राष्ट्रीय सेवा संगम के अवसर पर अजीम प्रेमजी द्वारा दिया गया भाषण:



देवियो और सज्जनो, नमस्ते।

इस सभा में उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति यहाँ इसलिए है, क्योंकि वे मानते हैं कि एक बेहतर भारत के लिए हम सबको एक साथ मिलकर काम करना चाहिए । मेरा मानना है कि आपमें से अधिकाँश पहले से ही अपने क्षेत्र में कड़ी मेहनत के साथ इस विश्वास को वास्तविकता में बदलने की दिशा में काम कर रहे हैं, और आप में से कई महानुभावों ने इस कार्य के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है ।

इस अवसर पर बोलने के लिए आमंत्रित किया जाना मेरा सौभाग्य है और मुझे प्रसन्नता है कि मैं यहाँ ऐसे लोगों के बीच हूँ, जो न केवल बेहतर भारत का सपना देखते हैं, बल्कि उस सपने को वास्तविक बनाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर रहे हैं।

मेरा यहाँ आपके साथ होना कैसे संभव हुआ, मुझे लगता है कि मैं आपसे साझा करूं । मेरा सौभाग्य है कि श्री मोहन भागवत ने मुझे इस अवसर पर बोलने के लिए आमंत्रित कर मेरा मान बढ़ाया । हालांकि, कुछ लोगों को मेरा इस समारोह में भाग लेना शंकास्पद लगा । उनको लगा कि मेरा इस प्रकार इस मंच पर आकर भाषण देना संघ की विचारधारा की पुष्टि के रूप में देखा जाएगा ।

मैंने उनकी सलाह नहीं मानी क्योंकि:

पहली बात तो यह कि मैं कोई राजनीतिक व्यक्ति नहीं हूँ। किन्तु मैं अपने देश के बारे में गहरी रुचि रखता हूँ और चिंतित हूँ। इसलिए मुझे अपने देश के लिए योगदान कैसे किया जाये, इस विषय पर चर्चा करने हेतु एकत्रित लोगों के बीच बोलने में कोई समस्या नहीं है । इसके अतिरिक्त मेरा मानना है कि केवल मंच पर बोलने भर का यह मतलब नहीं होता कि आप कार्यक्रम में व्यक्त विचारों अथवा आयोजकों के विचारों पर पूरी तरह विश्वास करते हैं।

और दूसरी बात यह कि, मैं यहाँ उपस्थित आपमें से अधिकाँश को नहीं जानता, किन्तु मेरे कुछ सहयोगी आपमें से कुछ को जानते हैं, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि वे हमारे देश की वास्तविक बेहतरी के लिए आपमें से बहुतों के द्वारा किये जा रहे उत्कृष्ट कार्यों से परिचित हैं, और मैं आप के साथ बात करने के इस अवसर को गंवाना नहीं चाहता ।

और तीसरी सबसे महवपूर्ण बात यह कि मोहन जी से मुलाकात के बाद मुझे मालुम पडा कि भारत में आप जैसे अनेक लोग अपने कार्य के प्रति संपूर्ण प्रतिबद्धता के साथ देश के वास्तविक उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर रहे हैं । तब मैंने सोचा कि जो लोग बेहतर भारत के लिए कार्य कर रहे हैं, हरेक के साथ मिलकर काम कर सकते हैं | और अगर विचारों अथवा क्रियान्वयन में कोई मतभेद हैं भी तो उन्हें चर्चा और बातचीत के माध्यम से हल कर सकते हैं । मैं समर्पित लोगों की इस विशाल सभा में आज इसीलिए उपस्थित हुआ हूँ । जब मैं एक बेहतर भारत की बात करता हूँ, तब मैं हमारे संविधान में सोचे गए, न्यायसंगत, मानवीय और आत्मनिर्भर भारत को देखता हूँ । ऐसा भारत होना चाहिए जो न केवल आर्थिक रूप से सुदृढ़ हो, बल्कि जिसमें अपने सभी नागरिकों के लिए आश्रय, पोषण, बुनियादी स्वास्थ्य और शिक्षा की व्यवस्था हो, साथ साथ जो उदारता और करुणा पूर्वक सभी जीवधारियों और प्रकृति के साथ व्यवहार करता हो | यदि हम हमारे संविधान की कल्पना के अनुसार एक महान देश बनना चाहते हैं तो हमें एक साथ कई मोर्चों पर काम करने की जरूरत है। मैं इनमें से कुछ मुद्दों का उल्लेख करता हूँ ।

