मध्‍यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के पहले हिम्‍मत जी की सक्रिय वापिसी सज्जनों की हिम्मत बढ़ाने वाली : डॉ.मयंक चतुर्वेदी



मध्‍यप्रदेश में भाजपा सरकार और मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्‍य में मंत्री रहे अपने कद्दावर नेता हिम्मत कोठारी को जिस तरह से पुन: वित्त आयोग का अध्‍यक्ष चुनकर उनकी सक्रिय राजनीति में जैसे वापिसी करवाई है, वह निश्‍चित ही एक सार्थक कदम कहा जा सकता है। यह पुनश्‍च सत्‍ता प्राप्‍ति के लिए कितना सही निर्णय है, यह न सोचकर वस्‍तुत: इस निर्णय की विशेषता इसे मानी जा सकती है कि कभी कोठारी जनप्रतिनिधि रहते हुए मध्‍यप्रदेश शासन में लोक निर्माण मंत्री म.प्र शासन और गृह एवं परिवहन मंत्री रहे हैं । इसी के साथ उन्‍हें वर्ष 1977 से 1992 तथा 1998-2008 तक विधायक के रूप में कार्य करने का लम्‍बा अनुभव रहा है। उसके बाद संगठन और स्‍वयं मुख्‍यमंत्री शिवराज की मंशा के अनुरूप 2015 में राज्य वित्त आयोग अध्यक्ष का जिम्‍मा उन्‍हें सौंपा गया था।

यह अलग बात है कि स्‍थानीय राजनीति एवं गुटबाजी का शिकार वे भी समय के साथ हुए और उनका विधानसभा टिकिट भी कटा तो कभी उन्‍हें निर्दलीय नेता पारस सखलेचा के हाथों हार का भी सामना करना पड़ा है, लेकिन अंतिम सत्‍य यही है कि वे राजनीति के जितने अनुभवी हैं, समाज जीवन में उतने ही
रचे-बसे सर्वजन की सतत चिंता करनेवाले नेता हैं। वे आगे कुछ ही साल में अपने सार्वजनिक जीवन के स्‍वर्णवर्ष भी पूरे करने वाले हैं। शायद, इतने वर्षों तक सक्रिय राजनीतिक जीवन में रहते हुए उनके जीवन में कोई ऐसा दिन नहीं रहा होगा जब उन्‍होंने आमजन के लिए समर्पित होकर कोई न कोई सेवाभावी कार्य न लिया हो।

कहा जा सकता है कि छह बार के विधायक के रूप में सेवा देने वाले हिम्मत कोठारी का पूरा राजनीतिक जीवन गरीब और सर्वहारा वर्ग की सेवा और उनकी जरूरतों को पूरा करने में समर्पित रहा है । विरोधी भले ही आज यह स्‍वीकार करने में परहेज करें कि मालवा क्षेत्र विशेषकर रतलाम का विकास उनके प्रयासों से सुफलता को प्राप्‍त करता रहा है, किंतु यह एक यर्थाथ है, जिसे हर किसी को बिना संकोच के स्‍वीकारना चाहिए। अपनी विधायकी का अधिकतम समय विपक्ष में बिताने वाले हिम्‍मत कोठारी एक ऐसे नेता के रूप में जनमानस में छवि बनाने में सफल रहे हैं जो भले ही सत्‍ता से बाहर होते थे लेकिन कांग्रेस सरकारों में अपने क्षेत्र के विकास के लिए कई योजनाएं लेकर आने में सफल रहे । जब राज्‍य में भाजपा की सरकार आई तो वे इस दिशा में और तेजी से आगे बढ़े।

अपने क्षेत्र में स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं की बेहतरी के लिए वे श्यामाचरण शुक्ल के मुख्यमंत्री रहते हुए लड़ते रहे, जिसके बाद अपने गृह मंत्रित्व काल में मेडिकल कॉलेज स्वीकृत कराने में वह सफल रहे।आज उसी का परिणाम है कि रतलाम में मेडिकल कॉलेज का काम अंतिम दौर में है । इस दिशा में बाल चिकित्सालय उनके संघर्षों का ही परिणाम कहा जा सकता है । लेबड़ नायगॉंव फोरलेन, जामड पार्क , कनेरी बांध, यूआईडी एसएसएमटी योजना, जैसी तमाम उपलब्‍धियां उनके साथ जुड़ी हैं।

