विचार यात्रा - जनसंघ से भाजपा - आशुतोष शर्मा


स्वतंत्रता के बाद जो पहला मंत्रीमंडल बना वह सर्वदलीय था | अर्थात उसमें केवल कांग्रेस ही नहीं तो सभी राजनैतिक दलों के प्रतिनिधि सम्मिलित थे | डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी उस समय हिन्दू महासभा के प्रतिनिधि के रूप सम्मिलित हुए | किन्तु नेहरू लियाकत समझौते के विरोध में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा 8 अप्रैल 1950 को केन्द्रीय उद्योग और आपूर्ति मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया गया | उस समय उन्होंने अपने स्तीफे के कारण बताते हुए संसद में ऐतिहासिक भाषण दिया | उन्होंने दो टूक कहा कि –

मैं जब केन्द्रीय मंत्रिमंडल में अन्य लोगों के साथ शामिल हुआ, तब मैंने पूर्वी बंगाल के हिन्दुओं को आश्वासन दिया था कि यदि वे भविष्य में पाकिस्तान की सरकार के हाथों प्रताड़ित होते हैं, यदि वे नागरिकता के प्राथमिक अधिकार से बंचित होते हैं, अगर उनके जीवन और सम्मान पर हमला होता है और वह संकट में पड़ता है, तो स्वतंत्र भारत मूक दर्शक नहीं रहेगा और उनकी न्याय पूर्ण मांगों पर भारत सरकार तथा देश की जनता निर्भयता पूर्वक समुचित कार्यवाही करेगी | किन्तु पिछले ढाई वर्षों के दौरान उनके कष्टों की पराकाष्ठा हुई है | आज मुझे यह स्वीकारने में कोई हिचक नहीं है कि मेरे भरपूर प्रयासों के बाबजूद मैं अपनी प्रतिज्ञा का निर्वाह नहीं कर पाया |

मंत्रिमंडल से त्यागपत्र के बाद 5 मई 1951 को डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में कलकत्ता में पीपुल्स पार्टी की स्थापना हुई | बाद में संघ के तत्कालीन सरसंघचालक प.पू. गुरूजी से भेंट के बाद 27 मई 1951 को जालंधर में प्रादेशिक स्तर पर भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई | 8 सितम्बर 1951 को विविध प्रान्तों के कार्यकर्ताओं की दिल्ली बैठक में अखिल भारतीय दल की स्थापना पर विचार हुआ | 20 से 22 अक्टूबर तक दिल्ली के राघोमल हायर सेकेंडरी स्कूल के प्रांगण में अखिल भारतीय सम्मेलन आयोजित किया गया | इसी सम्मेलन में 21 अक्टूबर को भारतीय जनसंघ की स्थापना की अधिकृत घोषणा की गई | जनसंघ का प्रथम अखिल भारतीय अधिवेशन दिसंबर 1952 में कानपुर में हुआ तथा जनसंघ के अखिल भारतीय महामंत्री के रूप में दीनदयाल जी के नाम की घोषणा की गई |

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जहां गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की कुशलता वा सूझबूझ के कारण ५२६ देसी रियासतों का भारतीय गणतंत्र में निर्विघ्न विलय हो गया, बही प्रधान मंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू की अदूरदर्शिता वा हठधर्मिता के चलते १९५१ में जम्मू कश्मीर रियासत का प्रथक संविधान बना ! अलग झंडा बनाया गया ! इतना ही नही तो हिन्दुओं को वलात बहां से खदेड़ने का कुचक्र चलने लगा ! इसके विरोध में ६ मार्च १९५३ को कश्मीर में प्रजा परिषद् के अध्यक्ष प.प्रेमनाथ डोंगरा के नेतृत्व में एक जन आन्दोलन प्रारम्भ हुआ ! 

भारतीय जनसंघ ने इस आन्दोलन को अपना सक्रिय समर्थन दिया | पूरे देश से सत्याग्रही जत्थे रवाना हुए ! स्थान स्थान पर इन जत्थों को रोककर कार्यकर्ताओं को देश के विभिन्न भागों की जेलों में रखा गया | उदाहरण के रूप में शिवपुरी के कार्यकर्ता दिल्ली की तिहाड़ जेल, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा स्थित योल केम्प जेल, बरेली जेल में रखे गये | इस दौरान सत्याग्रहियों को पुलिसिया बर्बरता का भी सामना करना पड़ा! इनके साथ बेरहमी से मारपीट की गई ! इतना ही नहीं तो शिवपुरी के भगवान लाल गुरू के हाथ को गर्म लोहे की छड से दागा भी गया ! भोजन हेतु दिए जाने बाले आटे में इन लोगों की आँखों के सामने संतरी गण रेत मिलाया करते थे ! आपत्ति करने पर इन्हें माफी मांग कर छूटने की सलाह दी जाती ! सत्याग्रहियों को दो माह से लेकर ६ माह तक जेल यातना सहना पडी ! 

