क्या ईसा मसीह भारत आये थे ?


ईसा की शिक्षाओं और वेद की ऋचाओं में जो साम्य है, वह बताता है कि ईसा मसीह पर भारतीय तत्व चिंतन का प्रभाव था -”यीशु ने कहा तुम अपनी तलवार मियान में ही रखो। क्योंकि जो लोग दूसरों पर तलवार उठाएंगे वह तलवार से ही मरेंगे “बाइबिल . नया नियम- मत्ती- अध्याय 26 :52( “He who lives by the sword will die by the sword” (Matthew 26:52)वेद -जिस प्रकार द्युलोक और पृथ्वी न तो किसी को डराते हैं ,और न किसी से हिंसा करते हैं वैसे ही मानव तू भी किसी को नहीं डरा और न किसी पर हथियार उठा -अथर्ववेद -2/11

ईसाई विद्वानों के अनुसार ईसा मसीह का जन्म 25 दिसंबर सन 1 को इस्राएल के शहर नाजरथ में हुआ था , उनके पिता का नाम यूसुफ और माता का नाम मरियम था ,ईसा बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि थे , इसका प्रमाण बाइबिल में इस प्रकार दिया गया है ,“जब ईसा 12 साल के हुए तो माता पिता के साथ त्यौहार मानाने यरूशलेम गए. और वहीं रुक गए , यह बात उनके माँ बाप को पता नहीं थी , वह समझे कि ईसा किसी काफिले के साथ बाहर गए होंगे ,लेकिन खोजने के बाद ईसा मंदिर में विद्वानों के साथ चर्चा करते हुए मिले , ईसा ने माता पिता से कहा आप मुझे यहाँ देखकर चकित हो रहे हो ,लेकिन आप अवश्य एक दिन मुझे अपने पिता के घर पाएंगे (बाइबिल – लूका 2 :42 से 50 तक)

इसके बाद 30 साल की आयु तक यानि 18 साल ईसा मसीह कहाँ रहे और क्या करते रहे इसके बारे में कोई प्रमाणिक जानकारी न तो बाइबिल में मिलती और न ईसाई इतिहास की किताबों में मौजूद है ,ईसा मसीह के इन 18 साल के अज्ञातवास को इतिहासकार “ईसा के शांत वर्ष (Silent years) ,खोये हुए वर्ष ( Lost years ) और और ” लापता वर्ष (Missing years ) के नाम से पुकारते हैं . 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने येरुशलम में यूहन्ना (जॉन) से दीक्षा ली। दीक्षा के बाद वे लोगों को शिक्षा देने लगे। ज्यादातर विद्वानों के अनुसार सन् 29 ई. को प्रभु ईसा गधे पर चढ़कर येरुशलम पहुंचे। वहीं उनको दंडित करने का षड्यंत्र रचा गया। अंतत: उन्हें विरोधियों ने पकड़कर क्रूस पर लटका दिया। उस वक्त उनकी उम्र थी लगभग 33 वर्ष।

रविवार को यीशु ने येरुशलम में प्रवेश किया था। इस दिन को 'पाम संडे' कहते हैं। शुक्रवार को उन्हें सूली दी गई थी इसलिए इसे 'गुड फ्रायडे' कहते हैं और रविवार के दिन सिर्फ एक स्त्री (मेरी मेग्दलेन) ने उन्हें उनकी कब्र के पास जीवित देखा। जीवित देखे जाने की इस घटना को 'ईस्टर' के रूप में मनाया जाता है।

सन 1887 में एक रूसी शोधकर्ता “निकोलस अलेकसैंड्रोविच नोतोविच ( Nikolaj Aleksandrovič Notovič ) के अनुसार जिन 18 वर्षों का उल्लेख लापता वर्ष के रूप में किया जाता है, उन वर्षों में वे भारत में रहे थे | उसने यह जानकारी एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित करवायी थी , जिसमे 244 अनुच्छेद और 14 अध्यायों में ईसा की भारत यात्रा का पूरा विवरण दिया गया है पुस्तक का नाम ” संत ईसा की जीवनी (The Life of Saint Issa ) है .पुस्तक में लिखा है ईसा अपना शहर गलील छोड़कर एक काफिले के साथ सिंध होते हुए स्वर्ग यानी कश्मीर गए , वह उन्होंने ” हेमिस -Hemis” नामके बौद्ध मठ में कुछ महीने रह कर जैन और बौद्ध धर्म का ज्ञान प्राप्त किया और संस्कृत और पाली भाषा भी सीखी . 

यही नही ईसा मसीह ने संस्कृत में अपना नाम ” ईशा ” रख लिया था ,जो यजुर्वेद के मंत्र 40:1 से लिया गया है जबकि कुरान में उनका नाम ” ईसा – (عيسى ” बताया गया है .नोतोविच ने अपनी किताब में ईसा के बारे में जो महत्त्वपूर्ण जानकारी दी है उसके कुछ अंश दिए जा रहे हैं ,तब ईसा चुपचाप अपने पैतृक नगर यरूशलेम को छोड़कर एक व्यापारी दल के साथ सिंध की तरफ रवाना हो गए “4:12उनका उद्देश्य धर्म के वास्तविक रूप के बारे में जिज्ञासा शांत करना , और खुद को परिपक्व बनाना था “4:13

फिर ईसा सिंध और पांच नदियों को पार करके राजपूताना गए ,वहाँ उनको जैन लोग मिले , जिनके साथ ईसा ने प्रार्थना में भी भाग लिया “5:2लेकिन वहाँ इसा को समाधान नही मिला, इसलिए जैनों का साथ छोड़कर ईसा उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर गए , वहाँ उन्होंने भव्य मूर्ती के दर्शन किये , और काफी प्रसन्न हुए “5:3फिर वहाँ के पंडितों ने उनका आदर से स्वागत किया , वेदों की शिक्षा देने के साथ संस्कृत भी सिखायी “5:4पंडितों ने बताया कि वैदिक ज्ञान से सभी दुर्गुणों को दूर करके आत्मशुद्धि कैसे हो सकती है “5:5फिर ईसा राजगृह होते हुए बनारस चले गए और वहीँ पर छह साल रह कर ज्ञान प्राप्त करते रहे ” 5:6और जब ईसा मसीह वैदिक धर्म का ज्ञान प्राप्त कर चुके थे तो उनकी आयु 29 साल हो गयी थी , इसलिए वह यह ज्ञान अपने लोगों तक देने के लिए वापिस यरूशलेम लौट गए ., जहाँ कुछ ही महीनों के बाद यहूदियों ने उनपर झूठे आरोप लगा लगा कर क्रूस पर चढ़वा दिया था , क्योंकि ईसा मनुष्य को ईश्वर का पुत्र कहते थे | http://reluctant-messenger.com/issa1.htm

ईसा क्रूस की मौत से नहीं मरे

बाइबिल के अनुसार ईसा को केवल 6 घंटे तक ही क्रूस पर लटका कर रखा गया था , और वह जीवित बच गए थे , उनके एक शिष्य थॉमस ने तो उनके हाथों में कीलों के छेदों में उंगली डाल कर देख लिया था कि वह कोई भूत नहीं बल्कि सचमुच ईसा मसीह ही हैं.यह पूरी घटना बाइबिल की किताब यूहन्ना 20: 26 से 30 तक विस्तार से दी गयी है. बाइबिल में यह भी बताया गया है कि ईसा बेथनिया नाम की जगह तक अपने शिष्यों के साथ गए थे , और उनको आशीर्वाद देकर स्वर्ग की तरफ चले गए ,( बाइबिल – लूका 24:50 )

यद्यपि बाइबिल में ईसा के बारे में इसके आगे कुछ नहीं लिखा गया है , लेकिन इस्लामी हदीस ” कन्जुल उम्माल- كنج العمّال ” के भाग 6 पेज 120 में लिखा है कि मरियम के पुत्र ईसा इस पृथ्वी पर 120 साल तक जीवित रहे ,عيسى ابن مريم عاش لمدة 120 سنة، “Kanz al Ummal, part 6, p.120

ईसा की अंतिम भारत यात्रा 

इस्लाम के कादियानी संप्रदाय के स्थापक मिर्जा गुलाम कादियानी (1835 -1909 ) ने ईसा मसीह की दूसरी और अंतिम भारत यात्रा के बारे में उर्दू में एक शोधपूर्ण किताब लिखी है , जिसका नाम ” मसीह हिंदुस्तान में ” है . अंगरेजी में इसका नाम ” Jesus in India ” है। इस किताबों में अनेकों ठोस सबूतों से प्रमाणित किया गया है कि , ईसा मसीह क्रूस की पीड़ा सहने के बाद भी जिन्दा बच गए थे . और जब कुछ दिनों बाद उनके हाथों , पैरों और बगल के घाव ठीक हो गए थे तो फिर से यरूशलेम छोड़ कर ईरान के नसीबस शहर से होते हुए अफगानिस्तान जाकर रहने लगे , और वहाँ रहने वाले इजराइल के बिखरे हुए 12 कबीले के लोगों को उपदेश देने का काम करते रहे . लेकिन अपने जीवन के अंतिम सालो में ईसा भारत के स्वर्ग यानि कश्मीर में आकर रहने लगे थे , और 120 साल की आयु में उनका देहांत कश्मीर में ही हुआ , आज भी उनका मजार श्रीनगर की खानयार स्ट्रीट में मौजूद है, http://www.alislam.org/library/books/jesus-in-india/intro.html

ईसा मसीह कश्मीर में दफ़न है

ईसा मसीह के समय कश्मीर ज्ञान का केंद्र था,वहाँ अनेकों वैदिक विद्वान् रहते थे . इसीलिये जीवन के अंतिम समय ईसा कश्मीर में बस गए थे उनकी इच्छा थी कि मरने के बाद उनको इसी पवित्र स्थान में दफ़न कर दिया जाये . और ऐसा ही हुआ था , यह खबर टाइम्स ऑफ़ इण्डिया में दिनांक 8 मई 2010 में प्रकाशित हुई थी .“That Jesus survived crucifixion, travelled to Kashmir, eventually died there and is buried in Srinagar ,. Every season hundreds of tourists visit the Rozabal shrine of Sufi saint Yuz Asaf in downtown Srinagar, believed by many to be the final resting place of Christ.http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2010-05-08/india/28322287_1_srinagar-shrine-jesus”


कहा जाता है कि इस रौज़ाबल दरगाह में ईसा मसीह की क़ब्र है 

आचार्य रजनीश का कथन -

'पहलगाम एक छोटा-सा गांव है, जहां पर कुछ एक झोपड़ियां हैं। इसके सौंदर्य के कारण जीसस ने इसको चुना होगा। जीसस ने जिस स्‍थान को चुना वह मुझे भी बहुत प्रिय है। मैंने जीसस की कब्र को कश्‍मीर में देखा है। इसराइल से बाहर कश्‍मीर ही एक ऐसा स्‍थान था जहां पर वे शांति से रह सकते थे। क्‍योंकि वह एक छोटा इसराइल था। यहां पर केवल जीसस ही नहीं मोजेज भी दफनाए गए थे। मैंने उनकी कब्र को भी देखा है। कश्मीर आते समय दूसरे यहूदी मोजेज से यह बार-बार पूछ रहे थे कि हमारा खोया हुआ कबिला कहां है (यहूदियों के 10 कबिलों में से एक कबिला कश्मीर में बस गया था)। 

यह बहुत अच्‍छा हुआ कि जीसस और मोजेज दोनों की मृत्यु भारत में ही हुई। भारत न तो ईसाई है और न ही यहूदी। परंतु जो आदमी या जो परिवार इन कब्रों की देखभाल करते हैं वह यहूदी हैं। दोनों कब्रें भी यहूदी ढंग से बनी है। हिंदू कब्र नहीं बनाते। मुसलमान बनाते हैं किन्‍तु दूसरे ढंग की। मुसलमान की कब्र का सिर मक्‍का की ओर होता है। केवल वे दोनों कब्रें ही कश्‍मीर में ऐसी है जो मुसलमान नियमों के अनुसार नहीं बनाई गई।'- ओशो
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