हिमाचल स्थित विश्व का एकमात्र “अर्धनारीश्वर” काठगढ़ महादेव, जो गर्मियों में बट जाता है दो भागों में !

हिमाचल प्रदेश जिसे देवभूमि कहा जाता है ! हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के इंदौरा उपमंडल में दुनिया का एकमात्र ऐसा शिवलिंग स्थित है जो कि दो भागों में बंटा हुआ है ! इस शिवलिंग की कुछ अनोखी ही कहानी है ! इस मंदिर के साथ कई पौराणिक किवदंतियां जुड़ी हुई है !

मंदिर में स्थापित शिवलिंग स्वयंभू है ! इस शिव मंदिर में विशाल शिवलिंग दो भागों में बंटा हुआ है, जिसे मां पार्वती और भगवान शिव के रूपों में माना जाता है ! ये शिवलिंग मां पार्वती और भगवान शिव का प्रतिरूप माना जाता है ! गर्मियों के मौसम में ये शिवलिंग अलग होकर दो भागों में बंट जाता है जबकि सर्दियों के मौसम में पुन: एक रूप धारण कर लेता है ! इसी रहस्य के कारण यह मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है ! यह पावन शिवलिंग अष्टकोणीय है और काले व भूरे रंग का है ! शिव रूप में पूजे जाने वाले शिवलिंग की ऊंचाई 7 से 8 फुट है जबकि मां पार्वती को समर्पित शिवलिंग की ऊंचाई तकरीबन 5 फुट है !

काठगढ़ मंदिर के बारे में प्रचलित कथा

काठगढ़ मंदिर के महत्व के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं ! कहा जाता है कि व्यास नदी के किनारे स्थित इस मंदिर के बारे में शिव पुराण में भी व्याख्या मिलती है ! जब श्री ब्रह्मा और श्री विष्णु में किसी कारण युद्ध हुआ था तो उन्हें शांत करने के लिए भोले नाथ ने अग्नि तुल्य स्तंभ का रूप धारण किया था ! युद्ध के दौरान दोनों श्री ब्रह्मा और श्री विष्णु ने एक-दूसरे से श्रेष्ठ सिद्ध होने के लिए महेश्वर और पाशुपात अस्त्र का प्रयोग करने के लिए प्रयासरत थे ! इससे तीनों लोकों में नाश की आशंका होने लगी और भगवान शिव शंकर महाअग्नि तुल्य स्तंभ के रूप में श्री ब्रह्मा और श्री विष्णु के बीच में प्रकट हो गए और युद्ध शांत हो गया !

काठगढ़ महादेव के बारे में अन्य प्रचलित किवदंति 

काठगढ़ महाराजा दशरथ का भी पूजा स्थल रहा है ! कहा जाता है कि त्रेता युग में जब महाराज दशरथ का विवाह हुआ तो उनकी बारात पानी पीने के लिए यहां रुकी थी और यहां एक कुएं का निर्माण किया गया था ! जो कि आज भी यहां स्थापित हैं ! इसके पश्चात महाराजा दशरथ के पुत्र और भगवान् श्री राम के भाई भरत व शत्रुघ्न जब भी अपने ननिहाल कैकेय देश (वर्तमान कश्मीर) जाते थे तो व्यास नदी के पवित्र जल से स्नान करके राजपुरोहित व मंत्रियों सहित यहां स्थापित शिवलिंग की पूजा अर्चना कर आगे बढ़ते थे !

सिकंदर ने भी विश्व विजयी अपना अभियान यहीं आकर रोका था

एक अन्य किवदंती में कहा गया है कि सिकंदर ने भी विश्व विजयी अपना अभियान यहीं आकर रोका था !326 ई पूर्व जब सिकंदर विश्वविजेता बनकर अपने अंतिम शिविर के दौरान व्यास नदी के कारण यहां ठहरा था तो यहां स्थापित शिवलिंग की दैवीय शक्ति के कारण उसका विजयी अभियान अचानक रुक गया था ! भोले नाथ के इस अलौकिक स्वरूप को देखते हुए स्वयं सिकंदर ने यहां पूजा अर्चना भी की थी ! यहां तक कि यूनानी सभ्यता की पहचान छोड़ते हुए शिवलिंग के चारों ओर अष्टकोणिय चबूतरों का निर्माण करवाया था !


कहा जाता है कि इस मंदिर ने महाराजा रणजीत सिंह के कार्यकाल में सबसे ज्यादा प्रसिद्धि प्राप्त की थी ! क्योंकि इससे पहले यहां पर मंदिर का निर्माण नहीं था और भगवान भोले शंकर खुले आसमान के नीचे बिना छत के रह रहे थे ! जब इस बात का पता महाराजा रणजीत सिंह को चला तो उन्होंने यहां मंदिर का निर्माण करवाया और शिवलिंग की इस महिमा का गुणगान भी चारों ओर करवाया !

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