लोहे की मांसपेशियों और इस्पात की धमनी वाले एक क्रांतिकारी “जतिंद्र नाथ मुखर्जी उर्फ़ बाघाजतिन”

जतींद्र नाथ मुखर्जी का जन्म जैसोर जिले में सन् १९७९ ईसवी में हुआ था ! पाँच वर्ष की अल्पायु में ही उनके पिता का देहावसान हो गया ! माँ ने बड़ी कठिनाई से उनका लालन-पालन किया ! १८ वर्ष की आयु में उन्होंने मैट्रिक पास कर ली और परिवार के जीविकोपार्जन हेतु स्टेनोग्राफी सीखकर कलकत्ता विश्वविद्यालय से जुड़ गए ! वह बचपन से हई बड़े बलिष्ठ थे ! 

वे भारत के ऐसे एकमात्र क्रांतिकारी थे जिनकी प्रशंसा न केवल महात्मा गाँधी अपितु अंग्रेजो ने भी की थी ! महात्मा गाँधी ने उन्हें दैवीय व्यक्तित्व कहा था ! लार्ड मिन्टो ने बाघा जतिन से इतने भयभीत थे कि अपने मन की दहशत को व्यक्त करते हुए उनके मुंह से निकल गया था कि भारत में एक ऐसी आत्मा आ गयी है जो न केवल ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ सकती है अपितु उनके मुखिया को भी समाप्त कर सकती है ! एक पुलिस अधिकारी , तेगार्ट , ने उनकी वीरता का वर्णन करते हुए कहा था कि यदि यह अंग्रेज होता तो उसकी मूर्ति नेल्सन के साथ लगती ! यह स्मरण रखना चाहिये कि नेल्सन वह सेनापति था जिसके कारण ब्रिटेन प्रथम विश्वयुद्ध जीता था !

जतिन्द्रनाथ मुखर्जी बाल्यकाल से ही बहुत निर्भीक , चिन्तनशील व् बलशाली थे ! स्वामी विवेकानन्द जी से हुई भेंट ने उनके जीवन को एक विशिष्ट अर्थ दे दिया ! उन्होंने इनको एक सामाजिक दृष्टी तो दी ही, एक दिशा भी प्रदान की ! स्वामी विवेकानंद का यह आह्वान कि उनको लोहे की मांसपेशियों और इस्पात की धमनी वाले युवकों की आवश्यकता है , उनके मन में घर कर गया ! उन्होंने अपना शरीर उसी आह्वान के अनुरूप बनाया था ! उनके गाँव में एक बार बाघ का आतंक छाया था ! उससे मुक्ति पाने का कोई उपाय कम नहीं कर रहा था ! एक दिन जतिन्द्रनाथ से उसका आमना –सामना हो गया ! उनमे संघर्ष हुआ और जतिन्द्रनाथ ने उसको निहत्थे ही समाप्त कर दिया ! इस संघर्ष में वे काफी घायल हो गए थे ! उनकी वीरता को देखते हुए ही उनका इलाज करने वाले डा ने उनको “बाघा “ की उपाधि दी ! तबसे ही वे “बाघाजतिन” के रूप में पहचाने जाने लगे !

जिन दिनों अंग्रेजों ने बंग-भंग की योजना बनायी ! बंगालियों ने इसका विरोध खुल कर किया ! यतींद्र नाथ मुखर्जी का नया खून उबलने लगा ! उन्होंने साम्राज्यशाही की नौकरी को लात मार कर आन्दोलन की राह पकड़ी ! सन् १९१० में एक क्रांतिकारी संगठन में काम करते वक्त यतींद्र नाथ 'हावड़ा षडयंत्र केस' में गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें साल भर की जेल काटनी पड़ी !

