एक छोटे से शेड में बैलून बनाने से लेकर पद्मश्री पाने तक की विचित्र यात्रा |


28 नवंबर, 1922 को मद्रास के एक सीरियन क्रिश्चियन परिवार में मापिल्लई का जन्म हुआ था। आठ भाईयों और एक बहनों के बीच वे सबसे छोटे थे। आरंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से अपनी आगे की पढाई पूरी की ।

वर्ष 1946 में चौबीस बर्षीय युवा केएम मेनन मापिल्लई ने तत्कालीन मद्रास (वर्तमान चेन्नई) के तेरूवोट्टीपुर नामक जगह में एक साधारण सा शेड किराए पर लेकर उसमें बच्चों के खिलौने और बैलून बनाने छोटा सा काम शुरू किया। उस समय तक आज के समान यंत्रों का विकास भी नहीं हुआ था। बस, एक छोटी सी यूनिट लगाकर वे अपना उत्पाद तैयार करते थे और फिर अपने बनाए बैलून लेकर स्वयं ही उन्हें बाजार में बेचने निकल पड़ते । कौन भरोसा करेगा कि उस समय की वही छोटी सी यूनिट आज पूरी दुनिया में अपनी सफलता के झंडे गाड रही है । 

मद्रास मेन्यूफेक्चरिंग कंपनी के नाम से मद्रास के चांबू शेट्टी स्ट्रीट पर पहला कार्यालय 1949 में खुला। बैलून बनाने के छोटे से काम को लेकर शुरू हुए इस कारोबार में पहली बर्तबा 1952 में मशीन लगी। इसके बाद तो अपनी गुणवत्ता के चलते मद्रास रबर फेक्ट्री कंपनी का (एमआरएफ) ट्रेड 1956 आते-आते रबर मार्केट का जाना माना नाम हो गया और भारतीय बाजार में इसकी हिस्सेदारी 50 प्रतिशत तक जा पहुंची। वर्ष 1960 में यह प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के रूप में निबंधित हुई और फिर, इसी साल इसने टायर उत्पादन के क्षेत्र में कदम रखा और अमेरिकी कंपनी मैंसफिल्ड के साथ इसके व्यापारिक करार हुए।

मापिल्लई 1973 में कंपनी के सीएमडी बने ओर इसी साल से भारतीय बाजार में नायलोन टायर पेश किए। उदारीकरण के दौर में कंपनी को कई तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ा। आखिर गुडईयर, ब्रिजस्टोन और मिशेलिन जैसी कई मल्टीनेशनल कंपनियों की चुनौती का सामना करना कोई छोटी बात तो नहीं थी । उसी दौर में कम्पनी ने भारतीय क्रिकेट में तेज गेंदबाज लाने के लिए एमआरएफ पेस फाउंडेशन की स्थापना की। 1989 में इस कंपनी का करार अमेरिका की हसब्रो इंटरनेशनल के साथ हुआ जो दुनियां की सबसे बड़ी कंपनी थी। फिर, फंसकूल इंडिया को लांच किया। इसी वर्ष कंपनी ने आस्ट्रेलिया की पॉलीयुरेथीन पेंट बनाने वाली कंपनी बेपोटक्यूर से भी अनुबंध किया। उद्योग जगत में योगदान के लिए भारत सरकार ने 1992 में उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया | उस वक्त दक्षिण भारत से यह सम्मान पाने वाले पहले उद्यमी थे।

आज यह कम्पनी दुनियां के 65 देशों में टायर निर्यात करती है, जिसमें कई अमेरिकी, यूरोपियन, जापान और मध्य एशिया के देश शामिल हैं । इस कंपनी के भारत के अतिरिक्त ऑस्ट्रेलिया, वियतनाम और दुबई में भी कार्यालय हैं । वर्ष 2003 में मापिल्लई का देहांत हो गया लेकिन उनके द्वारा किए गए काम आज कई उद्यमियों के लिए प्रेरणा स्रोत है।

विवादों का साया -  अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में मापिल्लई की ख्याति पर बट्टा भी लगा | LGT बेंक के उन 18 खाताधारियों में मापिल्लई भी शामिल थे जिन पर आपराधिक मुक़दमा चला | 

निष्कर्ष - अथक परिश्रम व पूर्व जन्म के पूण्यफल से ख्याति तो मिल सकती है, लेकिन अगर 99 के फेर में फंसे तो फिर इस मार्ग में फिसलन भी कम नहीं है |



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