भारत है , सराय नहीं मियाँ जी - संजय तिवारी


गुजरात की चित्रलेखा नामक पत्रिका ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसका शीर्षक था ‘ऐतिहासिक बलात्कार।’ साहित्य और भाषा की दृष्टि से बलात्कार जैसे घिनौने कृत्य को ऐतिहासिक लिखना उचित नहीं है लेकिन यदि इस पत्रिका ने लिखा है तो इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। इस लेख में बांग्लादेश पर पाकिस्तान द्वारा किए गए हमले में एक कॉलेज की छात्राओं पर हुए अत्याचार का एक दृश्य भर लिखा गया है। इस पूरे घटना को उस कॉलेज को उस समय के प्राचार्य और डीन ने स्वयं लिखा है और उन्होंने लिखते लिखते अंत में इसे विश्व में ऐतिहासिक बलात्कार की संज्ञा दी है।

लेख में लिखा गया है कि पाकिस्तानी सेना के पंजाबीमुस्लमान सैनिक जब कॉलेज में पहुंचे तो उस समय कॉलेज में लगभग 5000 छात्राएं मौजूद थीं। इन सभी छात्राओं को सेना ने परिसर में ही कैद कर दिया और छात्राओं के कक्षों में जवानों ने घुस कर कई दिनों तक दुराचार किया। प्राचार्य ने यह भी लिखा है कि उन्हें खुद भी उन्हीं के कमरे में बन्द कर दिया गया था। कई दिनों के बाद जब कॉलेज से किसी तरह पाकिस्तानी सेना हटी तब जो दृश्य था वह देखने लायक नहीं था। मैंने स्वयं देखा कि किसी छात्रा के शरीर पर कोई वस्त्र नहीं बचा था। भयंकर यातना और बलात्कार की शिकार ये सारी की सारी छात्राएं बाद में गर्भवती पाई गईं।

चित्रलेखा में छपे इस लेख को आज याद करने का एक मात्र कारण रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर भारत में की जा रही वकालत है। यह कहानी थाईलैण्ड से शुरू होती है। वहां एक समय याबा नाम का नशे का एक बड़ा कारोबार हुआ करता था। वहां शिनवात्रा नाम के शासक ने जब याबा के कारोबार के खिलाफ मुहिम चलाई तो याबा के सभी कारोबारी थाईलैण्ड से भागे और वहां आ गये जहां म्यांमार में रोहिंग्या आबादी रहा करती थी। याबा कारोबारियों ने रोहिंग्या को अपना माध्यम बनाया और बांग्लादेश देश तथा भारत में रोहिंग्या मुसलमानों के जरिए अपना कारोबार फैलाने लगे। 

म्यांमार और बांग्लादेश रोहिंग्या मुसलमानों की हर अवैध गतिविधि को जानते हैं। ये हर उस गतिविधि में लिप्त है जो समाज और राष्ट के लिए खतरा है। म्यांमार और बांग्लादेश ने जब इन रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर अभियान चलाया हुआ है ऐसे में भारत के मुसलमान नेता इन सबको भारत में पनाह देने के लिए आंदोलन के मूड में हैं। कितनी बड़ी विसंगति है कि जिन देशों के ये नागरिक हैं वे तो इन्हें रखना नहीं चाहते, लेकिन भारत के मुसलमान नेताओं को इन अवैध कारोबारियों, नशा और अपराध के सौदागरों से बहुत हमदर्दी है।

मुझे यहां प्रख्यात वामपंथी विचारक और क्रान्तिकारी राहुल सांकृत्यायन से जुड़ी वह घटना याद आ रही है जब उन्होंने 1955 में कम्युनिष्टï पार्टी के एक अधिवेशन में अपना लिखित भाषण न पढ़ पाने की विवशता में पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने अपने भाषण में लिखा था- 

जिस तरह ईसाई, यहूदी और बौध भारत में भारतीय बनकर रहते हैं, मुसलमानों को भी उसी तरह भारतीय बनकर रहना चाहिए। पार्टी को उनके इस वाक्य पर विरोध था इसलिए पार्टी ने अपने इस संस्थापक सदस्य को यह लिखित भाषण पढऩे भी नहीं दिया और पार्टी से बाहर भी कर दिया।पार्टी को आपत्ति यह थी कि मुसलमानो को भारतीय बन कर रहने वाली बात हटा दीजिये लेकिन राहुल जी इसके लिए तैयार नहीं थे। उनका यह लिखित भाषण तब तक बांटा जा चुका था। 

