कर्नाटक और कांग्रेस – भागते भूत की लंगोटी भली !


मीडिया रिपोर्टों के अनुसार कांग्रेस इन दिनों गंभीर आर्थिक संकटों से गुजर रही है | हालत इतने बुरे हो गए हैं कि पार्टी ने विभिन्न राज्यों में मौजूद अपने कार्यालयों को चलाने के लिए खर्च भेजना भी बंद कर दिया है | साथ ही अपने सदस्यों से चंदा उगाहने और पार्टी पदाधिकारियों से खर्च में कटौती करने का भी आग्रह किया है | 

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार कांग्रेस को उद्योगपतियों से मिलने वाला चंदा लगभग बंद हो गया है | कांग्रेस के सोशल मीडिया विभाग की प्रमुख दिव्या स्पंदन ने भी माना है कि पार्टी के पास फंड की कमी है | उनके मुताबिक़ कांग्रेस को इलेक्टोरल बोंड के जरिये, भाजपा की तुलना में बहुत कम चंदा मिल रहा है, इसके कारण पार्टी को ओनलाईन क्राउड सोर्सिंग का रुख करना पड सकता है | 

ऐसे में कर्नाटक में बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा है | नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोडी का विजय रथ लगातार एक के बाद एक राज्य को अपने कब्जे में लेता जा रहा था | कर्नाटक में भी भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, किन्तु स्पष्ट बहुमत से दूर रही | दूसरी ओर कांग्रेस की सीटें भले ही 122 से घटकर 78 रह गई हों, किन्तु उसने तीसरे नंबर की महज 38 सीट जीतने वाली जनता दल एस को बड़ा भाई मानकर उसका मुख्यमंत्री बना दिया | 

यह न तो कोई दयानतदारी है और ना ही समझदारी | अगर यह कुछ है तो महज विवशता | रूस और वेटिकन से मदद की उम्मीद में गईं सोनिया जी को मोदी कूटनीति के चलते निराशा ही हाथ लगी थी | ऐसे में आर्थिक संकट से निजात पाने के लिए इस विकसित राज्य की सत्ता में सहभाग उसके लिए भागते भूत की लंगोटी भली, जैसी ही है | यूपीए शासनकाल में हजारों करोड़ के घोटाले के आरोप झेलने वाली कांग्रेस को यह राज्य आर्थिक संकट से कितना मुक्त कर पायेगा, यह तो समय ही बताएगा | हाँ यह अवश्य कहा जा सकता है कि – 

अजीब मंजर खड़ा हो गया है इस शहर में,
गदर वाज अब गलियों में कोतवाल की लाठी बजा रहे हैं |
घोटालेबाज सबसे विकसित राज्य की सरकार चला रहे हैं ||

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