संस्मरण - श्री गोपालराव येवतीकर



संघ का प्रारंभिक गणवेश पूरा खाकी था ! खाकी नेकर खाकी कमीज खाकी मोज़े ! किन्तु द्वितीय विश्व युद्ध के समय प्रथकता दिखाने के लिए काली नेकर सफ़ेद कमीज सफ़ेद जूते नीले मौजे संघ गणवेश बने ! १९५३ में गोपाल राव जी का प्रथम वर्ष मल्हारगंज इंदौर से हुआ ! स्थानाभाव के कारण आवास, बौद्धिक पंडाल, संघ स्थान सभी एक एक दो दो कि.मी. की दूरी पर थे ! ग्वालियर से डा. केशव नेवासकर तथा शिवपुरी के सुशील बहादुर अष्ठाना ने भी इसी वर्ष संघ हिक्षा वर्ग किया था ! उन दिनों राजा भाऊ पातुरकर प्रांत प्रचारक थे ! मिलिट्री में जाने की इच्छा थी ताकि रिश्वत ना लेनी पड़े ! पहले माता पिता की सेवा फिर देश सेवा, यही द्रष्टि थी ! इसलिए शाखा जाते रहने के बाद भी संघ के प्रति गंभीरता नही थी ! 

साथियों के साथ सब्जी खरीदने जाते तो कदम मिलाकर चलने का अभ्यास करते ! संघ स्थान पर मना किया जाता कि क्रिकेट देखने नही जाना, बह विदेशी खेल है ! किन्तु मित्रों के साथ निवास स्थान राजबाड़े से ४ कि.मी. दूर यशवंत क्लब मैदान पर क्रिकेट देखने जाते ! किन्तु अधिकारी भी कहाँ मानने बाले थे ! शाखा समय होने पर बहां भी पहुँच जाते और ढूंढकर पकड़कर शाखा लाते ! ये लोग अलग अलग बैठते, ताकि सब एक साथ पकड़ में ना आयें ! ये कितना भी थकाते खिजाते पर वे नहीं मानते ! किन्तु पातुरकर जी ने संघ अधिकारियों मुकुंदराव कुलकर्णी तथा प्रभाकर शंकर काले को कह रखा था कि इन पर नजर रखो, ये उपयोगी स्वयंसेवक साबित होंगे ! 

किन्तु धीरे धीरे संघ के प्रति द्रष्टि बदली ! गुरूजी के ५१ वे जन्म दिवस पर श्रद्धानिधि देने हेतु ट्यूशन कर धन संग्रह किया ! १९५८ में द्वितीय वर्ष करना चाहते थे किन्तु बहिन की शादी के कारण संभव नही हुआ ! १९५९ में जबलपुर से द्वितीय वर्ष का प्रशिक्षण हुआ ! बहां गुरूजी का बौद्धिक सुना ! उन्होंने कहा कि संघ शिक्षा वर्ग में कष्टपूर्ण जीवन की योजना, बस्तुतः स्वयंसेवक को उसकी क्षमताओं का ज्ञान कराने के लिए की जाती है ! यहां जो अच्छी आदतें मिली हैं, जैसे जल्दी उठना, चिंतन, मनन आदि, उन्हें भविष्य में भी बनाए रखना ! गुरूजी की कही बातों का गंभीर असर हुआ ! संघ शिक्षा वर्ग से लौटकर जल्दी उठने की आदत को बनाए रखा ! उसके लिए एक जिम्मेदारी स्वतः निर्धारित कर ली ! सायं शाखा में आने बाले स्वयंसेवकों को प्रातः अध्ययन के लिए जगाना ! उनके माता पिता उन्हें नहीं उठा पाते थे, किन्तु गोपालराव जी जगाने जाते तो वे उठकर पढाई करते ! इससे परिवार के लोग भी खुश हुए ! 

