भारत की नदियाँ जो उगलती हैं सोना !

नदियां सदियों से ही जीवनदायिनी रही हैं ! नदियां मानव को पीने के लिए पानी देने के साथ-साथ एक स्वच्छ वातावारण उपलब्ध करवाने में भी अपनी भूमिका निभाती हैं ! लेकिन भारत की एक नदी पानी के साथ-साथ सोना उगलती है ! ये सच है ! झारखंड भारत का एक ऐसा राज्य है जहां प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है ! यहां के अधिकतर लोगों का जीवनयापन इन्हीं संसाधनों के द्वारा हो रहा है ! झारखंड की एक नदी जिसका नाम स्वर्णरेखा है उसमें रेत के साथ-साथ कई सालों से सोने के कण मिलते आ रहे हैं, कोई नहीं जानता कि ये कहां से इस नदी में आ रहे हैं ! इस नदी की सहायक नदी करकरी में से भी रेत के साथ सोना निकलता है ! लेकिन, हालात ये कि दिनभर सोना छानने वालों के हाथ इतने पैसे भी नहीं आते कि परिवार पाल सकें ! यह स्थिति है रांची से करीब 100 किलोमीटर दूर स्थित तमाड़ और सारंडा क्षेत्र की !

स्वर्णरेखा नदी राची शहर से 16 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम से निकलती है ! 474 किलोमीटर लंबी नदी सीधे बंगाल की खाडी में जाकर गिरती है ! स्वर्णरेखा नदी की एक प्रमुख विशेषता यह है कि उदगम से लेकर सागर में मिलन तक यह किसी की सहायक नदी नहीं बनती है ! यह सीधे बंगाल की खाड़ी में गिरती है ! झारखंड के सिंहभूम जिले में बहती हुई स्वर्णरेखा उत्तर पश्चिम से बंगाल के मिदनापुर जिले में प्रवेश करती है ! इस जिले के पश्चिम भाग के जंगलों में बहती हुई ओडिशा के बालेश्वर जिले में पहुंचती है जहां यह बंगाल की खाड़ी में गिरती है ! इसकी प्रमुख सहायक नदियां कांची एवं करकरी हैं ! भारत का प्रसिद्ध एवं पहला लोहा-इस्पात का कारखाना टाटानगर इस नदी किनारे स्थापित हुआ !

पठारी भाग की चट्टानों वाले प्रदेश से प्रवाहित होने के कारण स्वर्णरेखा और इसकी सहायक नदियां घाटियों तथा जल प्रपात का निर्माण करती हैं ! राढू (रांची) इसकी सहायक नदी है, जो होरहाप से निकल कर सिल्ली से दक्षिण तोरांग रेलवे स्टेशन से दक्षिण-पश्चिम में मिलती है ! स्वर्णरेखा नदी मार्ग में जोन्हा के पास एक जल प्रपात का निर्माण करती है, जो कि 150 फीट की ऊंचा है ! इसे गौतम धारा के नाम से जाना जाता है ! यहां गौतमधारा नामक रेलवे स्टेशन भी है ! इसकी एक सहायक नदी कांची भी है, जो राढू के संगम स्थल से दक्षिण में मिलती है ! यह भी तैमारा से दक्षिण में दशम जल प्रपात का निर्माण करती है, जो 144 फीट ऊंचा है !

स्वर्णरेखा जैसा कि नाम से ही संकेत मिलता है कि इसमें सोना है ! नदी की सुनहरी रेत में सोने की थोड़ी थोड़ी मात्रा पाई जाती है ! मात्रा अधिक न होने के कारण इसका व्यवसायिक उपयोग नहीं हो पाता ! नदी मिलने वाले इस धन के कारण क्षेत्र के आदिवासी नदी को नंदा भी कहते हैं !
नदी से आदिवासी सोने के कण एकत्र करते हैं जिसे वहां के स्थानीय व्यापारी औने पौने दामों में खरीद लेते हैं ! कोई सरकारी एजेंसी यह मालूम नहीं कर सकी कि इस नदी के रेत में पानी के साथ मिलकर बहने वाले सोने के कण कहां से निकलते हैं ! 

वहीं नदी में बालू की तलहटी से सोने के कण निकालकर हजारों आदिवासी अपना जीविकोपार्जन करने में लगे हैं ! कई परिवार पीढियों नदी से सोने के कण निकालने के काम में लगे हैं ! हालांकि मामूली सोना निकालने के कारण उनके आर्थिक हालात में कोई सुधार नहीं हुआ है ! यहां के स्थानीय लोगों का कहना है कि इस काम को वो पीढ़ी-दर-पीढ़ी करते चले आ रहे हैं ! कई बार लोग बहुत देरी तक नदी के पानी से सोना निकालने की कोशिश करते रहते हैं लेकिन हाथ कुछ नहीं लगता और दूसरी तरफ़ कई बार बहुत जल्दी ही सोने के कण ले कर वो घर को रवाना हो जाते हैं ! नदी से सोना छानने के लिए बेहद धैर्य और मेहनत चाहिए !

आदिवासी सोने कणों को छानने के लिए मछलियां पकडने के काम आने वाली बेंत की लकड़ी की बनी टोकरी का इस्तेमाल करते हैं ! इसकी पेंदी में कपड़ा लगा होता है ! विशेष प्रक्रिया द्वारा मिट्टी से सोने के बारीक कण अलग किए जाते हैं ! दिनभर मेहनत के बाद मामूली सा सोना ढूंढ पाते हैं !

आदिवासी नदी से निकाले गए सोने को पूर्वी सिंहभूमि जिले के हल्दीपोखर के बाजार में बेच देते हैं ! हल्दीपोखर के बाजार में सोने की खरीद फरोख्त मिट्टी के मोल की जाती है ! इस व्यापार से यहां के सुनार करोड़पति हो गए पर आदिवासी वैसे ही हैं !

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