1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका अदा करने वाला एक गुमनाम गाँव “सीकरी खुर्द”



1857 के स्वतन्त्रता संग्राम में एक अत्यन्त सक्रिय भूमिका का निर्वाहन करने वाला गाँव है “सीकरी खुर्द” ! याग गुमनाम गाँव मेरठ से 13 मील की दूरी पर मोदीनगर से लगा हुआ गाँव है !

जब 10 मई 1857 को देशी सैनिक ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सरकार के विरूद्ध संघर्ष की शुरूआत कर दिल्ली कूच कर गये थे, तब मेरठ के क्रान्तिकारी सैनिक मौहिउद्दीनपुर होते हुए बेगमाबाद (जुसे वर्तमान में मोदीनगर नाम से जाना जाता है) पहुंचे तो सीकरी खुर्द के नागरिकों के द्वारा इनका जबरदस्त उत्साह के साथ स्वागत-सत्कार किया गया ! इस गाँव के लगभग 750 नौजवान मेरठ के क्रांतिकारियों की टोली में शामिल हो गये और दिल्ली रवाना हो गये ! अगले ही दिन इस जत्थे की दिल्ली के तत्कालीन खूनी दरवाजे पर अंग्रेजी फौज से मुठभेड़ हो गई जिसमें अनेक नौजवान क्रान्तिकारी शहीद हो गए !

1857 के इस स्वतन्त्रता समर के प्रति अपने उत्साह और समर्पण के कारण सीकरी खुर्द क्रान्तिकारियों का एक महत्वपूर्ण ठिकाना बन गया ! गाँव के बीचोबीच स्थित एक किलेनुमा मिट्टी की दो मंजिला हवेली को क्रान्तिकारियों ने तहसील का स्वरूप प्रदान किया ! यह हवेली सिब्बा गुर्जर की थी जो सम्भवतः क्रान्तिकारियों का नेता था ! आसपास के अनेक गाँवों के क्रान्तिकारी सीकरी खुर्द में इकट्ठा होने लगे ! मेरठ के कुछ क्रान्तिकारी सैनिक भी इनके साथ थे ! इस कारण यह दो मंजिला हवेली क्रान्तिकारी गतिविधियों का केन्द्र बन गयी !

उस समय सीकरी के मुकद्दम सिब्बा थे, जो गाँव से भू-राजस्व एकत्र कर मेरठ पहुंचाया करते थे ! 1857 में यहाँ के ग्रामीणों ने जमींदार लालकुर्ती मेरठ को लगान देने से इन्कार कर दिया और क्रांतिकारियों की सहायता करने लगे !

भू-राजस्व भेजने के लिए जमींदार ने सीकरी खबर भेजी लेकिन मुकद्दम सिब्बा व अन्य ग्रामीणों ने कोई जवाब नहीं दिया ! परिणामस्वरूप जमींदार लालकुर्ती ने स्वयं जाकर ग्रामीणों से बातचीत करनी चाही ! उन्होंने अपने आदमी को भेजकर मुकद्दम सिब्बा के पास खबर भेजी कि वह उनसे मिलने आ रहे है ! वह आदमी यह समाचार लेकर सीकरी पहुँचा और मुकद्दम सिब्बा को जमींदार के आने का समाचार सुनाया ! यह सुनकर सिब्बा ने उनसे कहा कि 'उस ब्रितानियों के पिट्ठु साले सूअर से कह देना कि वह यहाँ न आये ! 

तत्कालीन अशान्त वातावरण को देखते हुए जमींदार ने अपने क्रोध पर काबू रखा तथा दूसरे दिन सीकरी पहुँच गए ! सीकरी पहुँचने के पश्चात् जमींदार ने सिब्बा को अपनी तरफ मिलाना चाहा ! उन्होने उसे ब्रितानियों के पक्ष में करने के लिए और क्रांतिकारियों का साथ न देने के लिए कहा ! परन्तु सिब्बा नहीं माने ! तब उन्होने उसे लालच देते हुए कहा कि- 'मुकद्दम जितने इलाके की ओर तुम उँगली उठाओंगे मैं वो तुम्हें दे दूँगा तथा जो जमींन तुम्हारे पास है उसका लगान भी माफ कर दिया जायेगा !' लेकिन सिब्बा ने जमींदार की बात नहीं मानी ! अन्त में क्रोधित होकर जमींदार ने सिब्बा सहित गाँव के सभी ग्रामीणों को भूमि से बेदखल कर दिया ! सिब्बा के पास उस समय 1400 बीघा भूमि थी, जिसमें 500 बीघा भूमि सीकरी में तथा बाकी 900 बीघा भूमि दूसरे स्थान पर थी !

