क्यों है समस्याओं के मकडजाल में शिवपुरी – दो टूक जबाब सुन सकेंगे आप ?



आज हैरत हुई, जब एक पत्रकार महोदय का फोन आया और उन्होंने एक विषय पर मेरी प्रतिक्रिया जाननी चाही | मैंने कहा भी कि भाई मैं तो एक अतिशय सामान्य व्यक्ति हूँ, किसी भी संगठन में किसी भी पद पर भी नहीं हूँ, मेरी प्रतिक्रिया क्यूं चाहते हो ? लेकिन वे नहीं माने और प्रतिक्रिया हेतु आग्रह किया | 

उनका सवाल था कि दतिया स्मार्ट सिटी घोषित की गई है, किन्तु शिवपुरी जो किसी जमाने में बिना किसी घोषणा के सचमुच ही स्मार्ट सिटी थी, उसकी पहचान आज बिन पानी मछली जैसी हो गई है | खुदी हुई सड़कें ही उसकी किस्मत बन गई हैं | इस दुरावस्था के लिए आप किसे जिम्मेदार मानते हैं – नेताओं को या जनता को ? 

सवाल अचानक आया था, सो जो जबाब सूझा दे दिया और कहा भाई “यथा राजा तथा प्रजा”, यह तो गुजरे जमाने की कहावत थी | आज तो जनता अपना नायक स्वयं चुनती है, अतः उसे बैसा ही नेता मिलता है, जैसा वह डिजर्व करती है | अगर हम आँख बंद करके बिजली के खम्बे को नेता चुनेंगे, तो उससे कोई अपेक्षा पालना भी तो गलत ही होगा | आप ही बताएं कि स्व. सुशील बहादुर अस्थाना के बाद शिवपुरी में कोई स्थानीय नेतृत्व विकसित हुआ क्या ? अब इसका दोष किसे दें ? यह तो दो जमा दो - चार जैसा मामला है | 

सचमुच मेरी आँखों के सामने शिवपुरी की वह पुरानी तस्वीर घूम गई, जब वर्षाकाल में उसकी छवि और निखर जाया करती थी | दुनिया भर के शहर वर्षा में कीचड़ और गंदगी से लबालब हो जाते थे, किन्तु शिवपुरी की सड़कें धुल कर और साफ़ हो जाती थीं | बाग़ बगीचे तालाब का सौन्दर्य देखते ही बनता था | शिवपुरी वासी वर्षाकाल में अपने इष्टमित्रों को आमंत्रित करते थे कि आओ शिवपुरी घूमने | 

किन्तु अब तो यह सब सपने जैसी बातें हो गई हैं | ऐसा नहीं है कि शिवपुरी के विकास में धन की कोई कमी आई हो | स्थानीय जनप्रतिनिधि इतने प्रभावी थे कि वे एक रूपया शासन से माँगते, तो दस रुपये आते थे | करोड़ों रुपये शिवपुरी के विकास को आये और पानी की तरह बह भी गए | किन्तु शिवपुरी और अधिक धूल धूसरित हो गई | ताल तलैयों में अवैध कालोनियां तन गईं, तो नवीन सीवर लाईन प्रोजेक्ट के नाम पर सड़कें तालाब बन गईं | कहा जाता है कि “अति सर्वत्र वर्ज्यते” | धन की बेशुमार आवक ने भ्रष्ट तंत्र को इतना विराट कर दिया कि उसके सामने बेचारी और असहाय शिवपुरी बौनी हो गई | 

कहा जा रहा है कि दतिया नगरीय क्षेत्र को मिनी स्मार्ट सिटी योजना में शामिल होने के बाद इन्फ्रास्ट्रक्चर डवलप होगा। इसके तहत नई सड़कों का निर्माण होगा। शहर में पार्क बनाए जाएंगे। बच्चों के खेलने के लिए अलग से पार्कों का निर्माण होगा। एक लाइब्रेरी भी बनकर तैयार होगी। सांस्कृतिक व सामाजिक गतिविधियां संचालित होंगी। कम्युनिटी हॉल बनाया जाएगा। ई-नगर पालिका बनेगी और पूरा कार्य कम्प्यूटराइज्ड किया जाएगा। इस कार्य के लिए प्रतिवर्ष नगरपालिका को तीस के स्थान पर साठ करोड़ रूपये मिलेंगे | 

अगर विगत पांच वर्षों में शिवपुरी को मिले धन का हिसाब लगाएं तो बिना स्मार्ट सिटी घोषित हुए ही, उसे दतिया से कहीं अधिक धनराशि प्राप्त हुई है | बात योजना की नहीं है, उसके सफल क्रियान्वयन की है | हमारे प्रभावशाली प्रतिनिधि योजनाओं के नाम पर फंड ला सकते हैं, किन्तु क्रियान्वयन करवाने की उनकी क्षमता पर एक बड़ा प्रश्नवाचक चिन्ह लग गया है | स्वाभाविक भी है | ये लोग शिवपुरी में रहते नहीं हैं, यहाँ के स्थानीय नहीं है | ये तो चुनाव लड़ने या अपने बिजली के खम्बों को लड़वाने भर के लिए यहाँ पधारते हैं | 

दो टूक कहूं तो शिवपुरी अगर आज समस्याओं के मकडजाल में फंसा हुआ शहर है तो उसका एकमात्र कारण स्थानीय नेतृत्व का अभाव है | स्थानीय नेत्रत्व क्यूं विकसित नहीं हुआ, इसका जबाब खोजना होगा | शिवपुरी में प्रतिभा नहीं है, यह मानना गलत होगा | पिछले दिनों पेयजल समस्या के समाधान की मांग को लेकर कुछ गैर राजनीतिक युवाओं ने पचपन दिन तक क्रमिक उपवास आन्दोलन किया | जनता उन्हें अपना नायक क्यों नहीं मान सकती ? 

विधायक सांसद स्थानीय हों तो बहुत अच्छी बात है, अगर ना भी हों तो कमसेकम नगरपालिका में तो बिजली के खम्बे न जीतें | एक बार ईमानदार स्थानीय नेतृत्व मिल जाए तो शिवपुरी पुनः अपने पूर्व गौरव और सौन्दर्य को प्राप्त कर सकती है | किन्तु शिवपुरी वासी क्या दिल से यह चाहेंगे ? 

 राजनीतिक दलों के भरोसे तो यह कार्य होने से रहा, क्योंकि वे तो कभी शिवपुरी में ऐसा होने नहीं देंगे, क्योंकि वे बेचारे स्वयं किसी न किसी की मुट्ठी में बंद हैं | 

- हरिहर शर्मा 

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