मध्ये प्रदेश के गुमनाम पर्यटक स्थल



पर्यटन के क्षेत्र में राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाले मध्यप्रदेश में अभी भी कई ऐसे स्थान हैं जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के पर्यटक स्थलों के रूप में विकसित हो सकते हैं ! यह बात उत्साहित करने वाली हैं कि वर्षों बाद प्रदेश में पर्यटन को लेकर ध्यान दिया जा रहा है, लेकिन दूसरी ओर प्रदेश के दर्जनों गुमनाम पर्यटक क्षेत्रों की स्थिति की चिंता करना भी अत्यंत आवश्यक है !

लोगों में अब भी अपने इतिहास के बारे में जानने के प्रति रुझान है ! जितने पर्यटक पचमढ़ी आते हैं,उतने ही पर्यटक मांडू और ओरछा को भी पसंद करते हैं ! ऐसे में प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए प्राचीन काल की इन बिखरी हुई कला, संस्कृति को पर्यटकों के सामने लाया जाना चाहिए !


मंडला जिले के ककैया गांव जहाँ खुले में घूमते हैं अजगर

मंडला जिले के ककैया गांव में प्राकृतिक माहौल के बीच में अजगर रहते हैं ! ये अजगर यहां पर खुले में विचरण करते रहते हैं ! कई साल पुराने पहाड़ों के कारण यहां पर इनके रहने की अनुकूल जगह मौजूद है ! जिससे यहां पर हजारों अजगर विचरण करते हुए नजर आ जाते हैं ! 

जिले के अंजनिया वन परिक्षेत्र अंतर्गत ककैया गांव से लगे जंगल के करीब दो एकड़ इलाके में चट्टान और गुफाओं में रह रहे यह अजगरों की बस्ती है, जिसे अजगर दादर नाम से इलाके में जाना जाता है ! यहां ठंड के दिनों में एक नहीं दो नहीं बल्कि अनेक अजगरों को धूप सेंकते देखा जा सकता है ! अजगर दादर यह नाम दिया है आसपास के लोगों ने, क्योंकि इस जंगल और मैदान में अजगरों का बसेरा है !

बताया जाता है कि 1926 में आई बाढ़ के बाद यह इलाका पूरी तरह पोला हो गया तो यह चूहों गिलहरी पक्षी के लिये बसेरा बन गया ! इसी पोले स्थान में अजगरों ने अपना बसेरा बना लिया ! यह इलाका अजगर दादर कहलाने लगा ! अपनी प्रकृति के चलते अजगरों को सूर्य के प्रकाश की जरूरत होती है ! परिणाम स्वरूप वे बाहर निकलते है और ग्रामीणों के आकर्षण का केंद्र बन जाते है ! नर,मादा और बच्चों का यह तालमेल केवल इन्ही दिनों दिखता है !

बडे शरीर वाला अजगर अपनी मस्तानी चाल से बेफिक्र चलकर धूप सेंकता है तो अन्य अजगर चट्टानों के बीच सुरक्षात्मक तरीके से आराम फरमाते हैं ! लेकिन इंसानों की बस्ती के पास अपनी प्राकृतिक बस्ती में हस्तक्षेप इन्हें परेशान करता है लेकिन ये बोल नहीं सकते !

स्वभाव से सीधा और सरल अजगर इंसानों को परेशान नहीं करता,वह जहरीला भी नहीं,इसकी मादा नर से बड़ी होती है ! मादा का स्वभाव यह कि अपने अंडों के पास वह उन तीन महीनों तक रहती है जब तक उसके बच्चे बड़े होकर आजाद जीवन जीने न लगे !

अपनी सरलता और सहजता के कारण यह अब इंसानों के खेल का शिकार बन रहा है,जिसे संरक्षण की जरूरत है ! कान्हा नेशनल पार्क से यह लगा हुआ है !

नरसिंहपुर के निकट चौरागढ़ का किला, रानी दुर्गावती के पुत्र वीरनारायण की वीरता का मूक साक्षी

नरसिंहपुर जिला अपनी विशेष प्राकृतिक स्थिति के कारण ध्यान आकर्षित करता है ! नरसिंहपुर शहर के निकट चौरागढ़ का किला स्थित है ! गोंड शासक संग्राम शाह ने इस किले को 15वीं शताब्दी में बनवाया था जो रानी दुर्गावती के पुत्र वीरनारायण की वीरता का मूक साक्षी है ! 

संग्राम शाह के उत्तराधिकारियों में दलपति शाह ने सात वर्ष शांति पूर्वक शासन किया ! उसके पश्चात उसकी वीरांगना रानी दुर्गावती ने राज्य संभाला और अदम्य साहस एवं वीरता पूर्वक 16 वर्ष (1540-1564) शासन किया ! सन् 1564 में अकबर के सिपहसलार आतफ खां से युद्ध करते हुये रानी ने वीरगति पाई ! 

नरसिंहपुर जिले में स्थित चौरागढ़ एक सुदृढ़ पहाड़ी किले के रूप में था जहां पहुंच कर आतफ खां ने राजकुमार वीरनारायण को घेर लिया और अंतत: कुटिल चालों से उसका बध कर दिया ! गढ़ा कटंगा राज्य पर 1564 में मुगलों का अधिकार हो गया गौंड़, मुगल, और इनके पश्चात यह क्षेत्र मराठों के शासन काल में प्रशासनिक और सैनिक अधिकारियों तथा अनुवांशिक सरदारों में बंटा हुआ रहा ! जिनके प्रभाव और शक्ति के अनुसार ईलाकों की सीमायें समय समय पर बदलती रहती थीं ! जिले के चांवरपाठा, बारहा, शाहपुर, सिंहपुर, श्रीनगर और तेन्दूखेड़ा इस समूचे काल में परगानों के मुख्यालय के रूप में प्रसिद्ध रहे !

यह किला गदनवारा रेलवे स्टेशन से लगभग 19 किमी. दूर है ! वर्तमान में प्रशासन की उपेक्षा के कारण किला क्षतिग्रस्त अवस्था में पहुंच गया है ! किले के निकट ही नोनिया में 6 विशाल प्रतिमाएं देखी जा सकती हैं ! इस क्षेत्र का संबंध रामायण और महाभारत काल की घटनाओं से रहा है ! पौराणिक संदर्भो के अनुसार ब्रम्हाण घाट वह स्थल है जहां सृष्टि के रचियता ब्रम्हा ने पवित्र नर्मदा के तट पर यज्ञ सम्पन्न किया था ! चांवरपाठा विकास खंड के बिल्थारी ग्राम का प्राचीन नाम बलि स्थली " कहा जाता है ! इसे राजा बलि का निवास स्थान माना जाता है !

महाभारत काल में बरमान घाट के सत्धारा पर पाण्डवों द्वारा नर्मदा की धारा को एक ही रात में बांधने के प्रयत्न का उल्लेख पुराणों में हुआ है ! सत्धारा के निकट भीम कुण्ड, अर्जुन कुण्ड आदि इसी को ईंगित करते हैं ! कहा जाता है कि पाण्डवों ने वनवास की कुछ अवधि यहां बिताई थी ! सांकल घाट की गुफा आदि गुरू शंकराचार्य के गुरूदेव के अध्ययन एवं साधना से जुड़ी है ! यहाँ पांडवों की महाभारत काल के समय में बनी हुई पाषाण प्रतिमा मौजूद है! इसके अलावा यहां के सूरजकुंड में बनी सालों पुरानी चट्टानों की आकृति सांप के आकार जैसी प्रतीत होती है ! लेकिन इनका संरक्षण तक नहीं किया जा रहा है !

नरसिंहपुर के अन्य दर्शनीय स्थल 

नरसिम्हा मंदिर 

नरसिंहपुर का यह प्राचीन मंदिर जबलपुर से लगभग 84 किमी. दूर है ! मंदिर को 18वीं शताब्दी में एक जाट सरदार ने बनवाया था ! मंदिर में विष्णु के अवतार भगवान नरसिंह की सपाट प्रतिमा स्थापित है !

ब्राह्मण घाट 

नर्मदा नदी के मणि सागर पर बना यह घाट नरसिंहपुर के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में है ! भगवान ब्रह्मा की यज्ञशाला, रानी दुर्गावती मंदिर, हाथी दरवाजा और वराह मूर्ति यहां के मुख्य आकर्षण हैं ! मकर संक्रांति और बसंत पंचमी के अवसर पर यह स्थान संगीत और रंगों से जीवंत हो उठता है ! इसे बरमान घाट भी कहते है !