हमें अपनी प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार लाना होगा और हर स्तर पर भ्रष्टाचार से लड़ना होगा, ताकि हम अपने देश और दुनिया की बेहतरी के लिए अपनी ऊर्जा लगा सकें । हमें अपने देश में नागरिकों और विशेष रूप से हमारी महिलाओं, बच्चों और वंचित वर्गों के लिए सुरक्षा उपलब्ध करानी होगी । हमें घोर गरीबी में रहने वाले लोगों को आवास उपलब्ध कराने के साथ, हरेक को स्वास्थ्य और अच्छी शिक्षा तथा समुचित भोजन सुनिश्चित करना होगा ।

यदि हम एक बेहतर समाज रचना के अपने उद्देश्य को पूरा करना चाहते हैं तो इन सभी मोर्चों पर कार्य करना होगा, तभी हमारा राष्ट्र वैश्विक समाज का एक महत्वपूर्ण और सार्थक सदस्य बन सकेगा ।

मुझे लगता है कि सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से शिक्षा भी एक है जिस पर हमें चिंतन करना चाहए ।

जब मैंने पहली बार फाउंडेशन स्थापित करनेका सोचा, तब मैंने हमारे देश की कई समस्याओं का विचार किया, जिनके तत्काल निराकरण की आवश्यकता थी, इनमें आजीविका, स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण और कई अन्य शामिल थीं । बहुत विवेचना के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि शिक्षा हमारी प्राथमिकता होना चाहिए, क्योंकि मेरा मानना था कि अच्छी तरह से शिक्षित नागरिक सशक्त होकर अपनी आजीविका, स्वास्थ्य आदि अन्य समस्याओं का स्वयं समाधान कर सकते हैं | तबसे शिक्षा मेरी रूचि का क्षेत्र रहा, अतः इसपर अधिक बोलने को, आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगे ।

हमारी शिक्षा प्रणाली में सुधार की बहुत आवश्यकता है, न केवल अपने सभी बच्चों को विशेष रूप से वंचित समाज के बच्चों को स्कूल भेजना, बल्कि अधिक महत्वपूर्ण बात यह कि शिक्षा की गुणवत्ता में बृद्धि सुनिश्चित करना जरूरी है । हम जानते हैं कि शिक्षा किसी भी इंसान का सबसे मौलिक अधिकार है और देश के सशक्तीकरण के लिए भी आवश्यक है । दुर्भाग्य से इस बिंदु पर हमारी शिक्षा प्रणाली में उतना ध्यान नहीं दिया गया, जितना कि आवश्यक था । संक्षेप में अच्छी शिक्षा क्या है, इस पर अपना अभिमत व्यक्त करता हूँ । मेरे विचार में और जैसा कि कई राष्ट्रीय नीति विषयक दस्तावेज और पाठयक्रम के लक्ष्यों से परिलक्षित होता है, अच्छी शिक्षा वह है जो बच्चे की बृद्धि और विकास में योगदान दे, जिससे उसकी क्षमता का बहुआयामी विस्तार हो और वह हमारे देश और दुनिया का सक्रिय, जिम्मेदार, जागरुक और अच्छा नागरिक बन सके । बच्चे के विकास के ये आयाम केवल संज्ञानात्मक नहीं हैं, बल्कि इसमें प्रत्येक बच्चे का शारीरिक, सामाजिक, भावनात्मक और नैतिक विकास शामिल है। साथ ही यह एक समन्वित तरीके से होना चाहिए।

