भारतीय पत्रकारों का पाकिस्तान से गठजोड़ - राकेश कृष्णन सिन्हा


प्रकृति से, भारतीय उदारवादी और वामपंथी भारत विरोधी और हिंदुद्रोही हैं। वे कहते हैं कि हिंदू धर्म में जातीय उत्पीड़न है, इसलिए वे हिंदुओं से घृणा करते हैं । जबकि वास्तविकता यह है कि वे अपनी मैकाले की पद्धति से प्राप्त शिक्षा के कारण ऐसा करते हैं, जिसमें उन्हें सिखाया गया कि हमारे देश का धर्म और संस्कृति, पश्चिम की तुलना में निम्न हैं, अतः वे हीन ग्रंथि के शिकार हैं और इसीलिए वे भारत को अस्वीकार करते हैं।

लेकिन इस्लामिक पागलपन के प्रति उनकी आत्मीयता क्या बताती है ? पाकिस्तान एक इस्लामी राज्य है जहां मार्क्सवाद और नास्तिकतावाद को ईशनिंदात्मक माना जाता है। भारतीय वामपंथियों और तथाकथित बुद्धिजीवियों को अगर इस्लामाबाद, लाहौर और पेशावर की सड़कों पर भेज दिया जाए तो उन्हें मार दिया जाएगा। भारत में वे हिंदू देवताओं और धर्म पर हमला करते हुए मुक्त स्वर से भाषण झाड़ते हैं, क्या पाकिस्तान में संभव होगा ? शाहरुख खान और आमिर खान का दावा है कि भारत असहिष्णु है, फिर भी वे भारत में समृद्ध और विकसित होते हैं। सच कहूँ तो, यदि वे पाकिस्तान जायें और एक बार यह कह भर दें कि पाकिस्तान असहिष्णु है, तो फिर अपना अंजाम खुद देख लें, वे कुछ घंटों से ज्यादा नहीं बचेंगे ।

भारतीय उदारवादियों का पाकिस्तान से गठजोड़ कोई ढकीछुपी बात नहीं है । इसके पीछे भी हराम का पैसा पाने की लालसा है | इसका सबसे बेजोड़ नमूना है 2003-04 में हुई भारत-पाकिस्तान क्रिकेट श्रृंखला । 1999 के बाद से दोनों पक्षों के बीच कोई क्रिकेट श्रृंखला नहीं खेली गई थी, क्योंकि कारगिल युद्ध लोगों के मन में ताजा था। देश पाकिस्तान के साथ किसी भी प्रकार के खेल सम्बन्ध नहीं चाहता था, लेकिन क्रिकेट मैचों की बहाली में जिनका निहित स्वार्थ था, ऐसे लोगों ने शोर मचाना शुरू कर दिया, "क्रिकेट को राजनीति का शिकार नहीं बनाना चाहिए" या "क्रिकेट ने लोगों को एकजुट किया" आदि आदि । 

बहस चली कि भारत को पाकिस्तान का दौरा करना चाहिए अथवा नहीं, जो कि मीडिया का पसंदीदा खेल था, क्योंकि उससे टीआरपी जो बढ़ती है । दिल्ली स्थित जिस अख़बार में मैं काम करता था, उसमें इस विषय पर चर्चा हुई कि हमें क्या लाईन लेनी चाहिए। एसोसिएट एडिटर जो यह तय करता है कि किस पृष्ठ पर कौन सा समाचार दिया जाएगा, ने उन आवाजों का नेतृत्व किया जिनकी राय थी कि भारत को दौरा करना चाहिए। जबकि मैंने निम्नांकित तर्क दिए कि हमें क्यों नहीं जाना चाहिए:

पाकिस्तान असंगत जातीय समूहों का एक कृत्रिम देश है जो एक दूसरे से नफरत करते हैं। जब पाकिस्तान क्रिकेट टीम भारत में खेलती है, तब उसमें पंजाबी, पठान, सिराकी और सिंधी सब साथ आते हैं । क्रिकेट गोंद की तरह कार्य करता है जो समय-समय पर पाकिस्तान को विघटित होने से रोकता है। इसलिए भारतीयों को ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जो उसकी विघटन प्रक्रिया को धीमी करे । इसलिए, हमें पाकिस्तान के साथ क्रिकेट नहीं खेलना चाहिए।

