आल्हा ऊदल की कहानी - महोबा से निष्कासन और मलखान की मौत



अपनी बेटी बेला का विवाह महोबा के राजकुमार ब्रह्मा के साथ हो जाने के बाद प्रथ्वीराज महोबा बालों से बैर रखना नहीं चाहते थे, उलटे वे उनकी वीरता के प्रशंसक बन चुके थे | उन्होंने स्वयं महाबली मलखान को सिरसागढ़ में रहकर दिल्ली और महोबा दोनों की रक्षा करने हेतु आग्रह किया | किन्तु मामा माहिल तो अंगारों पर लोट रहा था | वीर बनाफरों की बढ़ती प्रसिद्धि उसे लगातार बेचैन कर रही थी | वह रात दिन यही सोचता रहता था कि किस प्रकार बनाफरों और चंदेलों का नाश हो | इसी उधेड़बुन में एक दिन वह फिर से दिल्ली जा पहुंचा | महाराज प्रथ्वीराज ने उसकी आवभगत की और महोबा और सिरसा का हालचाल पूछा | 

माहिल को मौक़ा मिल गया, बोला – महाराज महोबा बालों का क्या पूछते हो, आज देव उनके पक्ष में है, अतः वे तो सारी प्रथ्वी के क्षत्रियों को बनिया समझने लगे हैं | हाय मेरे उन्नत कुल परिहार वंश को भी उन लोगों ने भ्रष्ट कर दिया और मेरी बहनों की शादी जबरदस्ती उन अज्ञात कुल के बनाफरों के साथ करने को विवश होना पड़ा | 

लेकिन वीर चौहान नरेश, मुझे अपनी नहीं आपकी चिंता है | आपकी सीमा पर ही वह मलखान अपना किला बनाकर बैठ गया है और रात दिन अपनी ताकत बढ़ा रहा है | भगवान न करे अगर किसी दिन वह दिल्ली पर ही चढ़ दौड़ा तो क्या होगा ? अगर उसकी ताकत ज्यादा हुई तो क्या आपको खतरा नहीं है ? 

प्रथ्वीराज ने भी कहा, कह तो तुम सही रहे हो, पडौस में किसी ताकतवर का होना राजनीति के हिसाब से ठीक नहीं है, लेकिन क्या किया जा सकता है | जब दुश्मनी करने आएगा तब देखेंगे | 

माहिल बोला महाराज आपके मुंह से ऐसी बातें शोभा नहीं देतीं, आप भारत के सम्राट हैं, राजाओं के सरताज हैं | आप उन्हें एक पल में कमजोर कर सकते हैं, मेरे पास एक अचूक उपाय है | 

प्रथ्विराज के पूछने पर माहिल ने कहा कि आल्हा ऊदल आदि बनाफरों की असली ताकत उनके घोड़े हैं, अब चूंकि आप राजा परमाल के समधी ही, सो आप किसी बहाने से बनाफरों के घोड़े अपने पास मंगा लो और फिर महोबा पर धाबा बोलकर उन्हें आसानी से जीत लो | 

प्रथ्वीराज को बात जम गई और उन्होंने चिट्ठी लिखकर माहिल को ही थमा दी कि तुम ही इसे परमाल राजा को पंहुचाकर घोड़े दिलवाने की कोशिश करो | चिट्ठी लेकर माहिल महोबा पहुंचे और परमाल राजा को दी | राजा ने पढ़कर आल्हा को बुलाया और कहा कि पिथौरा नरेश का पत्र आया है, उन्हें किसी काम के लिए तुम्हारे घोड़ों की जरूरत है, अतः दे दो | इस पर आल्हा ने जबाब दिया कि हम आपकी हर बात मानते हैं, लेकिन यह बात उचित नहीं है, इससे हम सबकी बदनामी होगी | 

यह सुनकर राजा परमाल ने आल्हा ऊदल से कहा कि अगर घोड़े नहीं दिए गए तो बखेड़ा हो जाएगा, और तुम लोग भी प्रथ्वीराज से जीत नहीं सकते, इसलिए भलाई इसी में है कि घोड़े दे दिए जाएँ | 

इस पर ऊदल गुस्सा होकर बोले, जो भी बखेड़ा करेगा, उसको हम मुंहतोड़ जबाब देंगे | आखिर ब्रह्मा की शादी में हम उन्हें हरा ही चुके हैं | आज वे घोडा मांग रहे हैं, कल अगर हम पर चढ़ दौड़े तो बिना घोड़ों के हम क्या करेंगे ? 

