ओ मेरे जीवन साथी |
0
टिप्पणियाँ
हर एक काटता है बही जो बोता है,
अपने कर्मों का सलीब खुद ढोता है !
लेकिन तप्त सूर्य के प्रखर ताप से,
कजरारे अंधियारे मेघ दिखें आकाश !
हवा के झोंकों से इतराते, इठलाते,
फुहारों से हरें धरती का संत्रास !
साथी का साथ होता है ऐसा ही !
मिलता है सुकून दुःख हो कैसा भी !!
मेघ ओ वायु का मिलन करे जैसे,
जगती को आनन्दित, कुछ बैसा ही !!
Tags :
काव्य सुधा
एक टिप्पणी भेजें