प्रधान मंत्री मोदी की ऐतिहासिक चीन - मंगोलिया यात्रा



भारत और चीन के कारोबारियों के बीच शनिवार को 22 अरब डॉलर मूल्य के 26 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां भारत-चीन बिजनस फॉरम की बैठक में चीनी कंपनियों से भारत में निवेश करने का आह्वान किया और दोनों देशों की कंपनियों के बीच ये समझौते हुए।
भारतीय उद्योग जगत के कुछ दिग्गज कारोबारियों के अलावा चीन के उद्योग जगत की भी कई नामचीन हस्तियां बैठक में मौजूद थीं, जिनमें हवाई, दोंगफांग इलेक्ट्रिक, हैरन, शंघाई अर्बन कंस्ट्रक्शन, बाओस्टील, अलीबाबा, ट्राइना, चिंट, सैक मोटर और शंघाई मीडिया के अध्यक्ष शामिल हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भारत दौरे को याद करते हुए कहा कि इससे दोनों देशों के बीच साझेदारी को एक नए सिरे से मजबूत करने का अवसर मिला, विशेष रूप से कारोबारी क्षेत्र में।
पीएम मोदी ने कहा, 'मुझे राष्ट्रपति शी और मेरे द्वारा बनाए जा रहे संबंधों से बहुत उम्मीद है। उन्होंने सितंबर 2014 में अपने दौरे के दौरान 20 अरब डॉलर के निवेश की प्रतिबद्धता जताई थी। हमने औद्योगिक पार्कों, रेलवे, कर्ज, लीजिंग सहित कुल 13 अरब डॉलर के 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे।'
बीजिंग में भारतीय दूतावास ने शनिवार को कहा कि ये समझौते नवीकरणीय ऊर्जा, बिजली, बुनियादी ढांचा, इस्पात, छोटे और मंझोले उद्यमों सहित विभिन्न क्षेत्रों में हुए हैं।
खास समझौतों में एक चीनी बंदरगाह के साथ सहयोगी रिश्ता और मुंद्रा बिजली परियोजना के लिए संभव वित्तीयन और उसी बंदरगाह शहर में एक विशेष क्षेत्र के लिए समझौते शामिल हैं। भारती समूह ने जो समझौते किए हैं, उनमें कंपनी के पोर्टफोलियो विस्तार के लिए और इसके पूरे संचालन (इस समय 20 देशों में फैले) में डेटा नेटवर्क वृद्धि में निवेश के लिए दो चीनी बैंकों से 2.5 अरब डॉलर तक की वित्तीय पूंजी प्राप्त करने के समझौते शामिल हैं।
शनिवार को हुए इन ऐतिहासिक समझौतों के बाद रविवार को हुए समझौतों के तहत भारत ने मंगोलिया को 1 बिलियन डॉलर (करीब 6300 करोड़ रुपए) की मदद का एलान किया। मंगोलिया में ट्रेन चलाने, साइबर सिक्युरिटी सेंटर बनाने में मदद की भी घोषणा की। इसके अलावा, सीमा और साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में मदद देने का भरोसा दिलाया। इसके तहत, दोनों देश संयुक्त युद्धाभ्यास भी करेंगे। पीएम मोदी ने कहा कि इन समझौतों से दोनों देशों के बीच सीमा और साइबर सिक्युरिटी के मामले में सहयोग बढ़ेगा। दोनों देशों के बीच कुल 14 समझौते हुए।
दोनों देशों के बीच हुए ये समझौते
1. इंडिया-मंगोलिया स्ट्रेटिजिक पार्टनरशिप के लिए ज्वाइंट स्टेटमेंट
2. हवाई सेवाओं के क्षेत्र में करार
3. पशु स्वास्थ्य और डेयरी के क्षेत्र में सहयोग
4. सजायाफ्ता लोगों के आपसी ट्रांसफर के लिए संधि
5. मेडिसीन और होम्योपैथी के क्षेत्र में सहयोग
6. सीमा सुरक्षा, पुलिसिंग और सर्विलांस के क्षेत्र में सहयोग
7. 2015 से 2018 के बीच सांस्कृतिक सहयोग बढ़ाने का करार
8. मंगोलिया में साइबर सिक्युरिटी ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना
9. भारतीय फॉरेन सर्विस इंस्टिट्यूट और मंगोलिया के डिप्लोमैटिक अकादमी के बीच करार
10. भारतीय और मंगोलियाई विदेश मंत्रालय के बीच सहयोग बढ़ाने पर करार
11. रिनुअल एनर्जी के क्षेत्र में सहयोग
12. दोनों देशों के नेशनल सिक्युरिटी काउंसिल के बीच सहयोग
13. मंगोलिया में इंडो-मंगोलिया फ्रेंडशिप सेकेंडरी स्कूल की स्थापना
14. भारत के टाटा मेमोरियल सेंटर और मंगोलिया के नेशनल कैंसर सेंटर के बीच करार