१९५७-५८ में शाखा कार्यवाह बने ! किन्तु कठोर अनुशासन के स्वभाव के कारण प्रारम्भ में परेशानी हुई ! एक स्वयंसेवक को अनुशासन हीनता करने के कारण चपत जमा दी ! उसने शाखा आना बंद कर दिया ! उसके साथ उसके मित्रों ने भी आना छोड़ दिया ! स्थिति यह हो गई कि संघ स्थान पर अकेले खड़े रहना पडता ! किन्तु हिम्मत नही हारी ! नियमित संघ स्थान पर पहुंचते, ध्वज स्थान की सफाई करते, मैदान में पानी का छिडकाव कर अंकन करते और फिर अकेले ही प्रार्थना कर शाखा विकिर कर लौट जाते ! शेष स्वयंसेवक मैदान के बाहर खड़े होकर यह तमाशा देखते रहते ! अंततः इस धैर्य का परिणाम निकला और शाखा पुनः व्यवस्थित प्रारम्भ हुई ! पहले जहां औसत उपस्थिति १८ रहा करती थी, अब ४० रहने लगी !

१९६० में तृतीय वर्ष का शिक्षण हुआ ! दोनों बड़े भाई पहले ही तृतीय वर्ष कर चुके थे ! अरविन्द जी मोघे घर की खराब स्थिति के बाद भी प्रचारक निकल चुके थे ! उन्हें देखकर प्रेरणा मिली कि जब ये इतनी विषम परिस्थिति में राष्ट्रसेवा के लिए घर छोड़ सकते हैं तो मैं क्यों नहीं ? संघ शिक्षा वर्ग से ही घर पत्र लिखकर अपने प्रचारक निकलने की इच्छा बता दी ! बड़े भाई मधुसूदन जी का जबाब आया कि “जिसको निकलना होता है बह ज्यादा विचार नहीं करता ! हम विचार करते रहे तो नहीं निकल पाए” ! भाई के इस उत्तर ने विचार को और भी द्रढता दी ! संघ शिक्षा वर्ग के उपरांत सीहोर जिला प्रचारक की घोषणा हुई ! उस समय दिगंबर राव तिजारे बहां विभाग प्रचारक थे !

दो वर्ष सीहोर रहने के बाद पांच वर्ष होशंगावाद जिला प्रचारक रहे ! उसी दौरान बहां प्रांतीय विस्तारक वर्ग हुआ, जिसमें ६००-७०० विस्तारक सम्मिलित हुए ! इस वर्ग में एकनाथ जी रानाडे के ३० बौद्धिक हुए, जिनमें उन्होंने दासवोध के माध्यम से सम्पूर्ण संगठन शास्त्र सिखाया ! होशंगावाद में संघ कार्य अमरावती से आये विष्णूपन्त कर्वे के समय बढ़ा था ! द्रोणकर, मोरेश्वर तपस्वी, रामभाऊ मिटावलकर बैतूल आदि क्षेत्रों में सक्रिय रहे !

होशंगावाद के बाद १९६६ में येवतीकर जी भोपाल के सह विभाग प्रचारक नियुक्त हुए तथा उसके बाद १९६९ से १९७७ तक भोपाल विभाग प्रचारक ! १९७७ से १९८२ तक महाकौशल में विश्व हिन्दू परिषद के संगठन मंत्री बने ! उस समय छत्तीसगढ़ भी इस रचना में सम्मिलित था ! उसके बाद एक बार फिर १९८६ तक भोपाल विभाग प्रचारक रहे ! ८६ से ८८ तक येवतीकर जी पंजाब में लुधियाना विभाग प्रचारक के रूप में कार्यरत रहे ! उसके बाद १९९७ तक सिक्ख संगत में कार्य किया ! तदुपरांत वनवासी कल्याण आश्रम के क्षेत्रीय संपर्क प्रमुख हैं ! पहले मुख्यालय भोपाल था जो अब बदलकर जबलपुर है !

