सेवा की सुनामी - राष्ट्रीय सेवा संगम


नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि सेवा का भारतीय दर्शन नर में नारायण को देखता है, सेवा के पीछे किसी उद्देश्य, लाभ की अपनी कामना नहीं होती. जिस सेवा के पीछे उद्देश्य होता है, या अपेक्षा निहित रहती है, वह सेवा व्यापार हो जाती है. भारतीय मौलिक दर्शन में सेवा के बदले केवल आनंद अनुभव होता है. हम सेवा के दौरान सेवितजन में परमात्मा के दर्शन करते हैं.

सह सरकार्यवाह शनिवार से समरसता नगर (होटल ब्लू सफायर, अलीपुर करनाल जीटी रोड) में आयोजित दूसरे राष्ट्रीय सेवा संगम के उद्घाटन सत्र में प्रतिनिधियों को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि अपनी सेवा का उद्देश्य है देश समाज में कोई भी व्यक्ति दीन हीन न रहे, लेष मात्र भी कष्ट न हो. मा कश्चित दुखभागभवेत, सर्वे भवंतु सुखिन की भावना है. हम भारत माता की जय बोलते हैं, पर यदि एक भी व्यक्ति कष्ट में रहा, पीड़ित रहा, शिक्षा विहीन रहा, तो भारत माता की जय अधूरी है. 

प्रत्येक व्यक्ति के दुख को दूर करना लक्ष्य है. उन्होंने कहा कि हमारे यहां सेवा में पूजा पद्धति या अन्य किसी आधार पर भेद नहीं किया जाता, सभी को चाहे वह किसी भी पूजा पद्धति को मानने वाला हो, परमात्मा का अंश मानकर सेवा की जाती है. सेवा के बदले कोई अपेक्षा करने पर वह अपवित्र हो जाती है. यह भारतीय मौलिक दर्शन है जो हमारे ऋषियों, साधु संतों, महापुरुषों ने हमें दिया है. हम मानते हैं कि किसी दुखी, पीड़ित की सेवा करने का अवसर मिला यह मेरा सौभाग्य है. कहा कि दुर्बल वर्ग के हर अभाव को दूर करना समाज के समर्थ वर्ग का दायित्व है. पहले चरण में हम चाहते हैं कि देश में कोई दीन-दुखी न रहे और दूसरे चरण में सारी दुनिया में ऐसी ही स्थिति का निर्माण कर दें.

सह सरकार्यवाह ने संघ संस्थापक डॉ हेडगेवार जन्मशताब्दी वर्ष 1989 का स्मरण करते बताया कि तत्कालीन सरसंघचालक परम पूज्य बाला साहब देवरस ने सेवा कार्य का विचार कार्यकर्ताओं के समक्ष रखा था. वंचित समाज के दुख-कष्ट को दूर करने के लिये क्या हम पांच हजार सेवा कार्यों से काम शुरू कर सकते हैं. उनके आग्रह या कहें विचार पर कार्यकर्ताओं ने प्राणपन से कार्य शुरू किया, वर्ष 1995 तक न केवल लक्ष्य को हासिल किया, बल्कि आगे बढ़े, 1995 तक देशभर में सात हजार सेवा कार्य चल रहे थे. और वर्ष 2015 तक देश भर में सेवा कार्यों की संख्या डेढ़ लाख तक पहुंच गई है. सह सरकार्यवाह जी ने आशा व्यक्त की कि अगले सेवा संगम तक कार्यकर्ताओं, सेवा भावी सज्जनों के उद्यम से सेवा कार्यों की संख्या दोगुनी हो जाएगी. कहा कि राष्ट्रीय सेवा भारती और संघ के स्वयंसेवक समाज, सेवाभावी, सक्षम, सम्पन्न लोगों को साथ लेकर लक्ष्य को प्राप्त करें.

