नक्सलवाद के जन्म की कहानी


आये दिन नक्सलवादियों द्वारा की जाने वाली हत्याओं और जघन्य कृत्यों से समाचार पत्र रंगे रहते हैं | सबके जहन में सवाल उठता है कि आखिर यह नक्सलवाद है क्या ? कैसे जन्म हुआ नक्सलवाद का ? मुझे लगता है कि  कम्यूनिस्ट पार्टियों के अंतर्संघर्ष का ही नतीजा है यह नक्सलवाद | नक्सल वाद के प्रणेता माने जाने वाले दो प्रमुख व्यक्तियों की जीवन गाथा से तो यही निष्कर्ष निकलता है | 

चारू मजमुदार –
सिलीगुड़ी के एक जमींदार परिवार में 1918 में चारू मजमुदार का जन्म हुआ | पिता एक प्रतिष्ठित स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, अतः स्वाभाविक ही कोलेज छोड़ने के बाद 1937 – 38 में उन्होंने कांग्रेस ज्वाईन की तथा बीडी मजदूरों को संगठित करने में शक्ति लगाई | किन्तु बाद में सीपीआई में सम्मिलित होकर किसान आन्दोलन से जुड़े | जल्द ही जलपाईगुडी के गरीबों में उनका सम्मान बढ़ गया | 1942 के विश्वयुद्ध काल में सीपीआई पर प्रतिबन्ध लगाया गया तो चारु को भी भूमिगत होना पडा | 1948 में पुनः सीपीआई पर प्रतिबन्ध लगा और तीन वर्ष चारु मजमुदार को जेल में रहना पडा | जनवरी 1954 में जलपाईगुड़ी की ही अपनी साथी भाकपा सदस्य लीला मजूमदार सेनगुप्ता के साथ वे मंगल परिणय सूत्र में बंधे |बीमार पिता और अविवाहित बहिन के साथ नवयुगल सिलीगुड़ी में रहने लगे | 

अतिशय गरीबी में भी उन्होंने मजदूरों, चाय बगान मजदूरों व रिक्शा चालकों को संगठित करना जारी रखा | 1962 के भारत चीन युद्ध के समय उन्हें फिर जेल में रहना पडा, जहां खराब स्वास्थ्य के बीच भी उन्होंने माओ के विचारों का अध्ययन किया | 1964 में जब सीपीआई का विभाजन हुआ तब वे सीपीआई (एम) के साथ गए | 65 से 67 के बीच दिए गए उनके भाषण और लिखे गए लेख आगे चलकर “ऐतिहासिक आठ दस्तावेज” कहलाये, जो नक्सलवादी विचार का आधार बने |1967 में जब सीपीएम ने चुनाव लड़ने व उसके बाद बंगला कांग्रेस के साथ मिलकर साझा सरकार बनाने का निर्णय लिया तो चारु ने इसे क्रान्ति के साथ धोखा करार दिया | 

उसी वर्ष पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के नक्सलवाडी में अपनी जमीन जोतने का न्यायालयीन आदेश होने के बाबजूद 2 मार्च को स्थानीय जमींदारों के गुंडों ने एक आदिवासी युवा पर हमला किया तथा जबरदस्ती भूमि पर कब्जा कर लिया | इस के बाद चारू मजूमदार के नेतृत्व में विद्रोही कार्यकर्ताओं ने किसानों के विद्रोह का प्रारम्भ किया | किसानों के विद्रोह शुरू करने पर सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार ने विद्रोहियों को सख्ती से दबाने का प्रयास किया और " विद्रोह " के 72 दिनों में एक पुलिस उप निरीक्षक सहित नौ आदिवासियों की मौत हो गई | केंद्र की कांग्रेस सरकार ने भी इस दमनात्मक कार्रवाई का समर्थन किया | इस घटना की गूँज पूरे भारत में हुई और इस प्रकार नक्सलवाद का जन्म हुआ |

16 जुलाई को 1972 को कोलकाता में चारु मजूमदार को गिरफ्तार कर लिया गया तथा 28 जुलाई को लाल बाजार पुलिस लॉक अप में उनकी मृत्यु हो गई | लाल बाज़ार लॉक अप की पुलिस हिरासत में वे दस दिन रहे किन्तु इस दौरान किसी को भी उनसे मिलने या देखने की अनुमति नहीं दी गई | यहाँ तक कि वकील, परिवार के सदस्य या डॉक्टर को भी नहीं | लाल बाजार लॉक अप सबसे भयानक और क्रूर अत्याचार के लिए देश भर में जाना जाता था | उसी लॉक अप में 28 जुलाई 1972 को 4:00 पर चारू का निधन हो गया | क्रांतिकारी संघर्ष को गंभीर झटका लगा | भाकपा (माले) की केंद्रीय सत्ता बिखर गई |अन्याय अत्याचार और शोषण का विरोध करने वाले किसी नायक की स्वतंत्र भारत में इस प्रकार की त्रासद मृत्यु निश्चय ही कलंक है | कितनी विचित्र बात हैकि उनके सहयोगी कनु सान्याल ने भी 2010 में आत्मह्त्या का मार्ग अंगीकार किया | अपने अंतिम दौर में कनु ने स्वीकार भी किया कि नक्सलवाडी आन्दोलन अपनी दिशा से भटक चुका है | कहाँ शोषण का विरोध करने वाले वे लोग और कहाँ निर्दोषों के आज के हत्यारे |

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