झौतेश्वर आश्रम

यह आश्रम परमहंसी गंगा आश्रम के नाम से भी जाना जाता है ! नरसिंहपुर का यह लोकप्रिय आध्यात्मिक केन्द्र संत जगतगुरू शंकराचार्य ज्योतिष् और द्वारकाधीश पीठाधेश्‍वर सरस्वती महाराज से संबंधित है ! कहा जाता है कि उन्होंने काफी लंबे समय तक ध्यान लगाया था ! सुनहरा राजाराजेश्‍वरी त्रिपुर सुंदरी मंदिर यहां का मुख्य आकर्षण है !

झौतेश्वर मंदिर, लोधेश्‍वर मंदिर, हनुमान टेकरी और शिवलिंग यहां के अन्य पूज्यनीय स्थल हैं ! बसंत पंचमी के मौके पर यहां सात दिन तक समारोह आयोजित किया जाता है ! झौतेश्वर में लोग काफी संख्या में दर्शन करने आते है ! यहां पर राजराजेश्वरी देवी का मंदिर है ! जिसमें श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है ! इस यह पावन स्थल पर बहुत दूर दूर से लोग आते है ! यहां पर लोग यहां के सुरम्य वातावरण में भ्रमण करने एवं अपने धार्मिक कत्तर्तव्यों का निरवहण करने आते है !

डमरू घाटी

डमरू घाटी नरसिंहपुर का एक पवित्र स्थल है ! गदरवारा रेलवे स्टेशन से यह घाटी 3 किमी. की दूरी पर है ! घाटी की मुख्य विशेषता यहां के दो शिवलिंग है ! यहां बड़े शिवलिंग के भीतर एक छोटा शिवलिंग बना हुआ है !

बचई

इस प्राचीन नगर की खुदाई से अनेक ऐतिहासिक इमारतों का पता चला है ! इतिहास की किताबों और दूसरी शताब्दी की हस्तलिपियों में इस स्थान का उल्लेख मिलता है ! बचई के निकट ही बरहाटा एक अन्य ऐतिहासिक स्थल है !

बिलथारी

प्रारंभ में बालीस्थली के नाम से मशहूर यह नरसिंहपुर का एक छोटा-सा गांव है ! यह स्थान महाभारत से भी संबंधित माना जाता है ! कहा जाता है कि पांडवों ने अपने वनवास का कुछ समय यहां व्यतीत किया था !

छिंदवाड़ा में अमोनी समोनी का झरना

छिंदवाड़ा क्षेत्र में छिन्द (ताड़) के पेड़ बहुतायत मेँ हैँ, इसीलिये इसका नाम छिन्दवाड़ा पड़ा ! एक समय यहाँ शेरों की बहुतायत थी, इसलिए इसे पहले 'सिन्हवाडा' भी कहा जाता था ! जिले के झिरपा में स्थित अनहोनी गांव में अमोनी समोनी में गर्म पानी का प्राकृतिक झरना है ! गंधक के कारण यहां पर कई सालों से पानी एक कुंड में उबल रहा है ! मान्यता है कि इसमें कच्चे चावल डालने पर वह भी पक जाते हैं ! वही चर्म रोग से पीड़ित लोगों को यहां पर राहत मिलती है !

छिंदवाड़ा ज़िले में स्थित पातालकोट

छिंदवाड़ा ज़िले में स्थित पातालकोट क्षेत्र प्राकृतिक संरचना का एक अजूबा है ! सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों की गोद में बसा यह क्षेत्र भूमि से एक हज़ार से 1700 फुट तक गहराई में बसा हुआ है ! इस क्षेत्र में 40 से ज़्यादा मार्ग लोगों की पहुंच से दुर्लभ हैं और वर्षा के मौसम में यह क्षेत्र दुनिया से कट जाता है !

पातालकोट में भारिया जनजाति सदियों से बसी हुई है, लेकिन आज़ादी के छह दशक बाद भी यह क्षेत्र विकास की मुख्यधारा से बुरी तरह कटा हुआ है ! पातालकोट 89 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है ! यहां कुल 12 गांव और 27 छोटी-छोटी बस्तियां हैं, लेकिन आज़ादी के 40 वर्ष बाद 1985 में इस क्षेत्र के सबसे बड़े गांव गैलडुब्बा को पक्की सड़क से जोड़ा गया ! अभी 12 गांव और 27 बस्तियां सड़क सुविधा से अछूती हैं ! भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ था, लेकिन पातालकोट में 50 साल बाद 1997 में पहली बार स्वतंत्रता दिवस के दिन स्कूल में तिरंगा झंडा फहराया गया !