संस्मरण –

· १९५० में अजमेर ओ.टी.सी. के बाद प्रांत प्रचारक ने सभी प्रचारकों से कहा कि अब प्रचारक व्यवस्था समाप्त की जा रही है, अतः सब घर वापस लौट जाएँ ! इस सूचना के बाद कुछ प्रचारक गुरूजी से मिले और पूछा कि गुरूजी आप शादी कब कर रहे हैं ? इस प्रश्न से गुरूजी असमंजस में पड गए और बोले कि मैं शादी क्यूं करूँगा भला ? इस पर प्रचारकों ने कहा कि जब आप गृहस्थ नहीं बन सकते तो फिर हमसे यह अपेक्षा क्यों ? सारी स्थिति समझकर गुरूजी ने उन्हें समझाया कि संघ की आर्थिक स्थिति एसी नहीं है कि बह प्रचारकों के प्रवास व्यय को भी बहन कर सके ! इसके बाद निर्णय हुआ कि जो लोग स्वयं व्यवस्था कर संघ कार्य कर सकते हैं, वे रहें शेष वापस घर जाएँ ! तभी बाबा साहब नातू और राजाभाऊ महाकाल ने सोनकच्छ में चाय की दूकान चलाई और तिजारेजी ने उज्जैन के विनोद मिल में स्वीपर की नौकरी की ! उस समय मध्य भारत के नौ तथा महाकौशल के पांच प्रचारकों को छोडकर सब वापस हुए ! उनमें से कुछ ने विवाह कर गृहस्थ जीवन भी अपनाया !

· भैयाजी बडनगर प्रचारक बने ! उनका निर्णय था कि भोजन मांगकर नही करना ! एक बार चार दिन तक भोजन नहीं मिला और संघ स्थान पर ही बेहोश हो गए ! यह जानकर खोचे जी की मां अत्यंत दुखी हुईं ! उन्होंने कहा कि आगे से मैं तुम्हारे बाद ही भोजन करूंगी ! जब तक तुम्हारा भोजन नहीं होगा मैं भी भोजन नहीं करूंगी ! इस नियम का माताजी ने कड़ाई से पालन किया ! जब तक भैयाजी का भोजन उनके घर में नहीं हो जाता या उनका भोजन हो गया, यह समाचार नहीं आ जाता, वे भूखी बैठी रहतीं !

· १९६२ के चीन युद्ध के बाद सीहोर जिले के पान गुरडिया नामक स्थान पर शिविर का आयोजन हुआ ! रक्षा व्यवस्था में तैनात स्वयंसेवकों को सोया देखकर येवतीकर जी ने कुछ स्वयंसेवकों का सामान तथा खुद की रजाई चुपचाप उठाकर शिविर स्थल के बाहर छुपा दिया ! स्वयं ही हल्ला मचा दिया कि शिविर में कोई चोर आया था ! व्हिसिल बजाई जाकर जागरण हुआ ! सब जागकर अपना अपना सामान देखने लगे और जिनका सामान गायब था वे भी शिकायत करने लगे ! इस पर चारों और उस कल्पित चोर को ढूँढने की कोशिश हुई, किन्तु कुछ पता नहीं चला ! अंततः शिविर अधिकारी को कुछ अनुमान येवतीकर जी की भाव भंगिमा से हुआ ! अकेले में पूछे जाने पर वस्तुस्थिति की जानकारी हुई ! फिर रात को ढाई बजे सबको एकत्रित कर बौद्धिक हुआ ! आज जब देश संकट से घिरा है तब यदि पहरेदार ही सो जाएगा तो देश का क्या होगा !

· गोवा मुक्ति आंदोलन के समय सीहोर से भी सत्याग्रही जत्था निकला ! इन सत्याग्रहियों को हार पहनाकर नगर के प्रमुख मार्गों से इनका जुलूस निकाला गया ! केसरीमल भावसार, नरेंद्र चौरसिया के साथ हीरालाल भावसार भी सत्याग्रही के रूप में निकल रहे थे ! तभी हीरालाल जी के बड़े भाई को यह जानकारी मिली ! बह अत्यंत तैश में बहां पहुंचे और हीरालाल जी को रोकने का प्रयत्न करने लगे ! उन्होंने हार पहनकर चल रहे अपने छोटे भाई को चप्पल भी मारी, किन्तु अविचल हीरालाल गोवा जाकर ही माने !

