क्या श्री सुब्रमण्यम स्वामी और भाजपा के बीच दूरी आ रही है ?

हैरत की बात हैकि सुब्रमण्यम स्वामी और केंद्र सरकार एक मामले में आमने सामने दिखाई दे रहे हैं | सुब्रमण्यम स्वामी ने सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका लगाई, जिसमें समुदायों के बीच शत्रुता और घृणा का कारण बन सकने वाले भाषणों और लेखों पर दंडात्मक प्रावधान वाली धारा 153 A की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी | जबकि केंद्र सरकार ने इस याचिका को अग्राह्य करने की न्यायालय से मांग की है।

एक ओर तो श्री स्वामी का तर्क यह है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी का उल्लंघन करती है, जबकि केंद्र सरकार का मानना है कि यह धारा समुदायों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने और लोक शान्ति भंग करने की प्रवृत्ति को रोकती है तथा ऐसे कृत्य करने वालों को दंडित करने का अधिकार देती है | अतः अलग अलग वर्गों के बीच सद्भाव बनाए रखने के लिए आवश्यक है ।

श्री स्वामी की याचिका के जबाब में गृह मंत्रालय में अवर सचिव की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया है कि "जो कृत्य स्पष्टतः सार्वजनिक व्यवस्था भंग करने वाले हैं, उन पर खंड 153 ए के अंतर्गत लगाए गए विधायी प्रतिबंध सार्वजनिक व्यवस्था के हित में हैं।“ 

इससे भी आगे बढ़कर शपथपत्र में भाजपा नेता श्री स्वामी द्वारा लिखित एक पुस्तक का भी उल्लेख किया गया है। शपथ पत्र में आरोप लगाया गया है कि “Terrorism in India” नामक इस पुस्तक में भारतीय समुदायों के बीच घृणा फैलाने वाले भड़काऊ भाषण संकलित हैं | इस पुस्तक की विषय वस्तु, इसकी भाषा, इसकी नैतिक कहानी सब कुछ धारा 153 A के अनुसार अनिष्टकारी कुचेष्टा है |

गृह मंत्रालय ने अपने हलफनामे में कहा है कि इस किताब में याचिकाकर्ता ने हिंदू और मुसलमानों के बीच शत्रुता और घृणा की भावना को बढ़ावा देने का प्रयत्न किया है | और इस प्रकार आईपीसी के प्रावधानों का उल्लंघन किया है ।

क्या है पूरा मामला ? 

श्री स्वामी पर आसाम के करीमगंज की एक अदालत में काजीरंगा विश्वविद्यालय में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने के आरोप में मुक़दमा चल रहा है, श्री स्वामी ने उपरोक्त याचिका दायर कर सर्वोच्च न्यायालय से राहत की मांग की थी । उन्होंने याचिका में भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए (धर्म, जाति, जन्म, निवास, भाषा, स्थान के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना, और सद्भाव के रखरखाव के लिए प्रतिकूल कृत्य करना) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी ।

श्री स्वामी पर आरोप है कि उन्होंने 15 मार्च को काजीरंगा विश्वविद्यालय में एक भड़काऊ भाषण दिया | अदालत द्वारा गिरफ्तारी वारंट जारी कर श्री स्वामी को 30 जून के पूर्व अदालत के समक्ष उपस्थित करने का आदेश दिया | जिस पर आसाम उच्च न्यायालय ने स्टे दिया था ।

इस पूरे मामले पर नजर डालें तो क्या ऐसा नहीं लगता है कि अब भाजपा सरकार और श्री स्वामी के बीच दूरी बढ़ने वाली है ? सरकार धारा 153 A के पक्ष में दलील दे यह तो समझ में आता है, किन्तु शपथपत्र में श्री स्वामी की पुस्तक का हवाला दिया जाना स्पष्टतः रणभेरी का संकेत है | सचमुच हिंदुत्व के पक्ष में खड़े होना, काँटों पर चलने जैसा ही है | कई बार तो अपने पराये में भेद करना भी कठिन हो जाता है |
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