राजा परमाल को यह गुस्ताखी अच्छी नहीं लगी और वे बोले तुम अपनी मनमानी कर रहे हो, बात मानते नहीं हो, हमारा गाँव खाली कर दो | निकल जाओ यहाँ से | 

जैसे ही राजा परमाल ने यह कहा कि गाँव खाली करो, सो बस सुनते ही स्वाभिमानी आल्हा ऊदल महल से निकल पड़े | विचार किया, अब कहाँ जाया जाए, तो कन्नौज नरेश जयचंद ध्यान में आये | तुरंत ढेबा पंडित को बुलबाया सगुन बिचार के लिए | उसने तुरंत रबानगी की सलाह दी और खुद भी साथ रहने को कहा | मां देवल ने रोकने की कोशिश की, लेकिन यह सुनकर कि प्रथ्वीराज ने आल्हा का घोडा उड़न बछेरा, घोड़ी कबूतरी और युद्ध भूमि में कहर बरपाने वाला हाथी पचशावद मंगवाया है, वे भी गुस्से में आ गईं और साथ चलने को तैयार हो गईं और सारा परिवार चल दिया महोबा छोड़कर | इनके जाने का समाचार सुनकर सिरसा गढ़ से कबूतरी घोड़ी पर सवार होकर मलखान आये, और आग्रह किया कि कहीं और जाने की क्या जरूरत है, सिरसा चलो, लेकिन बहादुरों ने कहा सिरसा भी आखिर है तो महोबा राज्य की ही रियासत, हम बहां भी कैसे रह सकते हैं | जयचंद के यहाँ पहुंचे तो उसने स्वाभाविक ही इन बीरों को हाथों हाथ लिया और पूरे सम्मान पूर्वक ये लोग कन्नौज में रहने लगे | 

कन्नौज में ही रहते समय कन्नौज के राजकुमार लाखन से इन लोगों की मित्रता बढ़ गई, उसका विवाह भी मलखान और ब्रह्मानंद के सहयोग से बूंदी की राजकुमारी कुसुमा से हुआ | उसी तरह जैसे सबके हुए, भीषण मारकाट के बाद | 

उस दौरान जयचंद के अधीन रहे कई राजाओं ने बरसों से कर नहीं दिया था | उनसे कर बसूलने की जिम्मेदारी ऊदल ने ली और लाखन के साथ सेना लेकर चले और एक के बाद एक बिरियागढ़, ऊदल पट्टी, कामरूप, बंगाल के राजा गोरख, कटका, जिन्सी, गोरखपुर, पटना आदि के राजाओं को हराकर सबके खजाने लुटे और वापस कन्नौज आये | राजा प्रजा सभी ने हार्दिक स्वागत किया | जयचंद के लिए तो वरदान साबित हुए आल्हा ऊदल | मामा माहिल ने जयचंद को भी भड़काने की कोशिश की, किन्तु दाल नहीं गली, सो फिर दिल्ली जा धमके | कन्नौज में अपनी दाल न गलती देख दुष्ट मामा माहिल दिल्ली पहुंचा और प्रथ्वीराज को उकसाया | कहा महाराज अवसर अच्छा है, आल्हा ऊदल कन्नौज में हैं, उन्हें महोबा न आने का आदेश स्वयं राजा परमाल ने दिया है, अतः वे स्वाभिमानी कभी महोबा नहीं आयेंगे | इस समय आप सहज ही महोबा को अपने कब्जे में ले सकते हैं, अकेला मलखान क्या कर लेगा ? महाराज प्रथ्वीराज ने हैरत से कहा – क्या कहते हो अकेला मलखान ? अरे जो आदमी सूंड पकड़कर हाथी को पछाड़ सकता है, उस महाबली को तुम अकेला कह रहे हो, वह अकेला सब पर भारी है | 

लेकिन माहिल ने हिम्मत नहीं हारी, उसने प्रथ्वीराज के अन्य सरदारों को भड़काने में सफलता पा ही ली और फिर उसकी इच्छानुसार दिल्ली की सेना ने कूच का डंका बजा दिया | सेनापति चामुंडराय के नेतृत्व में चतुरंगिणी सेना चल पड़ी | ताहिर, पारथ, चन्दन के साथ स्वयं प्रथ्वीराज भी इस अभियान में साथ थे | दिशाएं धूल से भर गईं, घोड़े हाथियों की चिंघाड़ और रथों की घरघराहट से प्रथ्वी थर्रा उठी | सेना ने सबसे पहले सिरसा गढ़ पर घेरा डाला | प्रथ्वीराज ने मलखान को सन्देश भेजा, तुमने यह किला हमारे क्षेत्र में बनवाया है, इसे तुरंत गिराओ, अन्यथा युद्ध करो | मलखान ने भी जबाब भेजा – आप बड़े हैं, किला आपकी सीमा में नहीं है, मैं आपसे युद्ध नहीं चाहता, आपको भी यह अकारण का आक्रमण शोभा नहीं देता | लेकिन जब प्रथ्वीराज पर समझाईस का कोई असर नहीं हुआ तो मलखान की सेना भी युद्धभूमि में सामने आ गई | मलखान के सामने दिल्ली के सेनापति की एक न चली व चामुंडराय को मलखान ने पकड़कर उसकी मुश्कें बाँध दीं | उसके बाद उसे महिलाओं के कपडे पहनाकर, एक पालकी में बैठाकर दिल्लीश्वर के पास पहुंचा दिया | साथ ही एक सरदार को भी साथ भेजा, जिसने जाकर प्रथ्वीराज से कहा – महाराज मलखान हार गया है, सिरसागढ़ की राजकन्या भेजी है, कृपया उसे स्वीकार कर युद्ध बंद करने की आज्ञा दीजिये | प्रथ्वीराज खुश | लेकिन जैसे ही पालकी का पर्दा हटा, चामुंडराय को स्त्री वेश में देखकर दोनों राजा और सेनापति कितने शर्मिंदा हुए होंगे, उसकी कल्पना की जा सकती है | 

लेकिन प्रथ्वीराज को क्रोध भी बहुत आया और युद्ध जारी रहा | सात दिनों तक दोनों पक्षों के असंख्य वीर मारे जाते रहे | सातवें दिन तो प्रथ्वीराज का महाबली पुत्र पारथ भी युद्धभूमि में मलखान के हाथों मारा गया | दिल्ली के शिविर में शोक की लहर छा गई | किन्तु अगले दिन धान्धू, चामुंडराय, ताहिर, चन्दन, संयम राय आदि सभी ने संयुक्त आक्रमण किया | इस दिन दोनों पक्षों को नुक्सान हुआ, प्रथ्वीराज के एक अन्य पुत्र चन्दन तो मलखान के भाई सुलखान युद्ध भूमि में चिर निद्रा में सो गए | भाई के मरने का समाचार पाकर मलखान साक्षात काल रूप बन गया | उसने दिल्ली के असंख्य शूरवीरों के रक्त से धरती लाल कर दी | राजा अंगद, राजा सूरत, महाबली चंद्रसेन आदि पराक्रमी वीर मारे गए | मलखान का रौद्र रूप देखकर दिल्ली की सेना भाग खडी हुई | जैसे तैसे जान बचाकर प्रथ्वीराज दिल्ली पहुँच पाए | 

यह ऐसा युद्ध था जिसमें जीतने वालों को भी जीत की कोई प्रसन्नता नहीं थी | सिरसा में सुलखान की मौत का मातम पसरा हुआ था | हारे हुए दिल्लीपति तो दुखी थे ही | लेकिन माहिल को इससे क्या ? वह बेशर्म तो अपनी ही उधेड़बुन में लगा था | इधर मलखान युद्धभूमि में जूझ रहे थे और वह सिरसागढ़ में उनकी माँ अर्थात अपनी बहिन के पास रोनी सूरत बनाकर पहुँच गया और बोला, बहिना मेरा तो दिल बैठा जा रहा है, युद्धभूमि में सुलखान वीरगति पा गया, मुझे मलखान की चिंता सता रही है | मलखान की वीर प्रसूता क्षत्राणी मां ने जबाब दिया कि संसार में जो आया है, उसे एक न एक दिन जाना ही है, मुझे सुलखान के वीरगति पाने का कोई दुःख नहीं है, उसने युद्ध में पीठ नहीं दिखाई | और जहाँ तक मलखान का प्रश्न है, उसे तो स्वयं भवानी ने वरदान दिया है, कि जब तक उसके पाँव के तलुए का पद्म अक्षत है, उसे कोई नहीं मार सकता | 

बस, यही भेद लेने तो आया था दुष्ट माहिल, फिर क्या था वह एक बार फिर जा पहूँचा दिल्ली | प्रथ्वीराज ने रूखे स्वर में पूछा, अब क्या शेष रह गया है, क्यों आये हो जले पर नमक छिडकने ? माहिल कुटिलता से बोला, महाराज ऐसा भेद लाया हूँ, जिससे मलखान निश्चय ही मारा जाएगा और उसने वह रहस्य क्या बताया, बदले की आग में जलते प्रथ्वीराज एक बार फिर युद्ध को सन्नद्ध हो गए | एक बार फिर सिरसा घेर लिया गया | लेकिन उसके पहले सिरसागढ़ के बाहर जहाँ युद्ध होना था, बहां दो सौ खाईयां खुदवा दी गईं और उन खईयों में बरछे, भाले, कटारें गड़वा दिए गए, ऊपर से उन खाईयों को घांस फूस से इस तरह ढक दिया गया, कि किसी को भी उस जगह गड्ढा होने का पता न चले | 

उसके बाद युद्ध का डंका बजबा दिया गया | निर्भय मलखान ने एक बार फिर युद्ध में तांडव मचा दिया | मारकाट करते हुए, प्रथ्वीराज के सामने जा पहुंचा और पहले तो प्रणाम किया, उसके बाद कहा आईये महाराज हो जाएँ दो दो हाथ | प्रथ्वीराज ने चतुराई दिखाई और कहा, मुझसे बाद में भिड़ना, पहले अपने भाई का बदला तो ले लो | वह देखो उधर ताहिर तुम्हारे सैनिकों को सुलखान के पास पहुंचा रहा है | मलखान के बदन में आग सी लग गई और उसने अपनी घोड़ी कबूतरी का रुख उसी तरफ कर दिया | लेकिन बहीं रास्ते में घांस फूस से ढकी वह खाई थी, जो विशेष रूप से मलखान के लिए ही खोदी गई थी | मलखान घोड़ी समेत खाई में जा गिरे, उनके पाँव के तलवे में जो पद्म था, वह फट गया और मलखान के प्राण पखेरू उड़ गए | घायल घोड़ी ने मरते मरते अपना कर्तव्य पूर्ण किया और तड़प कर अपने स्वामी को खाई से बाहर ले आई | 

मलखान के वीरगति पाने का समाचार पाकर, मां ने प्राण त्याग दिए और रानी गजमोतिन सती हो गईं |

आल्हा ऊदल की कहानी के शेष भाग -

आल्हा ऊदल की कहानी - अंतिम युद्ध

अजब गजब शादियाँ

पिता की मौत का बदला

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