सुकरात की अंतिम यात्रा |


सुकरात जब बोल चुके, तब क्रीटो ने कहा, सुकरात आपको अपने बच्चों, अपनी पत्नी अथवा हमें कोई निर्देश देना हो तो कृपया बताएं, हम आपकी क्या सेवा कर सकते हैं ?

सुकरात ने जबाब दिया - क्रीटो आज हमने जो चर्चा की है, अथवा पूर्व में भी जिन बातों का मैं हमेशा जिक्र करता रहा हूँ, आप उस मार्ग पर चलें यही मेरी सबसे बड़ी सेवा होगी |

क्रीटो ने कहा – हम यथासाध्य प्रयास करेंगे | पर यह तो बताईये कि हम आपको किस प्रकार समाधि दें ?

सुकरात ने मुस्कुराते हुए सब लोगों की तरफ देखा और कहा – मित्रो, लगता है मैं क्रीटो को यह नहीं समझा सका कि जो सुकरात इस समय आपके साथ बात कर रहा है, विषपान के बाद वह आपके साथ नहीं होगा | मैंने आपको विस्तार से समझाया कि वह तो दिव्य सुख में विलीन हो जाएगा | आपको यह कहना चाहिए कि आप सुकरात को नहीं उसके शरीर को दफना रहे हैं |

प्रिय क्रीटो, शब्दों का गलत तरीके से इस्तेमाल करना न केवल एक दोष है, बल्कि इससे आत्मा में एक बुराई पैदा होती है | मेरी मृत्यु पर अधिक उत्तेजित न हों | जब मेरे शरीर को जलते या दफनाते हुए देखें, तब यह न सोचें कि मैं भयानक कष्ट भोग रहा हूँ | आप खुश रहें – अंतिम संस्कार आप चाहे जैसे करें, क्या फर्क पड़ता है ?

इन शब्दों के साथ वह स्नान करने गए | स्नान के पश्चात उनके बच्चे उनके पास लाये गए | दो बच्चे बहुत छोटे थे, एक बड़ा था | उनके परिवार की स्त्रियाँ भी आईं, उन्होंने कुछ देर उनसे बातचीत की, फिर उन्हें वापस भेज दिया | 

तब जल्लाद उनके पास आकर बोला – सुकरात, अब तक जितने लोग यहाँ आये हैं, आप उन सबमें आप बहुत भव्य, श्रेष्ठ और शिष्ट हैं | अन्य लोगों को जब विषपान के लिए विवश किया जाता था, तो वे मुझे गालियाँ देते थे, जबकि आप मुझ पर रंच मात्र भी क्रोधित नहीं हैं | यह कह कर वह रोता हुआ, एक तरफ चला गया | 

सुकरात ने उसकी तरफ देखकर कहा – विदा | आप जो कुछ कहेंगे, उसका मैं पालन करूंगा | यदि विष तैयार है तो उसे जल्द लाया जाए | इस कार्य में विलम्ब करना तो ओछापन होगा | ऐसा लगेगा कि मैं लोभी बनकर जीवन के कुछ पल बचाने की कोशिश कर रहा हूँ | 

जल्लाद विष का प्याला ले आया और सुकरात को थमाकर बोला कि इसे पीकर आपको कुछ समय टहलना है | जब आपको अपने पैर भारी लगें तब आप शान्ति से लेट जाएँ | विष अपना काम स्वयं कर लेगा |

सुकरात ने खुशी खुशी वह प्याला ले लिया | न तो उनके हाथ काँपे, न माथे पर सिकन आई, न चहरे का रंग बदला | सुकरात बोले – मैं देवताओं से प्रार्थना करता हूँ कि मेरी यात्रा शुभ हो |इन शब्दों के साथ उन्होंने प्याला मुंह से लगा लिया और उस विष को शान्ति के साथ पी लिया |

वहां उपस्थित अधिकाँश लोग अपने पर नियंत्रण न रख पाए | फ़ीडो के आंसू बहने लगे | क्रीटो जारजार रोते हुए बाहर चले गए | अपोलोड़ोरस चिल्लाचिल्लाकर दहाड़ मारकर रोने लगे | पर सुकरात शांत बने रहे | असल में ये लोग सुकरात के लिए नहीं रो रहे थे, अपने दुर्भाग्य पर रो रहे थे, जिसके कारण उन्होंने अपना सुकरात जैसा मार्गदर्शक और मित्र खो दिया था |

सुकरात बोले – आप लोग यह क्या कर रहे हैं ? कहा जाता है कि मनुष्य को शान्ति से मरना चाहिए | इसलिए आप लोग शांत रहें और अपने को जब्त करें |

सब लोगों ने लज्जित होकर रोना बंद कर दिया | सुकरात तब तक टहलते रहे, जब तक कि उनके पैर भारी नहीं हो गए | फिर चित्त होकर शान्ति से सो गए | 

जल्लाद ने उनके पैरों को दबाकर पूछा कि क्या उनको कुछ अनुभूति हो रही है ? उन्होंने उत्तर दिया – नहीं | वह क्रमशः ऊपर के हिस्से को दबाकर सबको बताता रहा कि शरीर किस प्रकार ठंडा और कडा होता जा रहा है | सुकरात ने स्वयं भी शरीर को टटोलकर उसे अनुभव किया | उनका मुंह कपडे से ढक दिया गया | जब उनका कमर तक का भाग अनुभूतिशून्य हो गया तब उन्होंने अपना मुंह खोला और क्रीटो से कहा – मैं एस्क्लेपियस का ऋणी हूँ, उसे याद से एक मुर्गा दे देना | 

सुकरात ने अपना मुंह पुनः ढक लिया | थोड़ी देर बाद एक स्पंदन हुआ | जल्लाद ने मुंह पर से कपड़ा हटाया | सुकरात की आखें स्थिर हो चुकी थीं | तब क्रीटो ने उनका मुंह तथा उनकी ऑंखें बंद कर दीं | एक ज्ञानी, न्यायी और श्रेष्ठ व्यक्ति का इस प्रकार अंत हुआ |

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