जेल से मुक्त होने पर वह 'अनुशीलन समिति' के सक्रिय सदस्य बन गए और 'युगान्तर' का कार्य संभालने लगे ! उन्होंने महर्षि अरविन्द घोष के साथ भी बहुत काम किया ! उनके साथ बिताये पलों ने उनकी जिंदगी को काफी संवारा ! वे कई अभियानों में शामिल थे ! लेकिन यह उनकी कुशलता ही थी कि जल्दी पकड़ में नहीं आते थे ! उन्होंने अपने एक लेख में उन्हीं दिनों लिखा था-' पूंजीवाद समाप्त कर श्रेणीहीन समाज की स्थापना क्रांतिकारियों का लक्ष्य है ! देसी-विदेशी शोषण से मुक्त कराना और आत्मनिर्णय द्वारा जीवनयापन का अवसर देना हमारी मांग है !' क्रांतिकारियों के पास आन्दोलन के लिए धन जुटाने का प्रमुख साधन डकैती था ! दुलरिया नामक स्थान पर भीषण डकैती के दौरान अपने ही दल के एक सहयोगी की गोली से क्रांतिकारी अमृत सरकार घायल हो गए ! विकट समस्या यह खड़ी हो गयी कि धन लेकर भागें या साथी के प्राणों की रक्षा करें ! अमृत सरकार ने जतींद्र नाथ से कहा कि धन लेकर भागो ! जतींद्र नाथ इसके लिए तैयार न हुए तो अमृत सरकार ने आदेश दिया- 'मेरा सिर काट कर ले जाओ ताकि अंग्रेज पहचान न सकें !' इन डकैतियों में 'गार्डन रीच' की डकैती बड़ी मशहूर मानी जाती है ! इसके नेता यतींद्र नाथ मुखर्जी थे ! विश्व युद्ध प्रारंभ हो चुका था ! कलकत्ता में उन दिनों राडा कम्पनी बंदूक-कारतूस का व्यापार करती थी ! इस कम्पनी की एक गाडी रास्ते से गायब कर दी गयी थी जिसमें क्रांतिकारियों को ५२ मौजर पिस्तौलें और ५० हजार गोलियाँ प्राप्त हुई थीं ! ब्रिटिश सरकार हो ज्ञात हो चुका था कि 'बलिया घाट' तथा 'गार्डन रीच' की डकैतियों में यतींद्र नाथ का हाथ था !

यतींद्र नाथ मुखर्जी ने जर्मनी के साथ मिलकर भी एक सैन्य अभियान के माध्यम से भारत को मुक्त कराने की योजना भी बनाई थी ! उनके अधिकारियों के साथ निर्धारित मुलाकात नहीं हो सकी , वरना शायद भारत को आजादी के लिये १९४७ तक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती ! उनकी निर्भीकता के कई किस्से पढ़ने में आते हैं ! उन्होंने एक बार देखा कि एक गाड़ी की छत पर कुछ गोरे सिपाही बैठे थे ! उनकी टाँगें खिड़कियो पर आ रही थीं और उनके जूते खिड़की के पास बैठी भारतीय महिलओं के चेहरे पर आ रहे थे ! बाघा जतिन के मना करने पर भी जब वे नहीं माने तो अकेले जतिन ने उनकी पिटाई करके गाड़ी से नीचे गिरा दिया था !

९ सितंबर १९१५ को पुलिस ने जतींद्र नाथ का गुप्त अड्डा 'काली पोक्ष' (कप्तिपोद) ढूंढ़ निकाला ! यतींद्र बाबू साथियों के साथ वह जगह छोड़ने ही वाले थे कि राज महन्ती नमक अफसर ने गाँव के लोगों की मदद से उन्हें पकड़ने की कोशश की ! बढ़ती भीड़ को तितरबितर करने के लिए यतींद्र नाथ ने गोली चला दी ! राज महन्ती वहीं ढेर हो गया ! यह समाचार बालासोर के जिला मजिस्ट्रेट किल्वी तक पहुंचा दिया गया ! किल्वी दल बल सहित वहाँ आ पहुंचा ! यतीश नामक एक क्रांतिकारी बीमार था ! जतींद्र उसे अकेला छोड़कर जाने को तैयार नहीं थे ! चित्तप्रिय नामक क्रांतिकारी उनके साथ था ! दोनों तरफ़ से गोलियाँ चली ! चित्तप्रिय वहीं शहीद हो गया ! वीरेन्द्र तथा मनोरंजन नामक अन्य क्रांतिकारी मोर्चा संभाले हुए थे ! इसी बीच यतींद्र नाथ का शरीर गोलियों से छलनी हो चुका था ! वह जमीन पर गिर कर 'पानी-पानी' चिल्ला रहे थे ! मनोरंजन उन्हें उठा कर नदी की और ले जाने लगा ! तभी अंग्रेज अफसर किल्वी ने गोलीबारी बंद करने का आदेश दे दिया ! गिरफ्तारी देते वक्त जतींद्र नाथ ने किल्वी से कहा- 'गोली मैं और चित्तप्रिय ही चला रहे थे ! बाकी के तीनों साथी बिल्कुल निर्दोष हैं ! १० दिस, १९१५ को उन्होंने यह शरीर छोड़ दिया !

बाघा जतिन केवल एक क्रांतिकारी नहीं थे , उनके चिंतन और कार्यकुशलता को देखते हुए उन्हें एक दार्शनिक क्रांतिकारी कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी ! वे एक शोला थे जो अपनी लपटों से भारत माँ की गुलामी की जंजीरों का जला डालना चाहते थे ! ऐसे महान की जीवनी को सम्पूर्ण भारत में पढ़ाना चाहिए ! उनका जीवन आज की युवा पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा बन सकता है ! एक कृतज्ञ राष्ट्र का बाघा जतिन को कोटि-कोटि प्रणाम !

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें