शिवसेना - अडानी - मुसलमान !
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आज शिवसेना के मुखपत्र “सामना” का सम्पादकीय पठनीय भी है और मनन करने योग्य भी | सम्पादकीय में कहा गया है कि जिस प्रकार किसी कम्पनी द्वारा एक मुस्लिम नौजवान जीशान को धर्म के आधार पर काम पर न रखना गलत है, उसी प्रकार बहुचर्चित अडानी ग्रुप द्वारा सस्ती पब्लिसिटी के लिए उस नौजवान को जॉब ऑफर करना भी गलत है |
सामना ने यह भी लिखा है कि जो भी मुस्लिम इस देश को अपनी मातृभूमि मानते हैं और जो देश के विकास में अपना योगदान दे रहे है, वे हमारे अपने बंधू हैं और उन्हें भारत के नागरिक को मिलने वाले सभी मूलभूत अधिकार मिलना चाहिए | स्मरणीय है कि कुछ दिन पूर्व शिवसेना नेता संजय राउत ने मुस्लिमों को मताधिकार से बंचित करने की मांग की थी | इस सन्दर्भ में “सामना” का यह सम्पादकीय उल्लेखनीय है |
अब सवाल उठता है कि शिवसेना ने जिस प्रकार प्रधान मंत्री श्री मोदी के नजदीक माने जाने वाले अडानी समूह पर निशाना साधा है, उसके क्या निहितार्थ हैं ? दूसरा सवाल यह उठता है कि देशभक्त और देशद्रोही का विभाजन कैसे होगा ? केवल देशभक्त मुस्लिमों को मौलिक अधिकार, यह शब्द प्रयोग ही गलत है | क्या यह अच्छा नहीं होता कि इसे केवल मुस्लिमों के लिए कहने के बजाय सभी देशवासियों के लिए कहा जाता ? क्या रुपयों की खातिर तस्करी करने वाले देशद्रोही नहीं हैं ? क्या देश का धन, देश के विकास में उपयोग लाने के स्थान पर विदेशी बेंकों में रखना देशद्रोह नहीं है ?
देशभक्ति की परिभाषा बहुत व्यापक है | अच्छा होता कि शिवसेना द्वारा असामाजिक तत्वों और अपराधियों को मताधिकार से वंचित करने की बात की जाती ? लेकिन उससे संभवतः उसके अपने लोग भी प्रभावित होते | वस्तुतः होना यह चाहिए कि जिसे भी तीन या तीन से अधिक वर्षों की सजा मिले उसके मताधिकार समाप्त माने जाए ? दो से अधिक संतान पैदा करने वालों को मताधिकार से वंचित किया जाए, क्योंकि उनके कारण देश आज नहीं तो पांच साल बाद संसाधनों की कमी से जूझने वाला है |
आज तो सात साल जेल में काट लेने के बाद अरुणा शानवाग का हत्यारा, दोबारा नौकरी भी पा जाता है, और शान की जिन्दगी भी जीने लगता है | ऐसे लचर तंत्र में देशभक्त और देशद्रोही की पहचान कर पाना असंभव है | पहले तंत्र में कसावट लाना जरूरी है |
कुल मिलाकर संभावना यह है कि आने वाले दिनों में भाजपा और शिवसेना की रस्साकसी का यह खेल कुछ ज्यादा ही देखने को मिलेगा |
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