मोह - माया, भगवती महामाया |

मधु कैटभ के लिए चित्र परिणाम

नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ व्यापक रूप से किया जाता है | इसमें आध्यात्मिक व धार्मिक के साथ साथ मानव मनोविज्ञान का कितना अद्भुत व सुन्दर चित्रण किया गया है | 

राजा सुरथ धर्मपूर्वक राजकाज करते व प्रजा का पालन करते थे | किन्तु दुर्भाग्य वश अपने शत्रुओं से पराजित हुए | राज्य की सीमा भी सिकुड़ गई | कहाँ तो समस्त भूमंडल उनके अधिकार में था, किन्तु अब केवल एक नगर के अधिपति ही रह सके | कमजोर हुए तो मंत्रियों ने षडयंत्र कर उनकी संपत्ति भी हड़प ली | निराश राजा वन में एक ऋषि मेधामुनि के आश्रम में समय बिताने लगे | किन्तु अपने नगर व राज्य की चिंता फिर भी सताती रही | मेरे पूर्वजों ने जिस नगर का पालन किया, पता नहीं मेरे दुरात्मा भृत्य गण उसकी कैसी देखभाल करते होंगे ? अपव्ययी लोगों के हाथों से मेरे द्वारा कष्ट पूर्वक सहेजा गया खजाना कहीं खाली न हो जाए, आदि आदि | 

आश्रम के नजदीक ही राजा की भेंट एक वैश्य समाधि से हुई | उसके स्त्री पुत्रों ने उसे घर से निकाल दिया था | विश्वसनीय लोगों ने दगावाजी पूर्वक उसका धन भी हड़प लिया था | दोनों एक समान परिस्थितियों के सताये साथ मिल गए तो एक दूसरे के दुःख सुख भी साझा किये | समाधि वैश्य चिंतित था कि उसकी अनुपस्थिति में कहीं उसके पुत्र दुराचारी न हो गए हों | उसकी पत्नी व अन्य संबंधी सकुशल हों |

तत्पश्चात राजा व वैश्य दोनों साथ साथ मुनि मेधा के पास पहुंचे और राजा ने उनसे प्रश्न किया –

जो राज्य मेरे हाथ से चला गया, उसमें अब भी मेरी ममता बनी हुई है | यह जानते हुए भी कि अब वह मेरा नहीं है, मुझे उसके लिए दुःख क्यों होता है ? इसी प्रकार इस वैश्य को भी जिन स्त्री पुत्रों और सम्बन्धियों ने परित्याग कर दिया, तो भी यह उनके प्रति अत्यंत हार्दिक्स्नेह रखता है, यह क्या है ? क्यों है ? हम दोनों जिनके कारण दुखी हुए, उनके लिए दुखी क्यों है ?

राजा के प्रश्नों का जो उत्तर ऋषि ने दिया, उसे मैं जैसा का तैसा वर्णन नहीं कर रहा | अपनी समझ के अनुसार जैसा मैं समझ पाया, थोडा परिवर्तित रूप में आपसे साझा करता हूँ –

न केवल मनुष्य में, वरन समस्त प्राणियों में समझ होती है | हाँ गुण धर्म प्रथक हो सकते हैं | जैसे कि कुछ प्राणियों को रात में दिखाई नहीं देता, तो कुछ प्राणी दिन में नहीं देखा पाते | कुछ ऐसे भी हैं जो रात और दिन दोनों में देख सकते हैं | समझदार सब है, लेकिन भगवती महामाया के प्रभाव से मोहग्रस्त भी सब ही रहते हैं | उसमें कोई अंतर नहीं है | पक्षियों को देखो, स्वयं भूखे रहकर भी अपने बच्चों की चोंच में अन्न के दाने डालते हैं | और वे ही बच्चे पंख आते ही उन्हें छोड़कर उड़ जाते हैं | मनुष्य अपने किये उपकार का प्रतिफल अपने पुत्रों से पाना चाहता है और दुखी होता है | 

भगवान् विष्णु की योगनिद्रा रुपी भगवती महामाया हैं, उन्हीं के प्रभाव से जगत मोह ग्रस्त हैं | जरा सोचो कि जगत के पालन करने वाले भगवान विष्णु भी जिनके प्रभाव से शेषनाग की शैय्या पर सो जाते हैं, उनके प्रभाव से हम साधारण प्राणी कैसे बच सकते हैं ? निद्रा भी कैसी कि उठाये न उठें | भगवान् सोये हुए हैं और ब्रह्माजी को पता चला कि दो भयंकर असुर मधु और कैटभ उनके कर्ण मैल से उत्पन्न हो गए | 

इसके बाद जैसा कि दुर्गा सप्तशती का प्रथम अध्याय वर्णन करता है वह इस मोह की पराकाष्ठा है | ब्रह्मा जी महामाया की प्रार्थना करते हैं कि माँ भगवान को जगाओ और उन्हें इन असुरों को मारने की प्रेरणा दो | वे कहते हैं कि जो इस जगत की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं,उन भगवान् को भी जब तुमने निद्रा के अधीन कर दिया तब तुम्हारी स्तुति करने में कौन समर्थ हो सकता है ? जगदीश्वर भगवान् विष्णु को शीघ्र ही जगा दो और साथ ही उनके अन्दर इन दुर्धर्ष असुरों को मारने की बुद्धि भी उत्पन्न कर दो | ध्यान दीजिये कि जो स्वयं भगवान् से उत्पन्न हुए हैं, उन्हें मारने की प्रेरणा देने की प्रार्थना कर रहे हैं ब्रह्मा जी | भगवती महामाया भगवान् विष्णु के शरीर से निकल कर अलग हुईं और भगवान् निद्रा छोड़कर उठे | पांच हजार वर्षों तक उन असुरों से युद्ध किया | 

इसके बाद फिर भगवती महामाया का चमत्कार देखिये, मोह की पराकाष्ठा | असुरों ने भगवान् से कहा कि हम तुम्हारे पराक्रम से प्रसन्न है, वर मांगो | भगवान् विष्णु को वर देंगे अब असुर ? लेकिन महामाया का प्रभाव ? भगवान् ने मौके का लाभ उठाया और कहा कि ठीक है, वर देना है तो मेरे हाथों से मारे जाओ | असुरों ने थोड़ी बुद्धि लगाई, चतुरता दिखाई, बोले चारों ओर जल ही जल है, हमें सूखे में मारो | भगवान् ने अपनी गोद में उनका सिर रखा और सुदर्शन चक्र से सिर धड से अलग कर दिया |

जिन माँ भगवती की माया से न भगवान् विष्णु बचे और न ही वे सर्वजेता असुर, उनसे कौन कैसे बच सकता है ? केवल माँ की कृपा ही हमें मोहग्रस्त होने से बचा सकती है | प्रस्तुत है ब्रह्मा जी द्वारा की गई वह प्रार्थना –

त्वं स्वाहा, त्वं स्वधा त्वं हि वषटकारः स्वरात्मिका |

सुधा त्वमक्षरे नित्ये त्रिधा मात्रात्मिका स्थिता ||

अर्धमात्रास्थिता नित्या यानुच्चार्या विशेषतः | 

त्वमेव संध्या सावित्री त्वं देवि जननी परा ||

त्वयैतद्धार्यते विश्वं त्वयैतत̖सृज्यते जगत |

त्वयैतपाल्यते देवि त्वमस्त्यन्ते च सर्वदा ||

विसृष्टौ सृष्टरूपा त्वं स्थितिरूपा च पालने |

तथा संह्रतिरूपान्ते जगतोSस्य जगन्मये ||

महाविद्या महामाया महामेधा महास्मृतिः |

महामोहा च भवती महादेवी महासुरी ||

प्रकृतिस्त्वम च सर्वस्य गुणत्रयविभावनी |

कालरात्रिर्महारात्रिर्मोहरात्रिश्च दारुणा ||

त्वं श्रीस्त्वमीश्वरी त्वं ह्रीस्त्वं बुद्धिर्बोधलक्षणा |

लज्जा पुष्टिस्तथा तुष्टिस्त्वं शान्तिः क्षान्तिरेवच ||

खड्गिनी शूलनी घोरा गदिनी चक्रणी तथा |

शंखिनी चापिनी बाणभुशुण्डीपरिघायुधा ||

सौम्या सौम्यतराशेषसौम्येभ्यस्त्वतिसुन्दरी |

परापराणाम परमा त्वमेव परमेश्वरी || 

यच्च किन्चित्क्वचिद्वस्तु सदसद्वाखिलात्मिके |

तस्य सर्वस्य या शक्तिः सा त्वं किं स्तूयसे तदा ||

यया त्वया जगत्स्रष्टा जगत्पात्यत्ति यो जगत |

सोSपि निद्रावशं नीतः कस्त्वां स्तोतुमिहेश्वरः ||

(जो इस जगत की सृष्टि, पालन और संहार करते हैं,उन भगवान् को भी जब तुमने निद्रा के अधीन कर दिया तब तुम्हारी स्तुति करने में कौन समर्थ हो सकता है ?)

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