विकास की भारतीय संकल्पना - स्मार्ट सिटी या स्मार्ट विलेज ?


आज भी देश की लगभग 69 फीसदी आबादी गांवों में रहती है जो संख्या में 84 करोड़ से ऊपर है ! आज भी देश की सर्वाधिक जरूरतें चाहे वो रोजगार की हो, शिक्षा की हो, स्वास्थ्य की हो या रहन-सहन और साफ सफाई की बेहतरी की हो ,शहरों की तुलना में गांवों को अधिक आवश्यक हैं !

पिछली सरकार तो अपनी क्रूर नासमझी में गाँवों को समझने में असमर्थ रही | किन्तु दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति यह है कि देश के नये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आजकल विभिन्न अवसरों पर बार-बार दोहरा रहे और कह रहे हैं कि हमें शहरीकरण को समस्या की तरह नहीं, बल्कि अवसर की तरह लेना चाहिए ! यथास्थिति वादी यह समझ नहीं पा रहे हैं कि जस के तस पड़े बदहाली पर रोते गांव यदि स्मार्ट नहीं होंगे, तो वे शहरों को भी स्मार्ट नहीं ही होने देंगे ! 

एक बड़ा सवाल यह है कि क्या स्मार्ट सिटीज की जगह स्मार्ट गाँव नहीं तैयार किये जा सकते ? यदि इस दिशा में प्रयत्न हो तो कम लागत में गाँवों से लोगों का पलायन भी रुक जाएगा और हर सुविधा भी वही मिल जायेगी ! हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि शहरों की उपेक्षा की जानी चाहिए हमारे तमाम शहर भी बिना किसी ठोस योजना के बेतरतीबी से बढ़ गए गांव ही हैं ! कुछ छोटे और मझोले शहरों में तो लोग गांवों से कई मायनों में ज्यादा नारकीय जीवन जीने का विवश हो रहे है ! इसके बावजूद गांव और शहर के बीच ऐसा कोई ठोस तर्क नहीं है कि किसी बड़ी महत्त्वाकांक्षी योजना से गांवों को बिल्कुल काटकर रखा जाए ! अगर समझ यह है कि शहर स्मार्ट होते जायें और गांवों को वैसा ही बना रहने दिया जाये, तो इससे तो समस्या और बढ़ेगी !

गांवों को लेकर सरकार का रवैया चिंताजनक है कि अर्थनीति, डंकल व गैट के करार और रोजगारहीन विकास के मॉडलों ने गांवों की तबाही के बांध को पहले से खोल रखा है ! वहां कृषि भूमि की अंधाधुंध सरकारी, औद्योगिक व कॉरपोरेटी लूट जारी है और खेती-किसानी के लाभकारी न रह जाने के कारण उसका रकबा न सिर्फ निरंतर घटता बल्कि गरीबों के कब्जे से फिसलता भी जा रहा है ! सरकार का एजेंडा निर्धारित करने वाले राष्ट्रपति के अभिभाषण में दिखे इस सरकार के रोडमैप में भी गांवों के लिए सिर्फ इतना कहा गया है कि वहां शक्तिसंपन्न पंचायतीराज की मार्फत लोगों का जीवनस्तर ऊंचा उठाया जायेगा, कृषि में निवेश बढ़ाया जायेगा और लंबित सिंचाई परियोजनाएं पूरी की जायेंगी ! लेकिन क्या इतने भर से गांव स्मार्ट बन सकेंगे ? तब क्या इस अंदेशे को सही मान लिया जाये कि 31 प्रतिशत मतदाताओं द्वारा चुनी हुई सरकार बाकी 69 प्रतिशत की उपेक्षा कर रही है ?

स्मार्ट सिटी योजना की जितनी जरूरत देश के तमाम दम तोड़ते शहरों को है उसी तरह स्मार्ट विलेज की महत्त्वाकांक्षी योजना भी हजारों गांवों को जीवनदान दे सकती है जो इस 21वीं सदी में भी 19वीं सदी से भी गई गुजरी जिंदगी जीने को अभिशप्त हो रहे हैं ! फिर गांवों और शहरों की तुलना करें तो किसी भी योजना को गांव में अमल में लाना भी कहीं ज्यादा आसान है ! उसे सफल बनाना भी कहीं ज्यादा आसान है ! भारत में कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकतम 2000 से 2500 की आबादी वाले गांव बहुत कम होते हैं ! ऐसे भी गांवों की संख्या महज दो से ढाई फीसदी ही है भारत में औसतन 800 से 1200 की आबादी वाले गांव ही हैं ! ऐसे में अगर योजना के क्रियान्वय के हिसाब से देखा जाए तो गांवों का उत्थान करना बहुत आसान है और सुनिश्चित भी है क्योंकि गांव लक्ष्य की बहुत छोटी ईकाई के रूप में है जहां आसानी से न सिर्फ मामूली से संसान में कायाकल्प किया जा सकता है बल्कि यहां कायाकल्प किए जाने के लिए जरूरी श्रम आसानी से और बहुत सस्ती दरों में उपलब्ध हो सकता है !

भारत में एक स्मार्ट शहर को विकसित करने हेतु कम से कम 5०००० करोड़ की राशि की आवश्यकता होती है ! यदि शहर महानगर श्रेणी का हो तो 1०००००० करोड़ की राशि भी कम पड सकती है ! वहीँ एक गाँव को शहर के मुकाबले केवल 50 से 7० करोड़ की राशी खर्च कर स्मार्ट बनाया जा सकता है ! एक स्मार्ट गांव को विकसित करने के लिए उसके घर पक्के होने चाहिए, गांव की सड़के पक्की न हों तो भी उनमें अच्छी क्वालिटी का खड़ंजा होना चाहिए, गांव से पानी के निकास के लिए समुचित नाली की व्यवस्था हो, हर घर में शौचालय की व्यवस्था हो, स्वच्छ पीने के पानी के लिए गांव की आबादी के मुताबिक टंकी हो, पानी शुद्ध करने का आधुनिक तरीका हो और वितरण की चूक रहित व्यवस्था हो !

इसके साथ ही गांव में प्राइमरी से लेकर 12वीं तक की अगर नहीं तो कम से कम 10वीं तक की शिक्षा की व्यवस्था हो, कम से कम दो सामुदायिक भवन हो, बच्चों के खेल कूद के लिए एक आदर्श मैदान हो, स्वस्थ्य चेतना को बढ़ाने और बरकरार रखने के लिए जिम या दूसरे स्वस्थ रहने के उपाय हों, बरसात के पानी की समुचित निकासी व्यवस्था हो, और वर्षा जल भंडारण के लिए कम से कम दो बड़े तालाब हों ! गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हो वहां कम से कम एक प्रशिक्षित डॉक्टर और उसके कम से कम दो प्रशिक्षित या अनुभवी सहायक हो ! इस सबके साथ गांव के हर एक व्यक्ति को काम हो या काम उपलब्ध कराये जाने की कुशलता की व्यवस्था हो ! 

एक गांव जब स्वस्थ, आत्मनिर्भर और स्मार्ट बनेगा तो वह खुद तो ऐसा होगा ही अपने प्रभाव से इर्द-गिर्द के कई गांवों को भी स्वस्थ, आत्मनिर्भर और स्मार्ट बनाने में मदद करेगा ! साथ ही जो सबसे बड़ा फायदा होगा वो यह है कि जब गांव स्मार्ट बनेंगे तो वो शहरों पर बोझ कम डालेंगे और इस तरह से शहर बिना कुछ किए भी स्मार्ट बनने की तरफ बढ़ने लगेंगे ! इसलिए गांवों को स्मार्ट बनाने के लिए उतनी ही बड़ी जरूरत है जितना की शहरों को !

चूंकि देश में गरीबी, बेरोजगारी, कम पढ़ाई-लिखाई का सबसे बड़ा प्रतिशत गांव में ही है इसलिए उन्हें किसी भी कीमत में इतनी महत्त्वाकांक्षी योजना से महरूम नहीं किया जाना चाहिए ! वैसे प्रधानमंत्री ने गांवों को विकसित करने के लिए प्रत्येक सांसद से एक गांव को गोद लेने का आग्रह किया है ! इस आदर्श ग्राम में भी लगभग वही आकांक्षाएं और उम्मीदें की गई हैं जो कि एक स्मार्ट शहर से लगाई गई हैं ! अगर प्रधानमंत्री की बात सभी सांसद मान लेते हैं और उनके आह्वान के मुताबिक एक गांव को गोद भी ले लेते हैं तो भी इससे महज 700 या अधिकतम 3000 से 3500 गांवों तक का ही विकास हो सकता है वो भी जब युद्धस्तर पर सभी सांसद 100 फीसदी नतीजा दें और एक गांव का मतलब साल में एक गांव समझें !

जबकि अगर स्मार्ट शहरों की तरह वृहद पैमाने पर केंद्रीय आयोजना की रूपरेखा बनाकर स्मार्ट विलेज विकसित किए जाएं तो हर साल कम से 10,000 गांवों को बहुत आसानी से विकसित किया जा सकता है और 5 सालों में तकरीबन 10 से 15 फीसदी गांवों को स्मार्ट बनाया जा सकता है जो 100 शहरों को स्मार्ट बनाए जाने के मुकाबले कहीं ज्यादा लाभकारी साबित होगा ! इसलिए शहरों से ज्यादा हिंदुस्तान के गांवों को स्मार्ट बनाए जाने की जरूरत है !

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