सेक्युलर (धर्म-निरपेक्षता) का सही स्वरुप : राजनेताओं से सावधान - डा. राधेश्याम द्विवेदी


भ्रामक और कुपरिभाषित शब्द :- सेकुलरिज्म एक भ्रामक और कुपरिभाषित शब्द है. अधिकाँश लोग इस शब्द का सही अर्थ भी नहीं जानते। इस शब्द की न तो कोई सटीक परिभाषा है, और न ही कोई व्याख्या है। आजकल गलतफहमी में सेकुलर मतलब केवल “हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई” समझ लिया जाता है और, ऐसा करके कुछ लोग गर्व की अनुभूति भी करते हैं| जबकि हकीकत में लोगों को सेकुलरता का सही अर्थ तक मालूम नहीं है| दरअसल सेकुलर शब्द लैटिन भाषा के “सेकुलो” (Seculo) शब्द से निकला है।जिसका अंग्रेजी में अर्थ है ‘इन दी वर्ल्ड (in the world) | कहानी कुछ यूँ है कि ‘कैथोलिक ईसाइयों’ में संन्यास लेने की परम्परा प्रचलित है।इसके अनुसार संन्यासी पुरुषों को मौंक(Monk) और महिलाओं को नन (Nun) कहा जाता है। परन्तु जो व्यक्ति संन्यास लिए बिना समाज में रहते हुए सन्यासियों के धार्मिक कामों में मदद करते थे, उन्हें “सेकुलर” (Secular) कहा जाता था। कुछ धूर्तों और सत्ता लोलुप लोगों ने सेकुलर शब्द का अर्थ “धर्मनिरपेक्ष ” कर दिया, जिसका मूल अंग्रेजी शब्द से दूर का भी सम्बन्ध नहीं है. यही नहीं इन लोगों ने सेकुलर शब्द का एक विलोम शब्द भी गढ़ लिया “साम्प्रदायवाद”। आज यह इस “सेकुलर ” अर्थात “धर्म निरपेक्ष ” शब्द ने भारत में क्या रूप ले लिया है शायद ये बताने की आगे जरुरत नहीं क्यूँ आप भली भांति परचित होंगे |

वास्तविक अर्थ :- सेकुलर का वास्तविक अर्थ और इतिहास बहुत कम लोगों को पता है. इस सेकुलरिज्म रूपी राक्षस को इंदिरा गांधी ने जन्म दिया था। इमरजेंसी के दौरान (1975-1977) इंदिरा ने अपनी सत्ता को बचाने ओर लोगों का मुंह बंद कराने के लिए पहली बार सेकुलरिज्म का प्रयोग किया था। इसके लिए इंदिरा ने दिनांक 2 नवम्बर 1976 को संविधान में 42 वां संशोधन करके उसमे सेकुलर शब्द जोड़ दिया था .जो विदेश से आयातित शब्द है, हिन्दी में इसके लिए धर्मनिरपेक्ष शब्द बनाया गया. यह एक बनावटी शब्द है.भारतीय इतिहास में इस शब्द का कोई उल्लेख नहीं मिलता है।

ईसाई धर्म से सम्बन्ध :-वास्तव में इस शब्द का सीधा सम्बन्ध ईसाई धर्म और उनके पंथों के आपसी विवाद से है। सेकुलर शब्द लैटिन भाषा के सेकुलो (Seculo) शब्द से निकला है। जिसका अंग्रेजी में अर्थ है ‘इन दी वर्ल्ड (in the world) ‘कैथोलिक ईसाइयों में संन्यास लेने की परम्परा प्रचलित है। इसके अनुसार संन्यासी पुरुषों को मौंक(Monk) और महिलाओं को नन(Nun) कहा जाता है। लेकिन जो व्यक्ति संन्यास लिए बिना, समाज में रहते हुए संयासिओं के धार्मिक कामों में मदद करते थे उन्हें ही सेकुलर(Secular) कहा जाता था। साधारण भाषा में हम ऐसे लोगों को दुनियादार कह सकते हैं।

