आरएसएस की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल बैठक में "जनसंख्या वृद्धि दर में असंतुलन की चुनौती" विषयक प्रस्ताव पारित |

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रांची 31 अक्तूबर: शनिवार को रांची में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल (ABKM) की बैठक के दूसरे दिन "जनसंख्या वृद्धि दर में असंतुलन की चुनौती" पर एक प्रमुख प्रस्ताव पारित किया गया है।

आरएसएस संकल्प-1: ABKM- 2015

जनसंख्या वृद्धि दर में असंतुलन की चुनौती :

पिछले एक दशक के दौरान देश की जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए उठाए गए कदमों के पर्याप्त सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं । लेकिन इस संबंध में अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल का अभिमत यह है कि 2011 की जनगणना में दर्शाये गए धर्म के आंकड़ों के विश्लेषण से गंभीर जनसांख्यिकीय परिवर्तन सामने आया है, उसके कारण जनसंख्या नीति की समीक्षा करने की आवश्यकता है । विभिन्न धार्मिक समूहों की विकास दर में विशाल अंतर, घुसपैठ और धर्मांतरण के परिणाम स्वरुप जनसंख्या अनुपात में धार्मिक असंतुलन उत्पन्न हुआ है, उसके परिणाम स्वरुप विशेष रूप से सीमावर्ती क्षेत्रों में, देश की एकता, अखंडता और सांस्कृतिक पहचान को खतरा उत्पन हो सकता है।

यद्यपि भारत ने दुनिया के अन्य देशों की तुलना में जल्दी, 1952 में ही जनसंख्या नियोजन के उपाय करने की घोषणा कर दी थी, किन्तु वर्ष 2000 में जाकर एक व्यापक जनसंख्या नीति तैयार की गई और जनसंख्या आयोग का गठन किया गया । इस नीति का उद्देश्य था - वर्ष 2045 आते आते कुल प्रजनन दर [टीएफआर] 2.1 का आदर्श आंकडे से एक स्थिर और स्वस्थ आबादी को प्राप्त करना । यह उम्मीद थी कि यह उद्देश्य हमारे राष्ट्रीय संसाधनों और भविष्य की आवश्यकताओं के अनुसार होगा तथा समाज के सभी वर्गों पर समान रूप से लागू किया जाएगा । किन्तु नेशनल फर्टिलिटी और स्वास्थ्य सर्वेक्षण [एनएफएचएस] 2005-6 और 2011 की जनगणना में धर्म के आधार पर 0-6 वर्ष के आयु वर्ग की आबादी के डाटा प्रतिशत, दोनों में कुल प्रजनन दर [टीएफआर] और बाल अनुपात में धार्मिक असंतुलन का संकेत मिलता है । यह स्पष्ट दिखाई देता है कि 1951 से 2011 की अवधी में भारतीय मूल के धर्मों की आबादी की हिस्सेदारी, जो पहले 88 प्रतिशत थी, घटकर 83.8 प्रतिशत रह गई है, जबकि मुस्लिम आबादी जो 9.8 प्रतिशत थी बढ़कर 14.23 प्रतिशत हो गई है | 

इसके अलावा मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि दर राष्ट्रीय औसत की तुलना में बहुत अधिक है, देश के सीमावर्ती राज्यों जैसे असम, पश्चिम बंगाल और बिहार के सीमावर्ती जिलों में स्पष्टतः बांग्लादेश से बेरोकटोक हो रही घुसपैठ के संकेत मिलते है । माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त उपमन्यु हजारिका आयोग की रिपोर्ट और समय समय पर अन्य अनेक न्यायिक अभिमत भी इन तथ्यों की पुष्टि करते है। एक तथ्य यह भी है कि घुसपैठिये इन राज्यों के नागरिकों के अधिकारों को अनाधिकार हड़प रहे हैं तथा पहले से ही अल्प संसाधनों पर एक भारी बोझ बनते जा रहे हैं, इसके अतिरिक्त सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक तनाव भी पैदा हो रहा है ..

पूर्वोत्तर राज्यों में जनसंख्या के धार्मिक असंतुलन ने गंभीर अनुपात ग्रहण कर लिया है। अरुणाचल प्रदेश में 1951 में भारतीय मूल के धर्मों के लोग 99.21 प्रतिशत थे, जो 2001 में 81.3 प्रतिशत रह गए तथा 2011 में यह प्रतिशत मात्र 67 रह गया | केवल एक दशक में अरुणाचल प्रदेश की ईसाई आबादी में लगभग 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है । इसी तरह 1951 में मणिपुर की आबादी में भारतीय मूल के धर्मों की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत से अधिक थी, जो 2011 में 50 प्रतिशत से कम रह गई | ये उदाहरण और देश के कई जिलों में ईसाई आबादी की अस्वाभाविक वृद्धि से संकेत मिलता है कि संगठित तौर पर कुछ निहित स्वार्थों द्वारा धर्मांतरण की गतिविधि को संचालित किया जा रहा है ।

अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल इन सभी गंभीर जनसांख्यिकीय असंतुलन पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए सरकार से आग्रह करता है कि -

1 देश में संसाधनों की उपलब्धता, भविष्य की आवश्यकताओं और जनसांख्यिकीय असंतुलन की समस्या को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय जनसंख्या नीति को पुनः तैयार करे, और उसे सभी पर समान रूप से लागू करे ।

2 सीमा पार से होने वाली अवैध घुसपैठ पर पूरी तरह से अंकुश लगाये । नागरिकों का एक राष्ट्रीय रजिस्टर तैयार किया जाए और घुसपैठियों को नागरिकता के अधिकार प्राप्त करने और भूमि की खरीद करने से रोके ।

अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल का स्वयंसेवकों सहित सभी देशवासियों से आग्रह है कि इन जनसंख्या परिवर्तन के कारणों का संज्ञान लेते हुए अपना राष्ट्रीय कर्तव्य मानकर जनता में जागरूकता पैदा करें और इस जनसांख्यिकीय असंतुलन से देश को बचाने के लिए सभी वैध कदम उठायें ।

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