टंटया भील से बना स्वतंत्रता संग्राम का जन नायक तात्या मामा |


कई बार पकड़ा गया,
भागा हथकड़ी तोड़,
टंटया या मर्दाना तेरी,
कौन करेगा होड़ ?

खंडवा जेल में टंटया की मुलाक़ात दोल्या नामक एक शक्तिशाली भील नौजवान से हुई | अंग्रेज सरकार टंटया भील को काले पानी की सजा सुनाने जा रही थी किन्तु टंटया ने दोल्या के साथ मिलकर जेल से निकलने की योजना बनाई | टंटया ने पहरे पर तैनात सिपाही को उस समय काबू में कर लिया, जब वो उसे अदालत ले जाने की तैयारी कर रहा था और दोल्या ने अपनी ताकत से कोठरी के सरिये मोड़ दिए | दोल्या सिपाही की वर्दी पहिनकर मुख्य द्वार से बाहर हो गया तो टंटया जेल की दीवार फांद कर निकल गया |

जेल से बाहर आकर जो पहला काम किया वह था मुखबिर हेमंत पटेल को जहन्नुम पहुंचाने का तथा अपनी प्रेमिका व शिवा पटेल की बेटी से शादी रचाने का | उसके बाद तो टंटया का जीवन ही बदल गया | अब वह अंग्रेजों की नजर में एक डाकू था, किन्तु गरीब मजलूमों की नजर में खुदाई खिदमतगार | वह अमीरों को लूटता और लूट का पैसा गरीब और जरूरत मंदों को बांटता | उसकी छापामार युद्ध शैली को देखकर अंग्रेजों ने उसे टंटया के स्थान पर तात्या कहना शुरू कर दिया | जन श्रुतियों में माना गया है कि वास्तव में ही उन्हें तात्या टोपे ने गोरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण दिया था |

अंग्रेज सरकार को यह रोबिनहुड का अवतार कहाँ पसंद आना था | जब वे किसी भी प्रकार टंटया को काबू में नहीं कर पाए तो उन्होंने षडयंत्र का सहारा लिया | घोषणा की गई कि टंटया पर लगाए गए सारे आरोप वापस ले लिए गए हैं | इस प्रकार षडयंत्र और फरेब से उसे गिरफ्तार किया गया | पहले तो इंदौर में सेंट्रल इंडिया एजेंसी जेल में रखा गया किन्तु बाद में उन्हें जबलपुर ले जाया गया । जहां ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा उनपर अमानवीय अत्याचार किये गए । अंततः 4 दिसम्बर 1889 को उन्हें फांसी दे दी गई और उनके शरीर को खंडवा इंदौर के पास रेल मार्ग पर कलपेनी रेलवे स्टेशन के पास फेंक दिया गया । निमाड़ अंचल की गीत-गाथाओं में आज भी टंटया मामा को याद किया जाता है।

वह निमाड़ का पहला विद्रोही भील युवक था। बलशाली होने के साथ साथ उसमें चमत्कारिक बुद्धि शक्ति थी। लोकगीतों में उन्हें अवतारी व्यक्ति तक कहा जाने लगा। वह किसी स्त्री की लाज लुटते नहीं देख सकता था। टंटया के बारे में कहते हैं- 

तांत्या बायो, टण्टया खड माटवो। 

घाटया खड धान, भूख्या खडं बाटयो॥

वह एक बागी था जिसने संकल्प लिया था कि विदेशी सत्ता के पांव उखाड़ना है। टंटया अपने दल में हमशक्ल रखता था। पुलिस को परेशान करने के लिये टंटया एक साथ पांच-छह विपरीत दिशाओं में डाके डलवाता था। बांसवाड़ा, भीलवाड़ा, डूंगरपुर, बैतूल, धार में टंटया भीलों का नायक था। लूटमार करके वह होलकर रियासत राज्य में जाकर सुरक्षित हो जाता था। पुलिस खोजती रहती पर उसे पकड़ने में असमर्थ रहती। यह भील क्रांतिकारी जो कुछ भी वह लूटता उसे अंग्रेजों के विरुद्ध ही उपयोग में लाता था। । वनवासियों के इन विद्रोहों की शुरुआत प्लासी युद्ध (1757) के ठीक बाद ही शुरू हो गयी थी और यह संघर्ष बीसवीं सदी की शुरुआत तक चलता रहा।

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