सेकुलरिज्म की उत्पत्ति - जब इंग्लैंड के राजा हेनरी 8 वें (1491-1547) ने 1533 में अपनी रानी कैथरीन(Catherine) को तलाक देने,और एन्ने बोलेन्न (Anne Bollen) नाम की विधवा से शादी करने के लिए पॉप क्लीमेंट 7th से अनुमति मांगी तो पॉप ने साफ़ मना कर दिया। और हेनरी को धर्म से बहिष्कृत कर दिया। इस पर नाराज़ होकर हेनरी ने पॉप से विद्रोह कर दिया, और अपने राज्य इंग्लैंड को पॉप की सत्ता से अलग करके ,’चर्च ऑफ़ इंग्लैंड ” की स्थापना कर दी. इसके लिए उसने 1534 में इंग्लैंड की संसद में ‘एक्ट ऑफ़ सुप्रीमैसी ’नाम का कानून पारित किया .जिसका शीर्षक था “सेपरेशन ऑफ़ चर्च एंड स्टेट “इसके मुताबिक चर्च न तो राज्य के कामों में हस्तक्षेप कर सकता था, और न ही राज्य चर्च के कामों में दखल दे सकता था। इस चर्च और राज्य के विलगाव के सिद्धाँत का नाम उसने सेकुलरिज्म रखा। आज अमेरिका में सेकुलरिज्म का यही अर्थ माना जाता है. परन्तु यूरोप के कैथोलिक देशों में सेकुलर शब्द का अर्थ “स्टेट अगेंस्ट चर्च किया जाता है। हेनरी और इंदिरा के उदाहरणों से यह स्पष्ट है की इन लोगों ने सेकुलर शब्द का उपयोग अपने निजी स्वार्थों के लिए ही किया था। अरबी शब्दकोश में इसके अर्थ धर्म से संबंध न रखनेवाला, संसारी, ‎غیر روحانی हैं।

1-धर्म निरपेक्षता – अर्थात धर्म की अपेक्षा न रखना, धर्म हीनता, या नास्तिकता.इस परिभाषा के अनुसार धर्म निरपेक्ष व्यक्ति उसको कहा जा सकता है, जिसको अपने बाप(धर्म) का पता न हो ,और जो हर आदमी को अपना बाप(धर्म) मानता हो.या ऎसी औरत जो हर व्यक्ति को अपना पति मानती हो । आजकल के अधिकाँश वर्ण संकर नेता इसी श्रेणी में आते हैं। ऐसे लोगों को हम ,निधर्मी, धर्मभ्रष्ट , धर्महीन ,धर्मपतित या धर्मविमुख कह सकते हैं ।

2-सर्व धर्म समभाव - अर्थात सभी धर्मों को एक समान मानना। अक्सर ईसाई और मुसलमान सेकुलर का यही मतलब बताते हैं। यदि ऐसा ही है तो धर्म परिवर्तन को अपराध घोषित क्यों नहीं कराते?
मुसलमान तो साफ़ कहते हैं की अल्लाह के नजदीक सिर्फ़ इस्लाम धर्म ही है “इन्नाद्दीन इन्दाल्लाहे इस्लामانّ الدين عند الله الاسلام “(Sura3:19) सभी धर्मों के समान होने की बात मात्र छलावा है और कुछ नहीं।

3-पंथ निरपेक्षता – अर्थात सभी पंथों, सँप्रदायों, और मतों को एक समान मानना-वास्तव में यह परिभाषा केवल भारतीय पंथों, जैसे बौद्ध ,जैन, और सिख, जैसे अन्य पंथों पर लागू होती है। क्योंकि यह सभी पंथ एक दूसरे को समान रूप से आदर देते हैं .लेकिन इस परिभाषा में इस्लामी फिरके नहीं आते. शिया और सुन्निओं की अलग अलग शरियतें हैं वे एक दूसरे को कभी बराबर नहीं मानते फिर भी वो इस कथित सेकुलेरिज्म से बाहर है।