इस रोमांचकारी संघर्ष में सुन्दरवनी के तीन तथा ज्योडिया के सात सत्याग्रही बलिदान हुए | इनके अतिरिक्त छम्ब के मेलाराम, हीरानगर के भीखमसिंह और बिहारीलाल, रामवन के शिवाराम, देवीशरण तथा भगवानदास भी हुतात्मा हुए | ये सभी 16 वीर सरकार की गोलियों के शिकार हुए | हम सभी जानते हैं कि शेख अब्दुल्ला की जेल में ही दिनांक 23 जून 1953 को संदिग्ध परिस्थितियों में डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी का बलिदान हुआ |

१९४७ में अंग्रेजों से तो भारत मुक्त हुआ किन्तु ८ साल बाद भी देश का एक भूभाग पुर्तगालियों के कब्जे में था ! १५ अगस्त १९५५ को गोआ मुक्ति आंदोलन प्रारम्भ हुआ ! जनसंघ ने व्यापक आंदोलन महा सत्याग्रह की घोषणा की ! गोवा की सीमा में प्रवेश हेतु मात्र ८ फुट चौड़ा रास्ता था ! सामने बंदूकें लिए हुए पुर्तगाली सैनिक ! भारतीय सीमा में सत्याग्रहियों की डेढ़ किमी लंबी लाईन ! हजारों कार्यकर्ता दिल में राष्ट्रभक्ति का जज्बा लिए हुए सन्नद्ध ! सामने से गोलियाँ चलनी शुरू हुईं तो आयोजकों ने सबको जमीन पर् लेटकर और सर नीचेकर आगे बढ़ने को कहा ! उज्जैन से आये राजाभाऊ महाकाल को यह गवारा नहीं हुआ ! वे बोले “मैं सर नीचे कर के नहीं चल सकता” ! उन्होंने सर उठाया और सामने से आई गोली उनके सर में जा समाई ! इस आंदोलन के भी ६ साल बाद १९६१ में गोवा मुक्त हो पाया !

1967 में प.दीनदयाल उपाध्याय जनसंघ के अखिल भारतीय अध्यक्ष बने और उन्होंने जनसंघ को वैचारिक परिपक्वता का आधार दिया | 

जीवन शैली –

संघ कार्य की प्रारम्भिक अवस्था में किसी नए स्थान पर कार्य प्रारम्भ करना कितना कठिन और दुष्कर होता था, उसकी आज कल्पना भी नहीं की जा सकती | गोलागोकर्णनाथ में लम्बे समय तक भड्भून्जे की दूकान से चने खरीदकर उन्ही पर जीवन यापन करने वाले दीनदयाल जी, मुहम्मदी में एक दूकान की पटरी पर रात बिताने वाले, दो पैसे बचाने के लिए भारी वर्षा में स्टेशन से गाँव तक तांगे के स्थान पर पैदल जाने वाले, आजीवन अपने कपडे स्वयं धोने वाले, पुराने कपड़ों की सिलाई कर काम चलाने वाले दीनदयाल जी ने सार्वजनिक धन का उपयोग एक न्यासी के समान करने और मितव्ययता का आदर्श उदाहरण अपने आचरण से प्रस्तुत किया |

वैचारिक अधिष्ठान –

डॉ. श्याम बहादुर वर्मा ने एक बार उनसे पूछा - “दीनदयाल जी, क्या आपको ऐसा लगता है कि सत्ता मिलने के बाद कांग्रेस जिस प्रकार भ्रष्ट हो गई, उसी प्रकार भारतीय जनसंघ सत्ता मिलने के बाद भ्रष्ट नहीं होगा ? पंडित जी ने उत्तर दिया था – “सत्ता सामान्यतः भ्रष्ट करती है | इस सम्बन्ध में पूरी सतर्कता बरतने के बाद भी जनसंघ में यदि भ्रष्टाचार आ जाता है तो हम उसे विसर्जित कर दूसरे जनसंघ का निर्माण करेंगे और उससे भी काम न बना तो तीसरे जनसंघ का निर्माण करेंगे | और यही क्रम चलता रहेगा | भगवान परशुराम ने 21 बार राजाओं का संहार किया था | आदर्श राजा के रूप में अंत में रामचंद्र सामने आये | राम राज्य की स्थापना के बाद ही परशुराम ने वन की ओर प्रस्थान किया | हम भी अपने द्वारा निर्मित संस्थाओं के बारे में मोह क्यों रखें ? अपने ही हाथों से निर्मित संस्था भी यदि राष्ट्रहित के विरोध में कार्य करेगी तो ऐसी स्वनिर्मित संस्था का विनाश करना धर्म ही होता है | राष्ट्र सर्वश्रेष्ठ है, संस्था नहीं |