पाकिस्तानी क्रिकेटर भारत आते हैं और मशहूर हस्तियों के मेजबान बनकर उनके साथ खाते पीते हैं । इससे पाकिस्तानियों को लगता है कि वे सुपरस्टार हैं, और उनके बिना भारत में क्रिकेट नहीं बिकती। ऐसा ही दावा पाकिस्तानी कलाकारों द्वारा भी किया जाता है | हिंदी फिल्मों के प्लेबैक गायक अभिजीत के अनुसार, पाकिस्तानी कलाकारों का कहना है कि "हमारे बिना आपकी फिल्में नहीं चलेंगी"। पाकिस्तानी कलाकारों की भी कट्टर जिहादी मानसिकता है और इसे वे अपना अधिकार मानते है। उनका मानना ​​है कि वे भारतीय आतिथ्य का आनंद ले सकते हैं, भारत में मेगाबक्स अर्जित कर सकते हैं और फिर भारत को गाली भी दे सकते हैं क्योंकि एक मुसलमान हिंदू से कुछ भी लेने का हकदार है।

कुछ भारतीय सिने तारिकाओं ने अपने करियर को बढ़ावा देने के लिए कुछ क्रिकेटरों के साथ सम्बन्ध क्या जोड़ लिए, पाकिस्तानी को भ्रम हो गया और वे दावा करते घूमने लगे कि भारतीय महिलाएं पाकिस्तानी पुरुषों को अधिक पसंद करती हैं, यह किसी भी स्वाभिमानी भारतीय के लिए अत्यधिक अपमानजनक है

और अंत में, पाकिस्तानी क्रिकेटर मैच के बाद साक्षात्कार में "सर्वशक्तिमान अल्लाह का आभार" प्रदर्शित करते हैं । वे क्रिकेट मैदान पर नमाज पढ़ते हैं, और इस प्रकार खेल को कट्टरवाद की एक अस्वास्थ्यकर खुराक का इंजेक्शन देते हैं।

चूंकि मेरे तर्क भी ठोस थे साथ ही प्रस्तुति भी अच्छी थी, अतः सहयोगी संपादक उनका कोई बाजिब जबाब देने क स्थान पर यह कहते हुए उठकर चले गए, कि नहीं नहीं हमें उनके साथ क्रिकेट खेलना चाहिए।"

आगे की बैठकों में मुझे नहीं बुलाया गया और निर्णय कर लिया गया कि हमारे समाचार पत्र की यही लाइन रहेगी कि भारत को पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलना चाहिए।

इसके आगे का मामला वास्तव में और भी दिलचस्प हो जाता है | सहयोगी संपादक ने मुख पृष्ठ पर शानदार कहानी लिखी, जिसमें पाकिस्तान के साथ खेलने की जबरदस्त बकालत की गई । कुछ हफ्ते बाद जब भारतीय क्रिकेट टीम ने पाकिस्तान का दौरा किया, तो हमारे अख़बार ने भी मैचों को कवर करने के लिए खेल पत्रकारों को भेजा। स्वाभाविक ही उनके साथ सहयोगी संपादक भी गए, जिन्हें पाकिस्तानीयों ने सर माथे पर लिया । उसके बाद एक महीने से ज्यादा समय तक ये पत्रकार महाशय अपने लेखों में पाकिस्तानीयों की महानता का बखान करते रहे ।

समाचार पत्र में दक्षिण एशियाई देशों में जाने वाले पत्रकारों के लिए रोजाना 150 अमरीकी डॉलर का भत्ता निर्धारित भत्ता था। मुझे अखबार के प्रशासन विभाग में एक बहुत ही विश्वसनीय स्रोत से ज्ञात हुआ कि उक्त यात्रा में व्यय की गई कुल राशि इतनी अधिक थी कि लेखा विभाग ने बिल को स्पष्ट ना कह दिया, क्योंकि उनका मानना ​​था कि एक सामान्य सी यात्रा पर इतना व्यय संभव नहीं । अंत में मामला मालिकों के पास तक गया।

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