कूड़ा-कचरा ढोने को मजबूर राष्ट्रीय स्तर का मुक्केबाज

मुक्केबाजी में राज्य स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक अपना नाम रोशन कर चुके कमल कुमार वाल्मीकि आज कूड़ा-कचरा ढोने को मजबूर हैं ! कमल कुमार ग्वालटोली की मलीन बस्ती में रहकर परिवार का भरण पोषण करने के लिए घर-घर जाकर कूड़ा बटोरने के लिए मजबूर हैं ! कमल कुमार के अनुसार रिश्वत देने के लिए पैसे नहीं होने के कारण जाति आरक्षण और स्पोर्ट्स कोटे के बावजूद उन्हें नौकरी नहीं मिली ! ऐसे में मजबूर होकर कमल कूडा ढोने का कार्य कर रहे हैं !

कमल कुमार वाल्मीकि के पिता भी नगर निगम में कूड़ा उठाने का काम करते थे ! यही नहीं, दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने के लिए उनकी मां भी एक मंत्री के घर में सफाई का काम करती हैं ! ऐसे में जब उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने भी खानदानी काम ही शुरू कर दिया !

घूस देने के लिए नहीं थे पैसे अतः नहीं मिल पायी नौकरी 

कमल बताते हैं कि वर्ष 2010 में उन्होंने कानपुर के डीएवी कॉलेज से ग्रेजुएशन किया ! इसके बाद सरकारी नौकरी के लिए कई अधिकारियों के चक्कर भी लगाए, लेकिन रिश्वत के लिए पैसे नहीं होने के कारण उन्हें हर बार निराशा ही हाथ लगी ! घर की आर्थिक स्थिति खराब होती देख उन्होंने अपने पिता की मदद से नगर निगम में कॉन्ट्रेक्ट के बेसिस पर कूड़ा उठाने काम शुरू कर दिया !

राज्य स्तर पर जीत चुके है कई पदक 

बचपन से ही बॉक्सिंग का शौक रखने वाले कमल ने 1991 में जिलास्तरीय प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता और 1993 में यूपी ओलिंपिक में कांस्य पदक और उसी साल 'जूनियर नेशनल चैम्पियनशिप अहमदाबाद' में उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया ! इसके बाद 2004 में जिलास्तरीय प्रतियोगिता में रजत और 2006 के राज्य खेलों में कांस्य पदक जीता ! 

कमल को तत्कालीन राज्यपाल मोतीलाल वोरा और राज्य खेलों में पूर्व मंत्री कलराज मिश्रा कांस्य पदक से सम्मानित भी कर चुके हैं, लेकिन गरीबी के चलते खेल पीछे छूट गया ! इसके बाद जब परिवार पर भूखे मरने की नौबत आई तो कमल ने सारे मेडल और डिग्री को छोड़कर जो काम भी हाथ लगा उसे करना जरूरी समझा !

धर्मेंद्र की फिल्म 'मैं इंतकाम लूंगा' देख जागी थी बॉक्सर बनने की इच्छा 

कमल ने बताया कि जब वह १० वर्ष के थे तो बस्ती में दबंग लड़के अक्सर कमजोर बच्चों को परेशान करते थे ! एक दिन बस्ती के चार लड़कों ने उनसे पैसे छीन लिए और पिटाई कर दी ! घरवालों ने जब दबंग लड़कों के परिजनों से शिकायत की तो वे भी झगड़े पर उतारू हो गए ! बीच-बचाव के बाद मामला तो शांत हो गया, लेकिन अपमान के बदले की आग उनके अंदर अभी भी सुलग रही थी ! उन दिनों एक्टर धर्मेंद्र बॉलीवुड के स्टार हुआ करते थे ! उसी समय उनकी एक फिल्म आई थी, जिसका नाम था 'मैं इंतकाम लूंगा' ! इस फिल्म में धमेंद्र अपना बदला लेने के लिए बॉक्सर बन गए थे ! बस, यहीं से उनके मन में बॉक्सर बनने की इच्छा ने जन्म लिया ! उन्होंने ठान लिया कि वे भी अपने अपमान का बदला लेने के लिए बॉक्सर बनेंगे ! 

मुक्केबाजी में कई पदकों पर जमाया कब्जा 

कमल कुमार कानपुर के ग्रीन पार्क पहुंच गए ! यहां कमल मुक्केबाजी के कोच डगलस सफर्ड से मिले ! कोच डगलस सफर्ड से हुई मुलाक़ात ही कमल की जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट साबित हुई ! कमल को कोच डगलस सफर्ड ने वर्ष 1990 से 1995 तक प्रशिक्षण दिया ! 

कमल सुबह ढोते है कूडा, शाम को चलाते हैं रिक्शा

पदकों एवं तमाम प्रमाण पत्रों की झड़ी लगाने वाले कमल को गरीबी ने हरा दिया ! कमल बताते हैं कि उन्होंने कई सालों तक नौकरी भी ढूंढी, लेकिन हर जगह दर-दर की ठोकरें मिलीं ! यही नहीं, एक अफसर ने तो उनके सभी मेडल्स को फर्जी तक बता दिया ! ऐसे में एक कंपनी में कूड़ा उठाने का काम मिला ! अब वे रोजाना सुबह घरों से कूड़ा इकट्ठा करते हैं और शाम को रिक्शा चलाते हैं, ताकि घरवालों के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ हो सके !

बच्चों को बनाना चाहते हैं बॉक्सर

गरीबी में जीवन गुजार रहे कमल के दो बच्चे हैं ! किसी तरह से वे अपने दोनों बच्चों सुमित और आदित्य को पढ़ा रहे हैं ! हालांकि, उनका सपना है कि उनके बेटे बॉक्सिंग की दुनिया में अपनी पहचान बनाएं और नाम रोशन करें ! कमल का दूसरा बेटा आदित्य धनराज कक्षा आठ का छात्र है और नेशनल बॉक्सिंग खेल चुका है ! बेटे का कहना है कि वह पिता के सपनों को पूरा करना चाहता है !

कमल के दोस्त बताते हैं कि उसमें कोच बनने के सारे गुण हैं, लेकिन उसको मेहनत-मजदूरी करता देख सब मना कर देते हैं ! आज भी लोग उसे अछूत ही मानते हैं ! उसे कूड़ा उठाते देख यही कहा जा सकता है कि खेल की दुनिया में प्रतिद्वंदियों को हराने वाला आज असल जिंदगी में सामाजि‍क कुरीति‍यों से हार गया !

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