बैतूल - माँ ताप्ती का जन्मस्थल कितना पवित्र, कितना जुझारू



बैतूल सन १९४७ के पूर्व मध्य प्रांत तथा बरार का एक जिला था ! उन दिनों बैतूल बाज़ार जिले का केन्द्र स्थान हुआ करता था ! किन्तु १९१२ में जब नागपुर भोपाल रेल लाईन की योजना बनी तब उसके मार्ग में एक बीज फ़ार्म आजाने से जनता में तीव्र विरोध हुआ ! परिणाम स्वरुप रेल मार्ग को घुमाकर बदनूर ढाना बैतूल गंज से निकालना पड़ा ! बह बैतूल गंज ही वर्तमान बैतूल है ! रेलवे स्टेशन बैतूल गन्ज बन जाने के बाद इस स्थान का विकास अत्यंत तीव्र गति से हुआ ! अधिकारियों के आवास भी इसके आसपास बन गए और सारी गतिविधियों का केन्द्र बन जाने के कारण १९२२ आते आते जिला केन्द्र भी बैतूल बाज़ार के स्थान पर आज का बैतूल तथा तब का बैतूल गंज बन गया ! अखंड भारत में बैतूल रेल मार्ग का मध्य विदु था ! बरसाली स्टेशन से एक कि.मी. उत्तर की और राजा टोडरमल द्वारा स्थापित अखंड भारत का स्तंभ व इसका संकेत पटल आज भी विद्यमान है ! 



देश की प्रमुख नदियों में से एक ताप्ती नदी का उद्गम स्थल इस जिले के मुलताई में है ! यहाँ के एक सरोवर से ताप्ती नदी की महीन धारा प्रवाहित होती है ! वास्तव में मूलतापी अर्थात ताप्ती का मूल ही कालांतर में अपभ्रंश होकर मुलताई में परिवर्तित हो गया ! ताप्ती विश्व की एकमात्र नदी है जिसमें हड्डी को भी गलाने की क्षमता है ! यही कारण है की स्थानीय लोग अंतिम संस्कार के बाद अस्थि विसर्जन ताप्ती में ही करते हैं ! मुलताई के पास पठार से दो भिन्न दिशाओं में नदियों का प्रवाह जाता है ! एक और ताप्ती नदी जहां पश्चिम में जाकर गुजरात में समुद्र से मिलती है तो वर्धा नदी का जल अन्य नदियों से मिलकर पूर्व में बंगाल की खाड़ी में समुद्र से मिलता है ! मुलताई में वह ऐतिहासिक गुरुद्वारा भी है, जहाँ गुरू नानकदेव नांदेड साहब जाने के पूर्व रुके थे | गुरू नानक देव ने सूर्यपुत्री माँ ताप्ती की जन्म स्थली पर चौदह देनों तक जप-तप भी किया था |

११६२ मेगावाट विद्युत का उत्पादन करने बाला प्रदेश का सबसे बड़ा ताप विद्युत गृह इसी जिले के सारणी नामक स्थान पर है ! जिले का अधिकाँश भाग गहन वनों से आच्छादित है ! यहाँ जंगलों से प्राप्त सागौन की लकड़ी अपनी मजबूती के लिए विश्व प्रसिद्ध है ! यहाँ से भारी मात्रा में लकड़ी इंग्लेंड आदि देशों को भेजी जाती है ! ब्रिटेन की महारानी के बकिंघम महल में इसी लकड़ी का उपयोग किया गया है ! उस महल के दरवाजे की मरम्मत के लिए आवश्यक होने पर यहीं से लकड़ी मंगवाई गई थी ! पानी की कमी तथा सिंचाई के साधन ना होने के कारण कृषि उत्पादन सामान्य ही है ! किन्तु कम पानी में पैदा होने बाला छतरी चावल यहाँ की विशेष पैदावार माना जाता है ! भारत के प्रमुख जैन तीर्थों में से एक मुक्तागिरी के मंदिर अत्यंत भव्य व दर्शनीय हैं ! इनमें से कुछ तो पहाड़ों को काटकर बनाए गए हैं, जो तात्कालीन वास्तुकला का अद्भुत नमूना हैं ! कार्तिक मास में आयोजित होने बाले मेले के अवसर पर देश विदेश के जैन मतावलंबी यहाँ आते हैं ! 

स्वतन्त्रता संग्राम में इस जिले का विशेष योगदान रहा है ! बैतूल के वनवासी वन्धु एक और तो ईसाईयत थोपे जाने से नाराज थे और तभी तत्कालीन अंग्रेज सरकार ने जंगलों के उपयोग करने के उनके पैतृक अधिकार को भी वाधित करने का प्रयत्न किया ! यह विषय वनवासियों के लिए जीवन मरण का प्रश्न बन गया ! इस कारण १९२० के जंगल सत्याग्रह में इन लोगों ने बढ़ चढ कर भाग लिया ! इस आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने निरीह गोंड वनवासियों पर बर्बर अत्याचार किये थे ! सन १९४२ के भारत छोडो आंदोलन में भी यहाँ की जनता आगे रही थी ! महेंद्रवाडी के सरदार विष्णु सिंह जी गौड़ के नेतृत्व में यहाँ संघर्ष हुआ ! विष्णु सिंह जी को बाद में अंग्रेज सरकार ने फांसी की सजा दी !

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