मणिपुर की अशांति के पीछे विदेशी शक्तियां ?


आज मणिपुर अशांत है | मणिपुर की अशांति के पीछे गैर सरकारी संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका है | इसे रेखांकित करते संडे गार्जियन में श्री माधव नालपत का एक आलेख प्रकाशित हुआ | प्रस्तुत है, उस लेख के कुछ अंश का हिन्दी अनुवाद -
वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि एक डच-वित्त पोषित गैर सरकारी संगठन Cordaid जो कि घोषित तौर पर तो पूर्वोत्तर में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार को रोकने के लिए सक्रिय है, किन्तु वस्तुतः इसमें सक्रिय विदेशी कार्यकर्ताओं का मुख्य उद्देश्य भारत के प्रमुख आर्थिक ठिकानों के खिलाफ विरोध आंदोलन को पैदा करना है | इस काम के लिए वे अपने भारतीय समर्थकों का एक कैडर विकसित कर उसे प्रशिक्षित कर रहे हैं । वे मणिपुर में तेल की खोज, मेघालय में यूरेनियम खनन के अलावा अरुणाचल प्रदेश में बांधों के माध्यम से पनबिजली योजना को येन केन प्रकारेण रोकना चाहते हैं | इस कार्य के लिए वे स्थानीय गैर सरकारी संगठनों का भी बखूबी उपयोग कर रहे हैं, जैसे मणिपुर में “CORE”, मेघालय में “WING” और “RWUS” ।

सरकार में कार्यरत एक तेल विशेषज्ञ के अनुसार "मणिपुर में कच्चे तेल का इतना भण्डार है, जो भारत का तेल आयात 40% तक कम करने के लिए पर्याप्त हैं | किन्तु दुर्भाग्य से यूपीए शासन के दौरान न तो किसी निजी कम्पनी को संभावित स्थानों में तेल की खोज हेतु अनुमति दी गई, और न ही केंद्र सरकार ने इस दिशा में स्वयं कोई रूचि प्रदर्शित की | 

एक अन्य अधिकारी का कहना है कि वर्तमान में भी अन्वेषण कार्य की अनुमति केवल जुबिलेंट समूह को दी गई है, यदि अन्य कमानियों को भी इस अभियान से जोड़ा जाए तो अन्य नए क्षेत्रों का भी पता चल सकता है |" उन्होंने बताया कि कम से कम चार गैर सरकारी संगठन इन क्षेत्रों में सक्रिय हैं, जो स्थानीय लोगों को बरगलाकर एक शत्रुतापूर्ण वातावरण बना रहे हैं | अगर एक बार यहाँ तेल उद्योग विकसित हो गया तो मणिपुर भारत का सबसे धनी प्रदेश बन सकता है ।

राज्य के एक प्रमुख अधिकारी ने चेतावनी दी है कि विदेशी गैर सरकारी संगठनों ने भारत के विभिन्न हिस्सों में, भारत की न्याय प्रणाली का दुरुपयोग कर आर्थिक गतिविधियों को धीमा करने और रोकने में विशेषज्ञता हासिल कर ली है | वे स्थानीय लोगों का सहयोग प्राप्त कर प्रकरण दर्ज करवाते हैं और प्रचार तंत्र का उपयोग कर विपरीत वातावरण निर्मित करते हैं | उन्होंने कहा कि पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार की दिलचस्पी पूर्वोत्तर में तेल क्षेत्रों और यूरेनियम खानों के समुचित विकास की तुलना में विदेशों से तेल खरीदने और बाहर से यूरेनियम प्राप्त करने में अधिक थी ।

जांच एजेंसियों द्वारा भी प्राप्त जानकारी के आधार पर कई बार आगाह किया जा चूका है कि बड़े गैर सरकारी संगठनों के लिए काम कर रहे विदेशी नागरिक, पिछले कुछ वर्षों में प्रमुख पत्रकारों व वरिष्ठ अधिकारियों के साथ घनिष्ठ संबंध कायम कर चुके हैं | जांच एजेंसियों ने भारत में काम कर रही डच वित्त पोषित गैर सरकारी संगठन Cordaid के खिलाफ कई उपलब्ध सबूतों के आधार पर प्रतिबंध लगाने के लिए भी मनमोहन सिंह सरकार को आग्रह किया था | रिपोर्ट में कहा गया था कि उक्त संगठन स्थानीय कार्यकर्ताओं की आर्थिक मदद कर उन्हें न्यूयॉर्क, बैंकॉक और जिनेवा जैसे स्थानों पर भेजता है, जहाँ उन कार्यकर्ताओं को सड़कों पर विरोध प्रदर्शन के साथ ही अदालतों और मीडिया के माध्यम से आर्थिक गतिविधियाँ कैसे रोकी जाएँ, इसका प्रशिक्षण दिया जाता है ।

दिल्ली में कुछ शीर्ष अधिकारी भी गैर सरकारी संगठनों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होने देना चाहते | इसके पीछे का मुख्य कारण यह है कि विदेश में अध्ययन करने के लिए उनके बच्चों को इन संगठनों द्वारा छात्रवृत्ति उपलब्ध कराई जा रही है | इतना ही नहीं तो गैर सरकारी संगठनों द्वारा भारतीय नागरिकों को बैंकॉक या हांगकांग के चयनित स्थानों पर जीपीएस मैपिंग के साथ-साथ जीआईएस सिस्टम का प्रशिक्षण भी दिलाया जाता है, ताकि वे स्थानों का चयन कर उसकी जानकारी विदेशी दान दाताओं तक पहुंचा पायें ।

विदेशी जानते है कि ऊर्जा उत्पादन को ब्लॉक करने से विकास दर कम होगी, बड़े पैमाने पर बेरोजगारी और सामाजिक अशांति पैदा होगी । हमें हर वर्ष 15 लाख नए रोजगार पैदा करने की जरूरत है | किन्तु यह तब तक संभव नहीं है, जब तक कि विदेशी गैर सरकारी संगठनों और उनके स्थानीय सहयोगियों के द्वारा खडी की गई कानूनी और अन्य वाधाएं न हटें | एक अधिकारी ने चेतावनी दी है कि समय रहते वास्तविकता को समझकर अवरुद्ध परियोजनाओं को पुनः प्रारंभ किये जाने के कार्य को प्राथमिकता देना चाहिए ।

गौर कीजिए कि भारत में सक्रिय ग्रीनपीस और अन्य विदेशी गैर सरकारी संगठनों के समर्थकों क्या कह रहे हैं ? वे कहते हैं कि हमारी इच्छा है कि भारत के लोग एक स्वच्छ और हरे भरे वातावरण में रहैं | साथ ही यह भी कि विदेशी नागरिकों को भारत से प्यार है, और वे नहीं चाहते कि भारत भी वही भूल करे जो पश्चिम ने की है | अब यह हम पर है, कि उनकी बात पर भरोसा कर न तो बिजली पैदा करें और न ही तेल खनन करें | भारत की खनिज सम्पदा पृथ्वी के गर्भ में ही रहने दें | हमें क्या अधिकार है कि हम विकास की दौड़ में पश्चिम से आगे निकलें |

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