अलकायदा आर इस्लामिक स्टेट दुर्बल होने के बाद भी वैश्विक जिहादी आतंक बढ़ने के आसार !



वैश्विक आतंकवाद के दो संगठन सर्वाधिक चर्चित हुए | पहला अल कायदा और दूसरा इस्लामिक स्टेट | यूं तो 2014 में इस्लामिक स्टेट का जन्म अल कायदा से ही हुआ, किन्तु उसने दुनिया का ध्यान ज्यादा आकर्षित किया | बगदादी ने खलीफा युग के स्वर्ण युग की वापसी का सपना मुसलमानों को दिखाते हुए, मुसलमानों का सर्वोच्च नेता अर्थात खलीफा स्वयं को घोषित ही कर दिया, किन्तु सीरिया और इराक में हुई पराजय के साथ ही वह इतिहास के कूड़ेदान में पहुँच गया है | दूसरी ओर ओसामा बिन लादेन की हत्या के बाद अलकायदा भी अपनी चमक खो चुका है । तो क्या यह माना जाए कि दुनिया को इस्लामिक आतंकवाद से मुक्ति मिल चुकी है ? यह मानना गंभीर भूल होगी, क्योंकि इस्लामिक स्टेट के लड़ाके हार भले गए हों, समाप्त नहीं हुए हैं । 

बस इतना भर हुआ है कि खलीफाई के लिए लड़ने के प्रति विदेशी जिहादियों का आकर्षण लगभग समाप्त हो गया है, साथ ही बगदादी ने जिन आईएस सेनानियों को इस्तेमाल किया था, वे नेतृत्व विहीन हो गए हैं । किन्तु इस्लामिक स्टेट के कुछ सेनानी तो अपने जिहादी मंसूबों के साथ अपने मूल राष्ट्रों में वापस पहुँच गए हैं और कई अन्य दुनिया के विभिन्न हिस्सों में छोटे समूहों के रूप में आतंक के डैने फैला रहे हैं । 

दूसरी ओर, अल कायदा जिसे कट्टरपंथी इस्लामिक चरमपंथियों और वाहाबी जिहादियों के नेटवर्क के लिए जाना जाता रहा है, उसके अफगानिस्तान स्थित आतंकी प्रशिक्षण शिविर तबाह हो गए हैं और वह छिटपुट आतंकवादी कृत्यों तक सीमित रह गया है। किन्तु इसके बाबजूद इस्लामी माघरेब, अरबी प्रायद्वीप, भारतीय उपमहाद्वीप में तालिबान, हक्कानी नेटवर्क, एलईटी, जेईम इत्यादि के रूप में अल कायदा के प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता । 

लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण बात है, वह यह कि कमजोर होने के बाबजूद आतंकवादी समूहों के मन में पश्चिम, तथाकथित काफिर, लोकतांत्रिक शासन और उदार मुस्लिम देशों के प्रति नफ़रत की आग मंद नहीं हुई है | और उनका प्रयत्न है कि यह आग दुनिया भर के मुसलमान युवाओं के मन में भी धधकाई जाए | उनका प्रयत्न है कि शिक्षित किन्तु बेरोजगार मुस्लिम युवाओं को कट्टरपंथी बनाया जाए और जिहाद की ओर आकर्षित किया जाये | उनकी रणनीति है कि आम मुसलमान यह मानने लगे कि शरीयत का शासन ही मुसलमानों की सभी समस्याओं का इकलौता समाधान है । वे अपने उद्देश्य में कितने सफल होंगे यह तो अभी नहीं कहा जा सकता, किन्तु शान्ति प्रिय वैश्विक शक्तियों के सम्मुख इनसे निबटना एक बड़ी समस्या जरूर बनी हुई है । 

