केरल के कॉलेज परिसरों में वामपंथी मना रहे हैं "गौमांस महोत्सव"

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अपने हिंदू विरोध और मुस्लिम समर्थन के लिए जाने जाने वाले वामपंथी छात्र संगठन एसएफआइ और KSU। ने केरल के विभिन्न कॉलेजों में 'बीफ उत्सव' शुरू कर दिया है और इसे नाम दिया है 'गोमांस के लिए प्यार' (‘love for beef’) ।

उत्तर प्रदेश के दादरी में गोमांस खाने की अफवाहों के बाद हुई एक आदमी की ह्त्या के बाद कोलेज परिसर में संचालित किये गए इस मांस महोत्सव के चर्चा में आने के बाद केरल के एक प्रतिष्ठित कॉलेज के अधिकारियों ने 10 छात्रों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने का फैसला किया है ।

सीएमएस कॉलेज, कोट्टायम के अधिकारियों का कहना है कि प्रिंसिपल ने एसएफ़आई को “गौमांस महोत्सव” की अनुमति नहीं दी थी और कहा था कि इस प्रकार के कार्य से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के साथ संघर्ष की संभावना है, अतः इस प्रकार के आयोजन न किये जाएँ | किन्तु एसएफआई और सीपीआई (एम) की छात्र इकाई के कार्यकर्ताओं ने न केवल उनका आग्रह नहीं माना बल्कि जब प्रिंसिपल ने उन्हें परिसर में बीफ करी वितरण करने से रोकने की कोशिश की तो उनके साथ धक्कामुक्की भी की | यह कोलेज अनुशासन का स्पष्ट उल्लंघन है | 

एबीवीपी ने कॉलेज परिसर में इस तरह के मांस उत्सव का जबरदस्त विरोध किया और इसे खुला हिंदू विरोधी उन्माद निरूपित किया । एबीवीपी समर्थकों का कहना है कि इन छात्रों को केवल निलंबित किया जाना पर्याप्त नहीं है, संबंधित अधिकारियों को कॉलेज परिसर में माहौल बिगाड़ने वाले इन कम्यूनिस्ट व इस्लामिस्ट संगठनों से जुड़े लोगों के खिलाफ अधिक कठोर कदम उठाने चाइये | अगर ऐसा नहीं किया गया तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की राज्य इकाई तीव्र विरोध प्रदर्शन करेगी ।

इसके जबाब में कॉलेज के अधिकारियों ने कहा कि सीएमएस घटना के सिलसिले में कॉलेज के दस छात्रों की पहचान की गई है और उन्हें निलंबन सहित अन्य अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा, ।

इस कॉलेज की स्थापना 1817 में इंग्लैंड की चर्च मिशनरी सोसायटी द्वारा की गई थी तथा भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री के आर नारायणन इसके पूर्व छात्र रह चुके हैं । एसएफआइ ने इस कॉलेज के अतिरिक्त श्री केरला वर्मा कॉलेज त्रिशूर में भी गोमांस त्योहार कॉलेज परिसर में आयोजित किया । यहाँ भी छह छात्रों को सोमवार को निलंबित कर दिया गया। वे सब के सब एसएफआइ के कार्यकर्ताओं हैं।

कॉलेज प्रबंधन दीपा निशांत नामक एक महिला व्याख्याता के विरुद्ध भी कार्यवाही करने जा रहा है, जिसने सोशल मीडिया पर फेसबुक के माध्यम से कॉलेज परिसर में 'गोमांस' त्योहार का आयोजन करने वाले छात्रों का समर्थन किया था ।

इन सब बातों से कुछ अहम सवाल उठते हैं | पहला तो यह कि बिना इस बात की चिंता किये कि देश का एक बहुत बड़ा वर्ग गाय के प्रति क्या भावना रखता है, गाय और गौ मांस अब एक राजनैतिक मुद्दा बन गया है | लेकिन राजनेता शायद यह नहीं समझ पा रहे हैं कि इस प्रकार वे केवल देश में नफ़रत फैला रहे हैं, जो देर सबेर गृहयुद्ध की दिशा में मुड सकती है | 
इस संवेदनशील मुद्दे पर कोई समझौता संभव ही नहीं दिख रहा | कुछ समझदार मुसलमान जरूर यह कहते दिख रहे हैं कि मांसाहारी लोगों के पास मांस के लिए अन्य विकल्प भी मौजूद हैं, तो गौ मांस पर इतनी जिद्द ठीक नहीं है | किन्तु उनकी आवाज नक्कार खाने में तूती की आवाज से अधिक नहीं है | 
दूसरा अहम सवाल केंद्र के सत्ताधारियों से भी पूछा जाना चाहिए वह यह कि चुनाव पूर्व उन्होंने गरज गरज कर कहा था कि तत्कालीन सरकार ने मांस विक्रय की गुलाबी क्रान्ति की है, जबकि देश में दुग्ध उत्पादन की श्वेत क्रान्ति होना चाहिए |
देश की जनता टकटकी लगाए बाट देख रही है कि आखिर स्वेत क्रान्ति की दिशा में पहला कदम कब उठेगा ? अभी तो हालत यह है कि शहर की सडकों पर आवारा घूमती भूखी गाय या तो पन्नियाँ खा खाकर आत्महत्या कर रही हैं अथवा सरकारी कर्मचारियों द्वारा कांजी हाउस में पहुंचकर नाम मात्र के दामों में कसाईयों के हाथों बिक रही हैं | देश गौ मांस विक्रेता देशों में अब्बल बना ही हुआ है और मजे की बात यह कि जिन देशों में गौ मांस सबसे ज्यादा खाया जाता है, वे हमें दूध का पावडर सप्लाई कर रहे हैं | वे अपनी गाय से दूध लेते हैं और भारत की गाय का मांस भक्षण करते हैं |
वह दिन कब आयेगा, जब वधशालाओं को सबसिडी देने के स्थान पर गौशालाओं को महत्व मिलेगा | आखिर सरकारी कांजी हाउस गौ शालाओं में रूपांतरित क्यूं नहीं हो सकते ? 

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