ग्वालियर में संघ कार्य के आधार - शंकर विनायक उपाख्य "दादा" बेलापुरकर


स्व. शंकर विनायक उपाख्य "दादा" बेलापुरकर - एक परिचय !जन्म हनुमान जयन्ती सन १९२६ स्वर्गवास २१ अप्रेल २००७ | 

१९४४ में ग्वालियर के स्वयंसेवक १८ वर्षीय तरुण शंकर विनायक बेलापुरकर उपाख्य दादा बेलापुरकर को विद्यालयों के ग्रीष्मावकाश में तत्कालीन विभाग प्रचारक श्री भैयाजी सहस्त्रबुद्धे ने मुरैना भेजा ! मुरैना में माहौर (वैश्य) समाज का एक पुस्तकालय एवं बाचनालय था, जिसमें पुस्तकें पढ़ने बड़ी संख्या में नवयुवक आया करते थे ! दादा ने बहीं जाकर बैठना शुरू किया तथा कुछ नौजवानों से दोस्ती गांठी ! शुरू शुरू में उन नए दोस्तों के साथ सायंकाल घूमने फिरने का कार्यक्रम शुरू हुआ ! वे लोग अम्बाह रोड पर स्थित रमेश की बगीची तक जाया करते तथा घूमते घूमते देश और समाज की स्थिति पर चर्चा करते ! कुछ घनिष्ठता होने पर संगठन की आवश्यकता तथा संघ कार्य का विचार उन लोगों के गले उतारा ! अंततः रेलवे स्टेशन के पास संस्कृत महाविद्यालय के प्रांगण में शाखा प्रारम्भ हुई ! 

यहाँ छात्रावास भी होने के कारण विद्यार्थी भी शाखा आने लगे ! शाखा नियमित होने के बाद गण की रचना तथा ध्वज लगना प्रारम्भ हुआ ! श्री नथमल गोयल, श्री बाबूलाल गुप्ता, श्री रामस्वरूप चांडिल आदि उस समय संपर्क में आने बाले स्वयंसेवक थे ! १९४५ के वाराणसी संघ शिक्षा वर्ग में दादा प्रथम वर्ष हेतु बहां गए !संघ शिक्षावर्ग से लौटने पर मुरार के डा. आगरकर के सुपुत्र प्रभाकर के साथ दादा जौरा गए ! दादा के पिताजी के मित्र काले साहब उस समय जौरा के एक विद्यालय में प्रधानाध्यापक थे ! उनके घर रहकर तथा उनके सहयोग से दादा ने चिकित्सालय के अहाते में बालीबाल खेलने बाले कुछ नौजवानों से मित्रता स्थापित की ! उन नौजवानों के साथ पहले एक बालीबाल क्लब गठित किया ! इन युवकों में फूलचंद जैन. भगवती प्रसाद जैन, हरीराम गर्ग आदि थे ! कुछ समय बाद बालीबाल के बाद शाखा लगाना शुरू किया गया और समय बीतते बीतते क्लब के स्थान पर केवल शाखा रह गई ! 

१९४७ में प्रचारक बनकर वे श्योपुर गए ! उनके पिताजी के मित्र चिताँण शंकर कवठेकर उन दिनों श्योपुर के एक विद्यालय में प्राचार्य थे ! वे स्वयं भी महाराष्ट्र के स्वयंसेवक थे ! श्री कवठेकर तथा उनके सहयोगी शिक्षक एल.पी. सक्सेना एवं बी.पी.श्रीवास्तव ने श्योपुर की शाखा शुरू करने में दादा की बहुत मदद की ! उन्होंने पारखपा बाग़ में शाखा शुरू की ! इसमें १५-२० प्रौढ़ स्वयंसेवक ही आते थे ! इस समय संपर्क में आने बाले स्वयंसेवक थे प्रभाकर भट्जीबाले, प्रभाकर धर्माधिकारी, कैलाश तिवारी, बंशी भैया(पुजारी), मजुमदार आदि ! बाद में उसी स्थान पर सायं शाखा भी लगने लगी ! यहाँ हिन्दू महासभा के लोगों को भी शाखा लगाने में दादा ने सहयोगी बना लिया ! दादा के अनुसार उन लोगों के सहयोग से ही किले पर शाखा शुरू हो सकी !

१९४८ में गांधी हत्या के मिथ्या आरोप में संघ पर प्रतिवंध लगा दिया गया ! अनेक निर्दोष स्वयंसेवक जेलों में ठूंस दिए गए ! ग्वालियर से सर्व श्री नारायण कृष्ण शेजवलकर, डा. कमल किशोर, डा. मराठे, दादा बेलापुरकर, वसंत निगुडीकर, कृष्ण कान्त चुघ आदि प्रारंभिक दौर में ही गिरफ्तार हुए !

दादा विवाह के इच्छुक नहीं थे किन्तु परिवार के अत्याधिक दबाब के चलते विवाह तो किया किन्तु गृहस्थ जीवन में भी वे प्रचारकवत ही रहे ! ज्योतिष के जानकार दादा अच्छे चित्रकार और मूर्तिकार भी थे ! कभी भोजन बनाते तो सब उंगली चाटते ! घर पर जब कभी प्रचारक भोजन को आते तब तो उनका उत्साह देखते ही बनता ! घर पर सदा गौपालन हुआ ! जिसकी सेवा दादा स्वयं करते थे ! दूध भी स्वयं निकालते थे ! 

