महिला समानता के प्रश्न पर खाप पार्टी में तब्दील होते कश्मीर के राजनैतिक दल !


क्या आपने किसी नारीवादी संगठन को कश्मीरी महिलाओं की स्थिति परिस्थिति पर चर्चा करते सुना ? क्या किसी देसाई ने कश्मीर में महिलाओं के साथ किये जा रहे असमान व्यवहार को लेकर कोई प्रदर्शन या धरना आयोजित किया ? जबकि सचाई यह है कि महिलाओं के साथ केवल महिला होने के कारण जितना भेदभाव कश्मीर में है उतना देश में कहीं नहीं ! आइये देखते हैं वहां होने वाले भेदभाव की कहानी –

आजादी के तुरंत बाद यह तय हुआ कि विभिन्न रियासतें अपने-अपने यहां संविधान सभाओं का गठन कर अपने-अपने राज्य के लिए लोकतांत्रिक संविधान पारित रेंगी, किन्तु जम्मू श्मीर रियासत में कवायली आक्रमण के कारण यह प्रक्रिया ही नहीं अपनाई जा सकी। २६ जनवरी १९५० को भारत एक उपनिवेश न रहकर एक गणतंत्र में परिवर्तित हो गया और इसी दिन नया संघीय संविधान देश में लागू हो गया। विभिन्न रियासतों/राज्यों के राज्य प्रमुखों ने ए अधिसूचना द्वारा इस संघीय संविधान को अपने-अपने राज्यों में लागू किया। जम्मू श्मीर में भी इसी प्रकाकी अधिसूचना द्वारा इसे लागू तो किया गया किन्तु संघीय संविधान में अनुच्छेद ३७० जोड़ा गया ! उसके अन्य दुष्परिणाम तो अधिकाँश भारतवासी जानते हैं, लेकिन उसके बहाने शुरू हुए महिला उत्पीडन की जानकारी लोगों को कम है !

राज्य के स्थाई निवासियों में केवल महिला के आधार पर भेदभाव रने वाली कोई व्यवस्था न तो राज्य के संविधान में है और न ही भारत के संविधान में और न ही महाराजा हरिसिंह के शासन काल के प्रावधानों में। लेकिन कश्मीर में सत्तासीन हुई पार्टियों की सोच महिलाओं को लेकर उसी मध्ययुगीन अंधकार युग में घूम रही थी, जिसमें महिलाओं को पैर की जूती समझा जाता था ! बाद में लिखी गई अपनी आत्मथा आतिश-ए-चिनार में नैशनल कोन्फ्रेंस के संस्थाप शेख मोहम्मद अब्दुल्ला अपने घनिष्ठ मित्र मोहम्मद अफजल बेग की कानूनी तालीम की तारीफ करते नहीं थते। यही अफजल बेग राज्य के राजस्व मंत्री थे। उन्होंने ए कार्यपालिका आदेश जारी र दिया,जिसके अनुसार राज्य की कोई भी महिला यदि राज्य के बाहर के लडक़े के साथ शादी र लेती है तो उसका स्थाई निवासी प्रमाण पत्र रद्द र दिया जाएगा और वह राज्य में स्थाई निवासियों को मिलने वाले सभी अधिकारों और सहूलतों से वंचित हो जाएगी। तब वह न तो राज्य में सम्पत्ति खरीद सकेगी और न ही पैतृ सम्पत्ति में अपनी हिस्सेदारी ले सकेगी। न वह राज्य में सरकारी नौरी र पाएगी और न ही राज्य के किसी सरकारी व्यवसायि शिक्षा महाविद्यालय या विश्वविद्यालय में तालीम हासिल र सकेगी। उस अभागी लडक़ी की बात तो छोडि़ए, उसके बच्चे भी इन सभी सहुलियतों से महरूम र दिए जाएँगे।

मान लो किसी बाप की ही बेटी हो और उसने राज्य के बाहर के किसी लडक़े से शादी र ली हो तो बाप के मरने पर उसकी जायदाद लडक़ी नहीं ले सकेगी। नॅशनल कांफ्रेंस तथा अन्य फिरकापरस्तों का मानना है कि इन लड़कियों ने राज्य के बाहर शादी कर कुफ्र किया है, जिसे माफ़ नहीं किया जा सकता । यदि किसी ने प्रदेश की लड़कियों के साथ हो रहे इस अमानवीय व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाई तो नेशनल कान्फ्रेंस ने अनुच्छेद ३७० की ढाल आगे कर दी ।

मजे की बात यह कि राज्य से बाहर शादी करने पर प्रतिबन्ध केवल लड़कियों पर है, लडक़े अगर प्रदेश से बाहर की लडक़ी के साथ शादी रते हैं तो उनकी पत्नियों को तुरन्त राज्य के स्थाई निवासी होने का प्रमाण पत्र जारी र दिया जाता है। उनको वे सभी सहुलियतें तुरन्त दे दी जाती है जो प्रदेश की बेटियों से छीन ली गई है।

सरकार की इस नीति के कारण जम्मू कश्मीर की लड़कियों पर कहर बरपा हो रहा है। शादी रने पर एम.बी.बी.एस. र रही लडक़ी को राज्य के बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, सरकारी नौरी र रही लडक़ी की तनख्वाह रो ली गई। उसे नौरी से निकाल दिया गया। मैरिट और परीक्षा के आधार पर विश्वविद्यालय में प्रवेश पा गई लडक़ी को क्लास में से उठा दिया गया। लेह आकाशवाणी केन्द्र की निदेश छैरिंग अंगमो अपने तीन बच्चों समेत दिल्ली से लेर श्रीनगर त हर दरवाजा खटखटा आई, लेकिन सरकार ने उसे अब प्रदेश की स्थायी निवासी मानने से इनकार कर दिया। क्योंकि उसने उ.प्र. के एक युवक के साथ शादी करने की जुर्रत की थी

राज्य के न्यायालयों में इन दुखी महिलाओं के आवेदनों का अम्बार लग गया। ये लड़कियां जानती थी कि न्याय प्रक्रिया हनुमान की पूंछ जैसी लम्बी खिंचती जाती है, उसको न्याय या तो मिलेगा ही नहीं, और मिलेगा भी तो तब, जब वह बेमानी हो जाएगा । लेकिन फिर भी ये बहादुर लड़कियां इसलिए लड़ रही थीं ताकि राज्य में औरत की आने वाली नस्लों को नॅशनल कांफ्रेंस जैसी मध्ययुगीन मानसिता रखने वाली शक्तियों की दहशत का शिकार न होना पड़े। राज्य की इन बहादुर लड़कियों की मेहनत आखिर रंग लाई। जम्मू श्मीर उच्च न्यायालय के पास सभी लम्बित मामले निर्णय के लिए पहुंचे। लम्बे अर्से तक कानून की धाराओं से माथापच्ची रने के उपरान्त उच्च न्यायालय ने बहुमत से अक्टूबर २००२ में ऐतिहासि निर्णय दिया, जिसके अनुसार जम्मू श्मीर की लड़कियों द्वारा राज्य से बाहर के किसी युवक के साथ निकार लेने के बाद भी उनका स्थायी निवासी होने का प्रमाण पत्र रद्द नहीं किया जा सकेगा। न्यायिइतिहास में यह फैसला सुशीला साहनी केके नाम से प्रसिद्ध हुआ। सारे राज्य की महिलाओं में खुशी की लहर दौड़ गई। दुखतरान-ए-जम्मू श्मीर अंत में अपनी लड़ाई में कामयाब हो गई थी और उन्होंने अनुच्छेद ३७० की आड़ में बैठे नारी विरोधी लोगों को नंगा र दिया था।

परन्तु इस निर्णय से उग्रवादियों से लेर शांतवादी त सभी उग्र हो गए। बाकायदा सामूहिक रूदाली का मंजर नजर आने लगा । जिस वक्त यह कानूनी जलजला आया उस वक्त राज्य में नैशनल कान्फ्रेंस की सरकार थी । आननफानन में उच्च न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ को निरस्त कराने के लिए उच्चतम न्यायालय में अपील की गई। अपने तमाम भेदभाव भुलाकर सी पी एम से लेर पी डी पी तक सब इक्कठे हो गये। प्रदेश के सब राजनैति दल ए बड़ी खाप पंचायत में तब्दील हो गये।  

मामला अभी उच्चतम न्यायालय में लम्बित ही था कि तभी १८ अक्तूबर २००२ को नैशनल कान्फ्रेंस की सरकार गिर गई। कुछ दिन बाद ही सोनिया कांग्रेस और पीपल्स डैमोक्रेटि पार्टी ने मिलर साँझा सरकार बनाई, जो नॅशनल कांफ्रेंस की भी बाप सिद्ध हुई। इस सरकार ने सोचा उच्चतम न्यायालय का क्या भरोसा राज्य की लड़कियों के बारे में क्या फ़ैसला सुना दे। इसलिये लड़कियों को सब सिखाने का यह आप्रेशन सरकार ने अपने ही हाथ में ले लिया । सरकार ने उच्चतम न्यायालय से अपनी अपील वापिस ले ली और विधान सभा में उच्च न्यायालय के निर्णय के प्रभाव को निरस्त रने वाला बिल पेश किया और यह बिल बिना किसी विरोध और बहस के छह मिनट में पारित र दिया गया।

