सिंधिया वंश का इतिहास बनाम श्रीमती प्रियंका बाड्रा का ग्वालियर में संभावित भाषण - हरिहर शर्मा



आज के समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार पढ़कर मन में सहज प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई। समाचार था कि कल श्रीमती प्रियंका गांधी बाड्रा अपने ग्वालियर प्रवास के दौरान सबसे पहले महारानी लक्ष्मीबाई की समाधि पर जाकर श्रद्धांजलि समर्पित करेंगी। बहुत अच्छी बात है। झांसी की रानी महारानी लक्ष्मीबाई के सम्मुख तो हर भारतवासी का सर श्रद्धा से झुकता ही है। लेकिन मुझे याद नहीं आता कि इसके पूर्व गांधी परिवार का कोई भी व्यक्ति महारानी की समाधि पर कभी गया हो। 

प्रियंका जी आएंगी, महारानी की समाधि पर फोटो सेशन करने के बाद मेला ग्राउंड पर आयोजित कांग्रेसी तमासे में पहुंचकर भाषण भी देंगी। 

भाषण क्या होगा, उसका लब्बो लुआब पहले से आपको, हमको, सबको ज्ञात है। स्वाभाविक ही उनके भाषण का निशाना होंगे अंचल के सर्वाधिक प्रभावशाली राजनेता श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया। राजनीति में विरोधियों को निशाना बनाना स्वाभाविक भी है। कांग्रेसी - भाजपाई नेताओं पर प्रहार करेंगे ही। लेकिन जो वे कल बोलेंगी मैं उसे आज ही बताये देता हूँ। वे कल कहेंगी - देखो सिंधिया ने 1857 में महारानी लक्ष्मीबाई के साथ गद्दारी की और आज भी कांग्रेस के साथ वही किया ब्ला ब्ला ब्ला ब्ला। 

मैं पहले भी कई बार अपने चैनल पर इस विषय में अपना मत प्रगट कर चुका हूँ। अगर आप सिंधिया वंश को कोसते हो तो इसका अर्थ है आप क्षत्रपति शिवाजी महाराज की हिन्दू पद पादशाही की ध्वजा मालवा व चम्बल अंचल में भी फहराने वाले, इस अंचल को मुस्लिम आतंक से मुक्ति दिलाने वाले महान मराठा योद्धा महाद जी सिंधिया को भी कोसते हो। जिस समय रुहेलखंड के शासक गुलाम कादिर द्वारा मुग़ल बादशाह शाह आलम की आँखें फोड़ दी गईं, उसके बाद उन्हें पुनः गद्दी पर बैठाने वाले महाद जी सिंधिया ही थे। सचाई तो यह है कि दिल्ली और आगरा सहित सम्पूर्ण उत्तरी भारत पर नियंत्रण प्राप्त करने वाले, एक प्रकार से समूचे हिंदुस्तान के अघोषित शासक बन चुके थे महादजी। जो भी वंश की आलोचना करेगा, वह एक प्रकार से राणोजी सिंधिया और महाद जी सिंधिया जैसे महा नायकों की आलोचना का अपराध करेगा। वर्त्तमान सिंधिया श्री ज्योतिरादित्य जी के खिलाफ बोलने के लिए कुछ नहीं है, इसलिए राजनैतिक कारणों से उनके एक पूर्वज के किसी कृत्य को बहाना बनाकर उन पर प्रहार नितांत अनुचित है। 

हम कैसे भूल सकते हैं कि उन्हीं अल्पवयस्क जयाजीराव महाराज के नेतृत्व में उनकी माँ राजमाता तारादेवी की प्रेरणा से ग्वालियर की सेना ने पनिहार में अंग्रेजों के दांत खट्टे किये थे। किन्तु प्रशिक्षित अंग्रेज सेना अंततः विजयी हुई और ग्वालियर पर वस्तुतः तो अंग्रेजों का अधिकार हो गया। उनकी और से एक अधिकारी दिनकर राव राजबाड़े महाराज जयाजीराव के नाम पर राजकाज चलाने लगा। 

उन्हीं जयाजी राव के सुपुत्र कैलाशवासी महाराजा श्रीमत माधवराव प्रथम उपाख्य माधो महाराज ने जन कल्याण के कितने कार्य किये। यह माधवराव सिंधिया ही थे, जिन्होंने एक अनजान से पहाडी गाँव सीपरी को शिवपुरी में रूपांतरित कर अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया | उनके कार्य काल में शहर तो शहर जंगलों में भी आवागमन के लिए इतनी अच्छी सडकों का जाल बिछाया गया कि लगभग सौ वर्ष बीत जाने के बाद भी वे सड़कें आज विद्यमान हैं | उस जमाने में शिवपुरी के दो बत्ती कहे जाने वाले चौराहे पर गौमुख से चौबीसों घंटे पेय जल का प्रवाह होता रहता था | हैरत की बात है कि यह पानी व्यर्थ नहीं जाता था, बल्कि साईफन सिस्टम से नजदीकी गूजर तालाब में जाता था | 

माधव महाराज ने व्यक्तिगत रूचि लेकर शिवपुरी को आकर्षक बनाने के लिए नगरीय क्षेत्रों को तो सडकों से जोड़ा ही जंगलों में भी सडकों का जाल बिछा दिया जिनके माध्यम से जंगल की झीलों और सख्या सागर, जाधव सागर, भूरा खोह आदि प्राकृतिक झरनों तक पहुंचना भी पर्यटकों के लिए सुगम कर दिया । उन्हीं के कार्यकाल में शिवपुरी में व्यापार व उद्योगों की नींव रखी गई। गणेश आयल मिल, हनुमान मिल, दाल मिल जैसे उद्योगों के साथ दीवान परिवार ने कत्था मिल भी प्रारंभ किया। 

ग्वालियर लेदर फेक्ट्री शुरू करने से न केवल रोजगार के अवसर बढे बल्कि जनजातियों का आर्थिक जीवन स्तर भी बढ़ा | इतना ही नहीं तो, फेक्ट्री मजदूरों की खरीद क्षमता बढ़ने से ग्वालियर के व्यापारियों को भी लाभ हुआ | १९०५ में ग्वालियर में भीषण अकाल पड़ा | किसानों को अन्नदाता पुकारने वाले संवेदनशील महाराज माधवराव ने खेती के साथ पशुपालन को भी प्रोत्साहन देने के लिए ग्वालियर व्यापार मेले की शुरूआत की | इसके साथ ही युद्ध स्तर पर सिंचाई सुविधा बढ़ाने का भी प्रयत्न किया, ताकि अवर्षा आदि प्राकृतिक आपदाओं से किसान अधिक प्रभावित न हों । इसके बाद अनेक सिंचाई परियोजनाएं प्रारम्भ हुईं और 1920 आते आते तो आवश्यकता के अनुरूप पर्याप्त और व्यापक रूप से विकसित हो गईं । सिंचाई के लिए जल उपलब्ध हुआ, तो कृषि भी लहलहाने लगी | कृषकों के लिए कृषि अभियांत्रिकी और पशु चिकित्सा सेवाओं की शुरूआत हुई तो साथ ही तकनीकी शिक्षा, वाणिज्य, औद्योगिक कारखानों, संचार, वन, बैंक और बिजली योजनाओं का भी श्रीगणेश हुआ । 

कृषकों को अन्नदाता का सम्बोधन देने वाले माधो महाराज ने सिंधिया वंश को जो अपार लोकप्रियता प्रदान की, उसकी बानगी तो हमारी पीढ़ी ने भी अनुभव की है। सत्तर के दशक में जब हम जैसे तरुण कार्यकर्ता गाँवों में जनसंघ का प्रचार करने जाते थे, तो राजमाता साहब के लिए सुनने को मिलता था - हमने तो बिनको नमक खाओ है। यह सिंधिया वंश द्वारा किये गए जनकल्याण कारी कार्यों का ही प्रभाव था। 

अतः कल प्रियंका जी अगर सिंधिया वंश पर प्रहार करें, तो उसे उनका अज्ञान ही समझा जाना चाहिए। अगर उनके पास श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ बोलने को कुछ है, तो वह सूनने को मैं भी उत्सुक रहूँगा। लेकिन जानता हूँ उनके पास कुछ होगा ही नहीं। 2019 के चुनाव में वे कांग्रेस में थे। उस समय भाजपा के पास भी उनके खिलाफ बोलने को कुछ नहीं था, अतः भाजपा ने मुद्दा बनाया था कि यह चुनाव सांसद का नहीं प्रधान मंत्री का है। आपको तय करना है कि देश का प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी को बनाना है या श्री राहुल गांधी को। तीर निशाने पर लग गया और भाजपा को सफलता हाथ लगी।