१९४९ तक संघ कार्य का संचालन उत्तर प्रदेश से होता था ! स्वतन्त्रता के पूर्व तक ग्वालियर रियासत के ७ जिले मुरैना, भिंड, ग्वालियर, शिवपुरी, गुना, श्योपुर, विदिशा तथा बुंदेलखंड के झांसी जालौन, हमीरपुर और बांदा को मिलाकर ग्वालियर विभाग बनाया गया था ! बाद में गुना और विदिशा को मालवा के साथ जोड़ दिया गया था ! यद्यपि ग्वालियर राज्य की सीमा में उज्जैन, शाजापुर, मंदसौर सरदारपुर आदि भी आते थे किन्तु संघ रचना में इन्हें ग्वालियर विभाग में समाहित नहीं किया गया था ! स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद जब शासकीय मध्य प्रदेश का गठन हुआ, तब ग्वालियर विभाग की पुनर्रचना की गई ! जिसमें ग्वालियर, भिंड, मुरैना, शिवपुरी और गुना जिले शेष रहे और बह मध्य भारत का अंग बना ! बुंदेलखंड के दतिया जिले को भी इसमें जोड़ा गया ! दादा बेलापुरकर नव गठित ग्वालियर विभाग के प्रथम विभाग कार्यवाह बने ! इसके बाद वे लगातार १९७८ तक इस पद पर रहे ! 

इसी दौर में आपातकाल के दौरान भी पूरे समय दादा मीसावंदी रहे ! जेल में जहां वे अपने आत्मीय स्वभाव के कारण कार्यकर्ताओं के सच्चे अर्थों में दादा रहे बहीं अपने प्रकृति प्रेम के लिए भी प्रसिद्द थे ! जेल में ही उन्होंने एक सुन्दर फूलों तथा सब्जीयां का हराभरा बगीचा लगाया ! एक छोटा सा हनुमान मंदिर जिस पर पूजापाठ का सतत आयोजन सचमुच जेल जीवन में कार्यकर्ताओं में आत्मविश्वास तथा संघर्ष की क्षमता विकास का महत्वपूर्ण भाग बना !

संघ कार्य के विस्तार और आवश्यकता को देखते हुए स्वयं का कार्यालय बनाने का निर्णय लिया गया और नई सड़क पर माधव महाविद्यालय के सामने सरदार राजबाड़े साहब तथा श्री विष्णू भागवत के परस्पर सटे हुए भवनों को क्रय किया गया ! संघ से प्रभावित राजबाड़े साहब ने पूरी राशि के भुगतान के पूर्व ही भवन का पंजीकरण स्वयंसेवकों द्वारा गठित राष्ट्रोत्थान न्यास के नाम पर कर दिया ! शेष राशि बाद में किश्तों में चुकाई गई ! दादा उस न्यास के प्रमुख सूत्रधार थे !राजबाड़े साहब बाले भाग में छोटे बड़े डेढ़ दर्जन कमरे, अनेक दालान, कई बरामदे व दो कुंए थे ! किन्तु बहां कई किरायेदार भी वर्षों से जमे हुए थे ! बड़ी जद्दो जहद के बाद उच्च न्यायालय के आदेश से भवन का कब्जा मिल पाया और तब संघ कार्यालय को विप्रदास के बाड़े से यहाँ स्थानांतरित किया गया ! 

किन्तु तब तक श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश पर आपात काल थोपने के साथ संघ पर भी प्रतिवंध लगा दिया !और प्रशासन ने इस भवन को संघ कार्यालय होने के कारण सील कर दिया ! राष्ट्रोत्थान न्यास के अध्यक्ष के रूप में दादा ने इसे संघ के स्थान पर स्वयं की संपत्ति होने की दलील के साथ उच्च न्यायालय में चुनौती दी ! न्यायालय ने प्रशासन की कार्यवाही को अवैधानिक मानते हुए भवन पर से सरकारी नियंत्रण हटाने के आदेश दिए ! सन १९९८ में पुराने भवन के स्थान पर स्वयंसेवकों के सहयोग से सर्व सुविधायुक्त नया कार्यालय भवन निर्मित हुआ ! अब यह ग्वालियर विभाग के संघ कार्य की गतिविधियों का प्रमुख केंद्र है ! पर्यावरण प्रेमी दादा ने संघ कार्यालय में भी ईशान कोण में एक छोटी सी बगिया और जलाशय का निर्माण करवाया जिसमें कमल और कुमुदनी भी सुशोभित की गई ! 
महारुद्र मंडल विद्यालय में प्राचार्य रहते वे विद्यार्थियों के समग्र विकास की चिंता करते ! वस्तुतः संघ शाखा पर व्यक्ति निर्माण करते करते दादा व्यक्तिगत जीवन में भी वही कार्य करते रहे ! एक संघ शिक्षावर्ग की जल व्यवस्था में सहयोग कर रहे बाल स्वयंसेवक, दिगंबर मुले की पढाई के प्रति ललक देखकर उन्होंने उन्हें अपने घर पर रखकर पढ़ाया ! दिगंबर पितृ विहीन थे ! उनके रहने खाने की भी कोई व्यवस्था नहीं दी ! अतः दिगंबर को घर में रखकर प्रारंभिक शिक्षा स्वयं दी तथा उनका स्कूल जीवन प्रारम्भ करवाया ! मैट्रिक उपरांत दिगंबर मुले विद्यालय में ही नाईट वाचमेन तथा बाद में शिक्षक हो, अलग तो रहने लगे, किन्तु दादा की देखरेख में उनका समुचित विकास होता गया ! बाद में वे एम्.ए. पी.एच.डी.कर माध्यमिक शिक्षा मंडल भोपाल में पदस्थ हुए ! विवाह भी हुआ ! आज सेवानिवृत्ति के बाद भी दादा का स्मरण उन्हें भावुक कर देता है !

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