सहिष्णुता के समान ही जयिष्णुता का सिद्धांत भी आवश्यक है | बिना जयिष्णुता की भावना के कोई समाज न तो जीवित रह सकता और न ही विकास कर सकता है | कोई भी व्यक्ति अथवा समाज केवल श्वासोच्छ्वास के लिए जीवित नहीं रहता, अपितु किसी आदर्श के लिए ज़िंदा रहता है तथा आवश्यकता पड़ने पर उस आदर्श की रक्षा के लिए अपने जीवन की परिसमाप्ति भी कर देता है |विजय के लिए सीमोल्लंघन आवश्यक है | किन्तु आज हमने स्वयं को सीमाओं में बांध रखा है | स्वार्थ और अज्ञान के संकुचित दायरे में हमने कूपमंडूक के समान अपने जीवन को सीमित कर लिया है | हमें अपनी सीमाएं तोड़नी होंगी | जो इन सीमाओं के बाहर नहीं जा सकता, वह विजय भी प्राप्त नहीं कर सकता |

कौरव पक्ष में सबको केवल अपनी अपनी चिंता थी | भीष्म को अपनी प्रतिज्ञा की चिंता थी, द्रोणाचार्य पुत्रमोह ग्रस्त थे, दुर्योधन को केवल मात्र अपने राज्य की चिंता थी | जबकि पांडव पक्ष में सबने अपने व्यक्तिवादी द्रष्टिकोण को छोड़कर भगवान कृष्ण के नेतृत्व में एकजुट होकर कार्य किया | समष्टि का विचार कर कार्य करने का ढंग ही धर्म और व्यक्तिवादी आधार पर सोचना अधर्म यह सीधी परिभाषा | जैसे किसी की ह्त्या करना पाप है, किन्तु युद्ध में लड़ने वाले सैनिक को कोई हत्यारा नहीं कहता | इसी प्रकार वोट देते समय यदि राष्ट्र का विचार किया तो धर्म होगा, किन्तु यदि व्यक्तिगत लाभहानि से प्रेरित होकर मतदान किया तो अधर्म हो जाएगा |

एक बार शरीर के विभिन्न अंगों में संघर्ष छिड़ गया | हाथ, पैर, नाक, कान, आँख, मुंह यहाँ तक कि दांत और जीभ भी अपना अपना महत्व बखान करने लगे | हर एक अपने को सर्वश्रेष्ठ बताकर बारी बारी शरीर से विदा होता गया | हाथों ने काम करना बंद किया, शरीर को कष्ट हुआ, किन्तु किसी प्रकार काम चल गया | हाथों को लगा कि शरीर तो उसके बिना भी काम चला ले गया, उन्होंने हार मान ली | इसी प्रकार बारी बारी से हर अंग ने अपनी शक्ति आजमा ली और फिर भी शरीर का काम ण रुकता देखकर समझ गए कि उनके बिना शरीर चल सकता है, किन्तु शरीर से अलग उनकी स्वयं की कोई सत्ता नहीं | किन्तु इस झगड़े के कारण शरीर की जो फजीहत हुई उस कारण प्राण देवता कहने लगे कि लो इस बार मैं चला | प्राण ने चलने की तैयारी की तो सब अंग शिथिल पड़ने लगे | आँखों के आगे अन्धेरा छाने लगा, पैर लडखडाने लगे, हाथ कांपने लगे, सांस उखड़ने लगी | सब अंग प्राण से कहने लगे कि भाई तुम मत जाओ, तुम्हारे बिना तो हम एक क्षण नहीं रह सकते |

तात्पर्य यह कि शरीर के विभिन्न अंगों में सामंजस्य है इसलिए शरीर की सब आवश्यकताएं पूरी होती हैं | ये परस्पर पूरक ही नहीं बल्कि एक ही हैं | एक ही शरीर के अंग होने के कारण सब अलग अलग होते हुए भी एक हैं | उनकी एकात्मता का कारण है “प्राण” | ठीक इसी प्रकार समाज शरीर में भी एक प्राण होता है | वह है समाज की एकात्म भावना | इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि संगठन हमारा प्राण है | भाजपा हमारा प्राण है | संगठन से ही हम हैं | समाज से ही हम हैं, राष्ट्र से ही हम हैं |

एक बार पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन ने कहा था कि –

मेरे विचार में मनुष्य को घर शब्द का ठीक से अर्थबोध हो जाए, तभी उसे मातृभूमि के साथ संबंधों के सच्चे महत्व का आकलन होता है | ‘घर’ कल्पना के अनेक अंगउपांग हैं | बालक की द्रष्टि से माँ की प्रेममई गोद ही ‘घर’ होती है | जैसे जैसे वह बड़ा होता है, माता पिता की झोंपड़ी या प्रसाद जो भी हो, उसकी द्रष्टि में घर का प्रतीक बन जाता है | धीरे धीरे उसमें बोध का विकास होता है, जिसके साथ सम्पूर्ण गली या बस्ती या नगर को उसके मन में घर का आशय प्राप्त होता है | तब उस समुचे परिवेश के वृक्ष, वनस्पति, पक्षी, पहचान के मुखड़े, पालतू प्राणी आदि जो भी आसपास हैं वे उसकी विलोभनीय गृह कल्पना की शोभा बन जाते हैं | इस प्रकार उच्च बोध व ज्ञान के क्षेत्र में जब वह प्रवेश करता है तो कितनी ही बातों का समावेश उसकी घर संबंधी द्रष्टि में हो जाता है | उसमें घर की विविध दीवारें और देहलियां होती हैं | नाना प्रकार के ध्येय और स्वप्न मानो मूर्त रूप धारण कर लेते हैं | धार्मिक कथाएं, रूपक कथाएं, कला एवं साहित्य, इतिहास एवं संस्मरणीय घटनाओं की मालिका आदि अन्य भी बहुतेरी बातों की आकर्षक साजसज्जा उसमें अंतर्भूत हो जाती हैं | संक्षेप में अनेक अन्गोपांगों से वह वास्तु विकास करता ही जाता है और समूचे राष्ट्र को अपनी बाहों में भर लेता है | उसे ऐसा लगने लगता है कि राष्ट्र के सारे निवासी अपने घर के ही आप्तजन हैं | सत्य और न्याय पर आधारित राष्ट्र के राजनैतिक ध्येय, उसके अनमोल सांस्कृतिक धन एवं परम्परा, इतिहास के आनंददाई एवं सुनहरे क्षण, सब ‘घर’ की दर्शनीय रचना के अविभाज्य भाग बन जाते हैं | प्रारंभ में केवल माँ की गोद में सीमित घर, अंत में केवल घर के चारों ओर के भौगोलोक परिवेश को ही नहीं, अपितु राष्ट्रीय जीवन के विशाल पट को भी अपने अन्दर समाने योग्य विशाल बन जाता है | मनुष्य के घर की परिधि कितनी विशाल बन जाती है |

इसी में अंतर्राष्ट्रीय या मानवीय तथा वैश्विक, दो आयाम और जोड़ दें तो पंडित जी को अभिप्रेत मानसिक विकास का स्वरुप ध्यान में आ जाएगा | यही है एकात्म मानव वाद | सम्पूर्ण सृष्टि से एकात्मता ही एकात्म मानववाद है, जो पंडित दीनदयाल जी ने हमें प्रदान किया और यही विचार पहले जनसंघ और अब भाजपा का प्राण तत्व है |

11 फरवरी 1968 को बज्राघात हुआ जब सारे देश ने उनकी ह्त्या का समाचार सुना |

१९७४ में श्री जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ छात्रों का नव निर्माण आन्दोलन गुजरात वा उसके बाद बिहार से होता हुआ पूरे देश में फ़ैल गया ! भ्रष्टाचार, कोटा परमिट राज, लाल फीताशाही के विरुद्ध पूरा देश उठ खड़ा हुआ ! उसी दौरान इलाहावाद उच्च न्यायालय ने अपने आदेश से श्रीमती इंदिरा गांधी का चुनाव अवैध घोषित कर दिया ! अपनी कुर्सी खतरे में देखकर श्रीमती गांधी ने २५ जून १९७५ को अर्ध रात्री में देश पर आपातकाल थोप दिया ! विरोधी दलों के नेता ही नही वल्कि कांग्रेस में भी श्रीमती गांधी से मतभेद रखने बाले मोरार जी देसाई, चन्द्र शेखर, मोहन धारिया, राम धन, कृष्ण कान्त जैसे नेता भी मीसा के अंतर्गत जेलों में ठूंस दिए गए ! देश भर में लाखों देशभक्त राष्ट्र वादी नेता इंदिरा जी की कुर्सी परस्ती की खातिर जेल में पहुँच गए !

किन्तु संघ स्वयं सेवकों ने हिम्मत नहीं हारी ! और १४ नवम्बर १९७५ से देश व्यापी सत्याग्रह की योजना बनी ! आजादी के पूर्व के आन्दोलनों में कुल मिलाकर जितने लोग जेलों में गए थे, उससे कई गुना अधिक लोग इस आपातकाल के दौरान जेलों में बंद हुए |

उस सत्याग्रह के बाद ही विश्व जनमत के दबाब में 1977 में इंदिराजी को चुनाव करवाने को विवश होना पड़ा | जेल जीवन ने सभी विपक्षी राजनैतिक दलों को एक कर दिया था | सभी राजनैतिक दलों ने मिलकर जनता पार्टी बनाई और इंदिरा जी को पराजय का मुंह देखना पड़ा | वयोबृद्ध गांधीवादी नेता मोरारजी देसाई पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने | लेकिन 1977 में बनी यह जनता पार्टी 1980 में ही बिखर गई | जनता पार्टी में शामिल शेष दल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शक्ति से भयभीत रहने लगे | उन्होंने दोहरी सदस्यता का मसला उठा दिया और जनसंघ के सदस्यों से कहा कि वे स्पष्ट रूप से संघ से सम्बन्ध विच्छेद की घोषणा करें | स्वाभाविक ही जनसंघ में कार्य कर रहे संघ स्वयंसेवकों को यह गवारा नहीं हुआ | 

परिणामतः १९८० में जनता पार्टी विघटित हो गई और पूर्व जनसंघ के पदचिह्नों को पुनर्संयोजित करते हुये भारतीय जनता पार्टी का निर्माण किया गया। भारतीय जनता पार्टी की स्थापना 6 अप्रैल 1980 को हुई और पार्टी का पहला सत्र बंबई में सम्पन्न हुआ जिसकी अध्यक्षता की श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने । यह सम्मेलन काफी सफल रहा। इस सम्मेलन को संबोधित करते हुए वयोवृध्द नेता श्री मोहम्मद करीम छागला ने कहा ''मैं पार्टी का सदस्य नहीं हूँ और न ही पार्टी का कोई प्रतिनिधि हूँ, लेकिन मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि जब मैं आपके समक्ष आपसे बात कर रहा हूँ तब मैं अपने आपको आप सबसे अलग नहीं महसूस कर रहा। इमानदारी और निष्ठा से आपके बीच का ही व्यक्ति हूँ, जो यह कहना चाहता है कि बी.जे.पी. आपकी अपनी पार्टी है जो राष्ट्रीय स्तर की तो है ही, लेकिन जिसकी निष्ठा और अनुशासन ऊंचे दर्जे का है। 

यद्यपि शुरुआत में पार्टी असफल रही और १९८४ के आम चुनावों में केवल दो लोकसभा सीटें जीतने में सफल रही। इसके बाद राम जन्मभूमि आंदोलन ने पार्टी को ताकत दी। कुछ राज्यों में चुनाव जीतते हुये और राष्ट्रीय चुनावों में अच्छा प्रदर्शन करते हुये १९९६ में पार्टी भारतीय संसद में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी। इसे सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया जो १३ दिन चली।

१९९८ में आम चुनावों के बाद भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का निर्माण हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनी जो एक वर्ष तक चली। इसके बाद आम-चुनावों में राजग को पुनः पूर्ण बहुमत मिला और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार ने अपना कार्यकाल पूर्ण किया। इस प्रकार पूर्ण कार्यकाल करने वाली पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी। २००४ के आम चुनाव में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा और अगले १० वर्षों तक भाजपा ने संसद में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभाई। २०१४ के आम चुनावों में राजग को गुजरात के लम्बे समय से चले आ रहे मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारी जीत मिली और २०१४ में भाजपा सरकार बनी । इसके अलावा पार्टी पांच राज्यों में भी सत्ता में है।

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