मंगोलिया के साथ ये द्विपक्षीय सम्बन्ध इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि चीन मंगोलिया के बड़े भू भाग पर उसी प्रकार अपना अधिकार जताता है, जैसे कि भारत के अरुणांचल पर | प्रस्तुत है दोनों देशों के संबंधों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि -

1279 में चंगेज खान के पोते कुबलाइ खान के नेतृत्व में मंगोलों ने चीन के अधिकांश भाग को जीतकर युआन राजवंश की स्थापना की। किन्तु 1368 में चीन के मिंग राजवंश ने मंगोलों को खदेड़कर चीन को स्वतंत्र किया | इतना ही नहीं तो 1388 में काराकोरम की मंगोल राजधानी को अपने अधीन कर लिया । 

मंगोलों की छापामारी से बचने के लिए मिंग राजवंश के दौरान ही ऐतिहासिक महान दीवार को मजबूत बनाया गया । 1644 में, मिंग राजवंश के बाद आये क्विंग राजवंश के दौरान मंगोलिया को चीनी साम्राज्य में शामिल किया गया । 

1911 में किंग राजवंश के पतन के बाद, चीन गणराज्य की स्थापना हुई और मंगोलिया ने चीनी शासन के 200 से अधिक वर्षों के बाद अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की। किन्तु तबसे ही दोनों देशों के बीच सीमा विवाद भी जारी है और बड़े भूभाग पर किसी का भी स्थाई नियंत्रण नहीं है। नतीजतन मंगोलिया ने अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए रूसी समर्थन प्राप्त किया । 1921 में चीनी सेनाओं को बैरन रोमन वॉन उन्गार्ण-स्टर्नबर्ग के नेतृत्व में रूसी सेना द्वारा बाहर खदेड़ दिया गया। और 1924 में, मंगोलियाई जनवादी गणराज्य घोषित किया गया। द्वितीय विश्व युद्ध के अंत के बाद, कुओमिन्तांग के नेतृत्व में चीन के गणराज्य, औपचारिक रूप से सोवियत दबाव में मंगोलियाई स्वतंत्रता को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया था। 1949 में जब चीन में साम्यवादी तंत्र स्थापित हुआ तब चीन की पीपुल्स रिपब्लिक ने 16 अक्टूबर 1949 को मंगोलिया के साथ राजनयिक संबंधों की स्थापना की | किन्तु 1962 में एक सीमा संधि पर हस्ताक्षर द्वारा मंगोलिया ने सोवियत बलों की तैनाती का आग्रह किया | स्वाभाविक ही यह चीन के साथ संबंधों में तनाव के कारण हुआ | 1984 तक यह तनाव बना रहा। | 1988 में दोनों देशों ने सीमा नियंत्रण की एक संधि पर हस्ताक्षर किए। किन्तु चीन आज भी मंगोलियाई क्षेत्र पर दावा करता रहता है जिसके चलते मंगोलिया लगातार चिंतित रहता है।
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