डॉ कृष्ण गोपाल ने पिछले एक हजार वर्ष के पराधीनताकाल के दौरान संचित समस्याओं के उन्मूलन के लिये अब्दुल रहीम खानखाना जैसे कार्यकर्ताओं को तैयार करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि उनका मन यहां की संस्कृति और प्राणी मात्र में ईश्वर के दर्शन में रचबस गया था.

पूज्य माता अमृतानंदमयी अम्मा ने अपने आशीर्वचन में शांति एवं संतोष से परिपूर्ण विश्व के निर्माण का आह्वान किया. उन्होंने प्रेम, करुणा और सेवा के निष्काम भाव पर जोर देते हुए कहा कि यदि सम्पन्नता और निर्धनता की बड़ी खाई को भरने में देर लगी तो हिंसा और युद्ध से नहीं बचा जा सकेगा.

अम्मा ने बच्चों को सनातन सांस्कृतिक मूल्यों की शिक्षा देने की आह्वान करते कहा कि सेवानिवृत्त अध्यापकों को दो वर्ष अध्यात्म, नैतिक मूल्यों की शिक्षा प्रदान करने के लिये गांवों में जाना चाहिये. उन्होंने कहा कि नर को नारायण मानकर सेवा करना, सेवा का यह अवसर अनमोल है, इसे व्यर्थ न गवाएं. वर्तमान में सेवा को पेशा बना लिया गया है, यह समाज के लिये कैंसर के समान है. अम्मा ने राष्ट्रीय सेवा भारती की पत्रिका सेवा साधना का विमोचन किया.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह सेवा प्रमुख अजीत प्रसाद महापात्र ने कहा कि राष्ट्रीय सेवा भारती दुर्बल समाज के आंसू पोंछने के लिये अपेक्षित भाव पैदा करने के साथ ही उनमें स्वाभिमान जगाने का प्रयास कर रही है. सेवा कार्य में रत संस्थाओं को एक मंच पर लाना सेवा संगम का उद्देश्य है.

संगम के लिये गठित स्वागत समिति के अध्यक्ष और जी मीडिया समूह के अध्यक्ष सुभाष चंद्रा ने मंचस्थ महानुभावों और प्रतिभागी समस्त प्रतिनिधियों का स्वागत किया. मंच पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश (भय्याजी) जोशी, व्यवसायी अतुल गुप्ता जी, राष्ट्रीय सेवा भारती के अध्यक्ष सूर्य प्रकाश टोंक उपस्थित थे.

होसबले ने बताया व्दितीय राष्ट्रीय सेवा संगम को अव्दितीय

नई दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबले ने राष्ट्रीय सेवा भारती के तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय व्दितीय राष्ट्रीय सेवा संगम को अव्दितीय बताते हुए आशा व्यक्त की कि यह देश में सेवा की सुनामी लाने में सहायक होगा.

समापन सत्र में श्री होसबले ने देश के 532 जिलों से यहां आये 3050 प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए कहा कि इस संगम में हुए विचार-विमर्श से अगले पांच वर्ष तक इन पांच बिंदुओं पर ध्यान केन्द्रित करने में मदद मिलेगी- सेवा कार्यों की गति बढ़ाना, सेवा कार्यों की संख्या बढ़ाना, सेवा कार्यों के आयामों में वृद्धि, गुणवत्ता में अभिवृद्धि तथा प्रभाव (इम्पैक्ट) में वृद्धि.

राष्ट्रीय सेवा भारती से जुड़े 707 गैर सरकारी संगठनों के इन प्रतिनिधियों को श्री होसबले ने अनेक सफलतादायक परामर्श दिये. उन्होंने व्यवस्थित ढंग से सेवा कार्य करने का स्वभाव बनाने का आग्रह करते हुए कहा कि देश में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में जरूरतमंद लोगों के बीच एवं जल स्रोतों के शुद्धिकरण के लिये परिणामदायी काम करने की बहुत आवश्यकता है.

