परावलंबन के स्थान पर परस्परावलंबन - पंडित दीनदयाल उपाध्याय



प्रत्येक मनुष्य की सामाजिक निर्भरता से इनकार नहीं किया जा सकता | व्यक्ति का जीवन समाज पर निर्भर है | हमारे यहाँ इस निर्भरता को परावलंबन के स्थान पर परस्परावलंबन कहा गया | सभी एक दूसरे पर अवलंबित हैं | इससे भी आगे बढ़कर हमारे यहाँ एक दूसरे के अनुकूल होने के विषय में सोचा गया | अनुकूलता और अवलंबन के अर्थ में बहुत बड़ा अंतर है | अवलंबन में दीनता है, निर्भरता है, किन्तु अनुकूलता में समादर है | जैसे पुत्र पिता पर अवलंबित है और कुछ अर्थों में पिता भी पुत्र पर अवलंबित है | यदि यही सोचकर व्यवहार हो तो एक दूरी बना रहना स्वाभाविक है | किन्तु यदि ऐसा सोचा गया कि पिता और पुत्र दोनों परस्परानुकूल हैं, तो एक का सुख दूसरे का भी सुख होगा | यह परस्परानुकूलता ही हमारे जीवन दर्शन की विशेषता है |

कथा है कि एक बार शरीर के विभिन्न अंगों में संघर्ष छिड़ गया | हाथ, पैर, नाक, कान, आँख, मुंह यहाँ तक कि दांत और जीभ भी अपना अपना महत्व बखान करने लगे | हर एक अपने को सर्वश्रेष्ठ बताकर बारी बारी शरीर से विदा होता गया | हाथों ने काम करना बंद किया, शरीर को कष्ट हुआ, किन्तु किसी प्रकार काम चल गया | हाथों को लगा कि शरीर तो उसके बिना भी काम चला ले गया, उन्होंने हार मान ली | इसी प्रकार बारी बारी से हर अंग ने अपनी शक्ति आजमा ली और फिर भी शरीर का काम न रुकता देखकर समझ गए कि उनके बिना शरीर चल सकता है, किन्तु शरीर से अलग उनकी स्वयं की कोई सत्ता नहीं | 

किन्तु इस झगड़े के कारण शरीर की जो फजीहत हुई उस कारण प्राण देवता कहने लगे कि लो इस बार मैं चला | प्राण ने चलने की तैयारी की तो सब अंग शिथिल पड़ने लगे | आँखों के आगे अन्धेरा छाने लगा, पैर लडखडाने लगे, हाथ कांपने लगे, सांस उखड़ने लगी | सब अंग प्राण से कहने लगे कि भाई तुम मत जाओ, तुम्हारे बिना तो हम एक क्षण नहीं रह सकते |

तात्पर्य यह कि शरीर के विभिन्न अंगों में सामंजस्य है इसलिए शरीर की सब आवश्यकताएं पूरी होती हैं | ये परस्पर पूरक ही नहीं बल्कि एक ही हैं | एक ही शरीर के अंग होने के कारण सब अलग अलग होते हुए भी एक हैं | उनकी एकात्मता का कारण है “प्राण” | ठीक इसी प्रकार समाज शरीर में भी एक प्राण होता है | वह है समाज की एकात्म भावना |

सहस्त्रशीर्षा पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्त्रपात |
स भूमि विश्वतो वृत्वाSत्यतिष्ठत दशान्गुलम ||
ब्राह्मणोंSस्य मुखमासीत बाहू राजन्यः कृतः |
ऊरूतदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत ||


हजारों मस्तक, हजारों बाहू, हजारों नेत्र, हजारों उदर, हजारों जाघें और हजारों पैरों वाला एक पुरुष पृथ्वी पर चारों और फैला हुआ है | ज्ञानी मनुष्य इसके मुख हैं | शूरवीर बाहू हैं, किसान तथा व्यापारी इसके उदर और जांघें है, कारीगर इसके पैर हैं | ज्ञानी, शूर, व्यापारी और शिल्पी मिलकर एक देह है | एक शरीर में जैसी एकात्मता होती है, वैसी एकात्मता इस जनता रूपी पुरुष में होनी चाहिए |

समाजवाद और प्रजातंत्र दोनों वर्ग संघर्ष में से पैदा हुए हैं | प्रजातंत्र ने राजा और प्रजा के संघर्ष को स्थाई मानकर राजा को समाप्त किया | किन्तु प्रजा के विभिन्न दलों में संघर्ष प्रजातंत्र की स्थाई मान्यता बन गई | समाजवाद ने सस्वत्व और निःस्वत्व के बीच के संघर्ष को आधार बनाया | वर्ग बदल गए पर संघर्ष समाप्त नहीं हुआ | इसका कारण पश्चिम की सभी विचारधाराओं के मूल में विद्यमान डार्विन का जीवन संघर्ष का सिद्धांत है | सृष्टि संघर्ष पर नहीं समन्वय और सहयोग पर टिकी है | अतः वर्ग विरोध और संघर्ष के स्थान पर परस्परावलंबन, पूरकता, अनुकूलता और सहयोग के आधार पर ही समग्र क्रिया कलापों का विवेचन और उनकी भावात्मक दिशा का निर्धारण होना चाहिए |

सिपाही को हथियार इसलिए दिया जाता है, ताकि वह उससे समाज की रक्षा करे | यदि वह अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता है तो उसे शस्त्र धारण करने का कोई अधिकार नहीं | चोर और डाकू के पास हथियार नहीं रहने दिए जा सकते | समाज अपने हित के लिए कुटुंब से लेकर राज्य तक तथा विवाह से लेकर संन्यास तक अनेक संस्थाओं का निर्माण करता है | अतः समाजवाद और प्रजातंत्र दोनों की सफलता गैर सरकारी तथा राजनीति निरपेक्ष आन्दोलनों तथा शिक्षा पर निर्भर है | लोक संस्कार का सर्वाधिक महत्व है | 

दयानंद, गांधी तथा हेडगेवार ने जिस प्रकार प्रेरणा पैदा की, उस ओर यदि देश का ध्यान गया तो समाज की धारणा शक्ति प्रबल होगी | इससे ही राष्ट्र की चिति प्रबल होकर उसका विराट प्रबल होगा | श्रेय और प्रेय दोनों को प्राप्त करने के लिए राष्ट्र को आदर्शवादी बनाना होगा | चिति से इस आदर्श की निश्चिति होगी | इसमें से ही वह विवेक और सामर्थ्य पैदा होंगे जिनसे हम विदेशी प्रभावों से मुक्त होकर, परावलम्बी व परमुखापेक्षी न रह कर, नये विश्व की रचना में अपना योगदान दे सकेंगे | यही हमारी नियति है | यही स्वतन्त्रता की साधना और सिद्धि होना चाहिए |

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