"ओरछा", जहाँ भगवान् राम ओरछाधीश के रूप में मान्य हैं !

झाँसी से 16 किमी की दूरी पर मध्यप्रदेश में स्थित है ओरछा ! पहाड़ों की गोद में स्थित ओरछा एक समय बुंदेलखण्ड की राजधानी हुआ करता था ! ओरछा की विरासत यहाँ के पत्थरों में कैद है ! आने वाली पीढ़ियों को यहाँ की महान धरोहर से परिचित होना आवश्यक है !

क्या है ओरछा का इतिहास ?

ओरछा को दूसरी अयोध्या के रूप में मान्यता प्राप्त है ! यहां पर रामराजा अपने बाल रूप में विराजमान हैं ! यह जनश्रुति है कि श्रीराम दिन में यहां तो रात्रि में अयोध्या विश्राम करते हैं ! शयन आरती के पश्चात उनकी ज्योति हनुमानजी को सौंपी जाती है, जो रात्रि विश्राम के लिए उन्हें अयोध्या ले जाते हैं- सर्व व्यापक राम के दो निवास हैं खास, दिवस ओरछा रहत हैं, शयन अयोध्या वास !

रामराजा के अयोध्या से ओरछा आने की एक मनोहारी कथा है ! एक दिन ओरछा नरेश मधुकरशाह ने अपनी पत्नी गणेशकुंवरि से कृष्ण उपासना के इरादे से वृंदावन चलने को कहा ! लेकिन रानी राम भक्त थीं ! उन्होंने वृंदावन जाने से मना कर दिया ! क्रोध में आकर राजा ने उनसे यह कहा कि तुम इतनी राम भक्त हो तो जाकर अपनेराम को ओरछा ले आओ ! रानी ने अयोध्या पहुंचकर सरयू नदी के किनारे लक्ष्मण किले के पास अपनी कुटी बनाकर साधना आरंभ की ! इन्हीं दिनों संत शिरोमणि तुलसीदास भी अयोध्या में साधना रत थे ! संत से आशीर्वाद पाकर रानी की आराधना दृढ़ से दृढ़तर होती गई ! लेकिन रानी को कई महीनों तक रामराजा के दर्शन नहीं हुए ! अंतत: वह निराश होकर अपने प्राण त्यागने सरयू की मझधार में कूद पड़ी ! यहीं जल की अतल गहराइयों में उन्हें रामराजा के दर्शन हुए ! रानी ने उन्हें अपना मंतव्य बताया !

रामराजा ने ओरछा चलना स्वीकार किया किन्तु उन्होंने तीन शर्तें रखीं- पहली, यह यात्रा पैदल होगी, दूसरी,यात्रा केवल पुष्प नक्षत्र में होगी, तीसरी, रामराजा की मूर्ति जिस जगह रखी जाएगी वहां से पुन: नहीं उठेगी ! रानी ने राजा को संदेश भेजा कि वो रामराजा को लेकर ओरछा आ रहीं हैं ! राजा मधुकरशाह ने रामराजा के विग्रह को स्थापित करने के लिए करोड़ों की लागत से चतुर्भुज मंदिर का निर्माण कराया ! जब रानी ओरछा पहुंची तो उन्होंने यह मूर्ति अपने महल में रख दी ! यह निश्चित हुआ कि शुभ मुर्हूत में मूर्ति को चतुर्भुज मंदिर में रखकर इसकी प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी ! लेकिन राम के इस विग्रह ने चतुर्भुज जाने से मना कर दिया ! कहते हैं कि राम यहां बाल रूप में आए और अपनी मां का महल छोड़कर वो मंदिर में कैसे जा सकते थे ! राम आज भी इसी महल में विराजमान हैं और उनके लिए बना करोड़ों का चतुर्भुज मंदिर आज भी वीरान पड़ा है ! यह मंदिर आज भी मूर्ति विहीन है ! यह भी एक संयोग है कि जिस संवत 1631 को रामराजा का ओरछा में आगमन हुआ, उसी दिन रामचरित मानस का लेखन भी पूर्ण हुआ ! जो मूर्ति ओरछा में विद्यमान है उसके बारे में बताया जाता है कि जब राम वनवास जा रहे थे तो उन्होंने अपनी एक बाल मूर्ति मां कौशल्या को दी थी ! मां कौशल्या उसी को बाल भोग लगाया करती थीं ! जब राम अयोध्या लौटे तो कौशल्या ने यह मूर्ति सरयू नदी में विसर्जित कर दी ! यही मूर्ति गणेशकुंवरि को सरयू की मझधार में मिली थी !


यह विश्व का अकेला मंदिर है जहां राम की पूजा राजा के रूप में होती है और उन्हें सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के पश्चात सलामी दी जाती है ! यहां राम ओरछाधीश के रूप में मान्य हैं ! रामराजा मंदिर के चारों तरफ हनुमान जी के मंदिर हैं ! छड़दारी हनुमान, बजरिया के हनुमान, लंका हनुमान के मंदिर एक सुरक्षा चक्र के रूप में चारों तरफ हैं ! ओरछा की अन्य बहुमूल्य धरोहरों में लक्ष्मी मंदिर, पंचमुखी महादेव, राधिका बिहारी मंदिर , राजामहल, रायप्रवीण महल, हरदौल की बैठक, हरदौल की समाधि, जहांगीर महल और उसकी चित्रकारी प्रमुख है !




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