है आज का यह आलेख। ओडिशा के बाडगढ़ जिले के घेंस गांव में बेहद ही गरीब परिवार में जन्मे इस बालक के सर से 10 वर्ष की आयु में ही पिता का साया उठ गया। एक विधवा के बच्चे का जीवन बहुत ही मुश्किल भरा रहता है। मजबूरी में कक्षा 3 के बाद ही विद्यालय जाना बंद करना पड़ा। अपने व परिवार के उदरपोषण हेतु एक मिठाई की दुकान पर बर्तन मांजने का काम किया। 

दो साल बाद एक गांव के सरपंच उन्हें हाईस्कूल ले गये, यहां पर उन्होंने एक कुक के तौर पर काम किया। लगभग 16 साल तक वे यहां कुक के तौर पर काम करते रहे। धीरे-धीरे उस इलाके में कई स्कूल खुल गए। इसके बाद उन्होंने बैंक से 1,000 रुपए लोन लेकर स्कूली बच्चों के लिए स्टेशनरी और खाने-पीने के दूसरे सामानों वाली एक छोटी सी दुकान खोल ली। 

प्रतिभा परिस्थितियों की मोहताज नहीं होती। अपना काम करते करते उन्होंने स्वान्तः सुखाय कवितायें लिखना शुरू किया। उन्होंने गांव वालों को अपनी कविताएं सुनाना शुरू किया और लोगों ने उन्हें बेहद पसंद भी किया। कोसली भाषा में लिखी उनकी कवितायें गांववाले बड़े प्यार से सुनते थे। लोगों को हलधर की कविताएं इतनी पसंद आई कि वो उन्हें लोककवि के नाम से बुलाने लगे।

1990 में उन्होंने पहली बार एक स्थानीय पत्रिका में प्रकाशनार्थ अपनी कविता 'धोडो बारगाछ' भेजी । इसका मतलब होता है बरगद का पुराना पेड़। उस स्थानीय पत्रिका ने उस कविता को प्रकाशित भी किया, साथ ही और कवितायें भेजने का आग्रह भी किया। उनकी रचनाएं समाज, धर्म, मान्यताओं और बदलाव जैसे विषयों पर आधारित होती थीं। उनका मानना है कि कविता समाज के लोगों तक संदेश पहुंचाने का सबसे अच्छा तरीका है। 

आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि तीसरी कक्षा तक पढ़े यह जनकवि पीएचडी करने वाले छात्रों के सबजेक्ट की लिस्ट में हमेशा शामिल रहते हैं। उनके नाम पर अब तक पांच थिसिस दर्ज हैं और जल्द ही वह ओडि़शा स्थित संबलपुर यूनिवर्सिटी के सिलेबस में शामिल की जाएंगी। 

पिछले दिनों राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान पदमश्री और पदमभूषण से कुछ हस्तियों को नवाजा। इन्हीं हस्तियों में से एक थे हमारे कथा नायक ओडिशा के 66 वर्षीय कवि "हलधर नाग"। ग्लेमर के पीछे भागने वाले हमारे समाचार चैनलों को तो उनमें कोई दिलचस्पी थी ही नहीं, अतः स्वाभाविक ही उनके बारे में टीवी पर कुछ ख़ास आया ही नहीं । टीवी चेनलों को यह कौन समझाये कि एक कम पढ़ा लिखा व्यक्ति भी जीवन में न केवल सफल हो सकता है, बल्कि अन्य लोगों को प्रेरणा भी दे सकता है।


एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें