अपनी जड़ों से जुड़ने की स्वाभाविक इच्छा कन्वर्जन नहीं-घर वापसी - श्री मनमोहन वैद्य
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23 दिसम्बर को संसद के शीतकालीन सत्र का एक पूरा
सप्ताह विपक्षी दलों के गतिरोध की भेंट चढ़ गया। इस कारण कई आवश्यक विधेयक सदन के
पटल पर नहीं रखे जा सके। कांग्रेस, वामपंथियों और समाजवादी पार्टी सहित सभी
सेकुलरवादी दलों ने आगरा में विश्व हिन्दू परिषद द्वारा 57 परिवारों की घर
वापसी को कन्वर्जन बताते हुए कई दिन तक संसद ठप्प रखी। सरकार ने ठोस कन्वर्जन
विरोधी कानून बनाने की बात की तो इस पर सभी मौन हो गए। इस बहाने कन्वर्जन चर्चा का
विषय बन गया है। इस विषय में पाञ्चजन्य के सहयोगी संपादक सूर्य प्रकाश सेमवाल ने
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अ.भा. प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य से बातचीत की।
प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश-
आगरा में
कुछ मुस्लिम परिवारों के अपने मूल हिन्दू धर्म में लौटने को विपक्ष ने कन्वर्जन की
संज्ञा दी और नरेन्द्र मोदी की सरकार को घेरने का प्रयत्न किया। इस प्रकरण पर आपका
क्या विचार है?
लोकसभा चुनावों में करारी हार मिलने के बाद से ही विपक्ष के
पास कोई ठोस मुद्दा शेष नहीं बचा, इसलिए इस मुद्दे पर अनावश्यक हो-हल्ला मचाया
गया। जिन घटनाओं का जिक्र विपक्षी दल या उनके सदस्य संसद में कर रहे हैं, वहां कन्वर्जन की
कोई बात ही नहीं है, ये तो समाज जीवन की स्वाभाविक प्रक्रियाएं हैं।
अपने मूल के साथ जुड़ने की यह भावना घर वापसी ही है, इससे ज्यादा कुछ
नहीं है। जहां तक कन्वर्जन की बात है तो यह देश में लगातार मुसलमानों और ईसाई
मिशनरियों द्वारा जारी है किन्तु वोट बैंक के लालची राजनीतिक दल उस पर बात भी करने
से परहेज करते हैं।
देश के विपक्षी दलों और मीडिया वालों का तर्क है कि संविधान
ने प्रत्येक व्यक्ति को आस्था और उपासना की स्वतंत्रता दी है, ऐसे में संघ परिवार के प्रकल्पों
विशेषकर विहिप का यह अभियान समाज में विभाजन और देश में धु्रवीकरण की राजनीति को
बढ़ाएगा, क्या यह सही है?
संविधान का
जानकार ही नहीं भारत देश का सामान्य पढ़ा लिखा नागरिक भी इस बात को जानता है कि
अनुच्छेद 25 के अंतर्गत व्यक्तिगत रूप से सभी को अपनी आस्था प्रकट करने या
उपासना पद्धति चुनने की स्वतंत्रता है। व्यक्तिगत इच्छा आकांक्षा और मान्यता में
संघ कहीं हस्तक्षेप नहीं करता किन्तु बल और छल तथा प्रलोभन से यदि किसी गरीब
व्यक्ति को जबरन धर्म परिवर्तन के लिए विवश किया जाता है तो संघ की चिन्ता
स्वाभाविक है। शंकराचायोंर्, धर्मगुरुओं और साधु संतों की सहमती से 1966 में विश्व हिन्दू
परिषद के प्रथम सम्मेलन में मजबूरी में अपना धर्म छोड़ गए बंधुओं का हिन्दू धर्म
में स्वागत करने का प्रस्ताव पारित किया गया। आज समाज भी उन अपनों को स्वीकार करने
को उत्सुक है। जहां तक विरोध की बात है तो जिस मजहब से उनकी घर वापसी हो रही है वे
स्थानीय लोग तो विरोध करेंगे ही क्योंकि बड़े प्रयास से तो वे अपनी संख्या बढ़ाते
हैं। लेकिन हम इसे गैरकानूनी प्रक्रिया नहीं मानते।
केन्द्र सरकार ने विपक्ष को
सटीक जवाब देते हुए कन्वर्जन के विरुद्ध ठोस कानून बनाने की बात कही, जिस पर विपक्ष चुप हो गया लेकिन फिर
वही राग अलापता रहा। संघ ऐसे कानून के विषय में क्या सोचता है?
राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ समाज और देश के हित की बात सोचता है, ऐसा ठोस कानून आज
नहीं बहुत पहले बनना चाहिए था और 1967 में मध्य प्रदेश और उड़ीसा की सरकारों
में राज्य स्तर पर कन्वर्जन के विरुद्ध कानून बनाए थे। इस विषय में मध्य प्रदेश
सरकार की ओर से नियोगी समिति भी बनाई गई जिसने व्यापक छानबीन कर यह संस्तुति दी थी
कि ईसाई मिशनरियों के द्वारा जो कन्वर्जन किया जा रहा है वह असामाजिक व
राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को प्रोत्साहन देता है। तब केन्द्र में भी कांग्रेस की
ही सरकार थी और इन राज्यों में भी। बाद में अभी 5 वर्ष पूर्व हिमाचल
प्रदेश में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने भी ऐसा कानून बनाया
है। लेकिन ये सभी कानून प्रभावी नहीं हैं इस पर ठोस कानून बनना चाहिए। संघ
कन्वर्जन के विरुद्ध सरकार से कानून बनाने की मांग तो नहीं कर रहा है लेकिन यदि
बनता है तो ऐसे किसी भी प्रभावी कानून का हम समर्थन करेंगे।
सिख और बौद्ध मत में भी हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग जाते
हैं, जाते रहे हैं। विपक्ष और मीडिया कहता है कि संघ इस पर भी रोक
लगाए। इसे आप कैसे देखते हैं?
हम स्वेच्छा
से कन्वर्जन का कोई विरोध नहीं करते, व्यक्ति स्वतंत्र है वह कोई भी मजहब स्वीकारे
यह चिन्ता का विषय नहीं है।
हमारी
शाखाओं में और प्रशिक्षण शिविरों में मुस्लिम और ईसाई समुदाय भी स्वयंसेवक आते हैं, संघ अपनी शाखा में
आने वाले स्वयंसेवकों का कन्वर्जन नहीं करता। मोहम्मद छागला का यह कथन प्रासंगिक
लगता है- By religion I am muslim and by culture I am hindu अर्थात मजहब से
मुसलमान होने पर भी सांस्कृतिक रूप से मैं हिन्दू हूं।
केन्द्र
में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बहुमत वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के
बाद से विपक्षी दल अल्पसंख्यकों की असुरक्षा का शोर मचा रहे हैं जबकि संघ बहुत पहले
से अपने स्तर पर अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों और ईसाइयों के बीच संवाद जारी रखे
हुए है, इसके परिणाम कहीं परिलक्षित होते
दिखते हैं क्या?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने दरवाजे बिना जाति-पांति, क्षेत्र और समुदाय
की भावना के खुले रखे हैं जो समाज और देश के विषय में निष्ठा से सोचते हैं और
कार्य करना चाहते हैं उनका स्वागत है। वैसे भी भारत में पारसी और यहूदी समुदाय इस
बात के उदाहरण हैं जिन्होंने उदारतापूर्वक भारतीयता को स्वीकार करते हुए अपने
संस्कारों को भी नहीं छोड़ा है। पूर्व सरसंघचालक कुप. सी़ सुदर्शन जी ने एक
विजयादशमी उत्सव पर भाषण में मुसलमान और ईसाइयों को आह्वान करते हुए इस्लाम के
भारतीयकरण और स्वदेशी चर्च की बात की थी। इसके प्रतिसाद में कई मुस्लिम चिन्तक और
धर्मगुरुओं ने संघ के साथ सम्वाद शुरू किया था। यह सम्वाद आज भी जारी है।
नियोगी आयोग
1967 में मध्य
प्रदेश सरकार ने ईसाई मिशनरियों की गतिविधियों के विषय में एक जांच समिति का गठन
किया था। इस आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति भवानी शंकर नियोगी थे जो नागपुर उच्च
न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश थे। आयोग ने कन्वर्जन पर कानूनी रूप से
रोक लगाने की सिफारिश की थी जिसे लागू नहीं किया गया। आयोग ने कुल 1,360
लोगों से
संपर्क किया, 700 अलग-अलग गांव के लोगों से बातचीत की, 375
लिखित आवेदन
आये तथा 385 लोगों ने प्रश्नावली का उत्तर दिया। 14 जिलों के अस्पताल, स्कूल, चर्च एवं अन्य
संस्थानों का दौरा किया।
1. जिन
मिशनरियों का मुख्य उद्देश्य केवल धर्म परिवर्तन है उन्हें वापस जाने को कहा जाए, देश में बहुत
संख्या में ईसाई मिशनरियों का आना अवांछनीय है इसकी रोकथाम होनी चाहिए।
2. भारतीय चर्च के लिए प्रथम मार्ग यह है कि वह
भारत में संयुक्त ईसाई चर्च की स्थापना करे जो विदेश से आने वाली सहायता पर नजर
रखे।
3. ऐसी चिकित्सा संबंधी सेवाओं तथा अन्य सेवाओं को
जो धर्म परिवर्तन के काम में लग जाती हों उन्हें कानूनन वर्जित कर देना चाहिए।
4. दबाव, छल कपट, अनुचित भय, आर्थिक या दूसरी
प्रकार की सहायता का आश्वासन देकर किसी व्यक्ति की आवश्यकता, मानसिक दुर्बलता
तथा मूर्खता का लाभ उठाकर कन्वर्जन के प्रयास को सर्वथा रोक देना चाहिए।
5. सरकार अनाथालयों का संचालन स्वयं करे क्योंकि
जिन नाबालिगों के माता-पिता या संरक्षक नहीं हैं उनकी वैधानिक संरक्षक सरकार ही
है।
6. धर्म प्रचार के लिए जो भी साहित्य हो बिना
सरकार की अनुमति के वितरित नहीं किया जाना चाहए।
साभार :
पाँचजन्य
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