दुनिया के सामने एक बड़ी समस्या यह भी है कि अभी तक जो वैश्विक आतंकवादी संगठन अलग अलग कार्य कर रहे थे, वे कमजोर होने के बाद एकजुट होने को विवश हुए हैं | हाल में अल कायदा के नेता अयमान अल-जवाहिरी ने अलग अलग युद्धरत जिहादियों का आव्हान किया है - "एकजुट और एकमत होकर एक साथ आक्रमण ही जीत और मुक्ति का आधार है | अंतर्राष्ट्रीय शैतानी गठबंधन के खिलाफ एकीकरण महत्वपूर्ण है, चर्चा करें, एक-दूसरे के साथ लिंक करें और सभी मुस्लिम देशों में रहने वाले अपने मुस्लिम भाइयों की ओर सहायता का हाथ बढ़ाएं। यही जीत का सबसे अहम तरीका है। केवल सीरिया में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में अपने मुस्लिम भाइयों और मुजाहिदीन के साथ समानता के आधार पर एकजुट हो जाओ, क्योंकि दुनिया भर में मुसलमानों के खिलाफ प्रचार अभियान चलाया जा रहा है, इसलिए एकता की तत्काल आवश्यकता है" | 

यह सन्देश स्पष्ट करता है कि वैश्विक जिहादी आतंक का अभी खात्मा नहीं हुआ है । सवाल उठता है कि भविष्य में, क्या वे अलग-अलग मौजूदा पहचान के साथ और अलग रूप में काम करना जारी रखेंगे? लेकिन एक प्रतिप्रश्न यह भी है कि अगर एकजुट हुए तो कौन वैश्विक जिहाद का नेतृत्व करेगा, और उसका भविष्य क्या होगा ? 

तीन संभावित परिदृश्य हैं - सबसे पहले, सभी आतंकवादी समूह मिलकर एक "सुपर आतंकवादी समूह” बना सकते हैं, जिसका नेतृत्व एक एकीकृत केंद्रीय नेतृत्व करे । दूसरा, क्षेत्रीय स्तर पर क्षेत्रीय कमांड और नियंत्रण रहे, इसमें सुविधा यह है कि सबकी अलग पहचान बनी रह सकती है । तीसरा, दो वैश्विक आतंकवादी समूहों का विलय, जो अपने अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों / देशों में गतिविधियाँ चलाये । 

आज की परिस्थितियों में जिस प्रकार दोनों बड़े समूहों में नेतृत्व और अहंकार के संघर्ष हैं उन्हें देखते हुए, प्रारम्भिक दो विकल्पों की कम ही है। जिहाद की मूल विचारधारा से प्रेरित तीसरा विकल्प ही अधिक व्यवहारिक प्रतीत होता है, अतः भविष्य में उसकी ही संभावना अधिक है। क्षेत्र विशेष में, काफ़िरों, लोकतांत्रिक सरकारों और मानवनिर्मित कानूनों के खिलाफ तथा शरिया कानून कडाई से लागू किये जाने हेतु यह जिहाद होगा । आने वाले वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय जेहादी आतंकवाद की जड़ें और गहरी होते देखे तो कतई हैरत की बात नहीं है | 

विभिन्न स्तरों पर सक्रिय खुफिया एजेंसियों के सम्मुख जिहादियों की एक नई नस्ल का खतरा है – कट्टरपंथियों द्वारा सोशल मीडिया का दुरुपयोग | इंटरनेट द्वारा प्रशिक्षण देना, प्रशिक्षण सामग्री उपलब्ध कराना, प्रेरणा देना, लक्ष्य निर्धारण और उसकी पहचान, जैसी आतंकी गतिविधियों का संचालन आसान है और उसके माध्यम से वे बड़ी आसानी से अपने मुस्लिम भाइयों को बरगला कर कट्टरपंथी बना सकते हैं, बस उन्हें भड़काना भर तो है कि देखो आप और इस्लाम दोनों खतरे में हैं, अतः आओ और यूनिवर्सल जिहाद में अपना योगदान दो। इस मूल विचारधारा से संचालित इस लड़ाई में भौगोलिक सीमाएं भी कोई बाधा नहीं होगी। अलग अलग राष्ट्र-राज्य के भीतर ऐसे समूह बढ़ेंगे। हमें भारत में अपने कश्मीरी भाइयों के समर्थन में देश के दूसरे हिस्सों में जिहादियों का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा और यह एक बड़ी चुनौती होगी। किसी एक व्यक्ति की तुलना में किसी आतंकवादी समूह द्वारा होने वाले आतंकी कृत्य कहीं अधिक जन हानि कर सकते हैं । 