सीकरी के क्रान्तिकारियों ने अंग्रेज परस्त ग्राम काजिमपुर पर हमला बोल 7 गद्दारों को मौत के घाट उतार दिया ! अंग्रेज परस्तों को सबक सिखाने का सिलसिला यहीं समाप्त नहीं हुआ ! सीकरी खुर्द में स्थित इन क्रान्तिकारियों ने बेगमाबाद (वर्तमान मोदीनगर) और आसपास के अंग्रेज समर्थक गद्दारों पर बड़े हमले की योजना बनाई ! बेगमाबाद कस्बा सीकरी खुर्द से मात्र दो मील दूर था ! वहाँ अंग्रेजों की एक पुलिस चौकी थी, जिस कारण सीकरी खुर्द में बना क्रान्तिकारियों का ठिकाना सुरक्षित नहीं था ! इस बीच बेगमाबाद के अंग्रेज परस्तों ने गाजियबाद और दिल्ली के बीच हिण्डन नदी के पुल को तोड़ने का प्रयास किया ! वास्तव में वो दिल्ली की क्रान्तिकारी सरकार और पश्चिम उत्तर प्रदेश में उसके नुमाईन्दे बुलन्दशहर के बागी नवाब वलिदाद खान के बीच के सम्पर्क माध्यम, इस पुल को समाप्त करना चाहते थे ! जिससे कि वलिदाद खान को सहायताहीन कर हराया जा सके !

इस घटना ने सीकरी खुर्द में स्थित क्रान्तिकारियों की क्रोधाग्नि में घी का काम किया और उन्होंने 8 जुलाई सन् 1857 को बेगमाबाद पर हमला कर दिया ! सबसे पहले बेगमाबाद में स्थित पुलिस चौकी को नेस्तनाबूत कर अंग्रेज परस्त पुलिस को मार भगाया ! इस हमले की सूचना प्राप्त होते ही आसपास के क्षेत्र में स्थित अंग्रेज समर्थक काफी बड़ी संख्या में बेगमाबाद में एकत्रित हो गये ! प्रतिक्रिया स्वरूप सीकरी खुर्द, नंगला, दौसा, डीलना, चुडि़याला और अन्य गाँवों के क्रान्तिकारी इनसे भी बड़ी संख्या में इकट्ठा हो गए ! आमने सामने की इस लड़ाई में क्रान्तिकारियों ने सैकड़ों गद्दारों को मार डाला, चन्द गद्दार बड़ी मुश्किल से जान बचाकर भाग सके ! क्रान्तिकारियों ने इन अंग्रेज परस्तों का धनमाल जब्त कर कस्बे को आग लगा दी !

बेगमाबाद की इस घटना की खबर जैसे ही मेरठ स्थित अंग्रेज अधिकारियों को मिली, तो उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गयी ! अंग्रेजी खाकी रिसाले ने रात को दो बजे ही घटना स्थल के लिए कूच कर दिया ! मेरठ का कलेक्टर डनलप स्वयं रिसाले की कमान संभाले हुए था, उसके अतिरिक्त मेजर विलियम, कैप्टन डीवायली एवं कैप्टन तिरहट रिसाले के साथ थे ! खाकी रिसाला अत्याधुनिक हथियारों - मस्कटों, कारबाईनों और तोपों से लैस था ! भौर में जब रिसाला बेगमाबाद पहुँचा तो बूंदा-बांदी होने लगी, जो पूरे दिन चलती रही ! बाजार में आग अभी भी सुलग रही थी, अंग्रेजी पुलिस चैकी और डाक बंगला वीरान पड़े थे ! उनकी दीवारें आग से काली पड़ चुकी थी और फर्श जगह-जगह से खुदा पड़ा था ! कस्बे से भागे हुए कुछ लोग यहाँ-वहाँ भटक रहे थे !

अपने समर्थकों की ऐसी दुर्गति देख अंग्रेज अधिकारी अवाक रह गये ! यहाँ एक पल भी बिना रूके, खाकी रिसाले को ले, सीधे सीकरी खुर्द पहुँच गये और चुपचाप पूरे गाँव का घेरा डाल दिया ! अंग्रेजों के अचानक आने की खबर से क्रान्तिकारी हैरान रह गये परन्तु शीघ्र ही तलवार और भाले लेकर गाँव की सीमा पर इकट्ठा हो गये ! भारतीयों ने अंग्रेजों को ललकार कर उन पर हमला बोल दिया ! खाकी रिसाले ने कारबाईनों से गोलियाँ बरसा दी, जिस पर क्रान्तिकारियों ने पीछे हटकर आड़ में मोर्चा सम्भाल लिया ! क्रान्तिकारियों के पास एक पुरानी तोप थी जो बारिश के कारण समय पर दगा दे गयी, वही अंग्रेजी तोपखाने ने कहर बरपा दिया और अंग्रेज क्रान्तिकारियों की प्रथम रक्षा पंक्ति को भेदने में में कामयाब हो गये ! गाँव की सीमा पर ही 30 क्रान्तिकारी शहीद हो गये !

अन्ततः क्रान्तिकारियों ने सीकरी खुर्द के बीचोबीच स्थित किलेनुमा दो मंजिला हवेली में मोर्चा लगा लिया ! क्रान्तिकारियों ने यहाँ अपने शौर्य का ऐसा प्रदर्शन किया कि अंग्रेजों को भी उनके साहस और बलिदान का लोहा मानना पड़ा ! कैप्टल डीवयली के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना की टुकड़ी ने हवेली के मुख्य दरवाजे को तोप से उड़ाने का प्रयास किया ! क्रान्तिकारियों के जवाबी हमले में कैप्टन डीवायली की गर्दन में गोली लग गयी और वह बुरी तरह जख्मी हो गया ! इस बीच कैप्टन तिरहट के नेतृत्व वाली सैनिक टुकड़ी हवेली की दीवार से चढ़कर छत पर पहुँचने में कामयाब हो गयी ! हवेली की छत पर पहुँच कर इस अंग्रेज टुकड़ी में नीचे आंगन में मोर्चा ले रहे क्रान्तिकारियों पर गोलियों की बरसात कर दी ! तब तक हवेली का मुख्य द्वारा भी टूट गया, भारतीय क्रान्तिकारी बीच में फंस कर रह गये ! हवेली के प्रांगण में 70 क्रान्तिकारी लड़ते-लड़ते शहीद हो गये !

इनके अतिरिक्त गाँव के घरों और गलियों में अंग्रेजों से लड़ते हुए 70 लोग और शहीद हो गये ! अंग्रेजों ने अशक्त बू़ढ़ों और औरतों को भी नहीं छोड़ा ! कहते हैं कि सीकरी खुर्द स्थित महामाया देवी के मंदिर के निकट एक तहखाने में गाँव के अनेक वृद्ध एवं बच्चे छिपे हुए थे तथा गाँव के पास एक खेत में सूखी पुराल व लकडि़यों में गाँव की महिलाएँ छिपी हुई थीं ! जब खाकी रिसाला सीकरी खुर्द से वापिस जाने ही वाला था कि तभी किसी गद्दार ने यह बात अंग्रेज अफसरों को बता दी ! अंग्रेजों ने तहखाने से निकाल कर 30 व्यक्तियों को गोली मार दी और बाकी लोगों को मन्दिर के पास खड़े वट वृक्ष पर फांसी पर लटका दिया ! गाँव की स्त्रियों ने अपने सतीत्व को बचाने के लिए खेत के पुराल में आग लगा कर जौहर कर लिया ! आज भी इस खेत को सतियों का खेत कहते हैं !

मेरठ के तत्कालीन कमिश्नर एफ0 विलियमस् की शासन को भेजी रिपोर्ट के अनुसार गुर्जर बाहुल्य गाँव सीकरी खुर्द का संघर्ष पूरे पाँच घंटे चला और इसमें 170 क्रान्तिकारी शहीद हुए ! ग्राम में स्थित महामाया देवी का मन्दिर, वहाँ खड़ा वट वृक्ष और सतियों का खेत आज भी सीकरी के शहीदों की कथा की गवाही दे रहे हैं, परन्तु इस शहीदी गाथा को कहने वाला कोई सरकारी या गैर-सरकारी स्मारक वहाँ नहीं हैं !

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें