आगामी बजट - नेहरू युग का यथास्थितिवाद या गाँधीयुग में प्रवेश ?
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अपने विगत नौ महीनों के कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्राथमिकता विनिवेश को बढ़ावा देना और स्वच्छता रही है | यह भी स्वागतयोग्य है कि लालफीताशाही में कमी पर उनका ध्यान रहा है । किन्तु समन्वय की सुसंगत रणनीति की ओर और अधिक ध्यान दिए जाने की जरूरत है ।
मोदी सरकार का पहला वजट 28 फरवरी को पेश किया जाएगा | यह एक अवसर होगा जनता को यह दर्शाने का कि वे देश को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं | भारत की अर्थव्यवस्था सुधारना उनका प्राथमिक लक्ष्य हो सकता है, किन्तु उनसे देश इससे कहीं अधिक की अपेक्षा कर रहा है । वैश्विक दृष्टिकोण के विकास के साथ अगर वे भारतीय ग्राम प्रधान अर्थतंत्र का समन्वय बैठा पाए, तो देश लम्बे समय तक उन्हें स्मरण रखेगा | नेहरू जी के शहरी बाजारवाद और गांधीजी की ग्रामप्रधान सादगी और सरलता का संतुलन ही देश को ऊंचाईयों पर पहुंचा सकता है | अगर दूसरे शब्दों में कहें तो हम मोदी जी में नेहरू और गांधी, दोनों को एक साथ देखना चाहते हैं |
उनमें अपरिमित क्षमता और ऊर्जा है, इसमें कोई संदेह नहीं | किन्तु आज की स्थिति कोई बहुत उत्साह बर्धक नहीं है | 1991 में प्रारम्भ हुए उदारीकरण सुधारों के माध्यम से देश में कोई बहुत बड़ी आर्थिक क्रांति तो आई नहीं उलटे भारत विदेशी कंपनियों का चरागाह बनकर न रह जाए, ये डर सताने लगा है |
हमा मानना है कि मोदी इस बात को समझते हैं | उनके स्वभाव का जीवट और जुझारूपन, उनकी चुनौतियों से जूझने की सामर्थ्य बजट में भी दिखाई दे, यही हर देशवासी की कामना है | स्वयं को साबित करने का, उनके लिए यह एक शानदार अवसर है।
मेक इन इंडिया केवल नारा भर न रहे, सबसे पहले, यह सुनिश्चित हो कि विदेशी निवेशक व्यक्तिगत लाभ कमाने के साथ सरकार और देश के राजकोषीय इंसाफ के लिए भी प्रतिबद्ध रहने को विवश हों । आयकर प्रणाली का सरलीकरण किया जाना भी आवश्यक है | आखिर राज्य केवल पैसे जुटाने के लिए नहीं है | हमारे तंत्र में जन सुविधा का ध्यान रखा जाये तथा उनको कमसेकम परेशानी हो यह भी सुनिश्चित करना और दिखना चाहिए | सार्वजनिक कंपनियों में विनिवेश के बारे में और अधिक महत्वाकांक्षी होना चाहिए, साथ ही उन्हें प्रतिस्पर्धा हेतु पर्याप्त सक्षम और कुशल बनाया जाना चाहिए ।
फिजूल खर्च में कमी, सब्सिडी और कल्याण कार्यक्रमों के प्रति दृष्टिकोण जैसे मुद्दों पर मौलिक पुनर्विचार की जरूरत है। मध्यम श्रेणी के लोगों के दैनिक जीवन की आवश्यकता खाना पकाने की गैस की सबसिडी उनके खातों में भेजने से हो सकता है गैस की कालाबाजारी कम होने की संभावना हो, किन्तु क्या यह बेहतर नहीं होगा कि आयकर दाताओं के लिए कीमत अधिक और अन्य लोगों के लिए कम रखी जाए |
स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे पर अधिक ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है | एक अनुमान के मुताबिक़ अगले पांच वर्षों के लिए देश के बुनियादी ढांचे के लिए 1 ट्रिलियन डॉलर की आवश्यकता होगी | दुखद स्थिति यह है कि भारत की सबसे बड़ी कंपनियों कर्ज में डूबी हुई हैं, और बेंकों में अक्रियाशील ऋण साल दर साल बढ़ता जा रहा है | अतः सार्वजनिक निवेश पर जोर देने के अलावा कोई चारा नहीं है ।
बजट में भारत के जीवंत विनिर्माण क्षेत्र बनने की संभावना दिखाई दे, लोगों को व्यापार करने में आसानी हो, भारतीयों नौजवानों के लिए रोजगार पाने के अवसर बनें, यह ध्यान दिया जाना आवश्यक है ।
बड़े कारखानों के निर्माण के लिए जमीन खरीदना आसान बने, इससे कहीं ज्यादा जरूरी है कि मझोले और लघु उद्योग स्थापित करने के लिए उद्यमियों को आसानी से पूंजी और श्रमिक प्राप्त हों | इसके लिए अकुशल श्रमिकों के कौशल उन्नयन की कोई कारगर योजना बनाई जाना चाहिए | इससे जहां एक ओर देश की अर्थ व्यवस्था पर बड़े घरानों का प्रभुत्व कम होगा, तो दूसरी ओर अमीरी गरीबी की खाई में कमी आयेगी |
देश में लगातार कृषि योग्य भूमि कम होती जा रही है | कृषि भूमि को लगातार औद्योगिक उपयोग के लिए परिवर्तित करने का क्रम जारी है | इस अंधी दौड़ को नियंत्रित किया जाना आवश्यक है । भूमि रजिस्ट्री संबंधी कोई राष्ट्रीय नीति बनाया जाना चाहिए । भारत की कृषि ही उसकी अर्थ व्यवस्था की रीढ़ है, इसे विस्मृत किये जाने के कारण ही देश के सम्मुख आर्थिक संकट दिखाई दे रहा है |
मोदी सरकार को अपने अनुसार काम करने की
पूरी स्वतंत्रता नहीं है | राज्यसभा में भाजपा का बहुमत न होना उसका प्रमुख कारण
है | अतः यह बजट एक प्रकार से उनके राजनैतिक कौशल की भी परिक्षा है | निश्चय ही
विपक्ष उन्हें सफल नहीं देखना चाहेगा | किन्तु मोदी एक करिश्माई नेता है, और उन्होंने देशहित
में एक प्रकार से स्वयं को झोंका हुआ है | हमारी कामना है कि वे सफल हों और आर्थिक
सुधार व ग्राम विकास की संतुलित, साहसिक और व्यापक योजना को अमल में ला सकें |
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