इसके परिणाम स्वरुप तकनीक और आतंक का समन्वय बड़े पैमाने पर होने वाली घटनाओं तथा उनके अधिकतम प्रचार के खतरे से हमें दो चार होना पड़ सकता है । घात लगाकर होने वाले हमलों, विस्फोटक से भरे वाहनों, आत्मघाती हमलों में वृद्धि देखने को मिल सकती है । एक शीर्ष अमेरिकी थिंक टैंक के मुताबिक, "न केवल प्रौद्योगिकियों या हथियारों के मामले में, बल्कि उनके सांघातिक उपयोग में भी आतंकवादी अधिक कुशल हैं - अर्थात, हमले के लिए स्थान चयन, डिजाइन या समर्थन व सहयोग व्यवस्था की सम्पूर्ण रूपरेखा पहले से बनाकर वे बड़े पैमाने पर अलग अलग स्थानों पर एक साथ हमले कर सकते हैं । संभवतः आतंकवादियों द्वारा सामूहिक विनाश के हथियारों (डब्ल्यूएमडी) और जैविक हथियारों के उपयोग में विशेष रूप से, वृद्धि होगी। जिहाद में शामिल उच्च शिक्षित और कुशल युवाओं के कारण एक साइबर हमले की संभावना को भी खारिज नहीं किया जा सकता है। पिछले दिनों आतंकवादियों ने उन्नत विस्फोटक और ड्रोनों का इस्तेमाल भी किया है। जिहादी आतंकवादियों द्वारा नारको-आतंकवाद का उपयोग भी एक बड़ी चुनौती है। 

आतंक का यह नया वैश्विक युद्ध काफी हद तक विकेन्द्रीकृत हो जाएगा। आतंकवाद विरोधी आपरेशनों की सफलता, राष्ट्रों की अपनी इच्छाओं और क्षमताओं पर निर्भर करती है, ताकि वे खुद अपनी जमीन पर आतंकवाद से प्रभावी ढंग से लड़ सकें। 'अच्छा' और 'बुरा' आतंकवादी जैसी अवधारणा को बलिदान करना होगा। राष्ट्रों को यह सुनिश्चित करना होगा कि संगठित आतंकवादी समूहों द्वारा सीमा पार आतंकवाद के लिए उनकी धरती का इस्तेमाल नहीं किया जा सके । वे एकजुट हो रहे हैं, तो अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए उनके खिलाफ विश्व को भी एकजुट होना पडेगा | इसके लिए खुफिया सूचनाओं को साझा किया जान, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के लिए वैश्विक सहयोग आवश्यक होगा। आतंकवाद से लड़ने के लिए प्रभावित देशों के साथ द्विपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर करने की भारत की रणनीति सही दिशा में एक कदम है और इसके माध्यम से भविष्य की चुनौतियों से निपटा जा सकता है। हालांकि, हमारा आंतरिक सुरक्षा तंत्र कमजोर है – कारण भी सब जानते हैं – राजनैतिक लाभ हानि का गणित, वोट की राजनीति के चलते, केंद्र-राज्य समन्वय और राष्ट्रीय सहमति का अभाव । 

अनिल गुप्ता द्वारा 

(लेखक जम्मू-आधारित राजनीतिक टीकाकार, स्तंभकार, सुरक्षा और रणनीतिक विश्लेषक हैं। यहां व्यक्त किए गए विचार उनके व्यक्तिगत हैं) 

साभार आधार - http://vsktelangana.org/emerging-global-jihadi-terror-and-challenges-for-india/
एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें