नरेश नाम के विषधर को सजा मिलनी चाहिए - संजय तिवारी


आखिर इस देश में हो क्या रहा है? पवित्र संसद में आस्था को चोट पहुंचाने वाले बोल बोले जा रहें है। लम्बी दलाली और राजनैतिक भूमिका निर्वाहन करने वाले नरेश अग्रवाल हिन्दू देवताओ को मद्यपान का आदती बता रहें थे और पूरी की पूरी संसद उस सांसद द्वारा उगले जहर को पी रही थी।काश ऐसा नरेश कभी किसी अन्य मज़हब के किसी पूज्य को लेकर कुछ कहते। अब तक उनके चीथड़े हो चुके होते और पूरा देश जल रहा होता। देवी देवता हमारे आधार हैं। यह पवित्र संविधान भी मानता है। दुर्भाग्य यह है कि संविधान के पवित्र मंदिर में विष बुझे शब्दों का प्रयोग करने वाले एक हतोत्साहित सांसद ने अकारण ही सबको अपवित्र शब्दों का श्रोता बना दिया। 

ऐसी विषम परिस्थिति में असंसदीय भाषा का प्रयोग करने वाले जन प्रतिनिधि को जनप्रतिनिधित्व के किस दायरे में संसद रखती है मौजूदा प्रश्न यह है ? एक दूसरा प्रश्न यह है कि भाषायी मर्यादा का उल्लघंन करने वाले ऐसे जनप्रतिनिधि को भारतीय मर्यादा का पाठ कौन पढ़ायेगा? संसदीय मर्यादा को तार तार करने वाले विषधारी जनप्रतिनिधि को संसद अपनी गरिमा का पाठ कैसे पढ़ायेगी?भारतीय लोकतंत्र की स्थापना करने वाले मूर्धन्य लोगों ने क्या कभी यह भी सोचा था कि वे जनतंत्र के जिस मंदिर का निर्माण कर रहें हैं उसकी भाषा इतनी गलीच होगी कि उसे सदन की कारवाही से ही सदासर्वदा के लिए हटाना पड़ेगा। संसद अपनी कारवाही में असंसदीय कृत्य और असंसदीय भाषा सुरक्षित नहीं रखना चाहती। कितनी सुन्दर बात है। पर इस सुन्दरता के दुश्मन भी इसी संसद में ही बैठते हैं और पूज्य,पवित्र प्रतीकों के प्रति भडक़ाऊ बोल बोल कर सद़्भावी जनप्रतिनिधियों को आहत करते है। 

सबसे महत्वपूर्ण यह की यदि उस नेता की बात संसद के कार्रवाई में रखने योग्य नहीं है तो वह अभी तक उसी संसद के सदस्य के रूप में कैसे बना हुआ है ? बात बात पर हर बेबात को संज्ञान लेकर हरकत में आने वाली संस्थाए भी अब कोई कदम उठाएंगी ? ऐसी घिनौनी मानसिकता का कोई व्यक्ति अभी तक बचा क्यों है ? अब असली अलम्बरदार कमलेश तिवारी की एक टिप्पणी पर उसे जेल में डाल देने वाली व्यवस्था क्या इस नरेश अग्रवाल के खिलाफ भी कुछ करेगी?

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