आज भारत के एक पढ़ेलिखे मुसलमान नेता ओबैसी जी ने बयान दिया है कि रोहिग्या मुसलमानो को भारत में ही जगह दिया जाय। एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने रोहिंग्या शरणार्थियों को देश से बाहर भेजने के प्रपोजल पर केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने नरेंद्र मोदी से पूछा कि जब हम बांग्लादेश से आई लेखिका तस्लीमा नसरीन को अपनाकर बहन बना सकते हैं तो रोहिंग्या मुसलमानों को भाई क्यों नहीं? आज रोहिंग्या सिर छिपाने के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहा है। हमने तिब्बत, पाकिस्तान, बांग्लादेश के लोगों को शरण दी है। तो फिर 100-125 करोड़ लोगों के देश में सिर्फ 40 हजार रोहिग्यां क्या मायने रखते हैं। ओवैसी ने आगे कहा, ''क्या हमारे मुल्क में बांग्लादेश के बनने के बाद चकमा लोग नहीं आए। ये कौन लोग थे, जो पाकिस्तान के साथ होकर बांग्लादेश में शेख मुजीबुर रहमान के खिलाफ लड़ रहे थे। ये लोग जब हिन्दुस्तान आए तो उन्हें हमारी हुकूमत ने रिफ्यूजी का दर्जा दिया और इन्हीं चकमा लोगों का एक लीडर पाकिस्तान में गया तो वहां शफीर बन गया। आज ये लोग अरुणाचल प्रदेश में रहते हैं और सरकार कहती है कि इन्हें हिन्दुस्तान की नागरिकता दी जाएगी।'' 

मैं तो राहुल सांकृत्यायन के उसी वाक्य को कह रहा हूँ कि ओबैसी जी , भारतीय बन कर बात कीजिये। रोहिंग्या की वकालत केवल ओबैसी ही नहीं कर रहे। लखनऊ में मुसलमान लोगो ने तो बाकायदा जुमे की नमाज के बाद प्रदर्शन भी किया है। पता नहीं क्यों , ये भारतीय होना ही नहीं चाहते। 

मियाँ जी - जरा यही आवाज़ बुलंद कर देते कि सभी कश्मीरी पंडित अपने कश्मीर में ही रहेंगे। कश्मीर तो उनकी मातृ भूमि है लेकिन आपने कैसे उन्हें वहां से निकाल फेका ? वे ही देश में शरणार्थी बने रो रहे हैं और जब सरकार कहती है कि कश्मीरी पंडितो को उनकी जमीन वापस दिलाएगी तो आपके सीने पर साप लौटने लगता है। 

आप लुटेरे और आक्रांता हैं , यह सच्चाई है , कश्मीरी तो वहां के मूल निवासी हैं लेकिन आपने वहां किस आधार पर कब्जा कर रखा है ? पकिस्तान आपके लिए ही बना था। आपने हमें 90 लाख लाशें लौटाई थीं। क्यों नहीं रख लिया था उनको, बिचारे जिन्दा तो बच जाते ? आज बहुत बड़ी हमदर्दी आपको रोहिंग्या से हो गयी है। जहा सात सौ साल से रोहिंग्या लोग रहते हैं , जब वहां ही उनको नहीं रहने दिया जा रहा तो भारत उनको क्यों जगह दे , यह समझ से परे है। 

रोहिंग्या मुसलमान इस्लाम को मानने वाले वो लोग हैं जो 1400 ई. के आस-पास बर्मा (आज के म्यांमार) के अराकान प्रांत में आकर बस गए थे। इनमें से बहुत से लोग 1430 में अराकान पर शासन करने वाले बौद्ध राजा नारामीखला (बर्मीज में मिन सा मुन) के राज दरबार में नौकर थे। इस राजा ने मुस्लिम सलाहकारों और दरबारियों को अपनी राजधानी में प्रश्रय दिया था।म्यांमार में करीब 8 लाख रोहिंग्या मुस्लिम रहते हैं और वे इस देश में सदियों से रहते आए हैं, लेकिन बर्मा के लोग और वहां की सरकार इन लोगों को अपना नागरिक नहीं मानती है। बिना किसी देश के इन रोहिंग्या लोगों को म्यांमार में भीषण दमन का सामना करना पड़ता है। इनके मामले में म्यांमार की सेना ही क्या वरन देश में लोकतंत्र की स्थापना का श्रेय लेने वाली आंग सान सूकी का भी मानना है कि रोहिंग्या मुस्लिम म्यांमार के नागरिक ही नहीं हैं। बोधगया में हुए बम विस्फोटों से जुड़कर म्यांमार के रोहिंग्या मुस्लिमों का नाम चर्चा में आया है।

संजय तिवारी 
संस्थापक – भारत संस्कृति न्यास
वरिष्ठ पत्रकार 


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