मध्य प्रदेश का चमत्कारिक जैन तीर्थ स्थल जहाँ प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि होती है केसर की बारिश




बैतूल जिले के विकासखण्ड भैसदेही की ग्राम पंचायम थपोड़ा में स्थित है महान जैन तीर्थ मुक्तागिरी ! मुक्तागिरी अपनी सुन्दरता, रमणीयता और धार्मिक प्रभाव के कारण लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है ! इस स्थान पर दिगम्बर जैन संप्रदाय के ५२ मंदिर हैं ! इन मंदिरों की श्रेणी तथा क्षेत्र का संबंध विम्बसार से बताया जाता है ! यहाँ मंदिर में भगवान पार्श्वनाथ की सप्तफणिक प्रतिमा स्थापित है जो शिल्पकला का बेजोड़ नमूना है ! इस क्षेत्र में स्थित एक मानस्तंभ, मन को शांति और सुख देने वाला है ! निर्वाण क्षेत्र में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को यहाँ आकर सुकून मिलता है ! यही कारण है कि देश में कोने कोने से जैन धर्मावलंबी ही नहीं दूसरे धर्मों को मानने वाले लोग भी मुक्तागिरी आते हैं !

सतपुड़ा पर्वत की श्रृंखला में मन मोहने वाले घने हरे-भरे वृक्षों के बीच यह क्षेत्र बसा है ! जहां से साढ़े तीन करोड़ मुनिराज मोक्ष गए हैं ! इसीलिए कहा जाता है-

अचलापूर की दिशा ईशान तहां मेंढागिरी नाम प्रधान।
साढ़े तीन कोटी मुनीराय तिनके चरण नमु चितलाय।।

अर्थात साढ़े तीन करोड़ संतों को नमन करो, जिन्होंने पवित्र नगरी अचलपुर के उत्तर पूर्व में स्थित मेढ़ागिरी के शिखर पर निर्वाण प्राप्त किया !

केशर की वर्षा होने से जुडी किवंदती 

मुक्तागिरी के मेढ़ागिरी नाम के पीछे एक किंवदंती भी प्रचलित है ! आज से लगभग एक हजार वर्ष पूर्व आसमान से एक मेढ़ा ध्यानमग्न एक मुनिराज के सामने आकर गिरा था ! ध्यान के बाद मुनिराज ने उस मरणासन्न मेढ़े के कान में नमोकार मंत्र पढ़ा ! फलस्वरूप वह मेढ़ा मरने के बाद देव बना ! अपने मोक्ष के बाद देव बने मेढ़ा को अपने मोक्षदाता मुनिराज का ध्यान आया ! तब से निर्वाण स्थल पर प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि में देव प्रतिमाओं पर केशर के छींटों का अर्चन स्वतः ही होता है ! जिसे अगले दिन प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है ! यह केशर की वर्षा आज भी यहाँ के ५२ मंदिरों की श्रृंखला में स्थित १० वें नंबर के मंदिर में देखी जा सकती है !

मेढ़ागिरी भी कहा जाता है मुक्तागिरी को

इस स्थान को मुक्तागिरी के साथ-साथ मेंढागिरी भी कहा जाता है ! निर्वाण कांड में उल्लेख है कि इस क्षेत्र पर दसवें तीर्थंकर भगवान शीतलनाथ का समवशरण आया था ! इसलिए कहा जाता है कि - 

'मुक्त‍ा गिरी पर मुक्ता बरसे, शीतलनाथ का डेरा'

ऐसा उस वक्त मोतियों की वर्षा होने से इसे मुक्तागिरी कहा जाता है ! मूल नायक भगवान पार्श्वनाथ के मंदिर में प्रतिदिन उनके श्रद्धालु भक्त बीमारी, भूत, पिशाच आदि सांसारिक व्याधियों एवं बाधाओं से मुक्ति के लिए आते हैं !

अनुपम प्रकृति-सौंदर्य

मुक्तागिरी में पहाड़ियों की तलहटी और शिखर तक निर्मित मंदिरों तक पहुँचने के लिए पर्याप्त रास्तों के अलावा सीढियां भी हैं ! ५२ मंदिरों के दर्शन की शृंखला को पूरा करने के लिए २५० सीढ़ियाँ चढ़ना एवं ३५० सीढ़ियाँ उतरना पड़ता है !

श्रद्धालुओं का मानना है कुल ६०० सीढ़ियाँ चढ़ने-उतरने से एक वंदना पूर्ण मानी जाती है ! मुक्तागिरी सिद्धक्षेत्र दिगंबर जैन धर्मावलंबियों के साथ-साथ अन्य गैर जैन धर्मीय श्रद्धालुओं का भी श्रद्धाकेंद्र है ! मुक्तागिरी का अनुपम प्रकृति सौंदर्य, प्रकृति प्रेमियों व पर्यटकों को भी बरबस आकर्षित करता है !

यहाँ २५० फुट ऊपर से गिरती हुई जलधारा अनुपम जलप्रपात की रचना करती है ! दूर तक फैली हरी भरी वनस्पति और पर्वतीय प्रदेश सभी का मन हर लेते हैं ! साथ ही सर्वत्र रचा शान्त धार्मिक वातावरण सबके चित्त को प्रफुल्लित कर देता है ! पाँच वर्ष के बालक से लेकर ७५ वर्ष तक के वृद्ध यहाँ आते हैं ! यहाँ के प्रकृति के चमत्कार व विलोमनीय दर्शन से तृप्त हो जाते हैं ! साथ-साथ इस पवित्र परिसर से अपने आपको कुछ समय के लिए मुक्त महसूस करते हैं !

मुक्त‍ा गिरी का इतिहास

एलिच‍पूर यानी अचलपुर में स्थित मुक्त‍ा गिरी सिद्धक्षेत्र को स्व. दानवीर नत्‍थुसा पासुसा ने अपने साथी स्व. रायसाहेब रूखबसंगई तथा स्व. गेंदालालजी हीरालालजी बड़जात्या के साथ मिलकर अंग्रेजों के जमाने में खापर्डे के मालगुजारी से सन् 1928 में यह मुक्तागिरी पहाड़ मंदिरों के साथ खरीदा था ! 

इस मुक्त‍ा गिरी सिद्धक्षेत्र का इतिहास काफी रोमहर्षक है ! कहा जाता है कि उस समय शिकार के लिए पहाड़ पर जूते-चप्पल पहन कर जाते थे और जानवरों का शिकार करते थे ! इसी वजह से पवित्रता को ध्यान में रखते हुए यह पहाड़ खरीदा गया !

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