पूर्वोत्तर का पराक्रमी योद्धा शम्भुधन फूंगलोसा !

भारत में सब ओर स्वतन्त्रता के लिए प्राण देने वाले वीर हुए है ! इसी क्रम में उत्तर-पूर्व की डिमासा कछारी जनजाति के स्वातंत्र्य योद्धा थे वीर शंभुधन फूंगलोसा ! इनका जन्म असम के उत्तर कछार में माइबांग के निकट लंकर ग्राम में सन् 1850 में हुआ था ! माता का नाम था कसादी एवं पिता दिपेन दाओ फूंगलोसा ! पिता बहुत निर्धन थे ! उनके पास जमीन-घर कुछ नहीं था ! वे एक गांव से दूसरे गांव जाकर मेहनत-मजदूरी करते थे ! कहा जाता है कि एक बार बचपन में शंभुधन को भगवान शंकर के दर्शन हुए थे ! लोग इनको शिवसाधक शंभुधन के नाम से पुकारने लगे थे !

शिव साधक शंभुधन जंगल-पहाड़ों से जड़ी-बूटी एकत्र करते थे और औषधि बनाकर शंकर भगवान के प्रसाद के रूप में रोगियों को देकर उनकी सेवा करते थे ! रोगी रोगमुक्त हो जाते थे ! मानव सेवा का यह कार्य वर्षों तक चलता रहा !

प्राचीनकाल में धनश्री घाटी से लेकर कापिला दयाबाड़ी तक डिमासा कछारी राज्य था ! अंग्रेजों की दुर्नीति और आहोम राजा के आक्रमण के कारण 1832 में इस राज्य का पतन हो गया था। !बांटो और राज करो की नीति पर चलते हुए अंग्रेजों ने इस पर अधिकार कर लिया और दो हिस्सों-नागाहिल्स व उत्तर कछार में बांट दिया था !

1870 में शंभुधन युवावस्था में प्रवेश कर रहा था। उसने एक बार सुना कि अंग्रेजों ने उसके राज्य का विभाजन किया था बस, तभी से वह अंग्रेजों एवं अंग्रेजी सत्ता को अपना सबसे बड़ा शत्रु मानने लगा ! वह अंग्रेजों को अपने क्षेत्र से निकालने की योजनाएं बनाने लगा ! उसका कहना था कि हम जब तक असंगठित रहेंगे तब तक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर सकते ! अंग्रेजी शासन तले नागाहिल्स और डिमासा राज्य खत्म हो जाएंगे ! वीर शंभुधन की कार्यकुशलता और संगठन कौशल को देखकर नवयुवक शंभुधन से प्रेरणा लेकर जुड़ने लगे ! उत्तर कछार में स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया शंभुधन फूंगलोसा ने ! क्रांतिकारी सेना में शंभुधन फूंगलोसा सेनापति बना ! प्रधान सलाहकार मानसिंह नामक व्यक्ति को नियुक्त किया गया तथा मोलोगथांग नामक युवक उप-सेनापति बनाया गया !

शम्भुधन ने एक क्रान्तिकारी दल बनाया और उसमें उत्साही युवाओं को भर्ती किया ! माइबांग के रणचंडी देवी मंदिर में इन्हें शस्त्र संचालन का प्रशिक्षण दिया जाता था ! इस प्रकार प्रशिक्षित युवकों को उन्होंने उत्तर काछार जिले में सब ओर नियुक्त किया ! इनकी गतिविधियों से अंग्रेजों की नाक में दम हो गया !

उस समय वहाँ अंग्रेज मेजर बोयाड नियुक्त था ! वह बहुत क्रूर था ! वह एक बार शम्भुधन को पकड़ने माइबांग गया, पर वहाँ युवकों की तैयारी देखकर डर गया ! अब उसने जनवरी 1882 में पूरी तैयारी कर माइबांग शिविर पर हमला बोला, पर इधर क्रान्तिकारी भी तैयार थे ! मेजर बोयाड और सैकड़ों सैनिक मारे गये ! अब लोग शम्भु को ‘कमाण्डर’ और ‘वीर शम्भुधन’ कहने लगे !

शम्भुधन अब अंग्रेजों के शिविर एवं कार्यालयों पर हमले कर उन्हें नष्ट करने लगे ! उनके आतंक से अंग्रेज भागने लगे ! उत्तर काछार जिले की मुक्ति के बाद उन्होंने दक्षिण काछार पर ध्यान लगाया और दारमिखाल ग्राम में शस्त्र निर्माण भी प्रारम्भ किया ! कुछ समय बाद उन्होंने भुवन पहाड़ पर अपना मुख्यालय बनाया ! यहाँ एक प्रसिद्ध गुफा और शिव मन्दिर भी है। उनकी पत्नी भी आन्दोलन में सहयोग करना चाहती थी ! अतः वह इसके निकट ग्राम इग्रालिंग में रहने लगी ! शम्भुधन कभी-कभी वहाँ भी जाने लगे !

ब्रिटिश गुप्तचर वीर शंभुधन के पीछे लगे थे ! शंभुधन के ही वंश के कुछ लोग अंग्रेजों के द्वारा दिए लालच के शिकार हो गए ! जहां शंभुधन रहता था, वहां से उसके अस्त्र-शस्त्र गायब कर दिए गए ! 12 फरवरी, 1883 का दिन था ! वह अपने घर में भोजन कर रहा था तभी ब्रिटिश सैनिकों ने गांव को चारों ओर से घेर लिया ! सूचना मिलते ही शंभुधन भोजन छोड़कर अपने कमरे में शस्त्र लेने गया तो देखा वहां किसी भी प्रकार का शस्त्र नहीं था ! वह घर के पीछे के दरवाजे से जंगल की ओर भागा ! दो ब्रिटिश घुड़सवारों ने उसका पीछा किया और जब उसको पकड़ नहीं सके तो भाला फेंक कर मारा ! रक्त बहता रहा और शंभुधन घायल अवस्था में दौड़ता रहा और अंतत: शहीद हो गया ! उस समय उस वीर की उम्र केवल 33 वर्ष थी !

आज भारत के इसी पराक्रमी योद्धा शम्भुधन फूंगलोसा का बलिदान दिवस है ! शम्भुधन फूंगलोसा के बलिदान दिवस पर उन्हें शत शत नमन !

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