4-ला मज़हबियत - मुसलमान सेकुलरिज्म का अर्थ यही करते है। इसका मतलब है कोई धर्म नहीं होना, निधर्मीपना . मुसलमान सिर्फ़ दिखावे के लिए ही सेकुलरिज्म की वकालत करते हैं. और इसकी आड़ में अपनी कट्टरता, देश द्रोह, अपना आतंकी चेहरा छुपा लेते हैं. इस्लाम में सभी धर्मो को समान मानना -शिर्क- यानी महा पाप है. ऐसे लोगों को मुशरिक कहा जाता है,और शरियत में मुशरिकों के लिए मौत की सज़ा का विधान है। इसीलिए मुसलमान भारत को दारुल हरब यानी धर्म विहीन देश कहते हैं। और सभी मुस्लिम देशों में सेकुलर का यही मतलब है। इस्लाम धार्मिक शासन का पक्षधर है .इकबाल ने कहा है -

“जलाले बादशाही हो,या जम्हूरी तमाशा हो .अगर मज़हब से खाली हो,तो रह जाती है खाकानी .”

5-सम्प्रदायवाद - यह एक कृत्रिम शब्द है जो सेकुलरिज्म के विपरीतार्थ में प्रयुक्त किया जाता है.इसका शाब्दिक अर्थ है की अपने सम्प्रदाय को मानना .इस शब्द का प्रयोग सेकुलर लोग हिदुओं को गाली देने, और अपराधी बताने में करते है!

6-सेकुलेरिज्म जबरदस्ती गढ़ा हुआ शब्द :- वास्तव मे ये सेकुलेरिज्म शब्द सिर्फ हिन्दुओ को बेवकूफ बनाने के लिये प्रयुक्त किया जाता है। सेक्युलर एक जबरदस्ती गढ़ा हुआ शब्द है जिसको इंद्रा गांधी ने अपनी मुस्लिम परस्ती को साबित करने के लिए गढ़ा और इस देश के संविधान में शामिल कर देश पर थोपा.जब धर्म ही एक है विश्व में जो की विशाल सनातन है तो सेक्युलर शब्द आया कहा से बाकी सब तो छोटे छोटे मजहब है .क्या नेहरू और अम्बेडकर सेक्युलर नही थे सबसे बड़ा प्रशन ही ये उठता है अगर सेक्युलर थे तो उन्होंने इस शब्द को संविधान में सम्मिलित क्यों नही किया.सबसे बड़ा ढ़ोंग ही सेक्युलर शब्द है जो काल्पनिक है. सेक्युलर - 42 वें संविधान संसोधन में ये शब्द जोड़ा गया था, शायद इमरजेंसी के समय. मैंने मूल में इसलिए कहा क्योकि 42वे संशोधन से पहले भी सेक्युलर शब्द का जिक्र संविधान के अनुच्छेद 25(2) में आया था जिसमे राज्य को धार्मिक आचरण से संबद्ध किसी भी लौकिक क्रियाकलाप का विनिमयन या निर्बन्धन करने की शक्ति प्रदान की गयी थी। 

7-दोगली राजनीति को हिंदुओं ने ही बढ़ाया:- भारत का बंटवारा धार्मिक आधार पर हुआ था ।इसबात को हमारे संविधान निर्माताओं को पूरा पता था । इसलिये कहीं भी सेक्युलर शब्द का इस्तेमाल नहीं हुआ।नेहरू और उनके समर्थकों ने मुसलमानों को भारत में रोककर तथा ब़टवारा यूपी बिहार बंगाल के मुस्लिम चाहते थें ।सिंध पंजाब ब्लोचिस्तान हिंदु और सिख बहुल प्रान्तों को पाकिस्तान को देकर हिन्दुओं का बहुत बड़ा कत्लेआम और बेघर करवाकर बंटवारे का मकसद अधूरा रहा तथा जिन्ना और नेहरू तथा उनके समर्थकों की सत्ता लोलुपता जरूर पूरी हुई।आगे चलकर पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों को भारत में बसाकर सेक्युलर शब्द और मुस्लिम बोर्ड का गठन इंदिरा गांधी ने किया तथा पंजाब में जहां हिन्दु सिख अपने को एक समझते थें तथा भाई चारे से रहते थें उन्हें लड़ाने के लिये भिंडरावाले को हथियार देकर सिख आतंकवाद फैलाया तथा बहुत बड़ी संख्या में हिन्दुओं और सिखों का कत्लेआम हुआ । दंगों के आरोपी माफिया मुख्तार अंसारी भी कह रहा है कि सांप्रदायिक शक्तियों से लड़ेंगे। आप यदि दंगाई हैं, माफिया हैं, लेकिन गैर हिन्दू हैं तो आप धर्मनिरपेक्ष हैं, लेकिन कहीं गलती से भी राम या हिंदू का नाम ले लिया तो पूरी राजनीतिक व मीडिया जमात आपको सांप्रदायिक ठहरा देगी। यही इस देश की धर्मनिरपेक्ष राजनीति की फितरत है।इस दोगली राजनीति को स्वयं हिंदुओं ने ही बढ़ावा दिया है।

8-सांप्रदायिकता शब्द हिन्दुओं के लिए राजनीतिक गाली:- यदि आप हिन्दुत्व की बात करते हैं तो आप सांप्रदायिक हैं। यदि आप राम, कृष्ण, शिव की पूजा करते हैं तो आप सांप्रदायिक हैं । यदि आप अयोध्या, काशी, मथुरा में मन्दिर निर्माण की बात करते हैं तो आप सांप्रदायिक हैं । यदि आप मुस्लिम टोपी नहीं पहनते हैं तो आप सांप्रदायिक हैं । यदि आप गौ हत्या बन्द होने की बात करते हैं तो आप सांप्रदायिक हैं। मतलब यदि आप हिन्दू और हिन्दू धर्म के विरोधी नहीं हैं तो आप सांप्रदायिक हैं।आजाद भारत में कोई एक भी उदाहरण नहीं है कि देश का कोई भी हिस्सा ऐसा हो जहाँ पर हिन्दुओं ने किसी भी धर्म व जाति के लोगों पर अकारण क्रूरता का व्यवहार किया हो व पलायन के लिए मजबूर किया हो व धर्म-जाति परिवर्तन के लिए मजबूर किया हो। ये बताने की जरुरत नहीं कि देश में अगर कहीं कोई पलायन व धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया है तो हिन्दू ही हुआ है । 

9-गुमराह करने का हौवा:- वास्तव में धर्म और जाति के नाम पर राजनीति करने वाले और समाज में नफरत फैलाकर लोगों को आपस में लड़ाकर सत्ता हासिल करने की चाह रखने वाले लोग सांप्रदायिक ताकतों का हौवा खड़ा कर वर्ग विशेष के लोगों को गुमराह करने का काम करते हैं जिससे कि लोग धर्म और जाति के नाम पर आपस में लड़ते रहे और इनकी राजनीति चमकती रहे । इन्हें पता है कि यदि लोग आपस में लड़ना छोड़ एक जुट हो जायेंगे, विकास की बात करेंगे तो इनकी राजनीति खत्म हो जायेगी। हमें इनके मंसूबो को समझना होगा।

डा. राधेश्याम द्विवेदी
लेखक परिचय - डा.राधेश्याम द्विवेदी ने अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद से बी.ए. और बी.एड. की डिग्री,गोरखपुर विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिन्दी),एल.एल.बी., सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी का शास्त्री, साहित्याचार्य तथा ग्रंथालय विज्ञान की डिग्री तथा विद्यावारिधि की (पी.एच.डी) की डिग्री उपार्जित किया। आगरा विश्वविद्यालय से प्राचीन इतिहास से एम.ए.डिग्री तथा’’बस्ती का पुरातत्व’’ विषय पर दूसरी पी.एच.डी.उपार्जित किया। बस्ती ’जयमानव’ साप्ताहिक का संवाददाता, ’ग्रामदूत’ दैनिक व साप्ताहिक में नियमित लेखन, राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित, बस्ती से प्रकाशित होने वाले ‘अगौना संदेश’ के तथा ‘नवसृजन’ त्रयमासिक का प्रकाशन व संपादन भी किया। सम्प्रति 2014 से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण आगरा मण्डल आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद पर कार्यरत हैं। प्रकाशित कृतिः ”इन्डेक्स टू एनुवल रिपोर्ट टू द डायरेक्टर जनरल आफ आकाॅलाजिकल सर्वे आफ इण्डिया” 1930-36 (1997) पब्लिस्ड बाई डायरेक्टर जनरल, आकालाजिकल सर्वे आफ इण्डिया, न्यू डेलही। अनेक राष्ट्रीय पोर्टलों में नियमित रिर्पोटिंग कर रहे हैं।