· अमरावती से सीहोर आकार बसे बिट्ठल दास शर्मा “गुरू” सीहोर में संघ कार्य विस्तार की धुरी थे ! तीसरी चौथी क्लास तक पढ़े बिट्ठल गुरू स्टेंड कंडक्टर तथा जैन मंदिर के पुजारी थे, साथ ही सिद्धहस्त नमकीन के कारीगर भी ! वे मंगोडे का ठेला लगाते और जो कुछ भी कमाते सब संघ कार्य के लिए समर्पित कर देते ! गाँव से शहर अध्ययन करने आने बाले प्रत्येक बालक के वे स्वतः पालक हो जाते ! उसके सुख दुःख की चिंता करते और धीरे धीरे उसे संघ विचार की घुट्टी पिला देते ! एक बार बड़े भाई के विवाह में सम्मिलित होने अमरावती महाराष्ट्र गए ! जब लौटे तो उनका भी विवाह हो चुका था ! रिश्तेदारों ने पीछे पडकर बड़े भाई की साली से ही उनका सम्बन्ध करवा दिया था ! किन्तु विवाह के बाद भी उनकी संघ निष्ठा पर कोई विपरीत असर नहीं हुआ ! वे आजीवन गृहस्थ प्रचारक के रूप में कार्यरत रहे ! जब श्री दीवान चंद महाजन जनसंघ प्रत्यासी के रूप में पराजित हुए, उसके बाद संगठन पर कर्जा हो गया था ! तब बिट्ठल गुरू ने अपनी पत्नी के गहने गिरवी रखकर बह कर्जा चुकाया ! वस्तुतः सीहोर में संघ जनसंघ के पर्याय थे बिट्ठल गुरू, नरेंद्र चौरसिया, गोपाल राठौर आदि ! इन लोगों को अपने घर से ज्यादा संगठन की चिंता रहती थी !

· इंदौर निवासी मदन गोरे विदिशा में प्रचारक रहे ! बाद में एक अंग्रेज को मारकर वे फ़ौज में भर्ती हो गए ! १९६५ के भारत पाकिस्तान युद्ध में कैप्टिन गोरे शहीद हुए !

· विवेकानंद शिला स्मारक कार्यालय का दायित्व प्रांत में मिश्रीलाल जी तिवारी ने संभाला ! प्रांत प्रचारक श्री सुदर्शन जी उस व्यवस्था के सचिव थे ! उन दिनों उनके पेट में फोड़ा हो गया था ! उसे कपडे से बांधकर, बिना किसी को कुछ बताए, कष्ट को पीते ऊपर से मुस्कुराते हुए उन्होंने अत्यंत कुशलता से उस समय सम्पूर्ण योजना को सफल बनाया ! भैयाजी दाणी की अंतिम इच्छा के रूप में इंदौर स्वदेश का प्रारम्भ भी सुदर्शन जी के अथक परिश्रम से ही संभव हुआ ! जिस समय मुद्रणालय लगा, एक ईंजीनियर की भूमिका में खड़े रहकर उस सारी व्यवस्था की देखरेख उन्होंने की !

· रायसेन, आष्टा, गैरत गंज, गौहर गंज अदि क्षेत्रों में मुस्लिम आतंक के कारण आम हिन्दू डरा सहमा रहता था ! अरविंद कोठेकर जी के जिला प्रचारक काल में सिरोंज में शीत शिविर का आयोजन हुआ ! उन्ही दिनों भोपाल में दंगा हुआ था ! अतः स्थिति तनावपूर्ण थी ! शीत शिविर के समापन पर संचलन निकालने की भी योजना थी ! रात को १२ बजे अकस्मात पुलिस कांस्टेबल ने आकर बताया कि कोतवाली पर बुलाया है ! बहां डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट तथा पुलिस एस.डी.ओ.पी. उपस्थित थे ! उन लोगों ने पूछा कि आपने संचलन के लिए कोई अनुमति ली है क्या ? गोपाल राव जी ने कहा कि सड़क पर चलने की भी कोई अनुमति लेता है क्या ? हमने कभी कहीं अनुमति नहीं ली ! उन्होंने कहा कि दंगा हो सकता है ! जबाब मिला – तो फिर आप काहे के लिए हैं ? अधिकारीगण निरुत्तर हो गए ! यह समाचार शहर में भी फ़ैल गया स्वयंसेवक और भी उत्साह में आ गए ! संचलन भी निकला और नगर में उसका भव्य स्वागत हुआ ! गोपाल राव जी के प्रति समाज में आदर भाव और बढ़ गया !

· ठाकरे जी की सबसे छोटी बहिन की शादी में उन्होंने पहले से कह दिया था कि वे एक पंडित को लेकर आयेंगे जिसे दक्षिणा देना होगी ! वे मिश्रीलाल जी तिवारी को लेकर पहुंचे ! वैवाहिक कार्य संपन्न हो जाने के बाद उन्होंने कहा कि ये ही बह पंडित हैं ! विवाह में इतना खर्च किया है तो वनवासियों के कल्याण के लिए भी कुछ खर्च करो ! यह सुनकर वर तथा कन्या पक्ष के दोनों समाधियों ने २००-२०० रु. दिए ! तभी से स्वयंसेवकों के परिवारों में यह प्रथा प्रारम्भ हो गई तथा उसके परिणाम स्वरुप वनवासी कल्याण आश्रम को मिलने बाली सहायता में गुणात्मक वृद्धि हुई !

आपातकाल –
प्रकाश चन्द्र सेठी द्वारा किये जा रहे ओवरब्रिज लोकार्पण कार्यक्रम के दौरान ईश्वर तोलानी तथा अरुण पलनीटकर के नेतृत्व में स्वयंसेवकों ने सत्याग्रह कर गिरफ्तारी दी !

आपातकाल की घोषणा के तत्काल बाद सुदर्शन जी ठाकरेजी तथा प्यारेलाल जी की भेंट भोपाल कार्यालय पर हुई ! बहां तय किया गया कि संगठन मंत्री के नाते ठाकरे जी तो गिरफ्तारी दें, किन्तु प्यारेलाल जी बाहर रहकर संगठन सूत्र संभालें ! बैठक के बाद जैसे ही प्यारेलाल जी कार्यालय से नीचे उतरे तो बहां पुलिस मौजूद थी ! एक अधिकारी ने इनसे पूछा कि प्यारेलाल कहाँ हैं ! प्यारेलाल जी ने उत्तर दिया “ऊपर ठाकरे जी के साथ” ! ऐसा एक बार नहीं दो बार हुआ ! ट्रेन में सफर करते समय प्यारेलाल जी इटारसी स्टेशन के प्लेटफार्म पर लूंगी पहिनकर घूम रहे थे, कि तभी पुलिस ने उन्हें पकड़ कर सामान की तलाशी ली ! किन्तु कुछ ना मिलने पर माफी मांगकर छोड़ दिया ! इसी प्रकार एक बार इंदौर में लक्ष्मण राव तरानेकर जी को गोपाल राव येवतीकर समझ कर पकड़ लिया गया किन्तु उन्होंने कहा कि में तो गोपाल राव नहीं रामानुजम हूँ ! अनजान पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया !

आपातकाल में बाबा साहब नातू इंदौर की जगह भोपाल में टोपेनगर स्थित रामकृष्ण सोलंकी के घर पर रहे ! बाहर रहे सभी प्रचारक भेष बदलकर घूम रहे थे ! मोरूभैया गद्रे का बदला हुआ वेश सबसे अच्छा था ! जयरामदास टहलयानी झमटमल बनकर घूमे ! वे उसके बाद १९८० तक विदिशा रायसेन आदि में रहे ! उसके बाद हरिद्वार में शक्तिपात दीक्षा लेकर स्वामी शिवओम तीर्थ बन गए ! फिर जयराम चैतन्य के नाम से झाबुआ के वनवासी क्षेत्र में सेवा कार्य में लगे ! बाद में पूरी तरह आध्यात्मिक जीवन में प्रविष्ट हो गए ! एकान्तजीवी सन्यासी होकर स्वामी विद्यातीर्थ बन गए !

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