अच्छी शिक्षा का अर्थ केवल दोहराना और याद रखना नहीं है, और न ही अच्छी ग्रेड पाना है, इसका अभिप्राय गंभीर रूप से सोचने की क्षमता, सवाल करना और व्यक्ति की स्वायत्तता विकसित करना है। अच्छी शिक्षा वह जो अच्छा मनुष्य बनाए, जो जागरुक और नैतिक निर्णय लेने में सशक्त हो, जिससे जिम्मेदार और एक दूसरे के प्रति आत्मीयता रखने वाले नागरिकों का निर्माण हो । और सबसे महत्वपूर्ण बात, अच्छी शिक्षा हमारे संविधान की कल्पना को समग्रता से साकार करने वाली हो, जो देश के विकास के लिए आवश्यक है।

हमारे स्कूल और उच्च शिक्षा दोनों ही क्षेत्र में सुधार की जबरदस्त जरूरत है। हमने तय किया कि “अजीम प्रेमजी फाउंडेशन” के माध्यम से हम एकसूत्रीय स्कूली शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करेंगे और वह हम विगत 15 वर्षों से कर रहे हैं । हमारा ध्यान पूरी तरह से सरकारी स्कूली शिक्षा प्रणाली के गुणवत्ता सुधार में मदद करने पर है। हमने यह मार्ग इसलिए चुना, क्योंकि सरकारी स्कूली शिक्षा, या यूं कहा जाये कि सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली ही बिना किसी भेदभाव के वंचितों सहित समाज के सभी वर्गों के बच्चों और समाज के सभी क्षेत्रों में काम करने वालों के लिए प्रतिबद्ध है | यह सबसे वंचित वर्गों की सेवा करने हेतु प्रतिबद्ध है । वर्तमान में हमारा काम मुख्यतः उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और बिहार राज्यों में चल रहा है, जहाँ 350,000 से अधिक स्कूल है, हमारा पूरा ध्यान विशेष रूप से इन राज्यों के वंचित जिलों में, राज्यों की 'स्कूली शिक्षा प्रणाली में सुधार की मदद करने पर केंद्रित है।

क्षेत्र में दस वर्ष काम करने का अनुभव लेने के बाद हमने इस क्षेत्र में अच्छे शिक्षाविदों की बड़ी कमी को महसूस किया, अतः 2010 में हमने पेशेवरों को शिक्षित करने व शिक्षाविद निर्माण करने हेतु बिना किसी आर्थिक लाभ के काम करने वाली संस्था “अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय” की स्थापना करने का निर्णय लिया | यहाँ से प्रशिक्षित विशेषज्ञ शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र में काम करने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं ।

स्कूल शिक्षा के क्षेत्र में हमारे काम के आधार पर मैं हमारे पब्लिक स्कूल प्रणाली में सुधार के कुछ विन्दु आपके सम्मुख रख रहा हूँ :

पहला यह कि सरकार सहित हम सबको दृढ़ निश्चय के साथ सार्वजनिक शिक्षा के महत्व को समझकर उसकी गुणवत्ता को पुष्ट करने हेतु कार्य करना होगा, क्योंकि सार्वजनिक शिक्षा लोकतंत्र का आधार है। यह सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को जड़ से समाप्त करने में मदद करता है और एक समतावादी, सर्वसमावेशी समाज के निर्माण में मदद करता है। हम देखते हैं कि आर्थिक रूप से अत्याधिक उन्नत देश भी मजबूत सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली हेतु निवेश करते हैं, क्योंकि वे समाज और लोकतंत्र के लिए इसके महत्व को समझते हैं ।

हमारा उद्देश्य निजी स्कूलों की एक समानांतर प्रणाली बनाना नहीं होना चाहिए, उसके स्थान पर मौजूदा विशाल सार्वजनिक प्रणाली को सुधारने व उसे सक्षम करने का होना चाहिए, क्योंकि आज हमारे देश के लगभग हर गांव तक उसकी पहुँच है । उस प्रणाली को पुनर्जीवित करना आवश्यक है। 

हमारे पास कई उत्कृष्ट नीतियों और इरादे है, किन्तु जमीनी हकीकत यह है कि उनका ठीक प्रकार से क्रियान्वयन नहीं हो पाता, यह दूसरी समस्या है । हमें योजनाओं के निष्पादन और कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

तीसरा यह कि पूरी शिक्षा प्रणाली में सुधार तभी संभव है जब सभी हितधारक साथ मिलकर काम करें । अर्थात केवल राज्य शासन और शिक्षण संस्थाओं का प्रतिबद्ध होना पर्याप्त नहीं होगा, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि लेकिन हमारे लाखों शिक्षकों की भी इसमें सहभागिता आवश्यक है | शिक्षकों को भी इस बदलाव के लिए प्रेरित करना होगा ।

हमें शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका को समझ कर उन्हें परिवर्तन में भागीदार बनाना चाहिए। यह तभी संभव है, जब हम अपने शिक्षकों को महत्व दें, उन्हें पर्याप्त आवाज दें, उन्हें सशक्त बनायें और उनकी भूमिका के महत्व को स्वीकार करें । किसी भी अन्य कार्यक्षेत्र के समान ही हमारे मौजूदा शिक्षकों में से कुछ, बेहद सक्षम और प्रतिबद्ध हैं। हालांकि अधिकांश शिक्षक हमारे और आपके समान औसत इंसान हैं, जिन्हें सही प्रशिक्षण व पर्याप्त समर्थन की आवश्यकता है, इसके लिए सशक्त वातावरण, शिक्षा में सुधार करने के हमारे प्रयासों की रीढ़ की हड्डी बन सकता है ।

चौथा, बी एड, D.Ed. सहित अध्यापक शिक्षा प्रणाली में सुधार करना होगा, यदि हम अच्छे शिक्षकों का विकास करना चाहते हैं तो उसके कॉलेज महत्वपूर्ण है। दुर्भाग्य से हमारे 16000 बेतरतीब शिक्षक कॉलेजों में से अधिकाँश वाणिज्यिक संस्थान अधिक हैं, जिनका शिक्षा प्रणाली में सुधार से कोई लेना देना नहीं है। अमूमन इनका स्वामित्व प्रभावशाली लोगों के पास है और ये अक्सर परिवर्तन के प्रयास का विरोध करते हैं। तो, प्रणाली में सुधार एक कठिन चुनौती है, जिसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति, प्रतिबद्धता और साहस की आवश्यकता है । जब तक यह नहीं होगा हमारी स्कूल शिक्षा में लंबे समय तक सुधार संभव नहीं । 

पांचवां यह कि हमें मौजूदा शिक्षकों की क्षमता विकसित करने के लिए निरंतर और व्यवस्थित प्रयास करने चाहिए, उसके लिए सहकर्मीयों के साथ सीखने के अवसर और तंत्र प्रदान कर व्यापक जमीनी समर्थन देना होगा । उसके लिए हमारे क्लस्टर और ब्लॉक संसाधन केंद्र में सुधार के साथ साथ हमारे जिला संस्थानों में मौजूदा (डीआईईटी) के 600 बेढंगे शैक्षिक प्रशिक्षण केन्द्रों में सुधार आवश्यक है, तभी शिक्षकों की गुणवत्ता में सुधार कार्य अच्छी तरह से हो सकेगा |

छठा यह भी बहुत आवश्यक है कि हमारे स्कूल पूर्व भी बच्चों की चिंता की जाए जो कि उनकी स्वस्थ नींव के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि उचित पोषण और प्रारंभिक शिक्षा बच्चे के सर्वांगीण विकास को सुनिश्चित करती है | वर्तमान में हमारे पास 13 लाख आंगनवाड़ीयों का एक मजबूत नेटवर्क है, जिसमें निवेश कर और सुधार कर हम अपनी नींव मजबूत कर सकते हैं । 

अन्त में, यह सब करने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश को बढ़ाना होगा, जो कि वर्तमान में बुरी तरह अपर्याप्त है । स्कूली शिक्षा के लिए हमारा सार्वजनिक व्यय सकल घरेलू उत्पाद का केवल केवल 2.8% है, जबकि अन्य विकासशील देशों में यह 3.5% से अधिक है | जबकि विकसित देशों में तो अच्छी शिक्षा प्रणालियों पर सकल घरेलू उत्पाद का 5% से 6% व्यय किया जाता है | इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और प्राथमिकता की आवश्यकता है ।

मैंने जिन मुद्दों को उठाया है उनका वास्ता केवल शिक्षा से नहीं है, मेरी द्रष्टि में वे सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं | हम हमारी शिक्षा में मौलिक सुधार करना चाहते हैं, तो हमें गंभीरता से उपरोक्त चुनौतियों से निबटना होगा। हम वास्तव में इस विशाल एजेंडे को पूरा करना चाहते हैं तो हमें साथ मिलकर काम करना होगा, क्योंकि चुनौती बड़ी है और उसके लिए एक मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति व प्रतिबद्धता की आवश्यकता है – तन, मन, धन | 

प जैसे समर्पित कार्यकर्ता मिलकर इन मुद्दों पर सार्वजनिक बहस के माध्यम से जन जागृति ला सकते हैं और उसकी गूँज से निर्णायक व अपेक्षित परिणाम दृष्टिगोचर हो सकते हैं । मुझे लगता है कि हम पब्लिक स्कूल प्रणाली में सुधार करने के लिए गहराई से प्रतिबद्ध हैं । शिक्षा के क्षेत्र में हम सबको साथ मिलकर एक मजबूत, जीवंत, उच्च गुणवत्ता और समावेशी सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली को विकसित करने की दिशा में काम करने की जरूरत है ।

जब आज में आपके करीब आया हूँ तो चाहता हूँ कि आपको अपने कुछ विचार बताऊँ | मेरे लिए मूल्य बहुत महत्वपूर्ण हैं। मैंने सीखा है कि बड़े कार्यों के समान छोटे कार्य भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि छोटे कार्यों से ही पता लगता है कि हम क्या हैं | मेरा मानना है कि वफ़ादारी से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ नहीं है । 

एक - संगठन में ईमानदारी की संस्कृति का निर्माण, लोगों के साथ हमारे दैनिक व्यवहार और शब्दों में लगातार और सीधे तौर पर झलकती है | 
दो - हमारी सामाजिक प्रतिबद्धता और मानवता की कसौटी यह है कि हम अपने सबसे शक्तिहीन देशवासी के साथ कैसे व्यवहार करते हैं, अपने साथ के इंसान को कितना सम्मान देते हैं । इसी से हमारी सच्ची संस्कृति का पता चलता है। 
तीन - एक महान बहुलवादी राष्ट्र के रूप में हमें अपने मतभेदों को स्वीकार करना चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि हम उन्हें स्वीकार कर एक साथ काम करने के लिए एक मान्य धरातल खोजें नकारात्मक लोग केवल मतभेद पर ही ध्यान केंद्रित करते हैं । मतभेद और कलह पर अपनी ऊर्जा बर्बाद करने के स्थान पर, राष्ट्र को सशक्त बनाने के लिए यह अच्छा होगा कि हम सामान्य कारणों पर ध्यान केंद्रित करें । कल्पना कीजिए कि सभी 125 करोड़ भारतवासी साथ मिलकर काम कर रहे हैं और हमारी सबसे बड़ी चुनौती गरीबी, असमानता, अज्ञानता, बीमारी से लड़ रहे हैं – सोचिये कि कितना महान देश बन सकता है हमारा भारत ? 

मैं एक बार फिर से शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ कि मुझे ऐसे महान सामाजिक उद्देश्य के लिए इतना अच्छा काम कर रहे कई अच्छे लोगों को संबोधित करने का अवसर मिला, यह मेरे लिए गर्व और गौरव का विषय है । कोई भी देश तभी महान बनता है जब वहां का समाज जीवंत हो, जैसे कि आप लोग हैं । अब हमें अपने देश को जगाना है, मुझे आशा है कि हम सब एक साथ महान भारत के निर्माण की हमारे संविधान में वर्णित कल्पना को वास्तविकता बना सकेंगे ।

जय हिंद धन्यवाद

- 5 अप्रैल 2015 अजीम प्रेमजी, नई दिल्ली

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