इतना ही नहीं, सत्‍य के लिए अपनी ही पार्टी के विरोध में खड़े हो जाने से भी उन्‍होंने कभी परहेज नहीं किया है, फिर भले ही उन्‍हें इसका राजनीतिक स्‍तर पर खामियाजा क्‍यों न भुगतना पड़ा हो। कार्यकर्ताओ के लिए तो वे आज भी पार्टी में अपनी आवाज़ बुलंद करते रहते हैं । जिस भावांतर योजना को किसानों के लिए राज्‍य सरकार सफलतम मान रही है, उस पर सबसे पहले एक जिम्‍मेदार जननेता होने के नाते आवाज बुलंद करने का कार्य हिम्‍मत कोठारी ने ही किया। उन्‍होंने तत्‍कालीन समय में प्रदेश की मंडियों में समर्थन मूल्य से कम कीमत पर फसलें बिकने पर अपना विरोध दर्ज कराया था। इतना ही नहीं तो इस नेता ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर कानून बनाने की मांग तक कर डाली थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखी अपनी चिट्ठी में उन्‍होंने साफ कहा, भावांतर योजना का फायदा जमाखोर और व्यापारी उठा रहे हैं। ये कॉकस बनाकर किसानों की फसलों को कम कीमत पर खरीद रहे हैं। छोटे व्यापारी इनके एजेंट की तरह काम कर रहे हैं। भावांतर योजना अच्छी हो सकती है, लेकिन फिलहाल किसान नहीं बड़े जमाखोर फायदे में हैं। इसलिए केंद्र सरकार ऐसा कानून बनाये कि समर्थन मूल्य से कम कीमत पर फसल न बिके। इनके विरोध करने के बाद ही अपने-अपने क्षेत्रों में फिर अन्‍य भाजपा नेताओं ने भी इस योजना का विरोध करना शुरू कर दिया था, जिसमें क पूर्व मुख्यमंत्री बाबू लाल गौर, सांसद अनूप मिश्रा, सरताज सिंह सहित अनेकों वरिष्ठ नेताओं के नाम लिए जा सकते हैं।

हिम्‍मत कोठारी की हिम्‍मत के विषय में यह भी या‍द दिलाना समीचीन होगा कि इसके पूर्व वे अपनी ही पार्टी में भाजपा के स्थापना दिवस पर आडवाणी एवं मुरली मनोहर जोशी जैसे वरिष्‍ठ नेताओं की उपेक्षा किए जाने पर मुखरता से आवाज बुलंद करने से भी नहीं चुके । वस्‍तुत: पार्टी स्तर पर वरिष्‍ठों की उपेक्षा हुई, सबको दिखाई भी दिया था परंतु किसी ने उंगली उठाने की हिम्मत नहीं दिखाई, लेकिन मध्‍यप्रदेश राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष रहते हुए हिम्मत कोठारी ने अमित शाह को इस बावत् पत्र तक लिख डाला था ।

वस्‍तुत: कोठारी की सबसे खास बात यह है कि वे जब पहली बार 1977 मे विधायक बने, तब से लेकर आज तक उनकी छवि एक सड़क के आदमी की ही है। इसलिए जब उनका विधायक का टिकिट कटा तो बाद में उन्‍हें इसी वित्‍त आयोग का अध्‍यक्ष बनाकर उन्‍हें राज्‍य मंत्री का दर्जा दिया गया और उनके सामाजिक जीवन से जुड़े अनुभवों का लाभ सत्‍ता और संगठन ने भरपूर तरीके से लिया था। इसके बाद फिर एक बार इसी आयोग का उन्‍हें अध्‍यक्ष मनोनीत किया गया है। निश्चित ही आशा की जानी चाहिए कि मध्यप्रदेश की नगर पालिकाओं और पंचायतों के बीच वर्ष 2020-2025 की पंचवर्षीय अवधि के लिए राज्य के करों, शुल्कों, फीस और पथकर वितरण की कारगर नीति तैयार करने में वे पूर्णत: सफल रहेंगे और इस दिशा में वित्त आयोग प्रदेश में पंचायत निकायों और नगरीय निकायों की वित्तीय स्थिति को सुधारने के लिए सरकार से जो सिफारिशें करेगा साथ में भूमि पर देय करों, स्टाम्प शुल्क के अलावा राजस्व के अन्य करों में स्थानीय नगरीय निकाय और ग्राम पंचायत के बीच बंटवारे पर भी राज्य सरकार
को जो सुझाव उनकी तरफ से दिए जाएंगे उन्‍हें लेकर आज यही आशा की जानी चाहिए कि वह मध्‍यप्रदेश के समुचे विकास में मील का पत्‍थर साबित होंगे।

हिन्‍दुस्‍थान समाचार

लेखक, हिन्‍दुस्‍थान समाचार न्‍यूज एजेंसी के मप्र ब्‍यूरो प्रमुख एवं
फिल्‍म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्‍य हैं
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