अथ भोपाल कथा


गजेटियर्स और इतिहास की पुस्तकों में धार को राजधानी बनाकर सम्पूर्ण मालवा पर शासन करने वाले राजा भोज (1000 से 1055 ईस्वी) के भोपाल आने का वृत्तांत मिलता है | कहते हैं कि राजा भोज एक बार चर्म रोग से पीड़ित हुए और सभी प्रकार की चिकित्साएँ करके भी वे निरोग नहीं हुए | उस समय एक साधू ने उन्हें सुझाव दिया कि वे किसी ऐसे सरोवर का निर्माण करवाएं जिसमें 365 झरनों का जल मिलता हो | उसके बाद प्रतिदिन उसमें शुभ मुहूर्त में स्नान करने से ही उन्हें रोगमुक्ति संभव है |

राजा के अभियंताओं ने सब दूर ऐसे स्थान की खोज की | अंततः भोपाल से 32 कि.मी. दूर आज के भोजपुर में बेतवा के उद्गम के पास उन्हें वह स्थान मिल गया, जिसकी उन्हें तलाश थी | इस भूभाग को घेरने वाली पहाड़ियों में 91 मीटर और 457 मीटर के दो मार्ग या बिच्छेद थे | अभियंताओं ने इन्हें दो बड़े बाँध बनाकर रोक दिया | इन बांधों के अवशेष आज भी विद्यमान हैं | बाँध बन जाने पर जब बेतवा, उसकी सहायक नदियों और झरनों को गिना गया तो उनकी संख्या 359 हो पाई | अर्थात साधू द्वारा बताई गई संख्या से छः कम | अतः फिर तलाश प्रारम्भ हुई | गोंडों के सरदार कालिया ने सीहोर से बहकर इस दिशा में आती एक नदी का पता लगाया जिसमें छः झरनों का जल आता था | इसे मोड़ने के लिए फिर एक विराट बाँध श्यामला और ईदगाह पहाड़ियों के मध्य की घाटी पर बनाया गया | इस प्रकार कालिया गोंड द्वारा बताई गई नदी का प्रवाह मोड़कर उसका जल भोजपुर तालाब में मिला दिया गया | इस प्रकार 365 सरिताओं के जल से बना एक विराट तालाब बना, जिसमें 6500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की जलराशि एकत्रित होती थी तथा जिसका व्याप 250 वर्ग मील में फैला हुआ था | इंजीनियरिंग के इस विलक्षण नमूने को ही बाद में “ताल तो भोपाल ताल, बाक़ी सब तलैया” कहा गया |

चूंकि राजा भोज ने यहाँ बाँध अर्थात पाल बांधा था, अतः उनके नाम पर इस क्षेत्र का नाम भोजपाल हुआ | समय के साथ साथ जनभाषा में बीच का अक्षर “ज” विलुप्त हो गया तथा भोपाल शेष रह गया | इस प्रकार राजा भोज द्वारा बसाया गया भोजपाल, बाद का नबाबी राज्य भोपाल, आज अगर मध्यप्रदेश की राजधानी बना तो उसका मूल कारण है नबाब हमीदुल्ला की बेहद संदिग्ध गतिविधियाँ और सरदार बल्लभ भाई पटेल का कठोर दूरदर्शी निर्णय | जुलाई 1947 में सरदार पटेल ने देशी रियासती शासकों का एक सम्मेलन बुलाया जिसकी विषय बस्तु ही रियासतों का भारतीय संघ में संविलयन था | किन्तु नबाब हमीदुल्ला उस सम्मेलन में शामिल ही नहीं हुए | वस्तुतः वह भारत और पाकिस्तान दोनों से मैत्री सम्बन्ध रखना चाहते थे | 

नबाब के इरादे कितने खतरनाक थे, यह इस बात से साफ़ जाहिर होता है कि उन्होंने सन 1948 में बैंक ऑफ़ भोपाल की एक शाखा करांची में खोल दी और भोपाल का सारा पैसा वहां ले गए | नतीजा यह हुआ कि यहाँ बैंक ऑफ़ भोपाल का दिवाला निकल गया | इसमें भोपाल के हजारों नागरिकों का पैसा डूब गया | 

नबाब के इरादों के बारे में संदेह उत्पन्न होने पर मध्यभारत में भोपाल रियासत के संविलयन का आन्दोलन दिसंबर 1948 में अपने चरम पर पहुँच गया | नबाब ने भोपाल जिला कांग्रेस को अपने पक्ष में कर लिया | यह मालूम पड़ते ही मध्यभारत कांग्रेस ने जिला कांग्रेस कमेटी को भंग कर एक तदर्थ समिति घोषित कर दी | संविलयन आन्दोलन ने भीषण रूप ग्रहण कर लिया | रियासत में समत व्यापारियों ने हड़ताल कर दी और जनता सडकों पर उतर आई | 

नबाब हमीदुल्ला जहां पाकिस्तान के निर्माता मोहम्मद अली जिन्ना के गहरे दोस्त थी, वहीं पंडित जवाहरलाल नेहरू से भी उन्होंने घनिष्ठ सम्बन्ध बना लिए थे | बस में नहीं आये तो बस सरदार बल्लभ भाई पटेल | थकहार कर अंततः नबाब ने संविलयन संबंधी दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए | उस समय उनका सरदार पटेल को लिखा एक पत्र इस प्रकार था –

“मैं इस तथ्य को छुपाना नहीं चाहता कि कि जब संघर्ष चल रहा था, मैंने अपनी रियासत की स्वतंत्रता तथा निरपेक्षता को बनाए रखने के लिए भरपूर प्रयास किया | अब मैंने अपनी हार मान ली है | मुझे उम्मीद है कि आप यह अनुभव करेंगे कि मैं एक सच्चा मित्र साबित हो सकता हूँ, क्योंकि मैं कट्टर विरोधी रहा हूँ |”

1 जून 1949 को भोपाल रियासत को मुख्य आयुक्त प्रांत बनाकर भारत संघ में शामिल किया गया | सन 1952 का पहला आम चुनाव भोपाल राज्य के रूप में हुआ, जिसमें डॉ. शंकरदयाल शर्मा पहले मुख्य मंत्री बने | 1 नवम्बर 1956 को राज्यों के पुनर्गठन के बाद जब नया मध्यप्रदेश बना तब बात आई उसकी राजधानी की |

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री बने प.रविशंकर शुक्ल, राजनीति में चाणक्य माने जाने वाले पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र और कांग्रेस में उच्च सम्मान प्राप्त सेठ गोविन्ददास सभी जबलपुर को राजधानी बनाने के पक्ष में थे | केवल डॉ. शंकर दयाल शर्मा अपने साथियों के साथ भोपाल के पक्ष में तर्क दे रहे थे, किन्तु वे नक्कारखाने में तूती की आवाज जैसे मात्र थे | शुक्ल, मिश्र और सेठ की त्रयी का पंडित जवाहरलाल नेहरू पर प्रभाव भी बहुत अधिक था | स्वाभाविक रूप से नेहरू जी ने जबलपुर को मध्यप्रदेश की राजधानी बनाने की बात को तवज्जो दी | उस काल में नेहरू की इच्छा ही सर्वोपरि मानी जाती थी, अतः राज्य पुनर्गठन आयोग ने भी जबलपुर को ही राजधानी बनाने की अनुशंसा की |

नबाब भोपाल हमीदुल्ला खां की बेहद संदेहास्पद गतिविधियाँ को देखते हुए डॉ. शंकर दयाल शर्मा भोपाल को राजधानी बनाने हेतु सतत आवाज उठाते रहे | जिन्ना से नबाब के रिश्ते अत्यंत गहरे थे तो पाकिस्तान के प्रति उनका रुझान असंदिग्ध | इसलिए जब प. शंकर दयाल शर्मा जी ने हैदरावाद की तरह भोपाल को भी अत्यन्त संवेदनशील स्थान बताते हुए, इसे ही राजधानी बनाने की वकालत की, तो उनके इस तर्क को कोई नहीं काट सका | सर्वप्रथम दूरदर्शी पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र ने जबलपुर को राजधानी बनाने का आग्रह छोड़ा | उनके बाद पंडित रविशंकर शुक्ल ने भी मान लिया कि राजधानी के लिए भोपाल उपयुक्त है | सेठ गोविन्ददास थोड़े असंतुष्ट रहे, अतः जबलपुर को उच्च न्यायालय देने की बात तय हुई | देशभर के राज्यों में केवल भोपाल ही ऐसी राजधानी है, जिसमें उच्च न्यायालय नहीं है |

जब भोपाल राजधानी बना तब यह कस्बे से अधिक नहीं था | संकरी और भूल भुलैया जैसी गलियों में गंदगी का साम्राज्य था | लोग जर्दा खाते और दीवारों व मार्गों के साथ साथ अपने कपड़ों को भी गंदा कर लेते थे | डॉ. माजिद हुसैन द्वारा संपादित “भोपाल का इतिहास” के अनुसार 1930 ईसवी में भोपाल की आवादी लगभग 30 हजार थी, जिसमें 98 प्रतिशत आबादी मुसलमान थी | इसीलिए यहाँ पर्दाप्रथा भी सर्वव्यापी थी | हर त्यौहार या समारोह के अवसर पर हिजड़ों का नृत्य आकर्षण का केंद्र हुआ करता था | शायद इसीलिए भोपाल की पहचान के रूप में “गर्दा, जर्दा, पर्दा और नामर्दा” जैसी उक्तियाँ प्रचलित हो गई | 

मध्य प्रदेश की राजधानी बनने के बाद सन 1960 में भोपाल में सार्वजनिक क्षेत्र में भारी विद्युत् उपकरणों का निर्माण करने वाले भारत हैवी इलेक्ट्रिकल “भेल” का शुभारम्भ हुआ | हजारों कर्मचारी और उनके परिवार यहाँ आकर बसे | आज लगभग पौने तीन हजार एकड़ क्षेत्र में फैले भेल परिसर में देश के हर कोने से आये लगभग डेढ़ लाख लोग निवास करते हैं | भेल ने अनजाने में ही भारतीय समाज की एकात्मता को प्रगट किया है | इन हजारों कर्मचारियों और उंके परिवारों के आगमन से जहां बाजारों में रौनक बढ़ी तो साथ साथ आसपास के इलाकों में भी कई सहायक लघु उद्योग स्थापित हुए और उत्पादन संस्कृति ने जन्म लिया |


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