सहसरकार्यवाह ने यह भी आशा व्यक्त की कि सेवा भारती से जुड़े संगठनों का कामकाज इतने उत्कृष्ट स्तर का होना चाहिये जिससे यह सेवा के क्षेत्र में मानक बन सके. इसके लिये उन्होंने सुझाया कि सेवा भारती से सम्बद्ध संगठन अन्य कार्यों के अलावा एक-दो क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करें, सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिये सुनिश्चित योजना तैयार करें और दक्षता विकास के लिये निरंतर प्रशिक्षण कार्यक्रम चलायें जिससे प्रत्यक्ष कार्य क्षेत्र में आवश्यक विशिष्ट ज्ञान के साथ ही सामूहिकता, परिश्रम, लगन, निरंतरता, समन्वय और आदर्श नेतृत्वकारी गुणों का विकास हो सके.

स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि हमें पश्चिमी जगत से आधुनिक ज्ञान सीखने में कोई संकोच नहीं करना चाहिये. साथ ही, भारत को विश्व के बीच श्रेष्ठ स्थान पर प्रतिष्ठित करने के प्रयत्नों में भारतीय मूल के विदेशों में बसे लोगों विशेषकर युवकों से सहायता ली जा सकती है. उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि उच्च शिक्षित युवकों में सेवा का आकर्षण बढ़ रहा है. वे अच्छी नौकरियां छोड़ कर सेवा क्षेत्र में आ रहे हैं.

श्री होसबले ने प्रतिनिधियों को इस बात से सावधान किया कि सेवा कार्य में किसी भी प्रकार की अस्पृश्यता का कोई विचार अपने मन में न रखें. वे यह भी सदैव अपने ध्यान में रखें कि समाज के सभी लोगों की दुर्बलता दूर किये बिना समर्थ भारत नहीं बन सकता. इसके लिये उन्होंने बिलियर्ड्स के नौ बार विश्व चैम्पियन रहे गीत सेठी के आत्म-जीवन वृत का उल्लेख करते हुए कहा कि सेवा कार्य आनंद की अनुभूति पाने के लिये करें तो सफलता उनके चरण चूमेगी.

श्री होसबले ने सेवा के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह जीवन का मंत्र है. यह जड़-चेतन में व्याप्त ईश्वर की उपासना का माध्यम है. यह किसी के उपकार के लिये नहीं होती. वैसे किसी भी क्षेत्र में काम करना भी सेवा ही है. उन्होंन इसे वृहद आंदोलन की कड़ी निरूपित करते हुए कहा कि सुदृढ़ और समर्थ समाज सेवा भारती का विज़न व मिशन है. उन्होंने स्वामी विवेकानंद के कथन को उद्धृत करते हुए कहा कि सेवा के रूप में त्याग की अभिव्यक्ति होती है. विवेकानंद ने कहा था कि जो दूसरों के लिये जी रहे हैं, वही वास्तव में रहे हैं. जो सिर्फ अपने लिये जी रहे हैं, वे मृतप्राय: हैं. सेवा स्वयं और दूसरों को नर से नारायण बनाने का उपाय है. सचमुच, यह दैवी भाव जाग्रत करने में समर्थ है और यह विभिन्न प्रकार के ऋण चुकाने का भी माध्यम है.

इससे पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अ. भा. सेवा प्रमुख श्री सुहास राव हिरेमठ ने बताया कि इस संगम में देश के सभी राज्यों के 707 स्वयंसेवी संगठनों के 3050 प्रतिनिधियों ने भाग लिया, इनमें 2535 पुरुष और 515 महिलायें शामिल हैं. कार्यक्रम के प्रारम्भ में दिल्ली सेवा भारती के अध्यक्ष श्री तरुण जी ने श्री होसबले का स्वागत किया. सबसे अंत में राष्ट्रीय सेवा भारती के राष्ट्रीय महामंत्री श्री ऋषिपाल डडवाल ने आभार व्यक्त किया. मंच पर राष्ट्रीय सेवा भारती के अध्यक्ष श्री सूर्य प्रकाश टोंक भी उपस्थित थे.

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