उस दौरान विधि मंत्री मुज्जफर बेग ने जो हा वह इतिहास में सदा याद रखे जाने काबिल है,  उन्होंने फरमाया - औरत की पति के अलावा औकात ही क्या है? विधान सभा में ए नया इतिहास रच गया। जम्मू कश्मीर की बेटियों ने उच्च न्यायालय में दो दश से भी ज़्यादा समय तक लड़कर जो अधिकार प्राप्त किये थे, वे महज छह मिनट में पुन: छीन लिये गये। उसके बाद बिल विधान परिषद में पेश किया गया। लेकिन अब त देश भर में हंगामा बरपां हो गया था। सोनिया कांग्रेस के लिये हीं भी मुँह दिखाना मुश्किल हो गया। विधान परिषद में भी भारी हंगामा हुआ । सभापति ने सत्र का अवसान र दिया और वह बिल अपनी मौत मर गया। अबतो नैशनल कांफ्रेंस का गुस्सा सातवें आसमान पर था। खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। राज्य की पहचान को खतरा घोषित र दिया गया। लेकिन श्रीनगर, जम्मू और लेह त में महिला संगठनों ने प्रदेश के राजनैति दलों की मध्ययुगीन अरबी बीलों जैसी जहनियत पर थूकाश्मीर विश्वविद्यालय में छात्राओं में आक्रोश स्पष्ट देखा जा सता था। आखिर यह प्रश्न हिन्दु सिक्ख या मुसलमान होने का नहीं था। यह राज्य में नारी अस्मिता का प्रश्न था। लेकिन इससे नैशनल कान्फ्रेंस, पी डी पी की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा। सी पी एम भी औरतों को इस हिमाके लिये सब सिखाने, इन दोनों दलों के साथ मिल गई। लेकिन इस बार भी इन तीनों दलों के साझा मोर्चा को मुंह की खानी पडी और बिल पास नहीं हो पाया।  


इतना कुछ हो जाने के बाबजूद नतीजा क्या निकला ? सरकार ने यह तो स्वीकार कर लिया कि राज्य के बाहर शादी करने वाली लड़की पैतृ सम्पत्ति की उत्तराधिकारी हो सती है, लेकिन साथ ही यह भी जोड़ा कि वह इस सम्पत्ति का हस्तान्तरण केवल प्रदेश के स्थायी निवासी को ही र सती है। यहाँ तक कि वह अपनी सन्तान को भी नहीं र सती। साजिशें यहाँ ही नहीं थमीं ! २०१० में अचानक एक दिन पी डी पी के विधान परिषद में नेता मुर्तज़ा खान ने प्रदेश की विधान परिषद में "स्थाई निवासी डिसक्वालीफिकेशन बिल" प्रस्तुत किया। यह अलग बात है कि यह बिल अपनी मौत अपने आप मर गया, क्योंकि संविधान से ताल्लु रखने वाले ऐसे बिल विधान सभा में रखे जाते हैं । परन्तु ए बात तो जगजाहिर हो गई कि राज्य में नैशनल कान्फ्रेंस और पी डी पी दोनों ही अनुच्छेद ३७० को अरबी भाषा में लिखा ऐसा ताबीज़ समझते हैं जिसको केवल वे ही पढ़ और समझ सते हैं । नरेन्द्र मोदी ने जम्मू में ठी ही प्रश्न किया था कि जो अधिकार उमर अब्दुल्ला को हैं वही अधिकार उसकी बहन सारा अब्दुल्ला को क्यों नहीं

उपेक्षित जम्मू-कश्मीर की बेटियां अधिकारों की जंग लड़ रही हैं। लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद उन्हें आधे अधिकार (स्थायी नागरिकता प्रमाणपत्र) तो मिल गए लेकिन बच्चों के अधिकारों के लिए वे संघर्षरत हैं। - See more at: http://www.jagran.com/jammu-and-kashmir/jammu-13691734.html#sthash.MfeL21P3.dpuf
साभार आधार - श्री कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री जी का आलेख !
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