ट्रिपल तलाक के कोढ़ में खाज, इस्लामी बैंक का आगाज !
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एक समाचार जो आज भले ही अखबारों
की सुर्ख़ियों से परे हो, किन्तु आगे चलकर उसके कारण देश का सामाजिक तानाबाना छिन्न
भिन्न हो सकता है ! अधिकाँश अखबारों ने तो उसे कोई महत्व ही नहीं दिया है, किसी न
छापा भी है, तो किसी कोने में ! वह समाचार है इस्लामी बैंकिंग व्यवस्था के लिए देश
के दरवाजे खुलना । महाराष्ट्र के सोलापुर नगर में पहले इस्लामी बैंक का विधिवत
उदघाटन कर दिया गया है। इस बैंक का नाम लोकमंगल बैंक रखा गया है। अब चूंकि इस्लाम
में व्याज लेना देना हराम है, अतः इस बैंक में धनराशि जमा करवाने वाले लोगों को न
तो कोई ब्याज दिया जाएगा और न ही कर्ज लेने वालों से कोई ब्याज वसूल किया जायेगा।
इस बैंक से अभी तक एक दर्जन लोगों को कर्ज दिया गया जो कि सभी मुसलमान है। और यही
बैंक की नीति भी है ! इस इस्लामिक बैंकिंग व्यवस्था को चलाने के लिए मुस्लिम
विद्वानों की एक कमेटी होगी जो यह तय करेगी कि किसे कर्ज दिया जाये !
अब सवाल उठता है कि अगर न व्याज लिया
जाएगा न दिया जाएगा तो बैंक चलेगा कैसे ? उसके कर्मचारियों को वेतन कैसे मिलेगा ?
तो बैंक के कर्ताधर्ता अपनी आय का स्त्रोत संपत्तियों की खरीद और बिक्री को बताते
हैं। लेकिन परदे के पीछे हकीकत कुछ और है ! सचाई यह है कि इस्लामिक विकास बैंक के
लाभांश का अधिकांश भाग इस्लाम के प्रचार-प्रसार और लोगों को मुस्लिम धर्म में दीक्षित
करने के लिए खर्च किया जाता है। एक दशक पूर्व इस्लामिक विकास बैंक के प्रबंधक मंडल
की एक बैठक कुवैत में हुई थी जिसमें यह तय किया गया था कि भारत में धर्मातंरण की
सबसे ज्यादा गुंजाइश है इसलिए भारत में गैर-मुसलमानों को इस्लाम धर्म में कबूल
करने के लिए विशेष अभियान शुरु किया जाना चाहिए।
स्मरणीय है कि इस तरह के बैंक
स्थापित करने का प्रयास सबसे पहले केरल में शुरु हुआ था। इस बैंकिंग व्यवस्था को
लागू करने के लिए वहां एक निगम बनाया गया था। जिसमें केरल सरकार मुसलमानों की एक
निगम और कुछ प्रवासी मुस्लिम पूंजीपति हिस्सेदार थे। उस समय डा. सुब्रमण्यम स्वामी
ने इसका विरोध किया था और केरल हाईकोर्ट ने इस बैकिंग व्यवस्था को भारतीय संविधान
के विपरीत बताते हुए इस पर प्रतिबंध लगा दिया था।
लेकिन इस बार केंद्रीय
मंत्रिमंडल ने पिछले महीने चुपके-चुपके देश में इस्लामिक बैंकिंग व्यवस्था लागू
करने की अनुमति दे दी है । इसके दूरगामी परिणाम होंगे, क्योंकि कि जिन देशों में
इस्लामी बैंक व्यवस्था चलन में है उनका इतिहास बताता है कि ये बैंक किसी न किसी
रुप से आतंकवादी संगठनों को फंड उपलब्ध कराते हैं। ऐसे में पहले ही इस्लामी
आतंकवाद से जूझ रहे भारत में इस्लामी बैंक की अनुमति देना आतंकी गतिविधियों को
प्रोत्साहन देना होगा। मगर न तो मीडिया
में इसकी चर्चा हुई और न ही राजनीतिक दलों ने इस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की। यह
भी ध्यान देने योग्य बात है कि भारत पहला ऐसा गैर-मुस्लिम देश है, जिसने इस्लामी
बैंकिंग व्यवस्था लागू करने की अनुमति प्रदान की है।
घोषित कट्टरपंथी मानसिकता से
काम करने वाला यह बैंक क्या गुल खिलायेगा, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है ! आज
जबकि फिजा में ट्रिपल तलाक का मामला सरगर्म है, यह भी विचारणीय हैकि कहीं बैंक धर्मांतरण
के लिए लव जिहाद को तो बढ़ावा नहीं देगा ? एक बार किसी युवती को बरगला कर मुस्लिम
बनाया, कि उस पर मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू हुआ ! फिर बेचारी केवल कट्टरपंथी मुल्ला
मौलवियों के रहमो करम पर जीवन बिताने को मजबूर !
इस्लाम में औरत की दुर्दशा का
चित्रण पिछले दिनों वाशिंगटन पोस्ट में छपी पत्रकार सुलोम एंडरसन के एक लेख में
किया गया है ! इस लेख में इस्लाम के नाम पर आतंकी संगठन आईएस द्वारा किये जाने
वाले जुल्मों का कच्चा चिटठा खोला गया है ! एंडरसन ने आईएस के चंगुल से छूटी यजीदी
महिलाओं की आप बीती लिखी है ! एक महिला बताती है कि मेरी बहिन की उम्र केवल 16 साल
की है, किन्तु उसकी शादी सात लोगों के साथ कर दी गई ! वह अब भी सीरिया में है !
मुझे खुद भी पांच लोगों को बेचा गया ! मेरे पांच भाईयों को आईएस ने बेरहमी से मेरी
आँखों के सामने मार डाला ! ऐसी एक नहीं अनेक घटनाओं का जिक्र एंडरसन ने अपने लेख
में किया है !
जब पत्रकार एंडरसन ने एक एक
आतंकी से यह जानने की कोशिश की, कि वे लोग महिलाओं के साथ इतनी बेरहमी से क्यों
पेश आते हैं, तो उसने कहा कि महिलायें तो केवल उपभोग की सामग्री हैं, उनका काम तो
केवल बच्चे पैदा करना भर है ! रहा सवाल यजीदी महिलाओं का तो वे तो गुलाम होती हैं,
जिनके साथ जो चाहे किया जा सकता है ! हम महिलाओं से इस्लामिक लॉ के मुताबिक़ बर्ताव
करते हैं, ह्यूमन लॉ के मुताबिक़ नहीं ! महिलायें दोयम दर्जे की इंसान हैं !
अब आपकी समझ में आया क्या, कि
भारत के मुल्ला मौलवी ट्रिपल तलाक मसाले में क्यों अड़े हुए हैं ? या फिर इस्लामिक
बैंक आगे चलकर क्या गुल खिलाने वाला है ?
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